7,880 वर्ग किलोमीटर में फैला यूपी का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर अब हाथियों की चुनौती से जूझ रहा है। नेपाल के शुक्ला फाटा जंगल से आने वाले ये हाथी गन्ने और धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, रोकने या भगाने की कोशिश करने पर ये हमला कर देते हैं। हाथियों ने पिछले साल 2 लोगों को पटककर मार डाला। कई लोग हमले में घायल भी हुए। पहले ये हाथी 30 से 50 दिन तक रहते थे और वापस चले जाते थे। अब फरवरी-मार्च तक यहीं रहते हैं। हाथियों ने तमाम घरों को भी नुकसान पहुंचाया। जिनका नुकसान हुआ उन्होंने वन विभाग को लिखकर दिया, लेकिन सालभर बाद भी मुआवजा नहीं मिला। दैनिक भास्कर की टीम ने लखीमपुर में हाथियों पर स्टोरी की। एक्सपर्ट्स से जाना हाथी नेपाल से करीब 50 किलोमीटर की दूरी तय कर इन इलाकों में क्यों आते हैं? इसलिए बढ़ी चिंता : 10 से ज्यादा हाथियों का झुंड दिखा 12 सितंबर को हाथियों का एक झुंड मैलानी-भीरा रेलवे ट्रैक पार कर लखीमपुर में आ गया। हाथियों के इस झुंड में 10 से ज्यादा हाथी हैं। इसमें कई बहुत छोटे हैं। ये हाथी अभी मैलानी वन रेंज के जंगल में हैं। हाथियों से जुड़ा वीडियो सामने आया तो किसान परेशान हो गए। वन विभाग ने लोगों से कह दिया कि हाथियों के झुंड से दूर रहें। अगर वह खेतों की तरफ बढ़ते हैं तो उन खेतों में न जाएं। ऐसा आदेश इसलिए क्योंकि हाथियों के साथ उनके बच्चे हैं। दरअसल अपने बच्चों पर खतरा लगने पर हाथी कभी भी हमला कर सकते हैं। हम जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर कुंभी ब्लॉक के बिहारीपुर फार्म गांव पहुंचे। यहां गन्ने और धान की अच्छी फसल होती है। पिछले साल इस इलाके में हाथियों ने सबसे ज्यादा उत्पात मचाया था। सैकड़ों एकड़ गन्ने और धान की फसल बर्बाद कर दी थी। इस साल भी यहां गन्ने और धान की खेती हो रही है। धान में फूल आ गए हैं। हालांकि, गन्ना अभी कच्चा है। हमारी मुलाकात यहां सबसे पहले सुखविंदर सिंह से हुई। वह कहते हैं, पिछले 5 सालों से हम हाथियों से बहुत परेशान हैं। हर बार 24-25 सितंबर को हमारे इलाके में पहुंच आते हैं। इनके झुंड में 25-30 हाथी होते हैं। पूरा गांव रातभर जागकर हाथियों को भगाने की कोशिश में लगा रहता है। पिछले साल यहां एक व्यक्ति को कुचलकर मार डाला था। हमले में एक व्यक्ति का पैर टूट गया था। हम लोग ट्रैक्टर से जाते हैं, बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए हाथी हम पर हमला नहीं कर पाते। इसी गांव के जगतार सिंह कहते हैं, हाथियों ने पिछले 3 सालों में जितना नुकसान किया, उतना पहले कभी नहीं हुआ। जब सर्दी शुरू हो जाती है और कोहरे के चलते कुछ नहीं दिखता तब ये हाथी खेतों में पूरा-पूरा दिन गन्ना खाते हैं। पिछले साल मैं खेत में खड़ा था। कोहरे के चलते कुछ दिखा नहीं लेकिन पत्तियों की आहट से पीछे देखा तो एक हाथी बिल्कुल पीछे खड़ा था। मैं भागता नहीं तो वह मुझे उठाकर फेंक देता। जगतार सिंह पिछले साल की एक और घटना बताते हैं। वह कहते हैं, मेरे खेत के पास एक घना जंगल था। वहां कोई दिन में भी नहीं जाता था। पास में ही एक तालाब है, उसी में हाथी का बच्चा गिर गया। इससे गुस्साए हाथियों ने सारा जंगल खत्म कर दिया। वहां बहुत सारे पेड़ तोड़ दिए। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां एकदम खाली-खाली हो गया है। वहीं, सुखविंदर सिंह नुकसान को लेकर कहते हैं, मेरा 2 एकड़ गन्ना पिछले साल हाथियों ने खत्म कर दिया था। पूरे इलाके में 500 एकड़ से ज्यादा गन्ने की फसल और 100 एकड़ धान की फसल बर्बाद होती है। लेखपाल और अधिकारी नुकसान के बारे में लिखकर ले जाते हैं। लेकिन 3-4 साल से किसी को एक रुपए मुआवजा नहीं मिला। अब हमारे सामने कुछ सवाल थे यहां 18-85 क्वालिटी का गन्ना इसलिए ज्यादा आते हैं हाथी
हाथियों के लखीमपुर आने की एक बड़ी वजह हमें बिहारीपुर फार्म गांव के युवा जसवीर सिंह से पता चली। हमने कहा ये जगह नेपाल सीमा से करीब 30-40 किमी दूर है। रास्ते में गन्ने के तमाम खेत हैं फिर हाथी यहीं क्यों आते हैं? जसवीर कहते हैं, हमारे यहां गन्ने की 18 और 85 क्वालिटी लगाई जाती है। बाकी गन्नों के मुकाबले यह ज्यादा रसीला और मीठा होता है। इसलिए हाथियों को यह ज्यादा पसंद आता है। इस इलाके में करीब 300 एकड़ में ये क्वालिटी बोई जाती है। हमें गन्ने की खेती के जानकारों ने बताया कि इस क्वालिटी के गन्ने में कीड़ा नहीं लगता। मीठा होने के साथ ही इसकी पैदावार ज्यादा होती है। प्रति हेक्टेयर 70 टन तक पैदावार है। यही वजह है कि किसान इसकी बुआई ज्यादा करते हैं। जसवीर सिंह से हमें हाथियों के आने की एक वजह तो पता चल गई, लेकिन फिर भी हम इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानना चाहते थे। सारे सवालों के जवाब के लिए हमने दुधवा नेशनल पार्क के पूर्व फील्ड डायरेक्टर, वन निगम के मौजूदा प्रबंधक संजय पाठक और दुधवा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा से बात की। एक जगह रहेंगे तो खाने का संकट होगा : संजय पाठक कहते हैं, ये हाथी नेपाल के शुक्ला फाटा जंगल से आते हैं। इनका भोजन हैवी है, अगर यह एक जगह ही रहेंगे तो वहां इनके लिए खाने का संकट हो जाएगा। यही वजह है कि भोजन की तलाश में यह लखीमपुर आते हैं। ललित वर्मा का भी यही मानना है। उनका कहना है शुक्ला फाटा जंगल में जब भोजन-पानी की दिक्कत हो जाती है तो ये इधर का रुख करते हैं। यहां गन्ने और धान की फसल तैयार हो जाती है, इसलिए हाथियों का झुंड यहां आ जाता है। हाथी एकबार देख लेगा तो 10 साल नहीं भूलेगा : रेकी करने के सवाल पर संजय पाठक कहते हैं, इसमें टस्कर होते हैं। ये अपने झुंड के सबसे अनुभवी हाथी होते हैं। फीमेल भी हो सकती हैं। ये सबसे पहले जंगल से निकलकर लखीमपुर आते हैं। जब इस चीज को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं कि यहां सबकुछ अच्छा है तो झुंड को साथ लेकर आते हैं। जानवरों में हाथी की याद्दाश्त सबसे अच्छी होती है। इसलिए अगर कोई हाथी एकबार भी इधर आ गया तो उसे रास्ता याद रहता है। दुधवा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा का कहना है कि रास्तों को लेकर हाथी को कन्फ्यूजन नहीं होता, क्योंकि उनकी मेमोरी बहुत तेज होती है। 