हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक बेटे ने 63 साल बाद अपने शहीद पिता की तस्वीर देखी है। गांव फुलवाड़ी के रहने वाले जगदीश उस वक्त सिर्फ 9 महीने के थे, जब 1962 की भारत-चीन जंग में उनके पिता शहीद हो गए थे। परिवार के पास उनकी कोई भी फोटो नहीं थी। पिछले 65 सालों से बेटा सिर्फ अपने पिता का नाम जानता था, चेहरा नहीं देखा था। मां चंद्रवती की भी आंखें यही सपना देखते हुए बंद हो गईं। 2009 में 70 साल की उम्र में उनका निधन हो गया, लेकिन बेटे ने उम्मीद नहीं छोड़ी। 1 जून 2025 को आखिर वो तस्वीर मिल गई, जिसमें पिता की झलक थी। ये फोटो राजस्थान के भरतपुर निवासी युवक जितेंद्र गुर्जर के माध्यम से गुजरात के सूरत से मिली। तस्वीर पाकर बेटा जगदीश बोला- मैं आज बहुत खुश हूं। पिता को देखने के बाद सुकून से मर सकता हूं। बेटों ने भी अपने दादा को देख लिया। पिता की शहादत पर हमें गर्व है। अब पिता को श्रद्धांजलि भी दे पाए हैं। मैं भी 2 साल फौज में रहा, मां के कहने पर नौकरी छोड़ी
जगदीश ने बताया कि साल 1979 में वो भी फौज में भर्ती हो गए थे, लेकिन मां के कहने पर करीब 2 साल की सेवा देकर 1981 में फौज से वापस घर आ गए। घर आने के बाद उनके मन में हमेशा पिता की फोटो को तलाश निकालने की बात चलती रहती थी। पढ़ें…तस्वीर के लिए परिवार का 45 साल का संघर्ष 20 साल के हुए तो पिता को देखने की चाहत हुई
जगदीश चन्द ने बताया कि 1982 में जब वो 20 साल के हुए तो पिता को देखने की चाहत हुई। उनका कोई फोटो उनके पास मौजूद नहीं था। उन्होंने पिता के फोटो को पाने के लिए उनकी यूनिट के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं से भी कुछ नहीं मिल पाया, जिसके बाद वो थक-हार कर घर बैठ गए। 2023 में पूर्व सैनिक कल्याण समिति से संपर्क
जगदीश ने बताया कि करीब 2 साल पहले (2023) उनका संपर्क फोन के माध्यम से पूर्व सैनिक कल्याण समिति के जिला अध्यक्ष और रिटायर्ड कैप्टन बिजेंदर सिंह पोसवाल से हुआ। जगदीश ने उनसे कहा कि किसी भी तरीके से फौज के रिकॉर्ड से पिता की तस्वीर निकलवाकर दे दीजिए। कैप्टन बिजेंदर सिंह ने कोशिश की मगर तस्वीर नहीं मिली
रिटायर्ड कैप्टन बिजेंदर सिंह पोसवाल ने जगदीश के कहने पर उनके पिता हवलदार खेमराज का रिकॉर्ड तलाशना शुरू कर दिया, लेकिन बहुत पुराना रिकॉर्ड होने से डॉक्यूमेंट नहीं मिल पा रहे थे। फौज में उनकी यूनिट से फाइल नहीं ढूंंढी जा सकी। तलाश रुकी नहीं, गुजरात के जितेंद्र से हुआ संपर्क
बिजेंदर सिंह पोसवाल ने बताया कि खेमराज की तस्वीर जब यूनिट से नहीं मिली तब भी उनका प्रयास जारी रहा और उन्होंने हार नहीं मानी। जगह-जगह संपर्क करने के बाद करीब 2 साल बीत गए। दो महीने पहले (अप्रैल 2025) में एक दिन उनका संपर्क गुजरात के रहने वाले जितेन्द्र गुर्जर से हुआ। उन्हें पता चला था कि जितेन्द्र गुर्जर सिक्योरिटी गार्ड हैं और शहीदों के फोटो की कलेक्शन करने का उनको शौक है। जितेन्द्र गुर्जर में बना रखा था प्राइवेट म्यूजियम
गुजरात के सूरत में SBNIT में सिक्योरिटी गार्ड जितेन्द्र गुर्जर ने शहीद होने वाले सैनिकों के फोटो एकत्रित करके अपने कमरे में ही एक म्यूजियम बना रखा था। इसमें पुराने समय के शहीद सैनिकों की तस्वीरें थी। इस पर जितेन्द्र गुर्जर को म्यूजियम का मौजूद रिकॉर्ड चैक करने को कहा गया। जब रिकॉर्ड चैक किया तो उनके पास शहीद खेमराज का फोटो मिल गया। इस तरह 1982 से शुरू हुई शहीद की तस्वीर की 1 जून 2025 को तलाश खत्म हो गई। इस तस्वीर को खोजने में 43 साल लग गए। 1 जून को दिल्ली में सौंपी गई तस्वीर
तस्वीर मिलने की जानकारी मिलने के बाद इसे मातृभूमि सेवा संस्था ने 1 जून को दिल्ली में करवाए गए शहीदों के सम्मान कार्यक्रम में परिवार को सौंपा। तस्वीर पाने के बाद परिवार ने घर लाकर इस पर फूल मालाएं चढ़ाई और शहीद पिता को श्रद्धांजलि दी। बेटा बोला-तस्वीर पाकर मैं बहुत खुश हूं
जगदीश चंद ने कहा कि 43 साल की मेहनत के बाद आखिर उन्हें पिता की तस्वीर देखने का मौका मिला है। अब मैं बहुत खुश हूं। अब तो यह सुकून है कि पिता को देखने के बाद ही मरूंगा। वहीं बेटों ने भी अपने दादा के दर्शन कर लिए हैं। उन्हें पिता की शहादत पर गर्व है, आज उनका परिवार पूरा हुआ है । जगदीश ने बताया कि उसके 3 बेटें हैं। बड़ा बेटा नरेन्द्र (38) प्राइवेट कंपनी में काम करता है। दूसरा बेटा नरेश (28) ठेकेदार है जबकि तीसरा और सबसे छोटा बेटा सुरेश (26) प्राइवेट अस्पताल में काम करता है। जितेंद्र बोले-कारगिल युद्ध से पैदा हुआ शहीदों की तस्वीरें जुटाने का शौक
मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर निवासी जितेन्द्र गुर्जर ने बताया कि वह 20 साल से गुजरात के सूरत में SBNIT में बतौर सिक्योरिटी गार्ड नौकरी कर रहे हैं। कारगिल की लड़ाई के समय में वह 20 के थे और तभी से शहीद होने वाले फौजी भाइयों के फोटो एकत्रित करने का शौक पैदा हुआ। जितेंद्र गुर्जर ने कहा- मेरा मानना है कि सेना में जाकर देश सेवा करना एक कठिन काम है। इस वजह से देश के हर नागरिक का दायित्व है कि वह शहीदों को हमेशा याद रखें। 1947 के शहीदों की भी तस्वीरें, संग्रहालय में 2 लाख फोटो की कलेक्शन
जितेन्द्र गुर्जर ने बताया कि उनके पास 1947 के शहीदों के भी फोटो हैं। इस वक्त उनके संग्रहालय में 2 लाख 7 हजार से ज्यादा शहीदों के बारे में जानकारियां और उनके फोटो हैं। ‘मेरा मानना है कि सेना में जाकर देश की सेवा करना एक कठिन काम है’ इस वजह से देश के हर नागरिक का दायित्व है कि वह उन शहीदों को हमेशा याद रखे। हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक बेटे ने 63 साल बाद अपने शहीद पिता की तस्वीर देखी है। गांव फुलवाड़ी के रहने वाले जगदीश उस वक्त सिर्फ 9 महीने के थे, जब 1962 की भारत-चीन जंग में उनके पिता शहीद हो गए थे। परिवार के पास उनकी कोई भी फोटो नहीं थी। पिछले 65 सालों से बेटा सिर्फ अपने पिता का नाम जानता था, चेहरा नहीं देखा था। मां चंद्रवती की भी आंखें यही सपना देखते हुए बंद हो गईं। 2009 में 70 साल की उम्र में उनका निधन हो गया, लेकिन बेटे ने उम्मीद नहीं छोड़ी। 1 जून 2025 को आखिर वो तस्वीर मिल गई, जिसमें पिता की झलक थी। ये फोटो राजस्थान के भरतपुर निवासी युवक जितेंद्र गुर्जर के माध्यम से गुजरात के सूरत से मिली। तस्वीर पाकर बेटा जगदीश बोला- मैं आज बहुत खुश हूं। पिता को देखने के बाद सुकून से मर सकता हूं। बेटों ने भी अपने दादा को देख लिया। पिता की शहादत पर हमें गर्व है। अब पिता को श्रद्धांजलि भी दे पाए हैं। मैं भी 2 साल फौज में रहा, मां के कहने पर नौकरी छोड़ी
जगदीश ने बताया कि साल 1979 में वो भी फौज में भर्ती हो गए थे, लेकिन मां के कहने पर करीब 2 साल की सेवा देकर 1981 में फौज से वापस घर आ गए। घर आने के बाद उनके मन में हमेशा पिता की फोटो को तलाश निकालने की बात चलती रहती थी। पढ़ें…तस्वीर के लिए परिवार का 45 साल का संघर्ष 20 साल के हुए तो पिता को देखने की चाहत हुई
जगदीश चन्द ने बताया कि 1982 में जब वो 20 साल के हुए तो पिता को देखने की चाहत हुई। उनका कोई फोटो उनके पास मौजूद नहीं था। उन्होंने पिता के फोटो को पाने के लिए उनकी यूनिट के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं से भी कुछ नहीं मिल पाया, जिसके बाद वो थक-हार कर घर बैठ गए। 2023 में पूर्व सैनिक कल्याण समिति से संपर्क
जगदीश ने बताया कि करीब 2 साल पहले (2023) उनका संपर्क फोन के माध्यम से पूर्व सैनिक कल्याण समिति के जिला अध्यक्ष और रिटायर्ड कैप्टन बिजेंदर सिंह पोसवाल से हुआ। जगदीश ने उनसे कहा कि किसी भी तरीके से फौज के रिकॉर्ड से पिता की तस्वीर निकलवाकर दे दीजिए। कैप्टन बिजेंदर सिंह ने कोशिश की मगर तस्वीर नहीं मिली
रिटायर्ड कैप्टन बिजेंदर सिंह पोसवाल ने जगदीश के कहने पर उनके पिता हवलदार खेमराज का रिकॉर्ड तलाशना शुरू कर दिया, लेकिन बहुत पुराना रिकॉर्ड होने से डॉक्यूमेंट नहीं मिल पा रहे थे। फौज में उनकी यूनिट से फाइल नहीं ढूंंढी जा सकी। तलाश रुकी नहीं, गुजरात के जितेंद्र से हुआ संपर्क
बिजेंदर सिंह पोसवाल ने बताया कि खेमराज की तस्वीर जब यूनिट से नहीं मिली तब भी उनका प्रयास जारी रहा और उन्होंने हार नहीं मानी। जगह-जगह संपर्क करने के बाद करीब 2 साल बीत गए। दो महीने पहले (अप्रैल 2025) में एक दिन उनका संपर्क गुजरात के रहने वाले जितेन्द्र गुर्जर से हुआ। उन्हें पता चला था कि जितेन्द्र गुर्जर सिक्योरिटी गार्ड हैं और शहीदों के फोटो की कलेक्शन करने का उनको शौक है। जितेन्द्र गुर्जर में बना रखा था प्राइवेट म्यूजियम
गुजरात के सूरत में SBNIT में सिक्योरिटी गार्ड जितेन्द्र गुर्जर ने शहीद होने वाले सैनिकों के फोटो एकत्रित करके अपने कमरे में ही एक म्यूजियम बना रखा था। इसमें पुराने समय के शहीद सैनिकों की तस्वीरें थी। इस पर जितेन्द्र गुर्जर को म्यूजियम का मौजूद रिकॉर्ड चैक करने को कहा गया। जब रिकॉर्ड चैक किया तो उनके पास शहीद खेमराज का फोटो मिल गया। इस तरह 1982 से शुरू हुई शहीद की तस्वीर की 1 जून 2025 को तलाश खत्म हो गई। इस तस्वीर को खोजने में 43 साल लग गए। 1 जून को दिल्ली में सौंपी गई तस्वीर
तस्वीर मिलने की जानकारी मिलने के बाद इसे मातृभूमि सेवा संस्था ने 1 जून को दिल्ली में करवाए गए शहीदों के सम्मान कार्यक्रम में परिवार को सौंपा। तस्वीर पाने के बाद परिवार ने घर लाकर इस पर फूल मालाएं चढ़ाई और शहीद पिता को श्रद्धांजलि दी। बेटा बोला-तस्वीर पाकर मैं बहुत खुश हूं
जगदीश चंद ने कहा कि 43 साल की मेहनत के बाद आखिर उन्हें पिता की तस्वीर देखने का मौका मिला है। अब मैं बहुत खुश हूं। अब तो यह सुकून है कि पिता को देखने के बाद ही मरूंगा। वहीं बेटों ने भी अपने दादा के दर्शन कर लिए हैं। उन्हें पिता की शहादत पर गर्व है, आज उनका परिवार पूरा हुआ है । जगदीश ने बताया कि उसके 3 बेटें हैं। बड़ा बेटा नरेन्द्र (38) प्राइवेट कंपनी में काम करता है। दूसरा बेटा नरेश (28) ठेकेदार है जबकि तीसरा और सबसे छोटा बेटा सुरेश (26) प्राइवेट अस्पताल में काम करता है। जितेंद्र बोले-कारगिल युद्ध से पैदा हुआ शहीदों की तस्वीरें जुटाने का शौक
मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर निवासी जितेन्द्र गुर्जर ने बताया कि वह 20 साल से गुजरात के सूरत में SBNIT में बतौर सिक्योरिटी गार्ड नौकरी कर रहे हैं। कारगिल की लड़ाई के समय में वह 20 के थे और तभी से शहीद होने वाले फौजी भाइयों के फोटो एकत्रित करने का शौक पैदा हुआ। जितेंद्र गुर्जर ने कहा- मेरा मानना है कि सेना में जाकर देश सेवा करना एक कठिन काम है। इस वजह से देश के हर नागरिक का दायित्व है कि वह शहीदों को हमेशा याद रखें। 1947 के शहीदों की भी तस्वीरें, संग्रहालय में 2 लाख फोटो की कलेक्शन
जितेन्द्र गुर्जर ने बताया कि उनके पास 1947 के शहीदों के भी फोटो हैं। इस वक्त उनके संग्रहालय में 2 लाख 7 हजार से ज्यादा शहीदों के बारे में जानकारियां और उनके फोटो हैं। ‘मेरा मानना है कि सेना में जाकर देश की सेवा करना एक कठिन काम है’ इस वजह से देश के हर नागरिक का दायित्व है कि वह उन शहीदों को हमेशा याद रखे। हरियाणा | दैनिक भास्कर
