हरियाणा के पानीपत में सोमवार (16 दिसंबर) को पुलिस और बदमाशों के बीच गोलियां चलीं। जिसमें CIA स्टाफ के सब इंस्पेक्टर राजकुमार गोली लगने से घायल हो गए। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए फायरिंग की। जिसके बाद 4 युवकों को पकड़ लिया गया। एक आरोपी की पहचान डाहर गांव के रहने वाले कौशल के रूप में हुई है। पुलिस के मुताबिक हाल ही में मिठाई शॉप के मालिक से रंगदारी मांगी गई थी। रंगदारी न देने पर उसे अंजाम भुगतने की धमकी दी गई। इन्हीं बदमाशों ने रंगदारी मांगी थी। मुठभेड़ से जुड़ी तस्वीरें… पार्क में ताश खेल रहे थे सोमवार को पुलिस को सूचना मिली कि रंगदारी मांगने वाले बदमाश बिशन स्वरूप कॉलोनी स्थित पार्क में बैठे हुए हैं और उनके पास हथियार भी हैं। CIA की टीम सिविल ड्रेस में प्राइवेट गाड़ी में सवार होकर पार्क में पहुंची। पुलिस कर्मचारियों ने आते ही पार्क के दोनों गेट बंद कर दिए। 4 युवक पार्क के अंदर ताश खेल रहे थे। युवकों को पुलिस के आने की भनक लग गई। उन्होंने तुरंत हथियार निकाले और टीम पर फायरिंग करनी शुरू कर दी। गोली SI राजकुमार के पैर पर जाकर लगी। इसके बाद पुलिस ने फायरिंग की और बदमाशों को घेरकर पकड़ लिया। पार्क में दूसरे लोग भी बैठे हुए थे। वो लोग दीवार कूदकर भाग गए। DSP बोले- आरोपी पर पहले भी केस दर्ज DSP हेडक्वार्टर सतीश वत्स ने बताया कि घायल पुलिस कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत फिलहाल ठीक है। शिकायत मिलने के बाद पूरा मामला क्लियर हो पाएगा। पता चला है कि आरोपी कौशल के खिलाफ धमकी देने का मामला पहले भी चांदनी बाग थाने में दर्ज है। हरियाणा के पानीपत में सोमवार (16 दिसंबर) को पुलिस और बदमाशों के बीच गोलियां चलीं। जिसमें CIA स्टाफ के सब इंस्पेक्टर राजकुमार गोली लगने से घायल हो गए। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए फायरिंग की। जिसके बाद 4 युवकों को पकड़ लिया गया। एक आरोपी की पहचान डाहर गांव के रहने वाले कौशल के रूप में हुई है। पुलिस के मुताबिक हाल ही में मिठाई शॉप के मालिक से रंगदारी मांगी गई थी। रंगदारी न देने पर उसे अंजाम भुगतने की धमकी दी गई। इन्हीं बदमाशों ने रंगदारी मांगी थी। मुठभेड़ से जुड़ी तस्वीरें… पार्क में ताश खेल रहे थे सोमवार को पुलिस को सूचना मिली कि रंगदारी मांगने वाले बदमाश बिशन स्वरूप कॉलोनी स्थित पार्क में बैठे हुए हैं और उनके पास हथियार भी हैं। CIA की टीम सिविल ड्रेस में प्राइवेट गाड़ी में सवार होकर पार्क में पहुंची। पुलिस कर्मचारियों ने आते ही पार्क के दोनों गेट बंद कर दिए। 4 युवक पार्क के अंदर ताश खेल रहे थे। युवकों को पुलिस के आने की भनक लग गई। उन्होंने तुरंत हथियार निकाले और टीम पर फायरिंग करनी शुरू कर दी। गोली SI राजकुमार के पैर पर जाकर लगी। इसके बाद पुलिस ने फायरिंग की और बदमाशों को घेरकर पकड़ लिया। पार्क में दूसरे लोग भी बैठे हुए थे। वो लोग दीवार कूदकर भाग गए। DSP बोले- आरोपी पर पहले भी केस दर्ज DSP हेडक्वार्टर सतीश वत्स ने बताया कि घायल पुलिस कर्मचारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत फिलहाल ठीक है। शिकायत मिलने के बाद पूरा मामला क्लियर हो पाएगा। पता चला है कि आरोपी कौशल के खिलाफ धमकी देने का मामला पहले भी चांदनी बाग थाने में दर्ज है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी नेता ने डमी बताया:कहा- बापू-बेटा की सरकार का नारा कांग्रेस को ले डूबा, सुरजेवाला को कमान देने की मांग हरियाणा कांग्रेस के पूर्व महासचिव नाहर सिंह संधू ने पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और सांसद दीपेंद्र हुड्डा पर जमकर भड़ास निकाली है। उन्होंने हरियाणा में कांग्रेस की हार के लिए हुड्डा को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि इस बार बापू-बेटा की सरकार का नारा हरियाणा कांग्रेस पर भारी पड़ा। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि प्रदेश कांग्रेस को मजबूत और संगठित करने की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष की थी, लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभाई और सभी को साथ लेकर नहीं चले। प्रदेश अध्यक्ष ने रबर स्टाम्प की तरह काम किया किसी भी नेता की समस्या या शिकायत का समाधान करना और उसे साथ लाना उनकी जिम्मेदारी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और हमें नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए था। साथ ही प्रदेश अध्यक्ष भी डमी साबित हुए हैं, उन्होंने रबर स्टाम्प की तरह काम किया। नेता मनमानी करते है और पार्टी को डूबो देते है उन्होंने शीर्ष नेतृत्व से निवेदन किया है कि अब नेता प्रतिपक्ष चुनने की बारी है, अब ऐसे नेता को नेता प्रतिपक्ष चुने जो सभी को साथ लेकर चले, न ही किसी के दबाव में आकर काम करे और सभी की सुनवाई करे। कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा नुकसान कार्यकर्ता को होता है, क्योंकि वे पार्टी के लिए प्रचार प्रसार करते है। वे विपक्ष में रहकर जनता के मुद्दों को उठाते है, प्रदर्शन करते है, पुलिस की लाठियां खाते है और अपने ऊपर मुकदमें तक दर्ज करवाते है, लेकिन ऊपर बैठे नेता इस बात को नहीं समझते और वे अपनी मनमानी करके पार्टी को डूबोने का काम करते है। रणदीप सुरजेवाला को बनाए अध्यक्ष नाहर सिंह संधू ने रणदीप सुरजेवाला को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि रणदीप सुरजेवाला 2005 से पहले हरियाणा के कार्यकारी अध्यक्ष थे, भजन लाल जी के साथ। इन दोनों की जोड़ी ने कांग्रेस को सरकार में लाने का काम किया था, पूर्ण बहुमत से 67 एमएलए लेकर कांग्रेस सत्ता में आई थी। फैसले लेने की जरूरत है, मंथन की नहीं हरियाणा में हुई कांग्रेस की हार को लेकर अब कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को मंथन की अपेक्षा फैसले लेने की जरूरत है। हम किन कमियों की वजह से इलेक्शन हारे है, हमारे अंदर क्या कमियां है, किसकी वजह से है, उसके ऊपर सख्त एक्शन लेना चाहिए।
यादों के झरोखे से विधानसभा चुनाव:उम्मीदवार लोगों को बताता- वोट कैसे डाला जाता है, चुनावी प्रचार में लोग गाड़ी को देखने जाते थे
यादों के झरोखे से विधानसभा चुनाव:उम्मीदवार लोगों को बताता- वोट कैसे डाला जाता है, चुनावी प्रचार में लोग गाड़ी को देखने जाते थे एक समय था, जब लोग नेताओं के चुनावी प्रचार में उनके भाषण सुनने नहीं, उनकी गाड़ी को देखने जाते थे। कच्ची सड़कों पर धूल उड़ती थी, फिर भी बच्चे गाड़ियों के पीछे पर्चे उठाने के लिए भागते थे और लोग सड़कों के किनारे कतार लगाकर खड़े होते थे। हरियाणा में जब पहली बार चुनाव हुआ तो माहौल में इतना चकाचौंध नहीं था, सोशल मीडिया और इंटरनेट का जमाना भी नहीं था, उस वक्त चुनावी प्रचार करने में नेताओं के पसीने छूट जाया करते थे। एक गांव से दूसरे गांव पैदल चलकर जाना, घर-घर वोट मांगना, अपनी पहचान और पार्टी का नाम बताना और लोगों को वोट के महत्त्व के बारे में समझाना आज के समय से कहीं ज्यादा मुश्किल हुआ करता था। 1967 में हुआ था पहला विधानसभा चुनाव हरियाणा में कुछ ही दिनों बाद 15वां विधानसभा का चुनाव होने वाला है, सभी पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं, किसकी हार होगी और किसकी जीत? यह तो तय नहीं है, मगर ये जरूर तय है कि सत्ता की कुर्सी किसी एक को ही मिलेगी। चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियां करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं, मगर एक वक्त था जब नेताओं के पास अपनी गाड़ी भी नहीं होती थी। उस वक्त चुनावी प्रचार के लिए नेता पैदल या साइकिल से जाते थे। उस दौर में लाउड स्पीकर/साउंड का जमाना नहीं था, इतने शोर-शराबे भी नहीं होते थे। ये बात उस समय की है जब देश अंग्रेजों के चंगुल से नया-नया आजाद हुआ था और पहली बार चुनाव हुआ। वो साल था 1951-52 का, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे। तब हरियाणा और पंजाब एक ही राज्य हुआ करते थे। जब हरियाणा कटकर अलग हुआ तो 1967 में विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। नेताओं के काफिले में बैलगाड़ी होती थी पलवल जिले के न्यू कॉलोनी में रहने वाले 92 वर्षीय तीर्थ दास रहेजा बताते हैं कि “पहले के समय में लोकसभा चुनाव को बड़ी वोट और विधानसभा की चुनाव को छोटी वोट बोला जाता था। आज के समय में उम्मीदवार पैसे को पानी की तरह बहाते हैं, लेकिन एक वक्त था जब उम्मीदवार पैदल-पैदल चलकर ही शहरों व गांवों में वोट मांगने जाया करते थे। उस समय सादगी पूर्ण तरीके से चुनाव प्रचार होता था। वो ऐसा वक्त था जब उम्मीदवार के पास न तो गाड़ी थी, न प्रचार के लिए माइक थे। गांवों में जाने के लिए पक्की सड़कें भी नहीं थी। प्रचार के लिए साधन के रूप में केवल साइकिल का इस्तेमाल होता था या फिर प्रत्याशी को पैदल ही जाना पड़ता था। आज के समय में नेताओं की रैली में हजारों लग्जरी गाड़ियों का काफिला निकलता है, पर उस समय रैली के नाम पर नेताओं के काफिले में बैलगाड़ी और तांगे चला करते थे। उसमें भी अधिकांश प्रत्याशी ऐसे होते, जो ये सुविधाएं भी नहीं जुटा पाते थे।” सोशल मीडिया और इंटरनेट का नहीं था जमाना तीर्थ दास बताते हैं, उस समय की भी अपनी कहानी है। आज के दौर में सोशल मीडिया और इंटरनेट का जमाना है, लोग घर बैठे नेताओं के भाषण सुन लेते हैं, क्षण-क्षण बदलते उनके बयान सुन लेते हैं, टीवी और इंटरनेट पर छपे विज्ञापनों में नेताओं का प्रचार देख लेते हैं। मगर उस दौर में प्रत्याशी को अपनी पहचान बताने के लिए घर-घर जाना पड़ता था, एक-एक व्यक्ति से मिलना पड़ता था। हां मगर उस समय आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला नहीं था, नेता उल्टी-सीधी बयानबाजी भी नहीं करते थे। आज के समय में सोशल मीडिया पर केवल एक पोस्ट वायरल हो जाने से रातों-रात नेताओं की छवि बदल जाती है, जिसका सीधा असर चुनावी नतीजे पर पड़ता है पर उस दौर में ऐसा कुछ भी नहीं होता था। वैलेट पेपर पर डाले जाते थे वोट तीर्थ दास पुरानी यादों के बारे में बताते हुए उस दौर का जिक्र करते हैं, जब देश में पहली बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव हुआ था। एक समस्या ये भी थी, कितने लोगों को पता ही नहीं था कि वोट कैसे डाला जाता है, उस टाइम ईवीएम मशीन प्रचलन में नहीं था, वैलेट पेपर पर वोट डाले जाते थे। कितने वोट तो गलत तरीके से डालने के कारण रद्द हो जाते थे। प्रत्याशी चुनावी प्रचार के दौरान वैलेट पेपर का एक नमुना अपने साथ ले जाते और उसे दिखाकर लोगों को वोट डालने के तरीके के बारे में भी समझाते थे। उस समय प्रत्याशी जब चुनाव प्रचार के लिए किसी गांव में पहुंचता तो लोग उसे देखने के लिए इकट्ठे हो जाते थे। तब शहर और गांवों को जोड़ने के लिए कच्चे रास्ते होते थे, पक्की सड़कें या गाड़ी तो थी ही नहीं। उस समय के चुनावों में प्रचार का जिम्मा प्रत्याशी के गांव के लोग, रिश्तेदार व सगे- संबंधी खुद संभालते थे और पैदल-पैदल गांवों में जाकर सादगी के साथ वोट मांगा करते थे। 1967 से 2024 तक चुनावी सफर उस समय चुनावी प्रचार में न तो बैंडबाजे होते थे, न ही लाउड स्पीकर, न जातिवाद न संप्रदायवाद केवल विकास ही मुद्दा होता था। उन्होंने बताया कि 1966 में जब हरियाणा बना तो चुनाव प्रचार में कुछ बदलाव आया। माइक व प्रचार में एक-दो अंबेसडर गाड़ी आ चुकी थी। चुनाव प्रचार के लिए जब गाड़ी गांव में पहुंचती थी तो लोग चुनाव प्रचार को कम, गाड़ी को देखने के लिए ज्यादा एकत्रित होते थे। लेकिन उस समय भी कच्चे रास्ते होते थे, गाड़ी जब निकलती थी तो धूल उड़ती थी, लेकिन उसके बाद भी बच्चे पर्चे लेने के लिए गाड़ी के पीछे काफी दूर तक दौड़ा करते थे। आज के समय में बहुत कुछ बदल गया है, चुनावी प्रचार के तरीके बदल गए, वोट मांगने तरीकों में भी बदलाव आ गया और मुद्दे भी बदल गए। मगर आज भी हरियाणा के कई पिछड़े गांव विकास की राह निहार रहे हैं। जो पक्की सड़क, बेहतर शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था से आज भी अछूते हैं। कौन हैं तीर्थ दास रहेजा? न्यू कॉलोनी पलवल निवासी तीर्थ दास रहेजा की उम्र 92 साल है। उनका जन्म 25 अक्टूबर 1932 को जिला डेरा गाजिखान तहसील जामपुर के नौसरा बैस्ट गांव में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में पड़ता है। आठवीं तक की पढ़ाई भी उन्होंने पाकिस्तान के नौसरा बैस्ट गांव में ही की थी। उसके बाद अक्टूबर 1947 को जब हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वे जालंधर आ गए। पंजाब में जालंधर से प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें अप्रैल 1948 को पलवल भेज दिया। पलवल में आकर उन्होंने 1952 में दसवीं पास किया और 1953 में करनाल से जेबीटी की। उस समय हरियाणा, पंजाब व हिमाचल एक थे और करनाल में ही जेबीटी केंद्र था। सितंबर 1953 में मेवात के नंदरायपुर बास स्कूल में वे जेबीटी अध्यापक नियुक्त हुए और 31 अक्टूबर 1990 में सेवानिवृत हो गए।
30 वर्ष पुरानी जर्जर सीवर लाइन चौथी बार धंसी, आधे शहर में पानी निकासी का संकट
30 वर्ष पुरानी जर्जर सीवर लाइन चौथी बार धंसी, आधे शहर में पानी निकासी का संकट भास्कर न्यूज | पानीपत सेक्टर-29 पार्ट-2 में चौथी बार सीवर लाइन धंस गई है। इससे शहर में सीवर के पानी की निकासी का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि इस लाइन पर आधे शहर की सीवर लाइन के गंदे पानी की निकासी निर्भर है। इस बार सीवर लाइन धंसने से इसके आसपास करीब 50 फीट चौड़ा और 25 फीट गहरा गड्ढा बनने से इसमें पेड़ तक धंस गए हैं। नगर िनगम अधिकारियों को जैसे सीवर लाइन के धंसने का पता चला तो वे मौके पर पहुंच गए। यह सीवर लाइन 2 दिन पहले धंसी थी। शनिवार को गड्ढे के पास की मिट्टी की खुदाई करके लाइन की मरम्मत करने की तैयारी शुरू की गई। खुदाई के बाद ही 30 फीट नीचे गुजरने वाली मुख्य सीवर लाइन का पता चलेगा कि इसमें कितने सुराग बने हैं। यह सीवर लाइन पहले 3 बार धंस चुकी है। हर बार नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग की सीवर शाखा के अधिकारियों व कर्मचारियों ने कड़ी मशक्कत कर मरम्मत की थी। अब नगर निगम अधिकारियों ने फैसला लिया है कि 300 मीटर में सीआईपीपी मैटीरियल तकनीक से नई पाइपलाइन ही बिछाएंगे। एक्सपर्ट बुलाए जा रहे हैं। करीब 4.50 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। धंसे हिस्से की जल्दी ही मरम्मत करा देंगे सेक्टर 29 पार्ट-2 में मुख्य सीवर लाइन का कुछ हिस्सा धंसा है। इसका चलते ही टीम को साथ लेकर मौके का निरीक्षण किया है। मरम्मत की तैयारियां शुरू कर दी गई है। जल्द ही लाइन की मरम्मत पूरी कर दी जाएगी। – राजेश कौशिक , एक्सईएन, नगर निगम। संजय चौक से बबैल नाका और यहां से चौटाला रोड स्थित सीटीपी तक करीब 30 वर्ष पहले मुख्य सीवर लाइन डाली गई थी। इससे शहर की अन्य लाइनें जुड़ी हैं। अब उसकी गुणवत्ता शक्ति भी पूरी हो चुकी है। विशेष रूप से बबैल नाका से सिवाह सीटीपी तक लाइन ज्यादा जर्जर हो चुकी है। इसलिए इसे सबसे पहले प्राथमिकता के साथ बदलने की जरूरत है। अभी भी इसे जल्दी नहीं बदला गया तो यह लाइन पूरी तरह से जाम हो जाएगी। अगर लाइन जाम हुई तो शहर की सड़कें देखते ही देखते जलमग्न हो जाएंगी।