अनिल विज की नाराजगी, अंबाला DC की छुट्टी:अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलते, फिर भी सारी बातें मानी जाती, इसकी 6 वजहें सबसे पहले अनिल विज के बैक टू बैक दिए 2 बयान पढ़िए तारीख: 30 जनवरी
अनिल विज ने कहा- ”अब मैं ग्रीवेंस कमेटी की बैठक में शामिल नहीं होऊंगा, क्योंकि इस मीटिंग में जारी आदेशों का पालन नहीं होता। अंबाला के हक के लिए डल्लेवाल (किसान नेता) की तरह अनशन पर भी बैठ जाऊंगा।” तारीख: 31 जनवरी
अनिल विज ने कहा- ”मुझे चुनाव हराने की कोशिश करने वालों के बारे में लिखकर दे चुका, 100 दिन बीत गए, कोई कार्रवाई नहीं हुई। हमारे मुख्यमंत्री, जब से मुख्यमंत्री बने हैं तब से उड़न खटोले पर ही हैं। नीचे उतरे तो जनता के प्रति देखें।” अनिल विज का दूसरा बयान आते ही सरकार ने अंबाला के डिप्टी कमिश्नर (DC) पार्थ गुप्ता को हटा दिया। साफ दिखा कि प्रदेश के ऊर्जा एवं परिवहन मंत्री अनिल विज की नाराजगी सरकार ज्यादा देर नहीं झेल पाई। सवाल ये है कि आखिर ऐसी क्या बात है कि अनिल विज के अपनी ही सरकार के प्रति तीखे तेवरों के बावजूद वह न केवल पार्टी में बने हुए हैं बल्कि सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाता है। फिर सरकार को उनके आगे झुकना भी पड़ता है। इसकी 6 बड़ी वजहें मानी जा रही हैं…. 1. बड़े मंत्रालय संभाले, भ्रष्टाचार के दाग नहीं
2014 में जब प्रदेश में पहली बार BJP की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो अनिल विज उसमें कैबिनेट मंत्री बने। 2019 की सरकार में भी उन्हें फिर मंत्री बनाया गया। इस दौरान उनके पास गृह, हेल्थ, ट्रांसपोर्ट जैसे बड़े मंत्रालय रहे। इसके बावजूद उन पर कभी कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। इस वजह से हरियाणा ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी अनिल विज को ईमानदार छवि का नेता माना जाता है। उनके बेबाक रवैये के बावजूद पार्टी के नेता उन्हें सम्मान देते हैं। 2. कॉलेज टाइम से RSS से जुड़े
अनिल विज कॉलेज टाइम से ही RSS से जुड़े हुए हैं। वे पढ़ाई के दौरान ही ABVP में शामिल हो गए थे। 1970 में वे ABVP के महासचिव बने। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद, भारत विकास परिषद और ऐसे अन्य संगठनों के साथ सक्रिय रूप से काम किया। विज 1974 में भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी करने लगे, लेकिन बीजेपी से जुड़े रहे। 1990 में जब सुषमा स्वराज राज्यसभा के लिए चुनी गईं तो अंबाला छावनी की सीट खाली हो गई। अनिल विज ने बैंक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सुषमा स्वराज की सीट से उपचुनाव लड़े। अनिल विज यह उपचुनाव जीत गए। 1991 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 3. पार्टी के सीनियर नेता, 7वीं बार विधायक बने
अनिल विज पहली बार 1990 में उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे। हालांकि इसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 1996 और 2000 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। साल 2005 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2009 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर अंबाला कैंट से चुनाव लड़ा औऱ जीत गए। इसके बाद से वह लगातार चुनाव जीत रहे हैं। इस बार उन्होंने अंबाला कैंट से 7वीं बार चुनाव जीता। इसी वजह से सरकार में CM के बाद उनकी इमेज नंबर टू नेता की है। 4. CM नहीं बनाया तो केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल नहीं उठाए
