संत की लाश पड़ी रही, जमीन के लिए लड़ते रहे:यूपी में मंदिर की 50 करोड़ की जमीन, प्रशासन ने अपने कब्जे में ली

संत की लाश पड़ी रही, जमीन के लिए लड़ते रहे:यूपी में मंदिर की 50 करोड़ की जमीन, प्रशासन ने अपने कब्जे में ली

वो लोग आश्रम में कब्जा करना चाहते हैं। हमारे सुरेंद्र दास बाबा तो 6-7 साल की उम्र से यहां पर रह रहे थे। ये पूरी 18 बीघा जमीन इन्हीं के नाम है। यहां पर जो रघुनंदन दास रहता है वो तो हिस्ट्रीशीटर है। औरैया से यहां पर लाया गया था। बस इनकी तो एक ही इच्छा कैसे इस जमीन पर प्लॉटिंग हो जाए और ये लोग मालामाल हो जाएं। ये कहना है बाबा सुरेंद्र दास के समर्थक राम किशन दास का। मैनपुरी में राम जानकी मंदिर के महंत 70 साल के बाबा सुरेंद्र दास की मौत के बाद से विवाद चल रहा है। महंत की लाश पड़ी रही और दोनों गुट मारपीट करते रहे। बाबा सुरेंद्र दास अंतिम संस्कार करने को लेकर एक पक्ष धरने पर बैठ गया। बाद में जमीन के कागज दिखाने पर मंदिर के बगल वाली जमीन पर बाबा सुरेंद्र दास का अंतिम संस्कार हुआ, लेकिन मंदिर के आसपास माहौल अभी भी तनावपूर्ण है। पुलिस फोर्स तैनात है। घटना की सच्चाई जानने के लिए दैनिक भास्कर टीम मैनपुरी से 36 किलोमीटर दूर किशनी थाना क्षेत्र के रामजानकी मंदिर पहुंची। जटपुरा चौराहे पर ये मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास का एरिया डेवलप है। 400 दुकानें बनी हुई हैं। चौराहे से जाने वाली तीन सड़कों पर तो निर्माण हो रखा है, लेकिन मंदिर वाली सड़क पर अभी कुछ नहीं बना हुआ है। पढ़िए, कैसे मंदिर की जमीन 50 करोड़ की हो गई, कब्जे के लिए क्या साजिश रची गई… विकास हुआ और बढ़ गई रामजानकी मंदिर की जमीन की कीमत
मंदिर से जुड़ा यह विवाद 5 साल पहले शुरू हुआ। जब मैनपुरी के किशनी थाना क्षेत्र में बने राम जानकी मंदिर की जमीन पर भू-माफिया की नजर पड़ी। ये एरिया पहले डेवलप नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे क्षेत्र का विकास हुआ और जमीन की कीमत बढ़ती चली गई। यहां जमीन की कीमत 5 से लेकर 8 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फीट है। आज मंदिर की 18 बीघा जमीन की कीमत लगभग 50 करोड़ आंकी जा रही है। इस मामले में कोई भी कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहा है। लोगों का कहना है- इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हैं। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया- आज से 50-60 साल पहले इस जमीन की कोई कीमत नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे विकास यहां तक पहुंचा। आज जीरो रेट वाली सड़क का दाम करोड़ों तक पहुंच गया है। हम बोलेंगे तो दिक्कत हो जाएगी। बहुत कहने पर चौराहे के पास दुकान लगाए सुशीला देवी ने हमसे बात की। उन्होंने बताया- वो 25 साल पहले यहां आई थी। तबसे वो बाबा सुरेंद्र दास और उनके गुरु को यहां पर देख रही हैं। गुरु की मौत के बाद बाबा सुरेंद्र दास ही यहां पर सब देखते हैं। वहीं पूजा-पाठ, साफ-सफाई सब करते थे। इसे ज्यादा सुशीला ने हमें कुछ नहीं बताया। अब जानिए मंदिर का पूरा इतिहास- 1960 में हुआ था राम जानकी मंदिर का निर्माण… ये मंदिर साल 1960 में बना था। तब यहां पर बाबा हरभजन दास रहते थे, उनके पास बस एक झोपड़ी थी। काफी समय बाद क्षेत्र के लोगों ने चंदा लगाकर उनके लिए एक कमरा बनवाया था। साल 1980 में उनकी मौत के बाद उनके शिष्य सरयू दास को मंदिर की कमान सौंप दी गई। 30 साल तक वो यहीं पर रहे। सरयू दास के रहते ही सुरेंद्र दास यहां पर आ गए थे। उस समय वो बच्चे थे, लेकिन मंदिर और बाबा की खूब सेवा करते थे। साल 2010 में सरयू दास की मृत्यु के बाद सुरेंद्र ही मंदिर के महंत बने। मंदिर की जमीन पर होती थी खेती-किसानी ये पूरी जमीन साल 1960 में ही मंदिर के महंत के नाम कर दी गई थी। जो भी इस मंदिर का महंत बनेगा, उसके नाम मंदिर की जमीन हो जाएगी। उस हिसाब से इस समय ये जमीन बाबा सुरेंद्र दास की थी। मंदिर की जमीन पर कोई भी किसी भी तरह का कार्यक्रम नहीं कर सकता था। बस उस पर खेती-किसानी की जाती थी। जिससे मंदिर के आयोजनों का खर्चा निकलता। लेकिन भू-माफिया की नजर पड़ते ही विवाद शुरू हो गया। ये भी बताया जाता है कि कुछ लोगों ने तो सुरेंद्र बाबा से जमीन उनके नाम करने की बात कही। बदले में मोटी रकम देने का लालच भी दिया, लेकिन वो नहीं माने। इस मंदिर की 4 बीघा जमीन बाबा सुरेंद्र दास के नाम है। वो इसी डर से वो जमीन भी मंदिर के नाम नहीं कर रहे थे। उनको लगता था कहीं मंदिर की जमीन पर कब्जा हो गया तो कम से कम थोड़ी जमीन तो उनके पास रहेगी। औरैया के रघुनंदन को बना दिया महंत, वो हिस्ट्रीशीटर है… आसपास के लोगों के मुताबिक, 5 साल से यहां विवाद ज्यादा बढ़ गया था। आए दिन कोई न कोई विवाद खड़ा हो जाता था। डर की वजह से लोगों ने मंदिर तक जाना बंद कर दिया था। अभी 2 साल पहले एक बहुत बड़े भू-माफिया ने यहां पर औरैया के रघुनंदन को महंत बनाकर बैठा दिया और बाबा सुरेंद्र को मंदिर से बाहर निकाल दिया। आरोप है कि रघुनंदन हिस्ट्रीशीटर है। उस पर केस भी दर्ज हैं। वो भू-माफिया बहुत पावर फुल है, इस वजह से कोई उसका विरोध नहीं कर पाया। लेकिन बाबा सुरेंद्र दास फिर भी लड़े। उन्होंने मंदिर वापस पाने की बहुत कोशिश की। थाने के चक्कर काटे। पुलिस से मदद मांगी, सीएम तक से शिकायत की, लेकिन उन्हें कहीं से राहत नहीं मिली। वो अपने शिष्यों के पास रहने लगे। कभी-कभी वो मंदिर आते तो उनको अंदर नहीं जाने दिया जाता था। वो बहुत दुखी रहते थे। उनको यहां पर बहुत अपमानित किया जाता। इस पूरे मामले में क्षेत्र का एक भाजपा नेता भी शामिल है। रघुनंदन को मंदिर का महामंडलेश्वर बना दिया गया था 5 जून को रघुनंदन को महामंडलेश्वर बनाने के लिए मंदिर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस बात की जानकारी जब बाबा सुरेंद्र को लगी तो वो परेशान हो गए। वो अपने एक शिष्य के साथ भागवत कथा में शामिल होने गए थे। जहां पर उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। जब तक वो अपने आश्रम तक पहुंचते, उनकी मौत हो गई। बाब सुरेंद्र दास के अनुयायियों का आरोप है कि बाबा की मौत उनकी जमीन पर कब्जा करने पर हार्ट अटैक से हुई है। बाबा सुरेंद्र दास के समर्थक राम किशन दास का कहना है- हमारे बाबा की मौत अपमान और उनकी जमीन पर कब्जा होने की चिंता से हुई। वो इस बात से बहुत परेशान रहते थे। इन लोगों ने मरने के बाद भी उनको जो सम्मान मिलना चाहिए था, वो नहीं दिया। हम लोग पुलिस से मांग करते हैं, सभी आरोपियों पर सख्त कार्रवाई हो। 