भास्कर न्यूज | जालंधर दकोहा इलाके में 14 साल की नाबालिग किशोरी की चुन्नी से गला घोंटकर हत्या के मामले में नामजद तीसरे नाबालिग आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोपी जुवेनाइल है, जिसे मंगलवार को बाल सुधार गृह भेज दिया है। एडीसीपी हेडक्वार्टर सुखविंदर सिंह ने बताया था कि 12 जनवरी को दकोहा में झुग्गियां निवासी आनंद अली ने शिकायत दी थी कि उन्होंने अपनी बेटी का झुग्गियों में रहने वाले लड़के के साथ रिश्ता कर दिया था। लड़का उनकी बेटी को 9 जनवरी की रात को घर से बर्गर खिलाने के लिए ले गया था, लेकिन देर रात तक जब बेटी घर नहीं लौटी तो उन्होंने लड़के से पूछा तो वह आनाकानी करने लगा। एक दिन बीत जाने के बाद भी जब लड़की का कोई सुराग नहीं मिला तो उन्होंने लड़के से सख्ती से पूछताछ की तो उसने माना कि उसने दो दोस्तों संग मिल कर गांव बड़िंग के इलाके में एक कुएं में फेंक दिया है। तभी परिवार ने पुलिस को सूचना दी। थाना रामामंडी के एसएचओ परमिंदर सिंह थिंद ने बताया कि पुलिस की प्राथमिक जांच में गिरफ्तार दोनों आरोपियों ने माना कि मंगेतर को शक था कि लड़की की किसी और के साथ दोस्ती है। इसको लेकर उसने उनको साथ लेकर चुन्नी के साथ गला घोंटकर हत्या कर दी थी। इसके बाद उन्होंने शव को छिपाने के लिए सुनसान इलाके में एक कुएं में फेंक दिया। भास्कर न्यूज | जालंधर दकोहा इलाके में 14 साल की नाबालिग किशोरी की चुन्नी से गला घोंटकर हत्या के मामले में नामजद तीसरे नाबालिग आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोपी जुवेनाइल है, जिसे मंगलवार को बाल सुधार गृह भेज दिया है। एडीसीपी हेडक्वार्टर सुखविंदर सिंह ने बताया था कि 12 जनवरी को दकोहा में झुग्गियां निवासी आनंद अली ने शिकायत दी थी कि उन्होंने अपनी बेटी का झुग्गियों में रहने वाले लड़के के साथ रिश्ता कर दिया था। लड़का उनकी बेटी को 9 जनवरी की रात को घर से बर्गर खिलाने के लिए ले गया था, लेकिन देर रात तक जब बेटी घर नहीं लौटी तो उन्होंने लड़के से पूछा तो वह आनाकानी करने लगा। एक दिन बीत जाने के बाद भी जब लड़की का कोई सुराग नहीं मिला तो उन्होंने लड़के से सख्ती से पूछताछ की तो उसने माना कि उसने दो दोस्तों संग मिल कर गांव बड़िंग के इलाके में एक कुएं में फेंक दिया है। तभी परिवार ने पुलिस को सूचना दी। थाना रामामंडी के एसएचओ परमिंदर सिंह थिंद ने बताया कि पुलिस की प्राथमिक जांच में गिरफ्तार दोनों आरोपियों ने माना कि मंगेतर को शक था कि लड़की की किसी और के साथ दोस्ती है। इसको लेकर उसने उनको साथ लेकर चुन्नी के साथ गला घोंटकर हत्या कर दी थी। इसके बाद उन्होंने शव को छिपाने के लिए सुनसान इलाके में एक कुएं में फेंक दिया। पंजाब | दैनिक भास्कर
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तरनतारन के जमीनी विवाद में नया मोड़:युवक और बुजुर्ग ने बताई पूरी कहानी, 20 साल से चल रहा विवाद
तरनतारन के जमीनी विवाद में नया मोड़:युवक और बुजुर्ग ने बताई पूरी कहानी, 20 साल से चल रहा विवाद तरनतारन के गांव सरहाली कलां में जमीन विवाद का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। पुलिस की मौजूदगी में हुई झड़प का वीडियो सामने आने के बाद अब मामले में नया मोड़ आया है। वीडियो में दिखाई दे रहे युवक और बुजुर्ग ने मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा है। युवकों का कहना है कि वे किसी भी तरह की मारपीट में शामिल नहीं थे। उनका कहना है कि बुजुर्ग और पंचायत के कुछ सदस्य केवल जमीन विवाद को सुलझाने के लिए वार्ता करने गए थे। लेकिन दूसरे पक्ष ने न केवल वीडियो बनाकर वायरल कर दिया, बल्कि उन पर मारपीट का भी आरोप लगाया। जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप वहीं, सरहाली कलां के रहने वाले बुजुर्ग अमरजीत सिंह ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने बताया कि विरोधी पक्ष ने उनकी जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है। अमरजीत सिंह पिछले 20 वर्षों से जमीन के कागजात लेकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से न्याय की अपील की है। एक दिन पहले वायरल हुए वीडियो में दिखाया गया था कि पुलिस विरोधी पक्ष का साथ देकर जमीन पर कब्जा करवा रही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने दोनों पक्षों को थाने बुलाया है और उनसे जमीन से संबंधित सभी दस्तावेज मांगे हैं। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
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बठिंडा में बनेगा नया बस स्टैंड:900 करोड़ की परियोजना को मंजूरी मिली, अस्पताल और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का भी निर्माण होगा
बठिंडा में बनेगा नया बस स्टैंड:900 करोड़ की परियोजना को मंजूरी मिली, अस्पताल और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का भी निर्माण होगा पंजाब सरकार ने बठिंडा शहर की ट्रैफिक समस्या को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मलोट रोड पर नया बस स्टैंड बनाने की घोषणा के साथ, सरकार ने इस दिशा में नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। यह निर्णय शहर में बड़ी बसों की आवाजाही को नियंत्रित करने और ट्रैफिक को सुगम बनाने के उद्देश्य से लिया गया है। स्थानीय नेताओं में श्रेय लेने की होड़ इस घोषणा के बाद, स्थानीय नेताओं के बीच श्रेय लेने की होड़ मच गई है। नगर निगम के नवनियुक्त मेयर पदमजीत मेहता और शहरी विधायक जगरूप सिंह गिल, दोनों ही इस प्रोजेक्ट को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। विधायक गिल ने बताया कि बठिंडा में कुल 800-900 करोड़ रुपए के विकास प्रोजेक्ट मंजूर किए गए हैं, जिनमें नया बस स्टैंड सबसे प्रमुख है। विधायक का वादा: हर समस्या का समाधान होगा विधायक जगरूप सिंह गिल ने कहा कि बस स्टैंड के अलावा, ईसीआई अस्पताल, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और अन्य कई विकास परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है। उन्होंने जनता को आश्वासन दिया कि सभी जरूरी मंजूरियां मिलने के बाद इन परियोजनाओं को जल्द ही पूरा किया जाएगा। साथ ही, उन्होंने शहरवासियों से किए गए वादों को निभाने और उनकी हर समस्या का समाधान करने का संकल्प दोहराया। नए बस स्टैंड का महत्व नया बस स्टैंड न केवल ट्रैफिक समस्या को हल करेगा, बल्कि शहर के विकास में भी अहम भूमिका निभाएगा। यह कदम बठिंडा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और नागरिकों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन परियोजनाओं को समय पर और प्रभावी ढंग से कैसे पूरा किया जाता है और इसका शहर पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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पंजाब में शिअद के लिए SGPC चुनाव होंगे चुनौती:लगातार हार से पार्टी में बगावत; निशाने पर सुखबीर; बड़े बादल से अनुभव की कमी
पंजाब में शिअद के लिए SGPC चुनाव होंगे चुनौती:लगातार हार से पार्टी में बगावत; निशाने पर सुखबीर; बड़े बादल से अनुभव की कमी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में बगावत ने पार्टी नेतृत्व को पूरी तरह उलझा दिया है। बागी गुट के नेता पार्टी की इस हालत के लिए प्रधान सुखबीर बादल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और उनके इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं। पार्टी में फूट का असर जालंधर पश्चिम विधानसभा उपचुनाव में भी साफ देखने को मिला। जहां शिअद के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को 1500 से भी कम वोट मिले और उसकी जमानत तक जब्त हो गई। वहीं, अगर यह बगावत जल्द नहीं थमी तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) चुनाव भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन जाएंगे। ऐसे में आइए समझते हैं कि पार्टी में बगावत क्यों पैदा हुई। 