हिमाचल के देहरा में एक ही दिन दो अलग-अलग स्थानों पर बेटियों ने परंपरागत मान्यताओं को तोड़ते हुए पिता की अंतिम विदाई के बाद मुखाग्नि दी। यह घटनाएं देहरा नगर और ग्राम पंचायत सकरी में हुई। सकरी निवासी रघुवीर सिंह (57) लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। टांडा मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी छोटी बेटी तन्वी ने पिता की अर्थी को कंधा दिया। श्मशान घाट में उन्होंने सभी अंतिम संस्कार की रस्में निभाईं। परिवार पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। इसी बीच एक और दुखद घटना हुई। रघुवीर सिंह की बड़ी बेटी पारुल का 3 वर्षीय बेटा गर्म पानी से झुलस गया। उसे गंभीर हालत में टांडा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। विधायक कमलेश ठाकुर ने दोनों परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने रघुवीर सिंह के परिवार को सरकारी योजनाओं के तहत आर्थिक मदद का आश्वासन दिया। यह घटना समाज में बेटा-बेटी के भेदभाव को मिटाने का एक सशक्त उदाहरण बन गई है। अपर्णा ने पूरा किया पिता का सपना दूसरी घटना देहरा के प्रतिष्ठित फर्नीचर व्यापारी 80 वर्षीय सतीश सूद के निधन से जुड़ी है। उनकी बेटी अपर्णा सूद ने भी वही कर्तव्य निभाया जो आमतौर पर बेटों से अपेक्षित होता है। हिंदू धर्म की मान्यता रही है कि बेटे ही पिता की चिता को मुखाग्नि देते हैं, लेकिन अपर्णा ने समाज की इस सोच को बदल दिया। अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए अपर्णा ने न केवल अर्थी को कंधा दिया, बल्कि श्मशान घाट में चिता को मुखाग्नि दी। इस मार्मिक दृश्य ने वहां मौजूद लोगों की आंखें नम कर दीं। बेटियों ने दिखाया कि वे बेटों से कम नहीं। एक दिन में दो अलग-अलग घटनाओं ने साबित कर दिया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता। जहां सकरी की तन्वी ने मजबूरी में अपने पिता का अंतिम संस्कार किया, वहीं देहरा की अपर्णा ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए यह जिम्मेदारी उठाई। हिमाचल के देहरा में एक ही दिन दो अलग-अलग स्थानों पर बेटियों ने परंपरागत मान्यताओं को तोड़ते हुए पिता की अंतिम विदाई के बाद मुखाग्नि दी। यह घटनाएं देहरा नगर और ग्राम पंचायत सकरी में हुई। सकरी निवासी रघुवीर सिंह (57) लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। टांडा मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी छोटी बेटी तन्वी ने पिता की अर्थी को कंधा दिया। श्मशान घाट में उन्होंने सभी अंतिम संस्कार की रस्में निभाईं। परिवार पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। इसी बीच एक और दुखद घटना हुई। रघुवीर सिंह की बड़ी बेटी पारुल का 3 वर्षीय बेटा गर्म पानी से झुलस गया। उसे गंभीर हालत में टांडा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। विधायक कमलेश ठाकुर ने दोनों परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने रघुवीर सिंह के परिवार को सरकारी योजनाओं के तहत आर्थिक मदद का आश्वासन दिया। यह घटना समाज में बेटा-बेटी के भेदभाव को मिटाने का एक सशक्त उदाहरण बन गई है। अपर्णा ने पूरा किया पिता का सपना दूसरी घटना देहरा के प्रतिष्ठित फर्नीचर व्यापारी 80 वर्षीय सतीश सूद के निधन से जुड़ी है। उनकी बेटी अपर्णा सूद ने भी वही कर्तव्य निभाया जो आमतौर पर बेटों से अपेक्षित होता है। हिंदू धर्म की मान्यता रही है कि बेटे ही पिता की चिता को मुखाग्नि देते हैं, लेकिन अपर्णा ने समाज की इस सोच को बदल दिया। अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए अपर्णा ने न केवल अर्थी को कंधा दिया, बल्कि श्मशान घाट में चिता को मुखाग्नि दी। इस मार्मिक दृश्य ने वहां मौजूद लोगों की आंखें नम कर दीं। बेटियों ने दिखाया कि वे बेटों से कम नहीं। एक दिन में दो अलग-अलग घटनाओं ने साबित कर दिया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता। जहां सकरी की तन्वी ने मजबूरी में अपने पिता का अंतिम संस्कार किया, वहीं देहरा की अपर्णा ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए यह जिम्मेदारी उठाई। हिमाचल | दैनिक भास्कर
