हिमाचल प्रदेश में राधा स्वामी सत्संग ब्यास, लोगों द्वारा दान की गई जमीन को सोसाइटी के नाम ट्रांसफर करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहा है। धार्मिक संस्था के दबाव में कांग्रेस सरकार भी लैंड सीलिंग एक्ट बदलने जा रही है। एक्ट बदला गया तो हिमाचल में दूसरी धार्मिक संस्थाएं भी अपनी जमीन बेचने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी। इसकी आड़ में चाय के बागान बेचने की भी अनुमति देनी पड़ सकती है, क्योंकि प्रदेश में समय समय पर चाय के बागान बेचने की अनुमति की मांग उठती रही है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास पांच-छह साल से हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होर्डिंग्स एक्ट 1972 की धारा 5 की उप धारा 5(आई) को हटाने की मांग कर रहा है। कानून के जानकार बताते हैं कि राधा स्वामी सत्संग ब्यास और दूसरी धार्मिक संस्थाएं जमीन को न बेच सकती है, न गिफ्ट कर सकती है और न ही सोयासटी के नाम जमीन ट्रांसफर कर सकती है। यदि धार्मिक संस्था द्वारा ऐसा किया जाता है तो वह जमीन सरकार में निहित (वेस्ट) हो जाती है। सरकार ने एक्ट में 5(आई) जोड़कर सीलिंग में दी थी छूट दरअसल, राज्य सरकार ने साल 2014 में हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होर्डिंग एक्ट 1972 की धारा 5 में 5(आई) जोड़कर सीलिंग में छूट दी और धार्मिक संस्थाओं द्वारा जमीन बेचने पर इसे सरकार में निहित करने का प्रावधान किया। इससे धार्मिक संस्थाएं तिलमिला गई। धार्मिक संस्थाएं सरकार पर इस प्रावधान को हटाने का बार बार दबाव बना रही हैं। कैबिनेट नहीं दे सकती छूट जानकारों की माने तो राज्य कैबिनेट भी छूट नहीं दे सकती है। एक्ट में संशोधन किए बगैर धार्मिक संस्था को जमीन बेचने व हस्तांतरित करने की अनुमति देना संभव नहीं है। राज्य सरकार यदि एक्ट में संशोधन कर भी देती है तो भी इसमें राष्ट्रपति की मंजूरी अनिवार्य है। लोगों ने सैकड़ों बीघा जमीन कर रखी है दान प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्रों लोगों ने धार्मिक संस्थाओं को सैकड़ों बीघा जमीन दान कर रखी है। अभी लोगों द्वारा दान दी गई जमीन धार्मिक संस्थाओं के नाम है। कुछेक संस्थाएं अब इन्हें बेचकर मुनाफा कमाना चाह रही है, लेकिन लैंड सीलिंग एक्ट इसकी इजाजत नहीं देता। धार्मिक संस्था को छूट दी गई तो यह फैसला देवी-देवताओं और उन लोगों के साथ धोखा साबित होगा, जिनकी हजारों बीघा जमीन सीलिंग एक्ट के कारण सरकार में वेस्ट हुई है। बता दें कि हिमाचल में सीलिंग एक्ट की वजह से सैकड़ों लोगों की हजारों बीघा जमीन सरकार में वेस्ट की जा चुकी है। धार्मिक संस्थाओं को इसमें छूट केवल इस्तेमाल के लिए दी गई थी। बेचने के लिए नहीं। सीलिंग से ज्यादा जमीन को किया गया सील हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डा.वाइएस परमार के समय हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग एक्ट इसलिए बनाया गया, ताकि भूमि के व्यक्तिगत उपयोग की सीमा तय की जा सके। यह भू-सुधारों में सबसे बड़ा कदम था। इसमें बोनाफाइड हिमाचलियों के लिए भी लैंड होल्डिंग की सीमा निर्धारित है। कोई भी व्यक्ति या परिवार राज्य में पानी लगने वाली जमीन सिर्फ 50 बीघा, एक फसल देने वाली जमीन 75 बीघा और बगीचा 150 बीघा और ट्राइबल एरिया में 350 बीघा जमीन ही रख सकता है। जिनके लोगों के पास इससे ज्यादा जमीन थी, उनकी जमीन सरकार में वेस्ट हो गई थी। हिमाचल के लैंड सीलिंग एक्ट को संविधान की प्रोटेक्शन प्राप्त है। इस एक्ट की धारा 5 के अनुसार राज्य और केंद्र सरकार, सहकारी समितियों, सहकारी बैंकों, स्थानीय निकायों, चाय बागानों, उद्योगों, जल विद्युत परियोजनाओं और राधा स्वामी सत्संग ब्यास की जमीन को सीलिंग से छूट दी गई है। हिमाचल प्रदेश में राधा स्वामी सत्संग ब्यास, लोगों द्वारा दान की गई जमीन को सोसाइटी के नाम ट्रांसफर करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहा है। धार्मिक संस्था के दबाव में कांग्रेस सरकार भी लैंड सीलिंग एक्ट बदलने जा रही है। एक्ट बदला गया तो हिमाचल में दूसरी धार्मिक संस्थाएं भी अपनी जमीन बेचने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी। इसकी आड़ में चाय के बागान बेचने की भी अनुमति देनी पड़ सकती है, क्योंकि प्रदेश में समय समय पर चाय के बागान बेचने की अनुमति की मांग उठती रही है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास पांच-छह साल से हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होर्डिंग्स एक्ट 1972 की धारा 5 की उप धारा 5(आई) को हटाने की मांग कर रहा है। कानून के जानकार बताते हैं कि राधा स्वामी सत्संग ब्यास और दूसरी धार्मिक संस्थाएं जमीन को न बेच सकती है, न गिफ्ट कर सकती है और न ही सोयासटी के नाम जमीन ट्रांसफर कर सकती है। यदि धार्मिक संस्था द्वारा ऐसा किया जाता है तो वह जमीन सरकार में निहित (वेस्ट) हो जाती है। सरकार ने एक्ट में 5(आई) जोड़कर सीलिंग में दी थी छूट दरअसल, राज्य सरकार ने साल 2014 में हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होर्डिंग एक्ट 1972 की धारा 5 में 5(आई) जोड़कर सीलिंग में छूट दी और धार्मिक संस्थाओं द्वारा जमीन बेचने पर इसे सरकार में निहित करने का प्रावधान किया। इससे धार्मिक संस्थाएं तिलमिला गई। धार्मिक संस्थाएं सरकार पर इस प्रावधान को हटाने का बार बार दबाव बना रही हैं। कैबिनेट नहीं दे सकती छूट जानकारों की माने तो राज्य कैबिनेट भी छूट नहीं दे सकती है। एक्ट में संशोधन किए बगैर धार्मिक संस्था को जमीन बेचने व हस्तांतरित करने की अनुमति देना संभव नहीं है। राज्य सरकार यदि एक्ट में संशोधन कर भी देती है तो भी इसमें राष्ट्रपति की मंजूरी अनिवार्य है। लोगों ने सैकड़ों बीघा जमीन कर रखी है दान प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्रों लोगों ने धार्मिक संस्थाओं को सैकड़ों बीघा जमीन दान कर रखी है। अभी लोगों द्वारा दान दी गई जमीन धार्मिक संस्थाओं के नाम है। कुछेक संस्थाएं अब इन्हें बेचकर मुनाफा कमाना चाह रही है, लेकिन लैंड सीलिंग एक्ट इसकी इजाजत नहीं देता। धार्मिक संस्था को छूट दी गई तो यह फैसला देवी-देवताओं और उन लोगों के साथ धोखा साबित होगा, जिनकी हजारों बीघा जमीन सीलिंग एक्ट के कारण सरकार में वेस्ट हुई है। बता दें कि हिमाचल में सीलिंग एक्ट की वजह से सैकड़ों लोगों की हजारों बीघा जमीन सरकार में वेस्ट की जा चुकी है। धार्मिक संस्थाओं को इसमें छूट केवल इस्तेमाल के लिए दी गई थी। बेचने के लिए नहीं। सीलिंग से ज्यादा जमीन को किया गया सील हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डा.वाइएस परमार के समय हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग एक्ट इसलिए बनाया गया, ताकि भूमि के व्यक्तिगत उपयोग की सीमा तय की जा सके। यह भू-सुधारों में सबसे बड़ा कदम था। इसमें बोनाफाइड हिमाचलियों के लिए भी लैंड होल्डिंग की सीमा निर्धारित है। कोई भी व्यक्ति या परिवार राज्य में पानी लगने वाली जमीन सिर्फ 50 बीघा, एक फसल देने वाली जमीन 75 बीघा और बगीचा 150 बीघा और ट्राइबल एरिया में 350 बीघा जमीन ही रख सकता है। जिनके लोगों के पास इससे ज्यादा जमीन थी, उनकी जमीन सरकार में वेस्ट हो गई थी। हिमाचल के लैंड सीलिंग एक्ट को संविधान की प्रोटेक्शन प्राप्त है। इस एक्ट की धारा 5 के अनुसार राज्य और केंद्र सरकार, सहकारी समितियों, सहकारी बैंकों, स्थानीय निकायों, चाय बागानों, उद्योगों, जल विद्युत परियोजनाओं और राधा स्वामी सत्संग ब्यास की जमीन को सीलिंग से छूट दी गई है। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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