हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से इस बार BJP और कांग्रेस ने 5-5 सीटें जीतीं। 2014 के बाद, राज्य में BJP का ये सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। पार्टी ने 2014 की मोदी लहर में प्रदेश की 10 में से 7 और 2019 में सभी 10 सीटें जीती। लगातार दूसरी बार क्लीन स्वीप का दावा करके मैदान में उतरी पार्टी 5 सीटें गवां बैठी। हरियाणा में उसके इस प्रदर्शन के लिए केंद्र से ज्यादा राज्य सरकार की नीतियों को जिम्मेदार कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस की बात करें तो उसने पिछले 10 बरसों में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। 2014 में पार्टी सिर्फ रोहतक सीट जीत पाई थी और 2019 में वह भी गवां दी। इस बार वापसी करते हुए पार्टी ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया। दोनों पार्टियों की हार और जीत के अलग-अलग कारण रहे। आइए सिलसिलेवार ढंग से इन वजहों को समझते हैं। सबसे पहले बात BJP की… आइये अब दोनों पार्टियों के हार-जीत की वजहों को समझते हैं… 7 कारण जिनकी वजह से भाजपा 5 सीटें हारी… 4. बेरोजगारी की मार: बढ़ती बेरोजगारी इस चुनाव में भाजपा कैंडिडेट्स पर भारी पड़ी। बेरोजगारी दर में हरियाणा देशभर के राज्यों में टॉप पर पहुंच गया। 21 जुलाई 2023 को खुद मोदी सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि हरियाणा में बीते 8 बरसों में बेरोजगारी दर 3 गुना बढ़ चुकी है। तत्कालीन श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने संसद में बताया कि हरियाणा में वर्ष 2013-14 (प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी) में बेरोजगारी दर 2.9% थी जो 2021-22 में बढ़कर 9% पर पहुंच गई। इसी टाइम पीरियड में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 4.1% थी। इसके अलावा पिछले साढ़े 9 बरसों में राज्य की मनोहर सरकार ने जो भर्तियां निकालीं, उनमें से ज्यादातर कोर्ट-कचहरी के कारण सिरे नहीं चढ़ पाई। कांग्रेस नेता इसे सही तरह भुनाने में कामयाब रहे। 5. पोर्टल राज से परेशानी : हरियाणा में BJP के साढ़े 9 साल के शासनकाल में सरकारी स्कीम्स को ऑनलाइन करने और करप्शन रोकने के नाम पर धड़ाधड़ पोर्टल शुरू किए गए। CM रहते हुए मनोहर लाल खट्टर का इस पर खास जोर रहा। आज राज्य में लगभग हर सरकारी योजना से जुड़ा अलग पोर्टल है। 13 सितंबर 2023 को तो खट्टर ने एक साथ 6 स्कीम शुरू करते हुए उनके पोर्टल शुरू कर दिए थे। इनमें CM आवास योजना व पोर्टल, नो-लिटिगेशन पोर्टल, प्रो-ओबीसी प्रमाण पत्र पोर्टल, ई-रवन्ना पोर्टल व ई-भूमि का पोर्टल शामिल था। खेतीबाड़ी करने वालों को बीज लेने से लेकर फसल बेचने और खराब फसलों के मुआवजे के लिए भी पोर्टल पर अप्लाई करना अनिवार्य बना दिया गया। इससे करप्शन तो कम हुआ लेकिन इंटरनेट कनेक्टिवटी और दूसरे इश्यूज के कारण बहुत सारे लोग परेशान भी होने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा लगातार उठाया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हरियाणा में सरकार की जगह पोर्टल-राज चल रहा है। राज्य की भाजपा सरकार ने परिवार पहचान पत्र (PPP) की त्रुटियों को सुधारने समेत कई दिक्कतों को दूर भी किया लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ। 6. अग्निवीर का मुद्दा: हरियाणा से हर साल बड़ी संख्या में नौजवान सेना में जाते हैं। राज्य के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, झज्जर, रोहतक, भिवानी, सोनीपत से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते हैं। दक्षिणी हरियाणा खासकर अहीरवाल में सेना की वर्दी पहनने को लेकर खास तरह का दीवानापन दिखता है। मोदी सरकार ने जब सेना में भर्ती से जुड़ी अग्निवीर स्कीम लॉन्च की, उस समय अकेले अहीरवाल में लगभग 50 हजार युवा आर्मी भर्ती की तैयारी कर रहे थे। जाहिर है कि ये युवा और इनके परिवारवाले अग्निवीर स्कीम के खिलाफ थे। इस नाराजगी को भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया जबकि कांग्रेस ने इसे अच्छी तरह भुनाया। 7. विधायकों-मंत्रियों का वर्किंग स्टाइल: हरियाणा में BJP विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल को लेकर भी लोगों में नाराजगी रही। यही वजह रही कि पार्टी ने जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को CM बनाया तो ज्यादातर मंत्री भी बदल डाले। हालांकि इससे कोई खास फायदा पार्टी को होता हुआ नजर नहीं आया। 5 कारण जिनके चलते भाजपा 5 सीटें जीतने में कामयाब रही 1. करनाल में बड़े चेहरे पर दांव: करनाल लोकसभा सीट पर BJP ने अपने सीटिंग सांसद संजय भाटिया का टिकट काटते हुए पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को उतारने का फैसला किया। जातीय समीकरणों के साथ-साथ दूसरे सभी फैक्टर के लिहाज से यह दांव सही बैठा। भाजपा ने जो 5 सीटें जीतीं, विनिंग मार्जिन के लिहाज से करनाल उनमें पहले स्थान पर रही। 2. जाट-अहीर का कंबिनेशन भिवानी-महेंद्रगढ़ में काम आया: इस संसदीय सीट पर पार्टी ने अपने सांसद धर्मबीर सिंह को तीसरी बार टिकट दिया। धर्मबीर जाट बिरादरी से आते हैं। इस संसदीय हलके में आने वाली भिवानी जिले की 3 सीटों- लोहारू, भिवानी व तोशाम में जाटों का दबदबा है। यहां भिवानी-तोशाम में धर्मबीर को लीड मिली। इस लोकसभा हलके में महेंद्रगढ़ जिले की 4 विधानसभा सीटें भी हैं। इनमें से 3 सीटों- अटेली, नारनौल व नांगल चौधरी में BJP के विधायक हैं। महेंद्रगढ़ सीट कांग्रेस के पास है और पार्टी ने यहीं के विधायक राव दान सिंह को लोकसभा उम्मीदवार बनाया। चुनाव नतीजों में महेंद्रगढ़ जिले की इन चारों विधानसभा सीटों पर BJP आगे रही। यानि राव दान सिंह अपने गृहक्षेत्र में ही पिछड़ गए। दरअसल इस संसदीय सीट पर जाट-अहीर के कंबिनेशन ने भाजपा को जीत दिलाई। कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा भी उसे मिला। कांग्रेस ने यहां पूर्व सीएम बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी की जगह अहीर कार्ड खेलते हुए राव दान सिंह को टिकट दिया लेकिन वह काम नहीं आया। 3. फरीदाबाद में प्रयोग से परहेज: फरीदाबाद में भाजपा नेतृत्व ने किसी तरह के प्रयोग से परहेज करते हुए अपने 2 बार के सांसद कृष्णपाल गुर्जर को ही तीसरी बार मौका दिया। गुर्जर 2019 के चुनाव में इसी सीट पर 6 लाख से अधिक वोटों से जीते थे। कांग्रेस ने भी यहां गुर्जर बिरादरी से आने वाले अपने पूर्व विधायक महेंद्र प्रताप को टिकट दिया लेकिन कृष्णपाल गुर्जर उन पर भारी पड़े। 4. अहीरवाल में राव का दबदबा: गुरुग्राम सीट से लगातार चौथा चुनाव जीतकर राव इंद्रजीत सिंह ने साबित कर दिया कि अहीरवाल में फिलहाल उनका मुकाबला करने लायक कोई लीडर नहीं है। कांग्रेस ने उनके सामने सेलिब्रिटी कार्ड खेलते हुए राजबब्बर को उतारा। उसके इस प्रयोग के चलते राव इंद्रजीत का विनिंग मार्जिन तो कम हुआ लेकिन नतीजा नहीं बदला। गुरुग्राम, बादशाहपुर और रेवाड़ी शहर जैसे भाजपा के दबदबे वाले शहरी इलाकों में कम वोटिंग के बावजूद राव इंद्रजीत 85 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए। हालांकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर 3 लाख 86 हजार 256 वोट था। 5. कुरुक्षेत्र में जिंदल के काम आया अपना रसूख: विनिंग मार्जिन के लिहाज से भाजपा को हरियाणा में सबसे छोटी जीत कुरुक्षेत्र सीट पर मिली। किसान आंदोलन का केंद्र रहे इस इलाके में भाजपा की लगातार तीसरी जीत में सबसे बड़ा रोल नवीन जिंदल के पर्सनल रसूख ने निभाया। वर्ष 2004 और 2009 में कुरुक्षेत्र से कांग्रेस का सांसद रहते हुए नवीन जिंदल ने इलाके में जो काम करवाए थे, वह उनके पक्ष में गए। इनेलो नेता अभय चौटाला के यहां से चुनाव लड़ने का फायदा भी जिंदल को मिला। अभय ने यहां किसान वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए 75 हजार से ज्यादा वोट लिए। इसका सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार सुशील गुप्ता को उठाना पड़ा। अब बात कांग्रेस की… 4 कारण जिनकी वजह से पार्टी 5 सीटें जीती… 1. लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाया: कांग्रेस के नेता BJP से नाराज लोगों के गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रहे। लोगों के मूड को भांपते हुए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक, सारे कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा सरकार को उसकी नीतियों के लिए सीधे निशाने पर रखा। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण आम पब्लिक ने भी उनसे कनेक्ट महसूस किया। भाजपा सरकार की नीतियों को कोसने के साथ-साथ हुड्डा अपनी हर सभा में यह भी बताते रहे कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह हर वर्ग के लिए क्या-क्या करेंगे। उनका ये फार्मूला काम कर गया। 2. जाटों-किसानों की एकमुश्त वोटिंग: जाटों और जटसिखों के दबदबे वाली हिसार, सिरसा, सोनीपत, अंबाला और रोहतक सीट पर कांग्रेस की जीत से साफ हो गया कि यहां इस बिरादरी ने कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त वोटिंग की। वह जाटों का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाले सियासी दलों के झांसे में नहीं आए। अगर सिरसा सीट पर इनेलो कैंडिडेट संदीप लोट को छोड़ दें तो बाकी चारों सीटों पर तीसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को 25 हजार वोट भी नहीं मिले। इससे साफ है कि जाटों-किसानों का वोट बिखरा नहीं। 3. सैलजा-हुड्डा फैमिली की पर्सनल पकड़: सिरसा सीट पर कांग्रेस की सैलजा 2 लाख 68 हजार 497 वोटों से जीतीं। यहां उनके परिवार का व्यक्तिगत रसूख है और इसका फायदा उन्हें मिला। यहां सैलजा को टिकट देने का फैसला भी ग्राउंड से उठी डिमांड के बाद ही लिया गया था। इसी तरह रोहतक सीट पर कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने लगभग साढ़े 3 लाख वोटों से जीत दर्ज की। विनिंग मार्जिन के लिहाज से कांग्रेस को मिली पांचों सीटों में रोहतक पहले नंबर पर रही। दीपेंद्र की ये जीत कांग्रेस से ज्यादा, रोहतक बेल्ट में हुड्डा फैमिली की अपनी पकड़ का नतीजा है। 2019 के आम चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के कारण मात खा जाने वाले दीपेंद्र ने इस बार कोई चूक नहीं की। 4. अंबाला की जीत कांग्रेस की एकजुटता के नाम : पूरे हरियाणा में चुनाव के दौरान अगर कांग्रेस कहीं एकजुट नजर आई तो वह अंबाला लोकसभा हलका रहा। यहां के नए सांसद वरुण चौधरी मुलाना को टिकट बेशक हुड्डा कैंप की पैरवी से मिला लेकिन सैलजा गुट में भी वरुण की अच्छी पैठ है। पूर्व मंत्री निर्मल चौधरी की चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस में हुई वापसी का फायदा भी वरुण को मिला। 4 कारण जिनके चलते कांग्रेस 5 सीटों पर हार गई 1. करनाल में कमजोर कैंडिडेट: कांग्रेस ने करनाल लोकसभा सीट पर अपने यूथ विंग के नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा को टिकट दिया। दिव्यांशु के नाम का ऐलान होते ही क्लियर हो गया था कि कांग्रेस ने इस सीट पर BJP के मनोहर लाल खट्टर को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है। करनाल के कांग्रेसी नेताओं के तमाम तरह के असहयोग के बावजूद दिव्यांशु 4 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट लेने में कामयाब रहे। अगर कांग्रेस इस सीट पर किसी बड़े चेहरे को उतारती और करनाल के नेता उसका साथ देते तो भाजपा को यहां परेशानी हो सकती थी। 2. गुटबाजी भारी पड़ी: हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। किरण चौधरी ने तो हुड्डा कैंप पर उनकी सियासी हत्या की साजिश रचने जैसे आरोप तक लगा डाले। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह की हार का अंतर 41 हजार 510 वोट रहा। भिवानी जिले की तीन में से दो सीटों पर भाजपा को लीड मिली। इनमें किरण चौधरी की तोशाम सीट शामिल रही। अगर पार्टी के नेता एकजुटता दिखाते तो यहां रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में भी आ सकता था। गुरुग्राम सीट पर भी यही कहानी रही। यहां कांग्रेस कैंडिडेट राजबब्बर 75 हजार वोट से हारे। लालू यादव के समधी कैप्टन अजय यादव इस सीट पर लंबे अर्से से एक्टिव थे लेकिन पार्टी ने ऐन मौके पर उनकी जगह राजबब्बर को टिकट थमा दिया। इससे कैप्टन नाराज हो गए। राजबब्बर की इलेक्शन कैंपेनिंग के दौरान अजय यादव बहुत कम मौकों पर नजर आए। फरीदबाद सीट पर भी टिकट न मिलने के कारण पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण दलाल की नाराजगी देखने को मिली। 3. चौधर की लड़ाई: लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला की तिकड़ी ने हिसार में एक सभा तक नहीं की। सैलजा सिरसा तक सिमटी रही तो रणदीप सिरसा के अलावा कुरुक्षेत्र एरिया में एक्टिव रहे। 4. गठबंधन की कीमत चुकाई: कांग्रेस ने I.N.D.I.A. अलायंस के तहत कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी (AAP) को दी। इसलिए यहां कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गायब रहा। आम आदमी पार्टी से उसकी हरियाणा इकाई के प्रदेशाध्यक्ष सुशील गुप्ता कुरुक्षेत्र के करण में उतरे तो पार्टी की पूरी लीडरशिप यहां डट गई। कांग्रेस से भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने सुशील गुप्ता के लिए प्रचार किया लेकिन राज्य की दूसरी किसी सीट पर AAP नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए ऐसा जोर नहीं लगाया। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि AAP ने बाकी 9 सीटों पर अपना कितना वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट कराया? हां, कुरुक्षेत्र में सुशील गुप्ता को कांग्रेसी कैडर के वोट जरूर मिले। हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से इस बार BJP और कांग्रेस ने 5-5 सीटें जीतीं। 2014 के बाद, राज्य में BJP का ये सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। पार्टी ने 2014 की मोदी लहर में प्रदेश की 10 में से 7 और 2019 में सभी 10 सीटें जीती। लगातार दूसरी बार क्लीन स्वीप का दावा करके मैदान में उतरी पार्टी 5 सीटें गवां बैठी। हरियाणा में उसके इस प्रदर्शन के लिए केंद्र से ज्यादा राज्य सरकार की नीतियों को जिम्मेदार कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस की बात करें तो उसने पिछले 10 बरसों में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। 2014 में पार्टी सिर्फ रोहतक सीट जीत पाई थी और 2019 में वह भी गवां दी। इस बार वापसी करते हुए पार्टी ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया। दोनों पार्टियों की हार और जीत के अलग-अलग कारण रहे। आइए सिलसिलेवार ढंग से इन वजहों को समझते हैं। सबसे पहले बात BJP की… आइये अब दोनों पार्टियों के हार-जीत की वजहों को समझते हैं… 7 कारण जिनकी वजह से भाजपा 5 सीटें हारी… 4. बेरोजगारी की मार: बढ़ती बेरोजगारी इस चुनाव में भाजपा कैंडिडेट्स पर भारी पड़ी। बेरोजगारी दर में हरियाणा देशभर के राज्यों में टॉप पर पहुंच गया। 21 जुलाई 2023 को खुद मोदी सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि हरियाणा में बीते 8 बरसों में बेरोजगारी दर 3 गुना बढ़ चुकी है। तत्कालीन श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने संसद में बताया कि हरियाणा में वर्ष 2013-14 (प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी) में बेरोजगारी दर 2.9% थी जो 2021-22 में बढ़कर 9% पर पहुंच गई। इसी टाइम पीरियड में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 4.1% थी। इसके अलावा पिछले साढ़े 9 बरसों में राज्य की मनोहर सरकार ने जो भर्तियां निकालीं, उनमें से ज्यादातर कोर्ट-कचहरी के कारण सिरे नहीं चढ़ पाई। कांग्रेस नेता इसे सही तरह भुनाने में कामयाब रहे। 5. पोर्टल राज से परेशानी : हरियाणा में BJP के साढ़े 9 साल के शासनकाल में सरकारी स्कीम्स को ऑनलाइन करने और करप्शन रोकने के नाम पर धड़ाधड़ पोर्टल शुरू किए गए। CM रहते हुए मनोहर लाल खट्टर का इस पर खास जोर रहा। आज राज्य में लगभग हर सरकारी योजना से जुड़ा अलग पोर्टल है। 13 सितंबर 2023 को तो खट्टर ने एक साथ 6 स्कीम शुरू करते हुए उनके पोर्टल शुरू कर दिए थे। इनमें CM आवास योजना व पोर्टल, नो-लिटिगेशन पोर्टल, प्रो-ओबीसी प्रमाण पत्र पोर्टल, ई-रवन्ना पोर्टल व ई-भूमि का पोर्टल शामिल था। खेतीबाड़ी करने वालों को बीज लेने से लेकर फसल बेचने और खराब फसलों के मुआवजे के लिए भी पोर्टल पर अप्लाई करना अनिवार्य बना दिया गया। इससे करप्शन तो कम हुआ लेकिन इंटरनेट कनेक्टिवटी और दूसरे इश्यूज के कारण बहुत सारे लोग परेशान भी होने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा लगातार उठाया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हरियाणा में सरकार की जगह पोर्टल-राज चल रहा है। राज्य की भाजपा सरकार ने परिवार पहचान पत्र (PPP) की त्रुटियों को सुधारने समेत कई दिक्कतों को दूर भी किया लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ। 6. अग्निवीर का मुद्दा: हरियाणा से हर साल बड़ी संख्या में नौजवान सेना में जाते हैं। राज्य के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, झज्जर, रोहतक, भिवानी, सोनीपत से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते हैं। दक्षिणी हरियाणा खासकर अहीरवाल में सेना की वर्दी पहनने को लेकर खास तरह का दीवानापन दिखता है। मोदी सरकार ने जब सेना में भर्ती से जुड़ी अग्निवीर स्कीम लॉन्च की, उस समय अकेले अहीरवाल में लगभग 50 हजार युवा आर्मी भर्ती की तैयारी कर रहे थे। जाहिर है कि ये युवा और इनके परिवारवाले अग्निवीर स्कीम के खिलाफ थे। इस नाराजगी को भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया जबकि कांग्रेस ने इसे अच्छी तरह भुनाया। 7. विधायकों-मंत्रियों का वर्किंग स्टाइल: हरियाणा में BJP विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल को लेकर भी लोगों में नाराजगी रही। यही वजह रही कि पार्टी ने जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को CM बनाया तो ज्यादातर मंत्री भी बदल डाले। हालांकि इससे कोई खास फायदा पार्टी को होता हुआ नजर नहीं आया। 5 कारण जिनके चलते भाजपा 5 सीटें जीतने में कामयाब रही 1. करनाल में बड़े चेहरे पर दांव: करनाल लोकसभा सीट पर BJP ने अपने सीटिंग सांसद संजय भाटिया का टिकट काटते हुए पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को उतारने का फैसला किया। जातीय समीकरणों के साथ-साथ दूसरे सभी फैक्टर के लिहाज से यह दांव सही बैठा। भाजपा ने जो 5 सीटें जीतीं, विनिंग मार्जिन के लिहाज से करनाल उनमें पहले स्थान पर रही। 2. जाट-अहीर का कंबिनेशन भिवानी-महेंद्रगढ़ में काम आया: इस संसदीय सीट पर पार्टी ने अपने सांसद धर्मबीर सिंह को तीसरी बार टिकट दिया। धर्मबीर जाट बिरादरी से आते हैं। इस संसदीय हलके में आने वाली भिवानी जिले की 3 सीटों- लोहारू, भिवानी व तोशाम में जाटों का दबदबा है। यहां भिवानी-तोशाम में धर्मबीर को लीड मिली। इस लोकसभा हलके में महेंद्रगढ़ जिले की 4 विधानसभा सीटें भी हैं। इनमें से 3 सीटों- अटेली, नारनौल व नांगल चौधरी में BJP के विधायक हैं। महेंद्रगढ़ सीट कांग्रेस के पास है और पार्टी ने यहीं के विधायक राव दान सिंह को लोकसभा उम्मीदवार बनाया। चुनाव नतीजों में महेंद्रगढ़ जिले की इन चारों विधानसभा सीटों पर BJP आगे रही। यानि राव दान सिंह अपने गृहक्षेत्र में ही पिछड़ गए। दरअसल इस संसदीय सीट पर जाट-अहीर के कंबिनेशन ने भाजपा को जीत दिलाई। कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा भी उसे मिला। कांग्रेस ने यहां पूर्व सीएम बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी की जगह अहीर कार्ड खेलते हुए राव दान सिंह को टिकट दिया लेकिन वह काम नहीं आया। 3. फरीदाबाद में प्रयोग से परहेज: फरीदाबाद में भाजपा नेतृत्व ने किसी तरह के प्रयोग से परहेज करते हुए अपने 2 बार के सांसद कृष्णपाल गुर्जर को ही तीसरी बार मौका दिया। गुर्जर 2019 के चुनाव में इसी सीट पर 6 लाख से अधिक वोटों से जीते थे। कांग्रेस ने भी यहां गुर्जर बिरादरी से आने वाले अपने पूर्व विधायक महेंद्र प्रताप को टिकट दिया लेकिन कृष्णपाल गुर्जर उन पर भारी पड़े। 4. अहीरवाल में राव का दबदबा: गुरुग्राम सीट से लगातार चौथा चुनाव जीतकर राव इंद्रजीत सिंह ने साबित कर दिया कि अहीरवाल में फिलहाल उनका मुकाबला करने लायक कोई लीडर नहीं है। कांग्रेस ने उनके सामने सेलिब्रिटी कार्ड खेलते हुए राजबब्बर को उतारा। उसके इस प्रयोग के चलते राव इंद्रजीत का विनिंग मार्जिन तो कम हुआ लेकिन नतीजा नहीं बदला। गुरुग्राम, बादशाहपुर और रेवाड़ी शहर जैसे भाजपा के दबदबे वाले शहरी इलाकों में कम वोटिंग के बावजूद राव इंद्रजीत 85 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए। हालांकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर 3 लाख 86 हजार 256 वोट था। 5. कुरुक्षेत्र में जिंदल के काम आया अपना रसूख: विनिंग मार्जिन के लिहाज से भाजपा को हरियाणा में सबसे छोटी जीत कुरुक्षेत्र सीट पर मिली। किसान आंदोलन का केंद्र रहे इस इलाके में भाजपा की लगातार तीसरी जीत में सबसे बड़ा रोल नवीन जिंदल के पर्सनल रसूख ने निभाया। वर्ष 2004 और 2009 में कुरुक्षेत्र से कांग्रेस का सांसद रहते हुए नवीन जिंदल ने इलाके में जो काम करवाए थे, वह उनके पक्ष में गए। इनेलो नेता अभय चौटाला के यहां से चुनाव लड़ने का फायदा भी जिंदल को मिला। अभय ने यहां किसान वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए 75 हजार से ज्यादा वोट लिए। इसका सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार सुशील गुप्ता को उठाना पड़ा। अब बात कांग्रेस की… 4 कारण जिनकी वजह से पार्टी 5 सीटें जीती… 1. लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाया: कांग्रेस के नेता BJP से नाराज लोगों के गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रहे। लोगों के मूड को भांपते हुए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक, सारे कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा सरकार को उसकी नीतियों के लिए सीधे निशाने पर रखा। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण आम पब्लिक ने भी उनसे कनेक्ट महसूस किया। भाजपा सरकार की नीतियों को कोसने के साथ-साथ हुड्डा अपनी हर सभा में यह भी बताते रहे कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह हर वर्ग के लिए क्या-क्या करेंगे। उनका ये फार्मूला काम कर गया। 2. जाटों-किसानों की एकमुश्त वोटिंग: जाटों और जटसिखों के दबदबे वाली हिसार, सिरसा, सोनीपत, अंबाला और रोहतक सीट पर कांग्रेस की जीत से साफ हो गया कि यहां इस बिरादरी ने कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त वोटिंग की। वह जाटों का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाले सियासी दलों के झांसे में नहीं आए। अगर सिरसा सीट पर इनेलो कैंडिडेट संदीप लोट को छोड़ दें तो बाकी चारों सीटों पर तीसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को 25 हजार वोट भी नहीं मिले। इससे साफ है कि जाटों-किसानों का वोट बिखरा नहीं। 3. सैलजा-हुड्डा फैमिली की पर्सनल पकड़: सिरसा सीट पर कांग्रेस की सैलजा 2 लाख 68 हजार 497 वोटों से जीतीं। यहां उनके परिवार का व्यक्तिगत रसूख है और इसका फायदा उन्हें मिला। यहां सैलजा को टिकट देने का फैसला भी ग्राउंड से उठी डिमांड के बाद ही लिया गया था। इसी तरह रोहतक सीट पर कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने लगभग साढ़े 3 लाख वोटों से जीत दर्ज की। विनिंग मार्जिन के लिहाज से कांग्रेस को मिली पांचों सीटों में रोहतक पहले नंबर पर रही। दीपेंद्र की ये जीत कांग्रेस से ज्यादा, रोहतक बेल्ट में हुड्डा फैमिली की अपनी पकड़ का नतीजा है। 2019 के आम चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के कारण मात खा जाने वाले दीपेंद्र ने इस बार कोई चूक नहीं की। 4. अंबाला की जीत कांग्रेस की एकजुटता के नाम : पूरे हरियाणा में चुनाव के दौरान अगर कांग्रेस कहीं एकजुट नजर आई तो वह अंबाला लोकसभा हलका रहा। यहां के नए सांसद वरुण चौधरी मुलाना को टिकट बेशक हुड्डा कैंप की पैरवी से मिला लेकिन सैलजा गुट में भी वरुण की अच्छी पैठ है। पूर्व मंत्री निर्मल चौधरी की चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस में हुई वापसी का फायदा भी वरुण को मिला। 4 कारण जिनके चलते कांग्रेस 5 सीटों पर हार गई 1. करनाल में कमजोर कैंडिडेट: कांग्रेस ने करनाल लोकसभा सीट पर अपने यूथ विंग के नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा को टिकट दिया। दिव्यांशु के नाम का ऐलान होते ही क्लियर हो गया था कि कांग्रेस ने इस सीट पर BJP के मनोहर लाल खट्टर को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है। करनाल के कांग्रेसी नेताओं के तमाम तरह के असहयोग के बावजूद दिव्यांशु 4 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट लेने में कामयाब रहे। अगर कांग्रेस इस सीट पर किसी बड़े चेहरे को उतारती और करनाल के नेता उसका साथ देते तो भाजपा को यहां परेशानी हो सकती थी। 2. गुटबाजी भारी पड़ी: हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। किरण चौधरी ने तो हुड्डा कैंप पर उनकी सियासी हत्या की साजिश रचने जैसे आरोप तक लगा डाले। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह की हार का अंतर 41 हजार 510 वोट रहा। भिवानी जिले की तीन में से दो सीटों पर भाजपा को लीड मिली। इनमें किरण चौधरी की तोशाम सीट शामिल रही। अगर पार्टी के नेता एकजुटता दिखाते तो यहां रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में भी आ सकता था। गुरुग्राम सीट पर भी यही कहानी रही। यहां कांग्रेस कैंडिडेट राजबब्बर 75 हजार वोट से हारे। लालू यादव के समधी कैप्टन अजय यादव इस सीट पर लंबे अर्से से एक्टिव थे लेकिन पार्टी ने ऐन मौके पर उनकी जगह राजबब्बर को टिकट थमा दिया। इससे कैप्टन नाराज हो गए। राजबब्बर की इलेक्शन कैंपेनिंग के दौरान अजय यादव बहुत कम मौकों पर नजर आए। फरीदबाद सीट पर भी टिकट न मिलने के कारण पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण दलाल की नाराजगी देखने को मिली। 3. चौधर की लड़ाई: लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला की तिकड़ी ने हिसार में एक सभा तक नहीं की। सैलजा सिरसा तक सिमटी रही तो रणदीप सिरसा के अलावा कुरुक्षेत्र एरिया में एक्टिव रहे। 4. गठबंधन की कीमत चुकाई: कांग्रेस ने I.N.D.I.A. अलायंस के तहत कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी (AAP) को दी। इसलिए यहां कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गायब रहा। आम आदमी पार्टी से उसकी हरियाणा इकाई के प्रदेशाध्यक्ष सुशील गुप्ता कुरुक्षेत्र के करण में उतरे तो पार्टी की पूरी लीडरशिप यहां डट गई। कांग्रेस से भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने सुशील गुप्ता के लिए प्रचार किया लेकिन राज्य की दूसरी किसी सीट पर AAP नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए ऐसा जोर नहीं लगाया। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि AAP ने बाकी 9 सीटों पर अपना कितना वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट कराया? हां, कुरुक्षेत्र में सुशील गुप्ता को कांग्रेसी कैडर के वोट जरूर मिले। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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