साल 2014 में प्रदेश में भाजपा अकेले बहुमत ले आई। तब सब तरफ चर्चा थी कि अनिल विज अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं। हालांकि अचानक पहली बार विधायक बने मनोहर लाल खट्टर का नाम आगे आ गया। विज कैबिनेट मंत्री बनकर रह गए। मगर उनकी तरफ से कभी केंद्रीय नेतृत्व के फैसले पर सवाल नहीं उठाए गए। 2024 के चुनाव में भी उन्होंने CM पद पर दावा ठोका। विज ने कहा कि मैं सीनियरिटी के हिसाब से दावा कर रहा हूं। जब उन्हें कहा गया कि अमित शाह नायब सैनी को सीएम चेहरा घोषित कर चुके हैं तो विज ने कहा कि वे सिर्फ उन अफवाहों का जवाब दे रहे थे, जिसमें कहा गया कि विज तो मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहते। विज ने ये भी कहा था कि वे इसके लिए कोई लॉबिंग नहीं करेंगे। 5. विज नाराज जरूर होते हैं लेकिन बगावती तेवर नहीं
अनिल विज सरकार से नाराज जरूर होते हैं लेकिन उनमें कभी सरकार या पार्टी के प्रति बगावती तेवर नहीं दिखते। 12 मार्च 2024 को जब मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दिया और नायब सैनी को नया सीएम चुना गया तो विज इससे नाराज हो गए। वे चंडीगढ़ में विधायक दल की मीटिंग से उठकर सीधे अंबाला में गोलगप्पे खाने पहुंच गए। इस नाराजगी में विज ने सैनी के पहले कार्यकाल में मंत्री पद तक स्वीकार नहीं किया। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो विज का कहना था- ”इतना बड़ा फैसला ले लिया और मुझे किसी ने बताया तक नहीं”। जब पार्टी से नाराजगी पर सवाल हुआ तो विज बोले- ” मैं BJP का भक्त हूं। परिस्थितियां बदलती रहती हैं। मैंने हर परिस्थिति में बीजेपी के लिए काम किया है। अब भी करूंगा और पहले से कई गुना ज्यादा करूंगा।” 6. केंद्रीय नेतृत्व में अच्छी पकड़
अनिल विज की केंद्रीय नेतृत्व में भी अच्छी पकड़ है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ उनके घरेलू संबंध माने जाते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी के साथ वह लगातार संपर्क में रहते हैं। नई सरकार में मंत्री बनने के बाद अनिल विज तीन दौरे दिल्ली के कर चुके हैं, जहां उन्होंने पीएम से लेकर कई केंद्रीय नेताओं से सीधे मुलाकात की। पहले भी नाराज हो चुके अनिल विज 1. 2019 में भाजपा के दोबारा सत्ता में आने के बाद विज को गृह मंत्री बनाया गया था, लेकिन CID विज के बजाय तत्कालीन सीएम मनोहर लाल को रिपोर्ट कर रही थी। इससे विज नाराज हुए। बाद में मनोहर लाल ने CID को गृह विभाग से अलग कर दिया। 2. पिछले कार्यकाल में विज के गृह विभाग संभालने के बाद सीएमओ से आईपीएस के तबादलों की लिस्ट भेजी गई। विज ने यह वापस कर दी। कहा कि पहले चर्चा क्यों नहीं की। तत्कालीन सीएम मनोहर लाल ने उन्हें चंडीगढ़ बुलाकर मामले को शांत किया। 3. तत्कालीन डीजीपी मनोज यादव से भी विज का 36 का आंकड़ा रहा। यादव के 2 वर्ष पूरे होते ही विज ने सरकार को लिखा कि उन्हें रिलीव किया जाए। इसके बाद भी वे 2-3 माह और पद पर रहे। इसके बाद वापस केंद्र में डेपुटेशन पर चले गए। 4. मनोहर लाल खट्टर के दूसरे टर्म में विज डीजी हेल्थ को हटाने को लेकर अड़ गए थे। इस दौरान विज ने एक महीने तक हेल्थ डिपार्टमेंट की एक भी फाइल नहीं देखी थी। विज की नाराजगी को देखते हुए मनोहर लाल खट्टर ने डीजी हेल्थ को बदल दिया था। 5. 12 मार्च 2024 को मनोहर लाल की जगह नायब सिंह सैनी को सीएम बनाने की घोषणा हुई तो विज नाराज होकर बैठक से चले गए। फिर मंत्री भी नहीं बने। शपथग्रहण समारोह में भी नहीं गए।