5-6 साल की उम्र में बाबा सुरेंद्र ने छोड़ दिया था अपना घर बाबा सुरेंद्र दास (70) किशनी थाना क्षेत्र की चौकी कुसमरा क्षेत्र के गांव नगला अहिर के निवासी थे। उन्होंने लगभग 5-6 साल की उम्र में अपने घर को छोड़ दिया था। उसके बाद वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने गुरु जी सरयू दास के पास आकर रहने लगे थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन राम जानकी मंदिर की सेवा पर ही लगा दिया था। उनका एक भतीजा रमेश, उनसे मिलने आता रहता था। सीओ भोगांव सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया- राम जानकी मंदिर पर दो बाबाओं के अनुयायियों के बीच विवाद था। बाबा रघुनंदन दास मंदिर के अंदर थे और बाबा सुरेंद्र दास का शव मंदिर के बाहर रखा हुआ था। दोनों के अनुयायियों के बीच शव के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था। सभी को समझाकर मामला शांत करा दिया गया है। बाबा रघुनंदन दास को भी मंदिर से बाहर कर दिया गया है। मंदिर के अध्यक्ष तहसीलदार किशनी हैं। शव यात्रा के दौरान पत्थर फेंकने और हंगामा करने के आरोप में अब तक 13 लोगों पर शांति भंग की कार्रवाई की जा चुकी है। ——————— रामजानकी मंदिर से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें- मैनपुरी में महंत के दाह संस्कार के लिए खूनी संघर्ष:दो गुटों में जमकर चले लाठी-डंडे; पुलिस का लाठीचार्ज, करोड़ों की जमीन पर विवाद मैनपुरी में रामजानकी मंदिर के महंत की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए बवाल हो गया। दो गुट आमने-सामने आ गए। जमकर लाठी-डंडे और ईंट-पत्थर चले। इस झड़प में कई लोग घायल हो गए। मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठी चार्ज कर हालात को काबू में किया। यहां पढ़ें पूरी खबर वो लोग आश्रम में कब्जा करना चाहते हैं। हमारे सुरेंद्र दास बाबा तो 6-7 साल की उम्र से यहां पर रह रहे थे। ये पूरी 18 बीघा जमीन इन्हीं के नाम है। यहां पर जो रघुनंदन दास रहता है वो तो हिस्ट्रीशीटर है। औरैया से यहां पर लाया गया था। बस इनकी तो एक ही इच्छा कैसे इस जमीन पर प्लॉटिंग हो जाए और ये लोग मालामाल हो जाएं। ये कहना है बाबा सुरेंद्र दास के समर्थक राम किशन दास का। मैनपुरी में राम जानकी मंदिर के महंत 70 साल के बाबा सुरेंद्र दास की मौत के बाद से विवाद चल रहा है। महंत की लाश पड़ी रही और दोनों गुट मारपीट करते रहे। बाबा सुरेंद्र दास अंतिम संस्कार करने को लेकर एक पक्ष धरने पर बैठ गया। बाद में जमीन के कागज दिखाने पर मंदिर के बगल वाली जमीन पर बाबा सुरेंद्र दास का अंतिम संस्कार हुआ, लेकिन मंदिर के आसपास माहौल अभी भी तनावपूर्ण है। पुलिस फोर्स तैनात है। घटना की सच्चाई जानने के लिए दैनिक भास्कर टीम मैनपुरी से 36 किलोमीटर दूर किशनी थाना क्षेत्र के रामजानकी मंदिर पहुंची। जटपुरा चौराहे पर ये मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास का एरिया डेवलप है। 400 दुकानें बनी हुई हैं। चौराहे से जाने वाली तीन सड़कों पर तो निर्माण हो रखा है, लेकिन मंदिर वाली सड़क पर अभी कुछ नहीं बना हुआ है। पढ़िए, कैसे मंदिर की जमीन 50 करोड़ की हो गई, कब्जे के लिए क्या साजिश रची गई… विकास हुआ और बढ़ गई रामजानकी मंदिर की जमीन की कीमत
मंदिर से जुड़ा यह विवाद 5 साल पहले शुरू हुआ। जब मैनपुरी के किशनी थाना क्षेत्र में बने राम जानकी मंदिर की जमीन पर भू-माफिया की नजर पड़ी। ये एरिया पहले डेवलप नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे क्षेत्र का विकास हुआ और जमीन की कीमत बढ़ती चली गई। यहां जमीन की कीमत 5 से लेकर 8 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फीट है। आज मंदिर की 18 बीघा जमीन की कीमत लगभग 50 करोड़ आंकी जा रही है। इस मामले में कोई भी कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहा है। लोगों का कहना है- इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हैं। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया- आज से 50-60 साल पहले इस जमीन की कोई कीमत नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे विकास यहां तक पहुंचा। आज जीरो रेट वाली सड़क का दाम करोड़ों तक पहुंच गया है। हम बोलेंगे तो दिक्कत हो जाएगी। बहुत कहने पर चौराहे के पास दुकान लगाए सुशीला देवी ने हमसे बात की। उन्होंने बताया- वो 25 साल पहले यहां आई थी। तबसे वो बाबा सुरेंद्र दास और उनके गुरु को यहां पर देख रही हैं। गुरु की मौत के बाद बाबा सुरेंद्र दास ही यहां पर सब देखते हैं। वहीं पूजा-पाठ, साफ-सफाई सब करते थे। इसे ज्यादा सुशीला ने हमें कुछ नहीं बताया। अब जानिए मंदिर का पूरा इतिहास- 1960 में हुआ था राम जानकी मंदिर का निर्माण… ये मंदिर साल 1960 में बना था। तब यहां पर बाबा हरभजन दास रहते थे, उनके पास बस एक झोपड़ी थी। काफी समय बाद क्षेत्र के लोगों ने चंदा लगाकर उनके लिए एक कमरा बनवाया था। साल 1980 में उनकी मौत के बाद उनके शिष्य सरयू दास को मंदिर की कमान सौंप दी गई। 30 साल तक वो यहीं पर रहे। सरयू दास के रहते ही सुरेंद्र दास यहां पर आ गए थे। उस समय वो बच्चे थे, लेकिन मंदिर और बाबा की खूब सेवा करते थे। साल 2010 में सरयू दास की मृत्यु के बाद सुरेंद्र ही मंदिर के महंत बने। मंदिर की जमीन पर होती थी खेती-किसानी ये पूरी जमीन साल 1960 में ही मंदिर के महंत के नाम कर दी गई थी। जो भी इस मंदिर का महंत बनेगा, उसके नाम मंदिर की जमीन हो जाएगी। उस हिसाब से इस समय ये जमीन बाबा सुरेंद्र दास की थी। मंदिर की जमीन पर कोई भी किसी भी तरह का कार्यक्रम नहीं कर सकता था। बस उस पर खेती-किसानी की जाती थी। जिससे मंदिर के आयोजनों का खर्चा निकलता। लेकिन भू-माफिया की नजर पड़ते ही विवाद शुरू हो गया। ये भी बताया जाता है कि कुछ लोगों ने तो सुरेंद्र बाबा से जमीन उनके नाम करने की बात कही। बदले में मोटी रकम देने का लालच भी दिया, लेकिन वो नहीं माने। इस मंदिर की 4 बीघा जमीन बाबा सुरेंद्र दास के नाम है। वो इसी डर से वो जमीन भी मंदिर के नाम नहीं कर रहे थे। उनको लगता था कहीं मंदिर की जमीन पर कब्जा हो गया तो कम से कम थोड़ी जमीन तो उनके पास रहेगी। औरैया के रघुनंदन को बना दिया महंत, वो हिस्ट्रीशीटर है… आसपास के लोगों के मुताबिक, 5 साल से यहां विवाद ज्यादा बढ़ गया था। आए दिन कोई न कोई विवाद खड़ा हो जाता था। डर की वजह से लोगों ने मंदिर तक जाना बंद कर दिया था। अभी 2 साल पहले एक बहुत बड़े भू-माफिया ने यहां पर औरैया के रघुनंदन को महंत बनाकर बैठा दिया और बाबा सुरेंद्र को मंदिर से बाहर निकाल दिया। आरोप है कि रघुनंदन हिस्ट्रीशीटर है। उस पर केस भी दर्ज हैं। वो भू-माफिया बहुत पावर फुल है, इस वजह से कोई उसका विरोध नहीं कर पाया। लेकिन बाबा सुरेंद्र दास फिर भी लड़े। उन्होंने मंदिर वापस पाने की बहुत कोशिश की। थाने के चक्कर काटे। पुलिस से मदद मांगी, सीएम तक से शिकायत की, लेकिन उन्हें कहीं से राहत नहीं मिली। वो अपने शिष्यों के पास रहने लगे। कभी-कभी वो मंदिर आते तो उनको अंदर नहीं जाने दिया जाता था। वो बहुत दुखी रहते थे। उनको यहां पर बहुत अपमानित किया जाता। इस पूरे मामले में क्षेत्र का एक भाजपा नेता भी शामिल है। रघुनंदन को मंदिर का महामंडलेश्वर बना दिया गया था 5 जून को रघुनंदन को महामंडलेश्वर बनाने के लिए मंदिर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस बात की जानकारी जब बाबा सुरेंद्र को लगी तो वो परेशान हो गए। वो अपने एक शिष्य के साथ भागवत कथा में शामिल होने गए थे। जहां पर उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। जब तक वो अपने आश्रम तक पहुंचते, उनकी मौत हो गई। बाब सुरेंद्र दास के अनुयायियों का आरोप है कि बाबा की मौत उनकी जमीन पर कब्जा करने पर हार्ट अटैक से हुई है। बाबा सुरेंद्र दास के समर्थक राम किशन दास का कहना है- हमारे बाबा की मौत अपमान और उनकी जमीन पर कब्जा होने की चिंता से हुई। वो इस बात से बहुत परेशान रहते थे। इन लोगों ने मरने के बाद भी उनको जो सम्मान मिलना चाहिए था, वो नहीं दिया। हम लोग पुलिस से मांग करते हैं, सभी आरोपियों पर सख्त कार्रवाई हो। 5-6 साल की उम्र में बाबा सुरेंद्र ने छोड़ दिया था अपना घर बाबा सुरेंद्र दास (70) किशनी थाना क्षेत्र की चौकी कुसमरा क्षेत्र के गांव नगला अहिर के निवासी थे। उन्होंने लगभग 5-6 साल की उम्र में अपने घर को छोड़ दिया था। उसके बाद वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने गुरु जी सरयू दास के पास आकर रहने लगे थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन राम जानकी मंदिर की सेवा पर ही लगा दिया था। उनका एक भतीजा रमेश, उनसे मिलने आता रहता था। सीओ भोगांव सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया- राम जानकी मंदिर पर दो बाबाओं के अनुयायियों के बीच विवाद था। बाबा रघुनंदन दास मंदिर के अंदर थे और बाबा सुरेंद्र दास का शव मंदिर के बाहर रखा हुआ था। दोनों के अनुयायियों के बीच शव के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था। सभी को समझाकर मामला शांत करा दिया गया है। बाबा रघुनंदन दास को भी मंदिर से बाहर कर दिया गया है। मंदिर के अध्यक्ष तहसीलदार किशनी हैं। शव यात्रा के दौरान पत्थर फेंकने और हंगामा करने के आरोप में अब तक 13 लोगों पर शांति भंग की कार्रवाई की जा चुकी है। ——————— रामजानकी मंदिर से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें- मैनपुरी में महंत के दाह संस्कार के लिए खूनी संघर्ष:दो गुटों में जमकर चले लाठी-डंडे; पुलिस का लाठीचार्ज, करोड़ों की जमीन पर विवाद मैनपुरी में रामजानकी मंदिर के महंत की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए बवाल हो गया। दो गुट आमने-सामने आ गए। जमकर लाठी-डंडे और ईंट-पत्थर चले। इस झड़प में कई लोग घायल हो गए। मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठी चार्ज कर हालात को काबू में किया। यहां पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर