हिमाचल प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पर्ची के 10 रुपए लेने के मामले में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने गुरुवार को सफाई देते हुए कहा, सरकार ने किसी भी अस्पताल में शुक्ल अनिवार्य नहीं किया। सरकार की तरफ से कोई सिफारिश नहीं की गई। CM ने कहा, यदि अस्पताल प्रबंधन सफाई और मेंटेनेंस चाहता है तो पर्ची पर शुक्ल ले सकता है। अगर अस्पताल की इनकम है तो शुल्क जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा, नोटिफिकेशन को किसी पर थोपा नहीं गया। कैबिनेट सब कमेटी ने राय के तहत कहा, सभी अस्पताल ऑटोनोमस होने चाहिए कि यदि कोई सफाई और मेंटेनेंस को आय करना चाहते है तो पर्ची लगा सकते हैं। नोटिफिकेशन में अनिवार्य करने की बात बेशक, मुख्यमंत्री सुक्खू पर्ची पर शुल्क अनिवार्य नहीं करने की बात कह रहे हैं। मगर स्वास्थ्य सचिव द्वारा जारी अधिसूचना में साफ कहा गया कि रजिस्ट्रेशन के वक्त सभी मरीजों से 10 रुपए शुक्ल लिया जाए। यह शुल्क पर्ची बनाते वक्त वसूल कर दिया जाएगा। इसमें कहा गया कि रोगी कल्याण समिति की ओर से दी जाने वाली सेवाओं स्वच्छता, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और उपकरणों के रखरखाव को सुदृढ़ करने के लिए यह फैसला लिया है। अस्पतालों में यह शुल्क रोगी कल्याण समिति द्वारा वसूला जाएगा। स्वास्थ्य सचिव ने अपने आदेशों में कहा कि कैबिनेट सब कमेटी की सिफारिश पर यह निर्णय लिया गया है। अब तक सभी सरकारी अस्पतालों में पर्ची मुफ्त में बनाई जाती थी। मगर, वर्तमान सरकार ने सालों पुरानी इस व्यवस्था को बदल दिया है। शुल्क के पीछे मंत्री का तर्क इसके पीछे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धनीराम शांडिल ने बीते माह तर्क दिया था कि मुफ्त पर्ची को लोग संभालकर नहीं रखते, इससे डॉक्टरों को भी परेशानी होती है। पर्ची बनाने के 10 रुपए लगेंगे तो लोग इसे संभालकर रखेंगे। उन्होंने कहा कि पीजीआई चंडीगढ़ में भी यह शुल्क लिया जाता है। 12 से 15 हजार मरीज रोज सरकारी अस्पतालों में कराते हैं उपचार प्रदेश में अकेले आईजीएमसी शिमला में रोजाना तीन हजार से चार हजार के बीच मरीज उपचार को पहुंचते हैं। इसी तरह राज्य के मेडिकल कालेज एवं अस्पतालों में रोजाना 700 से दो हजार लोगों की ओपीडी है। इस तरह प्रदेश के सभी चिकित्सा संस्थानों में रोजाना 12 से 15 हजार मरीज उपचार को पहुंचते हैं। सभी को अब 10 रुपए देने होंगे। स्वास्थ्य विभाग के इस फैसले के बाद विपक्ष को नया मुद्दा मिल गया है। विपक्ष इसे लेकर सरकार को घेर रहा है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सुक्खू गवर्नमेंट को शुल्क और कर्ज की सरकार बताया। उन्होंने कहा, पहले बस का न्यूनतम किराया 10 रुपए किया। अब पर्ची पर 10 रुपए शुल्क लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व भाजपा सरकार ने हिमकेयर योजना के तहत 5 लाख रुपए का मुफ्त इलाज दिया था और मौजूदा सरकार शुक्ल पर शुल्क लगा रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पर्ची के 10 रुपए लेने के मामले में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने गुरुवार को सफाई देते हुए कहा, सरकार ने किसी भी अस्पताल में शुक्ल अनिवार्य नहीं किया। सरकार की तरफ से कोई सिफारिश नहीं की गई। CM ने कहा, यदि अस्पताल प्रबंधन सफाई और मेंटेनेंस चाहता है तो पर्ची पर शुक्ल ले सकता है। अगर अस्पताल की इनकम है तो शुल्क जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा, नोटिफिकेशन को किसी पर थोपा नहीं गया। कैबिनेट सब कमेटी ने राय के तहत कहा, सभी अस्पताल ऑटोनोमस होने चाहिए कि यदि कोई सफाई और मेंटेनेंस को आय करना चाहते है तो पर्ची लगा सकते हैं। नोटिफिकेशन में अनिवार्य करने की बात बेशक, मुख्यमंत्री सुक्खू पर्ची पर शुल्क अनिवार्य नहीं करने की बात कह रहे हैं। मगर स्वास्थ्य सचिव द्वारा जारी अधिसूचना में साफ कहा गया कि रजिस्ट्रेशन के वक्त सभी मरीजों से 10 रुपए शुक्ल लिया जाए। यह शुल्क पर्ची बनाते वक्त वसूल कर दिया जाएगा। इसमें कहा गया कि रोगी कल्याण समिति की ओर से दी जाने वाली सेवाओं स्वच्छता, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और उपकरणों के रखरखाव को सुदृढ़ करने के लिए यह फैसला लिया है। अस्पतालों में यह शुल्क रोगी कल्याण समिति द्वारा वसूला जाएगा। स्वास्थ्य सचिव ने अपने आदेशों में कहा कि कैबिनेट सब कमेटी की सिफारिश पर यह निर्णय लिया गया है। अब तक सभी सरकारी अस्पतालों में पर्ची मुफ्त में बनाई जाती थी। मगर, वर्तमान सरकार ने सालों पुरानी इस व्यवस्था को बदल दिया है। शुल्क के पीछे मंत्री का तर्क इसके पीछे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धनीराम शांडिल ने बीते माह तर्क दिया था कि मुफ्त पर्ची को लोग संभालकर नहीं रखते, इससे डॉक्टरों को भी परेशानी होती है। पर्ची बनाने के 10 रुपए लगेंगे तो लोग इसे संभालकर रखेंगे। उन्होंने कहा कि पीजीआई चंडीगढ़ में भी यह शुल्क लिया जाता है। 12 से 15 हजार मरीज रोज सरकारी अस्पतालों में कराते हैं उपचार प्रदेश में अकेले आईजीएमसी शिमला में रोजाना तीन हजार से चार हजार के बीच मरीज उपचार को पहुंचते हैं। इसी तरह राज्य के मेडिकल कालेज एवं अस्पतालों में रोजाना 700 से दो हजार लोगों की ओपीडी है। इस तरह प्रदेश के सभी चिकित्सा संस्थानों में रोजाना 12 से 15 हजार मरीज उपचार को पहुंचते हैं। सभी को अब 10 रुपए देने होंगे। स्वास्थ्य विभाग के इस फैसले के बाद विपक्ष को नया मुद्दा मिल गया है। विपक्ष इसे लेकर सरकार को घेर रहा है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सुक्खू गवर्नमेंट को शुल्क और कर्ज की सरकार बताया। उन्होंने कहा, पहले बस का न्यूनतम किराया 10 रुपए किया। अब पर्ची पर 10 रुपए शुल्क लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व भाजपा सरकार ने हिमकेयर योजना के तहत 5 लाख रुपए का मुफ्त इलाज दिया था और मौजूदा सरकार शुक्ल पर शुल्क लगा रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। हिमाचल | दैनिक भास्कर