10 साल पहले भी अगर हाथी किसी को एक बार देखा है तो उसे दोबारा देखते ही पहचान लेगा। खतरा देख हमला करते हैं हाथी : हाथी के हमले को लेकर संजय पाठक कहते हैं, हाथी का अपना एक रूट होता है। अगर उस रूट को बंद कर दिया जाए या फिर वहां निर्माण कर दिया जाए तो संभव है कि हाथियों का झुंड उसे तोड़ देगा। आमतौर पर ये लोगों पर हमला नहीं करते। लेकिन जैसे ही इन्हें अपने व अपने बच्चों पर खतरा लगेगा, ये इंसान पर हमला कर देंगे। गणेश चतुर्थी का हाथियों से क्या कनेक्शन? : तमाम जगहों पर कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी पर हाथी लखीमपुर आते हैं। हमने संजय पाठक से पूछा कि क्या हाथियों के भारत में आने के धार्मिक पहलू भी हैं? वह कहते हैं, धर्म और त्योहार से हाथियों को कोई मतलब नहीं है। चूंकि, लोग हाथी को भगवान गणेश से जोड़कर देखते हैं, इसलिए वह इस महीने पड़ने वाले गणेश चतुर्थी से जोड़ देते हैं। ललित वर्मा भी कहते हैं कि हाथियों के आने की कोई डेट नहीं फिक्स होती है। पिछले साल जल्दी आ गए थे। इस बार जो दिखे भी हैं, वे पूरी संख्या नहीं है। ये भी पढ़ें… PM आवास योजना से घर बनवाया…बाढ़ में तबाह:लखीमपुर में शारदा नदी में समाए घर-खेत लखीमपुर जिले का बेला सिकटिया गांव। रिंकी को पिछले साल प्रधानमंत्री आवास मिला था। उनके पति सर्वेश मजदूरी करते हैं। दोनों ने मेहनत करके घर बनवाया। 1 साल भी नहीं रह पाए और घर बर्बाद हो गया। रात में बाढ़ के चलते घर छोड़कर भागना पड़ा। कमरे की फर्श बाढ़ के पानी में बह गई। रिंकी अब दूसरे के घर में रह रही हैं। वह कहती हैं- थोड़ी सी जमीन थी उसे भी बेच दिया, ताकि घर अच्छा बन जाए, लेकिन वह भी अब नहीं रहेगा। असल में रिंकी के घर से शारदा नदी सिर्फ 10 मीटर रह गई है। जिस गति से कटान हो रहा, उससे लग रहा कि अगले 15 दिन में यह घर भी नदी में समा जाएगा। पढ़ें पूरी खबर… 7,880 वर्ग किलोमीटर में फैला यूपी का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर अब हाथियों की चुनौती से जूझ रहा है। नेपाल के शुक्ला फाटा जंगल से आने वाले ये हाथी गन्ने और धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, रोकने या भगाने की कोशिश करने पर ये हमला कर देते हैं। हाथियों ने पिछले साल 2 लोगों को पटककर मार डाला। कई लोग हमले में घायल भी हुए। पहले ये हाथी 30 से 50 दिन तक रहते थे और वापस चले जाते थे। अब फरवरी-मार्च तक यहीं रहते हैं। हाथियों ने तमाम घरों को भी नुकसान पहुंचाया। जिनका नुकसान हुआ उन्होंने वन विभाग को लिखकर दिया, लेकिन सालभर बाद भी मुआवजा नहीं मिला। दैनिक भास्कर की टीम ने लखीमपुर में हाथियों पर स्टोरी की। एक्सपर्ट्स से जाना हाथी नेपाल से करीब 50 किलोमीटर की दूरी तय कर इन इलाकों में क्यों आते हैं? इसलिए बढ़ी चिंता : 10 से ज्यादा हाथियों का झुंड दिखा 12 सितंबर को हाथियों का एक झुंड मैलानी-भीरा रेलवे ट्रैक पार कर लखीमपुर में आ गया। हाथियों के इस झुंड में 10 से ज्यादा हाथी हैं। इसमें कई बहुत छोटे हैं। ये हाथी अभी मैलानी वन रेंज के जंगल में हैं। हाथियों से जुड़ा वीडियो सामने आया तो किसान परेशान हो गए। वन विभाग ने लोगों से कह दिया कि हाथियों के झुंड से दूर रहें। अगर वह खेतों की तरफ बढ़ते हैं तो उन खेतों में न जाएं। ऐसा आदेश इसलिए क्योंकि हाथियों के साथ उनके बच्चे हैं। दरअसल अपने बच्चों पर खतरा लगने पर हाथी कभी भी हमला कर सकते हैं। हम जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर कुंभी ब्लॉक के बिहारीपुर फार्म गांव पहुंचे। यहां गन्ने और धान की अच्छी फसल होती है। पिछले साल इस इलाके में हाथियों ने सबसे ज्यादा उत्पात मचाया था। सैकड़ों एकड़ गन्ने और धान की फसल बर्बाद कर दी थी। इस साल भी यहां गन्ने और धान की खेती हो रही है। धान में फूल आ गए हैं। हालांकि, गन्ना अभी कच्चा है। हमारी मुलाकात यहां सबसे पहले सुखविंदर सिंह से हुई। वह कहते हैं, पिछले 5 सालों से हम हाथियों से बहुत परेशान हैं। हर बार 24-25 सितंबर को हमारे इलाके में पहुंच आते हैं। इनके झुंड में 25-30 हाथी होते हैं। पूरा गांव रातभर जागकर हाथियों को भगाने की कोशिश में लगा रहता है। पिछले साल यहां एक व्यक्ति को कुचलकर मार डाला था। हमले में एक व्यक्ति का पैर टूट गया था। हम लोग ट्रैक्टर से जाते हैं, बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए हाथी हम पर हमला नहीं कर पाते। इसी गांव के जगतार सिंह कहते हैं, हाथियों ने पिछले 3 सालों में जितना नुकसान किया, उतना पहले कभी नहीं हुआ। जब सर्दी शुरू हो जाती है और कोहरे के चलते कुछ नहीं दिखता तब ये हाथी खेतों में पूरा-पूरा दिन गन्ना खाते हैं। पिछले साल मैं खेत में खड़ा था। कोहरे के चलते कुछ दिखा नहीं लेकिन पत्तियों की आहट से पीछे देखा तो एक हाथी बिल्कुल पीछे खड़ा था। मैं भागता नहीं तो वह मुझे उठाकर फेंक देता। जगतार सिंह पिछले साल की एक और घटना बताते हैं। वह कहते हैं, मेरे खेत के पास एक घना जंगल था। वहां कोई दिन में भी नहीं जाता था। पास में ही एक तालाब है, उसी में हाथी का बच्चा गिर गया। इससे गुस्साए हाथियों ने सारा जंगल खत्म कर दिया। वहां बहुत सारे पेड़ तोड़ दिए। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां एकदम खाली-खाली हो गया है। वहीं, सुखविंदर सिंह नुकसान को लेकर कहते हैं, मेरा 2 एकड़ गन्ना पिछले साल हाथियों ने खत्म कर दिया था। पूरे इलाके में 500 एकड़ से ज्यादा गन्ने की फसल और 100 एकड़ धान की फसल बर्बाद होती है। लेखपाल और अधिकारी नुकसान के बारे में लिखकर ले जाते हैं। लेकिन 3-4 साल से किसी को एक रुपए मुआवजा नहीं मिला। अब हमारे सामने कुछ सवाल थे यहां 18-85 क्वालिटी का गन्ना इसलिए ज्यादा आते हैं हाथी
हाथियों के लखीमपुर आने की एक बड़ी वजह हमें बिहारीपुर फार्म गांव के युवा जसवीर सिंह से पता चली। हमने कहा ये जगह नेपाल सीमा से करीब 30-40 किमी दूर है। रास्ते में गन्ने के तमाम खेत हैं फिर हाथी यहीं क्यों आते हैं? जसवीर कहते हैं, हमारे यहां गन्ने की 18 और 85 क्वालिटी लगाई जाती है। बाकी गन्नों के मुकाबले यह ज्यादा रसीला और मीठा होता है। इसलिए हाथियों को यह ज्यादा पसंद आता है। इस इलाके में करीब 300 एकड़ में ये क्वालिटी बोई जाती है। हमें गन्ने की खेती के जानकारों ने बताया कि इस क्वालिटी के गन्ने में कीड़ा नहीं लगता। मीठा होने के साथ ही इसकी पैदावार ज्यादा होती है। प्रति हेक्टेयर 70 टन तक पैदावार है। यही वजह है कि किसान इसकी बुआई ज्यादा करते हैं। जसवीर सिंह से हमें हाथियों के आने की एक वजह तो पता चल गई, लेकिन फिर भी हम इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानना चाहते थे। सारे सवालों के जवाब के लिए हमने दुधवा नेशनल पार्क के पूर्व फील्ड डायरेक्टर, वन निगम के मौजूदा प्रबंधक संजय पाठक और दुधवा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा से बात की। एक जगह रहेंगे तो खाने का संकट होगा : संजय पाठक कहते हैं, ये हाथी नेपाल के शुक्ला फाटा जंगल से आते हैं। इनका भोजन हैवी है, अगर यह एक जगह ही रहेंगे तो वहां इनके लिए खाने का संकट हो जाएगा। यही वजह है कि भोजन की तलाश में यह लखीमपुर आते हैं। ललित वर्मा का भी यही मानना है। उनका कहना है शुक्ला फाटा जंगल में जब भोजन-पानी की दिक्कत हो जाती है तो ये इधर का रुख करते हैं। यहां गन्ने और धान की फसल तैयार हो जाती है, इसलिए हाथियों का झुंड यहां आ जाता है। हाथी एकबार देख लेगा तो 10 साल नहीं भूलेगा : रेकी करने के सवाल पर संजय पाठक कहते हैं, इसमें टस्कर होते हैं। ये अपने झुंड के सबसे अनुभवी हाथी होते हैं। फीमेल भी हो सकती हैं। ये सबसे पहले जंगल से निकलकर लखीमपुर आते हैं। जब इस चीज को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं कि यहां सबकुछ अच्छा है तो झुंड को साथ लेकर आते हैं। जानवरों में हाथी की याद्दाश्त सबसे अच्छी होती है। इसलिए अगर कोई हाथी एकबार भी इधर आ गया तो उसे रास्ता याद रहता है। दुधवा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा का कहना है कि रास्तों को लेकर हाथी को कन्फ्यूजन नहीं होता, क्योंकि उनकी मेमोरी बहुत तेज होती है। 10 साल पहले भी अगर हाथी किसी को एक बार देखा है तो उसे दोबारा देखते ही पहचान लेगा। खतरा देख हमला करते हैं हाथी : हाथी के हमले को लेकर संजय पाठक कहते हैं, हाथी का अपना एक रूट होता है। अगर उस रूट को बंद कर दिया जाए या फिर वहां निर्माण कर दिया जाए तो संभव है कि हाथियों का झुंड उसे तोड़ देगा। आमतौर पर ये लोगों पर हमला नहीं करते। लेकिन जैसे ही इन्हें अपने व अपने बच्चों पर खतरा लगेगा, ये इंसान पर हमला कर देंगे। गणेश चतुर्थी का हाथियों से क्या कनेक्शन? : तमाम जगहों पर कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी पर हाथी लखीमपुर आते हैं। हमने संजय पाठक से पूछा कि क्या हाथियों के भारत में आने के धार्मिक पहलू भी हैं? वह कहते हैं, धर्म और त्योहार से हाथियों को कोई मतलब नहीं है। चूंकि, लोग हाथी को भगवान गणेश से जोड़कर देखते हैं, इसलिए वह इस महीने पड़ने वाले गणेश चतुर्थी से जोड़ देते हैं। ललित वर्मा भी कहते हैं कि हाथियों के आने की कोई डेट नहीं फिक्स होती है। पिछले साल जल्दी आ गए थे। इस बार जो दिखे भी हैं, वे पूरी संख्या नहीं है। ये भी पढ़ें… PM आवास योजना से घर बनवाया…बाढ़ में तबाह:लखीमपुर में शारदा नदी में समाए घर-खेत लखीमपुर जिले का बेला सिकटिया गांव। रिंकी को पिछले साल प्रधानमंत्री आवास मिला था। उनके पति सर्वेश मजदूरी करते हैं। दोनों ने मेहनत करके घर बनवाया। 1 साल भी नहीं रह पाए और घर बर्बाद हो गया। रात में बाढ़ के चलते घर छोड़कर भागना पड़ा। कमरे की फर्श बाढ़ के पानी में बह गई। रिंकी अब दूसरे के घर में रह रही हैं। वह कहती हैं- थोड़ी सी जमीन थी उसे भी बेच दिया, ताकि घर अच्छा बन जाए, लेकिन वह भी अब नहीं रहेगा। असल में रिंकी के घर से शारदा नदी सिर्फ 10 मीटर रह गई है। जिस गति से कटान हो रहा, उससे लग रहा कि अगले 15 दिन में यह घर भी नदी में समा जाएगा। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर