हरियाणा में लोकसभा चुनाव में हारे भाजपा उम्मीदवारों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह अब सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। टिकट के लिए लॉबिंग शुरू करने के साथ उन्होंने अपनी-अपनी लोकसभा में जिताऊ सीट भी तलाशनी शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब केंद्रीय नेतृत्व भी ऐसे चेहरों को टिकट देने का इच्छुक दिखाई दे रहा है। इस बार भाजपा को हरियाणा में लोकसभा चुनाव में 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 10 जीतों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा के ये कैंडिडेट हार चुके लोकसभा चुनाव
हरियाणा में भाजपा के 5 उम्मीदवार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। इसमें से रोहतक से डॉ अरविंद शर्मा तो भाजपा के सिटिंग सांसद थे। उन्हें दीपेंद्र हुड्डा ने ढाई लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी है। इनके अलावा सोनीपत लोकसभा सीट से भाजपा ने सिटिंग सांसद रमेश चंद्र कौशिक की टिकट काटकर पार्टी के MLA मोहन लाल बड़ौली को टिकट दी थी। उन्हें कांग्रेस कैंडिडेट सतपाल ब्रह्मचारी ने हराया। वहीं हिसार से नायब सैनी के ऊर्जा और जेल मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को भी हार का मुंह देखना पड़ा। सिरसा से AAP छोड़कर भाजपा में शामिल हुए डॉ अशोक तंवर को भी हार का सामना करना पड़ा। अंबाला से बंतो कटारिया को मुलाना से कांग्रेस MLA वरुण चौधरी ने चुनाव हरा दिया। विधानसभा चुनाव लड़ने की ये 3 वजहें… लोकसभा चुनाव की तैयारी का मिलेगा फायदा
भाजपा कैंडिडेट के विधानसभा चुनाव लड़ने की पहली वजह लोकसभा चुनाव बताई जा रही। वह महीने के करीब ग्राउंड में ही रहे हैं, इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रचार के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लोगों के बीच 2 महीने रहने के बाद उन्हें किन चुनावी मुद्दों को लेकर लोगों के बीच जाना है, उन्हें बेहतर पता है। सक्रिय राजनीति में बने रहेंगे
दूसरी वजह यह है कि वह सूबे की राजनीति में सक्रिय रूप से बने रहेंगे। यदि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनती है तो वह लोगों के बीच एक्टिव रहकर उनके काम करा सकेंगे। जिसका फायदा उन्हें आने वाले चुनावों में भी मिलेगा। हरियाणा के वोटरों का केंद्र की तरफ झुकाव
सियासी जानकारों का कहना है कि हरियाणा में अभी तक उसी पार्टी की सरकार बनी है, जिसकी केंद्र में सरकार होती है। हरियाणा के लोग यह बेहतर जानते हैं कि केंद्र में सरकार होने पर ही प्रदेश में विकास कार्य हो सकेंगे। 2014 से लेकर अभी तक सूबे में भाजपा की ही सरकार है और केंद्र में भी बीजेपी समर्थित दलों की सरकार है। यही वजह है कि केंद्र के द्वारा पर्याप्त बजट सूबे को 10 सालों से मिलता रहा है। हर विधानसभा से 4 नामों की लिस्ट हो रही तैयार
हरियाणा में 5 सीटें हारने के बाद बीजेपी भी विधानसभा के लिए जिताऊ चेहरों की तलाश कर रही है। पार्टी के नेतृत्व की ओर से लोकसभा वाइज ऐसे चेहरों की डिटेल्ड मांगनी शुरू कर दी गई है। नाम न बताने की शर्त पर भाजपा के एक सीनियर लीडर ने बताया कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी नेतृत्व विधानसभा चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए 4 नेताओं के नाम उनकी पृष्ठभूमि के साथ देने का काम सौंपा गया है। इसी तरह के काम अन्य स्थानीय नेताओं को भी दिए गए हैं, ताकि पार्टी टिकट के लिए विचार करने के लिए आम नामों को चुना जा सके। हरियाणा में