10 साल सत्ता में रहने के बाद लगातार हार शिरोमणि अकाली दल वो पार्टी है जो 2017 तक लगातार दो बार सरकार बनाने में सफल रही। हालांकि, साल 2015 में बेअदबी कांड और डेरा प्रमुख को माफ़ी देने का मामला हुआ। इससे लोगों की नाराज़गी बढ़ती चली गई। जिसका असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। पार्टी सिर्फ़ 15 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी दो सीटें जीतने में कामयाब रही। कार्यकर्ता भी पार्टी से दूर होने लगे और 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ़ 3 सीटें मिलीं। सभी बड़े नेता चुनाव हार गए। हालांकि, उस समय प्रकाश सिंह बादल ज़िंदा थे। ऐसे में उन्होंने झुंडा कमेटी बनाकर संगठनात्मक ढांचे को भंग कर दिया। हालांकि, सुखबीर बादल को प्रधान बनाए रखा। लोकसभा चुनाव में एक सीट तक सीमित 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी प्रमुख ने पंजाब बचाओ यात्रा निकाली। लोगों से जुड़ने की कोशिश की गई। साथ ही पार्टी को मजबूत किया गया। लेकिन इससे भी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। पार्टी बठिंडा सीट को छोड़कर किसी भी सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुई। यह सीट भी बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर ने जीती। इसके बाद जैसे ही चुनाव के लिए मंथन शुरू हुआ, उससे पहले ही पार्टी प्रमुख से इस्तीफा मांग लिया गया। इसके बाद बागी गुट श्री अकाली तख्त पहुंच गया। माफी के लिए अर्जी भी लगा दी। अब आइए जानते हैं एसजीपीसी चुनाव की चुनौतियां इस बार एसजीपीसी चुनाव में शिअद को किसी और से नहीं बल्कि अपने ही लोगों से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि अकाली दल के बागी गुट में शामिल हुए नेता ही अकाली दल की ताकत हैं। इन लोगों का अपना प्रभाव है। चाहे वो वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा हों, प्रो. प्रेम चंदूमाजरा हों, बीबी जागीर कौर हों या कोई और नाम। अमृतपाल और खालसा की तरफ झुकाव खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा ने चुनाव जीता है। वे शिरोमणि अकाली दल के थिंक टैंक की भी नींद उड़ा रहे हैं। माना जा रहा है कि वे इस बार एसजीपीसी चुनाव में अपने समर्थकों को भी उतारेंगे। सरबजीत सिंह खालसा ने कुछ दिन पहले दिल्ली में मीडिया से बातचीत में इस बात के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि आने वाले दिनों में इस बारे में फैसला लिया जाएगा। दोनों का अपने इलाकों में अच्छा प्रभाव है। एसजीपीसी में बड़े नेताओं की दिलचस्पी बीजेपी और आप में शामिल कई सिख नेता भी एसजीपीसी चुनाव में काफी दिलचस्पी रखते हैं। ऐसे में अकाली दल के लिए सीधी चुनौती है। अगर पिछले ढाई दशक की बात करें तो कभी ऐसा मौका नहीं आया जब किसी ने पार्टी द्वारा नामित उम्मीदवार को चुनौती दी हो। लेकिन अगर वे चुनाव में कमजोर पड़ गए तो यह भी देखने को मिलेगा। अकालियों के पास जो ताकत है वह भी उनके हाथ से निकल जाएगी। बड़े बादल जैसे अनुभव की कमी भले ही पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के पास करीब 29 साल का राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनके पास अपने पिता स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल जैसा अनुभव नहीं है, जो नाराज लोगों को मनाने और दुश्मन को गले लगाने में माहिर थे। इसका फायदा अब विपक्ष उठा रहा है। हालांकि प्रकाश सिंह बादल के बाद तीन बार सरकार बनी। उस समय भी कई नेता पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे, लेकिन उन्होंने किसी को बगावत का मौका नहीं दिया।