होटल और रेस्टोरेंट में सर्विस चार्ज लेने के फैसले के खिलाफ दिल्ली HC में अर्जी, 9 मई को अहम सुनवाई

होटल और रेस्टोरेंट में सर्विस चार्ज लेने के फैसले के खिलाफ दिल्ली HC में अर्जी, 9 मई को अहम सुनवाई

<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> होटल और रेस्टोरेंट में खाने के बिल में सर्विस टैक्स जोड़ने की प्रथा को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा कानूनी विवाद अब देशभर में चर्चा का विषय बन गया है. 9 मई को इस विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट की सुनवाई करेगी, जिसमें उपभोक्ता अधिकारों और व्यवसायिक प्रथाओं के बीच टकराव को लेकर महत्वपूर्ण फैसला आ सकता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, यह मामला केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों से जुड़ा है, जो जुलाई 2022 में रेस्टोरेंट द्वारा स्वचालित रूप से सर्विस चार्ज जोड़ने पर रोक लगाते हैं. सीसीपीए के इस कदम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को बचाना था, जो बिना अपनी सहमति के 5-20 प्रतिशत सर्विस चार्ज बिलों में जोड़ने की शिकायत करते आए थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>NRAI ने दाखिल की याचिका</strong><br />दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज के फैसले के खिलाफ रेस्टोरेंट और होटल व्यवसायी लामबंद हो गए हैं. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए इसे चुनौती दी है. इन संगठनों का कहना है कि सर्विस चार्ज एक पुरानी और मान्यता प्राप्त उद्योग प्रथा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न श्रम बोर्डों द्वारा स्वीकार किया गया है. इसके साथ ही, उनका यह भी कहना है कि यह मामला उपभोक्ता कानून की बजाय श्रम कानून के दायरे में आता है और सीसीपीए को इस पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सिंगल जज ने दिया था अहम फैसला</strong><br />दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज ने पिछले महीने सीसीपीए के दिशानिर्देशों को बरकरार रखते हुए कहा था कि यह प्रथा उपभोक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है. कोर्ट ने कहा था कि सर्विस चार्ज केवल स्वैच्छिक होना चाहिए और इसे वैलफेयर फंड या स्वैच्छिक योगदान जैसे स्पष्ट शब्दों से बदलना आवश्यक है, ताकि ग्राहक किसी भ्रम में न पड़ें.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’कर्मचारियों के वेतन का हिस्सा होता है सर्विस चार्ज'</strong><br />साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि ग्राहक सर्विस चार्ज नहीं देना चाहते हैं, तो उनके पास सेवा का उपयोग करने से इनकार करने का पूरा अधिकार है. दूसरी ओर, NRAI और FHRAI ने तर्क दिया कि इस फैसले से श्रमिकों को होने वाले लाभ को नुकसान पहुंचेगा क्योंकि सर्विस चार्ज सीधे कर्मचारियों के वेतन का हिस्सा होता है. उनका यह भी कहना है कि यदि ग्राहकों को सर्विस चार्ज में कोई आपत्ति है तो वे भोजन का सेवन करने से मना कर सकते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाईकोर्ट में 9 मई को अहम सुनवाई&nbsp;</strong><br />इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच ने मंगलवार (29 अप्रैल) को तकनीकी कारणों से सुनवाई टाल दी और 9 मई को इस मामले की सुनवाई निर्धारित की गई है. सभी की निगाहें अब इस सुनवाई पर टिकी हुई हैं, क्योंकि यह फैसला न केवल रेस्टोरेंट उद्योग की भविष्यवाणी करेगा, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों और श्रमिकों के हितों के बीच संतुलन भी बनाएगा.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> होटल और रेस्टोरेंट में खाने के बिल में सर्विस टैक्स जोड़ने की प्रथा को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा कानूनी विवाद अब देशभर में चर्चा का विषय बन गया है. 9 मई को इस विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट की सुनवाई करेगी, जिसमें उपभोक्ता अधिकारों और व्यवसायिक प्रथाओं के बीच टकराव को लेकर महत्वपूर्ण फैसला आ सकता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, यह मामला केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों से जुड़ा है, जो जुलाई 2022 में रेस्टोरेंट द्वारा स्वचालित रूप से सर्विस चार्ज जोड़ने पर रोक लगाते हैं. सीसीपीए के इस कदम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को बचाना था, जो बिना अपनी सहमति के 5-20 प्रतिशत सर्विस चार्ज बिलों में जोड़ने की शिकायत करते आए थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>NRAI ने दाखिल की याचिका</strong><br />दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज के फैसले के खिलाफ रेस्टोरेंट और होटल व्यवसायी लामबंद हो गए हैं. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए इसे चुनौती दी है. इन संगठनों का कहना है कि सर्विस चार्ज एक पुरानी और मान्यता प्राप्त उद्योग प्रथा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न श्रम बोर्डों द्वारा स्वीकार किया गया है. इसके साथ ही, उनका यह भी कहना है कि यह मामला उपभोक्ता कानून की बजाय श्रम कानून के दायरे में आता है और सीसीपीए को इस पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सिंगल जज ने दिया था अहम फैसला</strong><br />दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज ने पिछले महीने सीसीपीए के दिशानिर्देशों को बरकरार रखते हुए कहा था कि यह प्रथा उपभोक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है. कोर्ट ने कहा था कि सर्विस चार्ज केवल स्वैच्छिक होना चाहिए और इसे वैलफेयर फंड या स्वैच्छिक योगदान जैसे स्पष्ट शब्दों से बदलना आवश्यक है, ताकि ग्राहक किसी भ्रम में न पड़ें.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’कर्मचारियों के वेतन का हिस्सा होता है सर्विस चार्ज'</strong><br />साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि ग्राहक सर्विस चार्ज नहीं देना चाहते हैं, तो उनके पास सेवा का उपयोग करने से इनकार करने का पूरा अधिकार है. दूसरी ओर, NRAI और FHRAI ने तर्क दिया कि इस फैसले से श्रमिकों को होने वाले लाभ को नुकसान पहुंचेगा क्योंकि सर्विस चार्ज सीधे कर्मचारियों के वेतन का हिस्सा होता है. उनका यह भी कहना है कि यदि ग्राहकों को सर्विस चार्ज में कोई आपत्ति है तो वे भोजन का सेवन करने से मना कर सकते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाईकोर्ट में 9 मई को अहम सुनवाई&nbsp;</strong><br />इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच ने मंगलवार (29 अप्रैल) को तकनीकी कारणों से सुनवाई टाल दी और 9 मई को इस मामले की सुनवाई निर्धारित की गई है. सभी की निगाहें अब इस सुनवाई पर टिकी हुई हैं, क्योंकि यह फैसला न केवल रेस्टोरेंट उद्योग की भविष्यवाणी करेगा, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों और श्रमिकों के हितों के बीच संतुलन भी बनाएगा.</p>  दिल्ली NCR पाखरो रेंज घोटाला: डेढ़ साल की जांच के बाद CBI ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट, जानिए पूरा मामला