लोकसभा चुनाव में हारे भाजपा उम्मीदवारों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह अब सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। टिकट के लिए लॉबिंग शुरू करने के साथ उन्होंने अपनी-अपनी लोकसभा में जिताऊ सीट भी तलाशनी शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब केंद्रीय नेतृत्व भी ऐसे चेहरों को टिकट देने का इच्छुक दिखाई दे रहा है। इस बार भाजपा को हरियाणा में लोकसभा चुनाव में 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 10 जीतों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा के ये कैंडिडेट हार चुके लोकसभा चुनाव
हरियाणा में भाजपा के 5 उम्मीदवार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। इसमें से रोहतक से डॉ अरविंद शर्मा तो भाजपा के सिटिंग सांसद थे। उन्हें दीपेंद्र हुड्डा ने ढाई लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी है। इनके अलावा सोनीपत लोकसभा सीट से भाजपा ने सिटिंग सांसद रमेश चंद्र कौशिक की टिकट काटकर पार्टी के MLA मोहन लाल बड़ौली को टिकट दी थी। उन्हें कांग्रेस कैंडिडेट सतपाल ब्रह्मचारी ने हराया। वहीं हिसार से नायब सैनी के ऊर्जा और जेल मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को भी हार का मुंह देखना पड़ा। सिरसा से AAP छोड़कर भाजपा में शामिल हुए डॉ अशोक तंवर को भी हार का सामना करना पड़ा। अंबाला से बंतो कटारिया को मुलाना से कांग्रेस MLA वरुण चौधरी ने चुनाव हरा दिया। विधानसभा चुनाव लड़ने की ये 3 वजहें… लोकसभा चुनाव की तैयारी का मिलेगा फायदा
भाजपा कैंडिडेट के विधानसभा चुनाव लड़ने की पहली वजह लोकसभा चुनाव बताई जा रही। वह महीने के करीब ग्राउंड में ही रहे हैं, इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रचार के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लोगों के बीच 2 महीने रहने के बाद उन्हें किन चुनावी मुद्दों को लेकर लोगों के बीच जाना है, उन्हें बेहतर पता है। सक्रिय राजनीति में बने रहेंगे
दूसरी वजह यह है कि वह सूबे की राजनीति में सक्रिय रूप से बने रहेंगे। यदि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनती है तो वह लोगों के बीच एक्टिव रहकर उनके काम करा सकेंगे। जिसका फायदा उन्हें आने वाले चुनावों में भी मिलेगा। हरियाणा के वोटरों का केंद्र की तरफ झुकाव
सियासी जानकारों का कहना है कि हरियाणा में अभी तक उसी पार्टी की सरकार बनी है, जिसकी केंद्र में सरकार होती है। हरियाणा के लोग यह बेहतर जानते हैं कि केंद्र में सरकार होने पर ही प्रदेश में विकास कार्य हो सकेंगे। 2014 से लेकर अभी तक सूबे में भाजपा की ही सरकार है और केंद्र में भी बीजेपी समर्थित दलों की सरकार है। यही वजह है कि केंद्र के द्वारा पर्याप्त बजट सूबे को 10 सालों से मिलता रहा है। हर विधानसभा से 4 नामों की लिस्ट हो रही तैयार
हरियाणा में 5 सीटें हारने के बाद बीजेपी भी विधानसभा के लिए जिताऊ चेहरों की तलाश कर रही है। पार्टी के नेतृत्व की ओर से लोकसभा वाइज ऐसे चेहरों की डिटेल्ड मांगनी शुरू कर दी गई है। नाम न बताने की शर्त पर भाजपा के एक सीनियर लीडर ने बताया कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी नेतृत्व विधानसभा चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए 4 नेताओं के नाम उनकी पृष्ठभूमि के साथ देने का काम सौंपा गया है। इसी तरह के काम अन्य स्थानीय नेताओं को भी दिए गए हैं, ताकि पार्टी टिकट के लिए विचार करने के लिए आम नामों को चुना जा सके। हरियाणा | दैनिक भास्कर