सोनीपत जिले में स्थित मां चिटाने वाली मंदिर भक्तों की आस्था और भक्ति का अनूठा केंद्र है। इस मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि इससे जुड़ी चमत्कारिक घटनाएं भी भक्तों को मां के प्रति और अधिक समर्पित कर देती हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है और इसकी मूर्ति 400 साल पहले गांव चिटाना के तालाब से मिली थी। देशभर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं और आस्था लेकर मंदिर पहुंचते हैं। मां चिटाने वाली मंदिर का इतिहास मां चिटाने वाली मंदिर का इतिहास अत्यंत समृद्ध और चमत्कारी घटनाओं से भरा हुआ है। मान्यता है कि गांव चिटाना की एक ब्राह्मण कन्या को स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और कहा कि गांव के तालाब में उनकी दिव्य मूर्ति मिट्टी के नीचे दबी हुई है। माता ने आदेश दिया कि इस मूर्ति को यथायोग्य स्थान पर स्थापित किया जाए, जिससे वे सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगी। सुबह जब कन्या ने अपने परिजनों को इस बात की जानकारी दी, तो गांव के विद्वान ब्राह्मणों की सलाह से तालाब की खुदाई करवाई गई। खुदाई के दौरान माता की अष्टधातु से निर्मित भव्य मूर्ति प्राप्त हुई, जिसे पहले सुरक्षा कारणों से सोनीपत लाया गया और वहां हलवाई हट्टा स्थित सुनारों वाली गली में एक भव्य मंदिर बनाकर स्थापित किया गया। मां चिटाने वाली की विशेष मान्यता मां चिटाने वाली मंदिर में माता का दिव्य स्वरूप अष्टधातु की मूर्ति के रूप में विराजमान है। मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है, और मान्यता है कि यहां माता से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।मंदिर में मां का विशेष शयनकक्ष भी बनाया गया है, जहां माता के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तों का मानना है कि यहां आने वाले श्रद्धालु किसी भी परेशानी में हों, अगर वे माता का सच्चे मन से स्मरण करते हैं, तो उनकी सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। देशभर से आते हैं श्रद्धालु सोनीपत का यह मंदिर सिर्फ स्थानीय भक्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि दूर-दराज से भी लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं। खासकर नवरात्रों के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु देशभर के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश से भारी संख्या में भक्तजन यहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने पहुंचते हैं। नवरात्रि का विशेष आयोजन और मेला हर साल नवरात्रि में मां चिटाने वाली मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सप्तमी और अष्टमी को यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। सप्तमी की रात को महाआरती की जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।इसके अलावा, मंदिर में स्थित एक 300 साल पुराना इमली का पेड़ भी खास महत्व रखता है। कहा जाता है कि यह पेड़ एक समय सूख गया था, लेकिन जब माता के स्थान पर अखंड ज्योत जलाई गई, तो यह पुनः हरा-भरा हो गया। इसे भी एक चमत्कार के रूप में देखा जाता है। मां चिटाने वाली मंदिर – श्रद्धा और चमत्कार का प्रतीक सोनीपत का यह पावन स्थल भक्तों के लिए सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और चमत्कार का प्रतीक है। यहां आने वाले श्रद्धालु मां चिटाने वाली से अपनी मनोकामना मांगते हैं और पूर्ण विश्वास रखते हैं कि माता उनकी झोली खुशियों से भर देंगी। नवरात्रि के दौरान भक्तों की अपार भीड़ और मंदिर के चमत्कारों की कहानियां इसे हरियाणा और आसपास के राज्यों में सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों में से एक बनाती हैं। सोनीपत जिले में स्थित मां चिटाने वाली मंदिर भक्तों की आस्था और भक्ति का अनूठा केंद्र है। इस मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि इससे जुड़ी चमत्कारिक घटनाएं भी भक्तों को मां के प्रति और अधिक समर्पित कर देती हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है और इसकी मूर्ति 400 साल पहले गांव चिटाना के तालाब से मिली थी। देशभर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं और आस्था लेकर मंदिर पहुंचते हैं। मां चिटाने वाली मंदिर का इतिहास मां चिटाने वाली मंदिर का इतिहास अत्यंत समृद्ध और चमत्कारी घटनाओं से भरा हुआ है। मान्यता है कि गांव चिटाना की एक ब्राह्मण कन्या को स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और कहा कि गांव के तालाब में उनकी दिव्य मूर्ति मिट्टी के नीचे दबी हुई है। माता ने आदेश दिया कि इस मूर्ति को यथायोग्य स्थान पर स्थापित किया जाए, जिससे वे सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगी। सुबह जब कन्या ने अपने परिजनों को इस बात की जानकारी दी, तो गांव के विद्वान ब्राह्मणों की सलाह से तालाब की खुदाई करवाई गई। खुदाई के दौरान माता की अष्टधातु से निर्मित भव्य मूर्ति प्राप्त हुई, जिसे पहले सुरक्षा कारणों से सोनीपत लाया गया और वहां हलवाई हट्टा स्थित सुनारों वाली गली में एक भव्य मंदिर बनाकर स्थापित किया गया। मां चिटाने वाली की विशेष मान्यता मां चिटाने वाली मंदिर में माता का दिव्य स्वरूप अष्टधातु की मूर्ति के रूप में विराजमान है। मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है, और मान्यता है कि यहां माता से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।मंदिर में मां का विशेष शयनकक्ष भी बनाया गया है, जहां माता के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तों का मानना है कि यहां आने वाले श्रद्धालु किसी भी परेशानी में हों, अगर वे माता का सच्चे मन से स्मरण करते हैं, तो उनकी सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। देशभर से आते हैं श्रद्धालु सोनीपत का यह मंदिर सिर्फ स्थानीय भक्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि दूर-दराज से भी लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं। खासकर नवरात्रों के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु देशभर के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश से भारी संख्या में भक्तजन यहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने पहुंचते हैं। नवरात्रि का विशेष आयोजन और मेला हर साल नवरात्रि में मां चिटाने वाली मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सप्तमी और अष्टमी को यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। सप्तमी की रात को महाआरती की जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।इसके अलावा, मंदिर में स्थित एक 300 साल पुराना इमली का पेड़ भी खास महत्व रखता है। कहा जाता है कि यह पेड़ एक समय सूख गया था, लेकिन जब माता के स्थान पर अखंड ज्योत जलाई गई, तो यह पुनः हरा-भरा हो गया। इसे भी एक चमत्कार के रूप में देखा जाता है। मां चिटाने वाली मंदिर – श्रद्धा और चमत्कार का प्रतीक सोनीपत का यह पावन स्थल भक्तों के लिए सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और चमत्कार का प्रतीक है। यहां आने वाले श्रद्धालु मां चिटाने वाली से अपनी मनोकामना मांगते हैं और पूर्ण विश्वास रखते हैं कि माता उनकी झोली खुशियों से भर देंगी। नवरात्रि के दौरान भक्तों की अपार भीड़ और मंदिर के चमत्कारों की कहानियां इसे हरियाणा और आसपास के राज्यों में सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों में से एक बनाती हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
