20 साल बाद यूपी में आदमखोर भेड़िए:पहले से ज्यादा ले रहे जान; नेपाल से आई बाघिन ने 436 लोगों को मारा

20 साल बाद यूपी में आदमखोर भेड़िए:पहले से ज्यादा ले रहे जान; नेपाल से आई बाघिन ने 436 लोगों को मारा

जिला- बहराइच, तारीख- 17 जुलाई। हरदी इलाके में सिकंदरपुर गांव का मजरा है मक्का पुरवा। यहां घर में लेटे एक साल के अख्तर को भेड़िया उठा ले गया। शव गांव से कुछ दूरी पर मिला। कुछ हिस्से गायब थे। अख्तर इकलौता बच्चा नहीं, जिसकी जान गई। मार्च से लेकर अब तक 8 बच्चों को भेड़िए रात में उठा ले गए। शवों के कुछ ही हिस्से मिले हैं। एक बुजुर्ग महिला को भी मार डाला। जिला- लखीमपुर खीरी, तारीख- 28 अगस्त। इमलियां गांव में बाघ ने किसान पर हमला कर उसे मार डाला। शरीर को 200 मीटर तक खींचते हुए ले गया और सिर को धड़ से अलग कर दिया। किसान अपने खेत में काम कर रहा था, तभी बाघ ने हमला किया। यहां अब तक बाघ के हमले में 4 लोगों की मौत हो चुकी है। बाघ आदमखोर हो चुका है। इस समय यूपी के तीन जिलों- बहराइच, सीतापुर, लखीमपुर खीरी में भेड़िए और बाघ के हमले से दहशत मची हुई है। बहराइच में 50 गांवों के लोग पिछले 48 दिनों से भेड़ियों के आतंक में जी रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित महसी तहसील है। वन विभाग की 25 टीमें इन भेड़ियों को पकड़ने में जुटी हैं। अब तक विभाग 4 भेड़ियों को पकड़ चुका है। इधर, गांव वालों में दहशत का आलम यह है कि ग्रामीण रातभर जागकर घरों के बाहर पहरा दे रहे हैं। यहां तक कि स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह भी राइफल लेकर सड़कों पर घूमने को मजबूर हैं। बहराइच के बाद अब भेड़ियों का आतंक सीतापुर तक पहुंच गया है। इसी तरह पिछले 28 दिनों से लखीमपुर खीरी में लोग बाघ के हमलों के खौफ में जी रहे हैं। खेतों में जाना बंद कर दिया है। आखिर अचानक बहराइच-सीतापुर में आदमखोर भेड़ियों और लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक कैसे बढ़ गया? क्या पहले भी ये क्षेत्र खूंखार जानवरों से प्रभावित रहे हैं? पहले कब-कब उत्तर प्रदेश में आदमखोर जानवरों का आतंक रहा है? इन सभी सवालों के जवाब संडे बिग स्टोरी में जानिए- सबसे पहले भेड़ियों के हमले की कहानी…
बहराइच के महसी तहसील के हरदी इलाके के 50 गांव की 80 हजार से ज्यादा की आबादी खौफ में जी रही है। इन गांवों में भेड़ियों के आतंक का आलम ये है कि वन विभाग के साथ ही गांव वालों ने भी खुद की सुरक्षा का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया है। वो रातभर जागकर गांव की रखवाली कर रहे हैं। 50 गांवों में एक-एक टीम बना दी गई है। टीम के सदस्यों की शिफ्ट वाइज ड्यूटी लगाई जा रही है। ये लोग लाठी-डंडे और बंदूक लेकर दिन-रात पूरे गांव का चक्कर लगा रहे हैं। इन गांवों से ही भेड़िए 8 बच्चों समेत 9 को अपना शिकार बना चुके हैं। 35 से ज्यादा लोग हमलों से घायल हैं। भेड़ियों का सॉफ्ट टारगेट बच्चे ही हैं। विभाग ने इन गांवों में कैमरे लगाए हैं। ड्रोन से निगरानी की जा रही है। भेड़ियों को पकड़ने में लगे अफसरों ने बताया कि 20-22 साल पहले भेड़िए के हमले के एक-दो मामले सामने आते थे। यह पहली बार हो रहा है कि इतने हमले हो रहे हैं। आदमखोर भेड़ियों की कितनी संख्या है, इसका भी पता अब तक नहीं चल पाया है। ड्रोन में जिन चार झुंड को देखा गया, उसमें एक अकेला भेड़िया है। कुल 4 को पकड़ा गया है, लेकिन हमले बंद नहीं हुए हैं। सभी हमले रात में हुए हैं। बहराइच के गांवों में अचानक भेड़ियों के हमले को लेकर वन राज्य मंत्री अरुण सक्सेना का मानना है कि जंगली इलाके में बाढ़ की वजह से ऐसा हो रहा है। उन्होंने कहा कि जंगलों में बाढ़ का पानी भरने की वजह से जंगली जानवर गांव की तरफ आ रहे हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस से लेकर वन और राजस्व विभाग तैनात
बहराइच में भेड़ियों के हमले से गांव वालों की सुरक्षा के लिए कदम-कदम पर पुलिस, पीएसी सहित कई विभागों के अधिकारी-कर्मचारी डटे हुए हैं। इन गांवों में पंचायत से लेकर विकास, पुलिस, राजस्व सहित वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी दिन-रात गश्त कर रहे हैं। पूरे इलाके में कॉम्बिंग के जरिए भेड़िए के मूवमेंट को ट्रैक किया जा रहा है। गाड़ियों पर स्पीकर लगाकर प्रशासन लोगों को घरों के भीतर रहने और बच्चों को घरों से न निकलने देने और दरवाजा बंद कर सोने की हिदायतें दे रहा है। प्रशासन के साथ मिलकर गांव वाले भी सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं। लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक
27 अगस्त को इमलियां गांव के रहने वाले किसान अमरीश कुमार की बाघ के हमले में मौत हो गई। इस घटना के बाद से लोगों में दहशत है। वन विभाग को भी इस बारे में सूचना दी गई। उनकी टीमें लखीमपुर खीरी में एक्टिव हो गईं। इस क्षेत्र में पिछले 28 दिनों से आदमखोर बाघ का कहर जारी है। वह अब तक 4 लोगों को मार चुका है। पास ही में दुधवा टाइगर रिजर्व होने से जिले के करीब 50 गांव में बाघ और तेंदुए का खौफ हमेशा बना रहता हैं। वन विभाग ने बाघ को पकड़ने के लिए यहां भी तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। वन विभाग के अधिकारी बाघ को पिंजरे में कैद करने की कोशिश में हैं। लखीमपुर खीरी में दुधवा नेशनल पार्क है। यहां 2022 की गणना में 105 बाघ मिले थे। इनकी संख्या बढ़ने की वजह से टेरेटरी की लड़ाई होती है। कई बार बाघ जंगल से निकलकर गांव की तरफ आ जाता है। वह इंसान और मवेशियाें का शिकार करने लगता है। इस इलाके में गन्ने की खेती भी खूब होती है, इसलिए उन्हें छिपने की जगह मिल जाती है। लखीमपुर खीरी में पहले भी बाघ के हमले होते रहे हैं। हालांकि काफी साल बाद किसी बाघ के हमले में 4 लोगों की जान गई है। अब पढ़िए 5 आदमखोर बाघ-बाघिन, जिनका खौफ रहा 1: चंपावत: आदमखोर बाघिन की कहानी
यूपी से लगे पड़ोसी देश नेपाल से इस बाघिन की कहानी शुरू होती है। इस बाघिन का आतंक सबसे पहले उत्तराखंड (पहले यूपी का हिस्सा) से लगे नेपाल के हिस्से में शुरू हुआ। जब यह लोगों को मारने लगी तो भारत की तरफ खदेड़ दिया गया। यहां चंपावत जिले में उसने डेरा डाल दिया। नेपाल के बाद भारत में इस बाघिन का इतना खौफ हो गया था कि लोगों ने गांव खाली कर दिया था। खतरनाक बाघिन ने भारत और नेपाल में 436 इंसानों का शिकार किया। आदमखोर बाघिन की दहशत ऐसी थी कि रात कौन कहे, दिन में भी लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे। घर से छोटे बच्चों के बाहर निकलने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। घरों के बाहर आग जलाई जाती थी, बच्चों की रखवाली के लिए रात-रात भर लोग पहरा देते थे। बेखौफ बाघिन ने रात से ज्यादा दिन में इंसानों का शिकार किया और यही कारण है कि आज भी आदमखोर बाघ-बाघिन में इसका नाम पहले आता है। दो देशों में इंसानों का शिकार करने वाली इस बाघिन की मौत की कहानी भी इतिहास बन गई। इस आदमखोर बाघिन को 1907 में विश्वविख्यात शिकारी जिम कॉर्बेट ने कई प्रयास के बाद पहाड़ पर मार गिराया था। कहा जाता है कि जिम कॉर्बेट के हाथों उस समय दुनिया की सबसे खतरनाक बाघिन का शिकार हुआ था। 2: बिजनौर: बाघिन लेडी किलर,15 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा
यहां बाघिन लेडी किलर की कहानी चंपावत की आदमखोर बाघिन के खात्मे के बाद शुरू हुई। बिजनौर में 20वीं सदी में एक ऐसी बाघिन का आतंक बढ़ा कि वह शिकार के कारण लेडी किलर के नाम से मशहूर हो गई। इंसानों को साॅफ्ट टारगेट पर रखने वाली इस बाघिन ने 15 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जो इसके हमले में बच गए, वह भी चलने फिरने लायक नहीं रह गए। 2014 में इस आदमखोर बाघिन का लोगों में खौफ इस कदर था कि रात में ही नहीं दिन में भी लोग घर के बाहर नहीं जाते थे। इस आदमखोर की आदत थी, यह शिकार के बाद इंसान की लाश को काफी दूर ले जाती थी। वन विभाग की टीम ने काफी घेराबंदी की, लेकिन इसकी झलक तक नहीं मिली। आदमखोर बाघिन को मारने के लिए पूरा प्लान तैयार किया गया। इसका आतंक खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक लोगों में इसका खौफ था, इसके शिकार करने का स्टाइल अलग था, जो लोगों में भय का कारण बना था। 3- दुधवा टाइगर रिजर्व की कुख्यात तारा… 4- लखीमपुर खीरी का बाघ छेदी सिंह.. 5- लखीमपुर खीरी से पकड़ा गया बाघ मुस्तफा अब सवाल उठता है कि कोई जानवर आदमखोर कैसे बन जाता है?
आदमखोर का मतलब होता है- जो आदमी को खाता हो। आसान भाषा में ये शब्द उन जानवरों के लिए इस्तेमाल होता है, जो इंसान को अपना भोजन बनाने लगता है। ऐसे में, सवाल उठता है कि कोई जानवर क्यों आदमखोर बन जाता है? इसका जवाब मिलता है- वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 में। इसमें इस शब्द का विस्तार से जिक्र है। एक्ट के मुताबिक, जो जानवर ‘डेंजरस टू ह्यूमन लाइफ’ यानी इंसानों के लिए खतरनाक होता है, उसके शिकार की अनुमति दी जाती है। इसके लिए भी एक प्रॉसेस अपनाया जाता है। जैसे टाइगर, लैपर्ड, एलिफेंट आदि जानवर जब इंसानी जिंदगी के लिए खतरा हो जाते हैं, तो इन्हें मारने की अनुमति है। अगर कोई जानवर लगातार इंसानी इलाकों में आता है और इंसानों की जान लेता है तो उसे आदमखोर कहा जाता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, कई बार जानवर किसी खास चोट या बीमारी के कारण भी इंसानों पर हमला करने लगते हैं। उनके लिए सामान्य शिकार जैसे हिरण या अन्य जानवरों का पीछा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इंसानों का शिकार भेड़ियों के लिए आसान हो जाता है। हालांकि, इस केस में भेड़िए झुंड में हैं। ऐसे में उनके बीमार होने की संभावना कम ही लगती है। इंसान के लिए खतरा बन जाने पर जानवर को मारने का आदेश कौन देता है?
किसी भी जानवर को मारने का आदेश चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन देता है। वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11(1) में इसका जिक्र है। हर राज्य में एक चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन होता है और उन्हीं के आदेश के बाद किसी जानवर का शिकार किया जा सकता है। इसके लिए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन के सामने शिकार करने की वजह रखनी होती है, यदि चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन वजह को सही मानता है, तो ही जानवर का शिकार किया जा सकता है। बाघ और भेड़िया जैसे जंगली जानवर इंसानी बस्ती में कैसे आ जाते हैं?
जानकार पहली वजह बताते हैं- जंगल का रकबा कम होना। अवर वर्ल्ड इन डाटा की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 से 2020 के बीच भारत में करीब 7 लाख हेक्टेयर जंगल काटा जा चुका है। भारतीय वन संरक्षण की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सोनभद्र में सबसे ज्यादा जंगलों की कमी आई है। उदाहरण के लिए पीलीभीत टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 620 वर्ग किलोमीटर है। मानक के मुताबिक, इतनी जगह में 20 से 24 बाघों को ही ठीक से रखा जा सकता है। लेकिन, 2022 में इस टाइगर रिजर्व में बाघों की गणना में सामने आया कि 73 से भी अधिक बाघ यहां रह रहे हैं। ऐसे में, यह बाघों की संख्या और पर्यटन के लिहाज से तो अच्छा है, लेकिन बाघों के लिए टेरेटरी कम पड़ने लगती है। तब वो आसपास के गांवों में जाने लगते हैं। इस तरह ऐसे जानवरों और इंसानों का आमना-सामना और संघर्ष बढ़ जाता है। आबादी वाले इलाके में बाघों के घुसने की एक वजह उनका गन्ने के खेत को जंगल समझना भी है। गोला रेंजर संजीव तिवारी कहते हैं- बाघ और तेंदुए जंगल से निकलकर आवारा पशुओं के पीछे आ जाते हैं। गन्ने के खेत में ठिकाना बना लेते हैं। यहां पर शिकार करने में उनको ज्यादा भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती। आसानी से पशुओं को दबोच लेते हैं। आबादी के आसपास जो लोग गन्ने की बुआई कर रहे हैं, उनसे कई बार गन्ना बोने से मना किया। लेकिन मानते नहीं। गन्ने की वजह से बाघ को पकड़ने में दिक्कत आती है। बाघ को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया गया है। जिला- बहराइच, तारीख- 17 जुलाई। हरदी इलाके में सिकंदरपुर गांव का मजरा है मक्का पुरवा। यहां घर में लेटे एक साल के अख्तर को भेड़िया उठा ले गया। शव गांव से कुछ दूरी पर मिला। कुछ हिस्से गायब थे। अख्तर इकलौता बच्चा नहीं, जिसकी जान गई। मार्च से लेकर अब तक 8 बच्चों को भेड़िए रात में उठा ले गए। शवों के कुछ ही हिस्से मिले हैं। एक बुजुर्ग महिला को भी मार डाला। जिला- लखीमपुर खीरी, तारीख- 28 अगस्त। इमलियां गांव में बाघ ने किसान पर हमला कर उसे मार डाला। शरीर को 200 मीटर तक खींचते हुए ले गया और सिर को धड़ से अलग कर दिया। किसान अपने खेत में काम कर रहा था, तभी बाघ ने हमला किया। यहां अब तक बाघ के हमले में 4 लोगों की मौत हो चुकी है। बाघ आदमखोर हो चुका है। इस समय यूपी के तीन जिलों- बहराइच, सीतापुर, लखीमपुर खीरी में भेड़िए और बाघ के हमले से दहशत मची हुई है। बहराइच में 50 गांवों के लोग पिछले 48 दिनों से भेड़ियों के आतंक में जी रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित महसी तहसील है। वन विभाग की 25 टीमें इन भेड़ियों को पकड़ने में जुटी हैं। अब तक विभाग 4 भेड़ियों को पकड़ चुका है। इधर, गांव वालों में दहशत का आलम यह है कि ग्रामीण रातभर जागकर घरों के बाहर पहरा दे रहे हैं। यहां तक कि स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह भी राइफल लेकर सड़कों पर घूमने को मजबूर हैं। बहराइच के बाद अब भेड़ियों का आतंक सीतापुर तक पहुंच गया है। इसी तरह पिछले 28 दिनों से लखीमपुर खीरी में लोग बाघ के हमलों के खौफ में जी रहे हैं। खेतों में जाना बंद कर दिया है। आखिर अचानक बहराइच-सीतापुर में आदमखोर भेड़ियों और लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक कैसे बढ़ गया? क्या पहले भी ये क्षेत्र खूंखार जानवरों से प्रभावित रहे हैं? पहले कब-कब उत्तर प्रदेश में आदमखोर जानवरों का आतंक रहा है? इन सभी सवालों के जवाब संडे बिग स्टोरी में जानिए- सबसे पहले भेड़ियों के हमले की कहानी…
बहराइच के महसी तहसील के हरदी इलाके के 50 गांव की 80 हजार से ज्यादा की आबादी खौफ में जी रही है। इन गांवों में भेड़ियों के आतंक का आलम ये है कि वन विभाग के साथ ही गांव वालों ने भी खुद की सुरक्षा का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया है। वो रातभर जागकर गांव की रखवाली कर रहे हैं। 50 गांवों में एक-एक टीम बना दी गई है। टीम के सदस्यों की शिफ्ट वाइज ड्यूटी लगाई जा रही है। ये लोग लाठी-डंडे और बंदूक लेकर दिन-रात पूरे गांव का चक्कर लगा रहे हैं। इन गांवों से ही भेड़िए 8 बच्चों समेत 9 को अपना शिकार बना चुके हैं। 35 से ज्यादा लोग हमलों से घायल हैं। भेड़ियों का सॉफ्ट टारगेट बच्चे ही हैं। विभाग ने इन गांवों में कैमरे लगाए हैं। ड्रोन से निगरानी की जा रही है। भेड़ियों को पकड़ने में लगे अफसरों ने बताया कि 20-22 साल पहले भेड़िए के हमले के एक-दो मामले सामने आते थे। यह पहली बार हो रहा है कि इतने हमले हो रहे हैं। आदमखोर भेड़ियों की कितनी संख्या है, इसका भी पता अब तक नहीं चल पाया है। ड्रोन में जिन चार झुंड को देखा गया, उसमें एक अकेला भेड़िया है। कुल 4 को पकड़ा गया है, लेकिन हमले बंद नहीं हुए हैं। सभी हमले रात में हुए हैं। बहराइच के गांवों में अचानक भेड़ियों के हमले को लेकर वन राज्य मंत्री अरुण सक्सेना का मानना है कि जंगली इलाके में बाढ़ की वजह से ऐसा हो रहा है। उन्होंने कहा कि जंगलों में बाढ़ का पानी भरने की वजह से जंगली जानवर गांव की तरफ आ रहे हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस से लेकर वन और राजस्व विभाग तैनात
बहराइच में भेड़ियों के हमले से गांव वालों की सुरक्षा के लिए कदम-कदम पर पुलिस, पीएसी सहित कई विभागों के अधिकारी-कर्मचारी डटे हुए हैं। इन गांवों में पंचायत से लेकर विकास, पुलिस, राजस्व सहित वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी दिन-रात गश्त कर रहे हैं। पूरे इलाके में कॉम्बिंग के जरिए भेड़िए के मूवमेंट को ट्रैक किया जा रहा है। गाड़ियों पर स्पीकर लगाकर प्रशासन लोगों को घरों के भीतर रहने और बच्चों को घरों से न निकलने देने और दरवाजा बंद कर सोने की हिदायतें दे रहा है। प्रशासन के साथ मिलकर गांव वाले भी सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं। लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक
27 अगस्त को इमलियां गांव के रहने वाले किसान अमरीश कुमार की बाघ के हमले में मौत हो गई। इस घटना के बाद से लोगों में दहशत है। वन विभाग को भी इस बारे में सूचना दी गई। उनकी टीमें लखीमपुर खीरी में एक्टिव हो गईं। इस क्षेत्र में पिछले 28 दिनों से आदमखोर बाघ का कहर जारी है। वह अब तक 4 लोगों को मार चुका है। पास ही में दुधवा टाइगर रिजर्व होने से जिले के करीब 50 गांव में बाघ और तेंदुए का खौफ हमेशा बना रहता हैं। वन विभाग ने बाघ को पकड़ने के लिए यहां भी तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। वन विभाग के अधिकारी बाघ को पिंजरे में कैद करने की कोशिश में हैं। लखीमपुर खीरी में दुधवा नेशनल पार्क है। यहां 2022 की गणना में 105 बाघ मिले थे। इनकी संख्या बढ़ने की वजह से टेरेटरी की लड़ाई होती है। कई बार बाघ जंगल से निकलकर गांव की तरफ आ जाता है। वह इंसान और मवेशियाें का शिकार करने लगता है। इस इलाके में गन्ने की खेती भी खूब होती है, इसलिए उन्हें छिपने की जगह मिल जाती है। लखीमपुर खीरी में पहले भी बाघ के हमले होते रहे हैं। हालांकि काफी साल बाद किसी बाघ के हमले में 4 लोगों की जान गई है। अब पढ़िए 5 आदमखोर बाघ-बाघिन, जिनका खौफ रहा 1: चंपावत: आदमखोर बाघिन की कहानी
यूपी से लगे पड़ोसी देश नेपाल से इस बाघिन की कहानी शुरू होती है। इस बाघिन का आतंक सबसे पहले उत्तराखंड (पहले यूपी का हिस्सा) से लगे नेपाल के हिस्से में शुरू हुआ। जब यह लोगों को मारने लगी तो भारत की तरफ खदेड़ दिया गया। यहां चंपावत जिले में उसने डेरा डाल दिया। नेपाल के बाद भारत में इस बाघिन का इतना खौफ हो गया था कि लोगों ने गांव खाली कर दिया था। खतरनाक बाघिन ने भारत और नेपाल में 436 इंसानों का शिकार किया। आदमखोर बाघिन की दहशत ऐसी थी कि रात कौन कहे, दिन में भी लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे। घर से छोटे बच्चों के बाहर निकलने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। घरों के बाहर आग जलाई जाती थी, बच्चों की रखवाली के लिए रात-रात भर लोग पहरा देते थे। बेखौफ बाघिन ने रात से ज्यादा दिन में इंसानों का शिकार किया और यही कारण है कि आज भी आदमखोर बाघ-बाघिन में इसका नाम पहले आता है। दो देशों में इंसानों का शिकार करने वाली इस बाघिन की मौत की कहानी भी इतिहास बन गई। इस आदमखोर बाघिन को 1907 में विश्वविख्यात शिकारी जिम कॉर्बेट ने कई प्रयास के बाद पहाड़ पर मार गिराया था। कहा जाता है कि जिम कॉर्बेट के हाथों उस समय दुनिया की सबसे खतरनाक बाघिन का शिकार हुआ था। 2: बिजनौर: बाघिन लेडी किलर,15 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा
यहां बाघिन लेडी किलर की कहानी चंपावत की आदमखोर बाघिन के खात्मे के बाद शुरू हुई। बिजनौर में 20वीं सदी में एक ऐसी बाघिन का आतंक बढ़ा कि वह शिकार के कारण लेडी किलर के नाम से मशहूर हो गई। इंसानों को साॅफ्ट टारगेट पर रखने वाली इस बाघिन ने 15 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जो इसके हमले में बच गए, वह भी चलने फिरने लायक नहीं रह गए। 2014 में इस आदमखोर बाघिन का लोगों में खौफ इस कदर था कि रात में ही नहीं दिन में भी लोग घर के बाहर नहीं जाते थे। इस आदमखोर की आदत थी, यह शिकार के बाद इंसान की लाश को काफी दूर ले जाती थी। वन विभाग की टीम ने काफी घेराबंदी की, लेकिन इसकी झलक तक नहीं मिली। आदमखोर बाघिन को मारने के लिए पूरा प्लान तैयार किया गया। इसका आतंक खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक लोगों में इसका खौफ था, इसके शिकार करने का स्टाइल अलग था, जो लोगों में भय का कारण बना था। 3- दुधवा टाइगर रिजर्व की कुख्यात तारा… 4- लखीमपुर खीरी का बाघ छेदी सिंह.. 5- लखीमपुर खीरी से पकड़ा गया बाघ मुस्तफा अब सवाल उठता है कि कोई जानवर आदमखोर कैसे बन जाता है?
आदमखोर का मतलब होता है- जो आदमी को खाता हो। आसान भाषा में ये शब्द उन जानवरों के लिए इस्तेमाल होता है, जो इंसान को अपना भोजन बनाने लगता है। ऐसे में, सवाल उठता है कि कोई जानवर क्यों आदमखोर बन जाता है? इसका जवाब मिलता है- वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 में। इसमें इस शब्द का विस्तार से जिक्र है। एक्ट के मुताबिक, जो जानवर ‘डेंजरस टू ह्यूमन लाइफ’ यानी इंसानों के लिए खतरनाक होता है, उसके शिकार की अनुमति दी जाती है। इसके लिए भी एक प्रॉसेस अपनाया जाता है। जैसे टाइगर, लैपर्ड, एलिफेंट आदि जानवर जब इंसानी जिंदगी के लिए खतरा हो जाते हैं, तो इन्हें मारने की अनुमति है। अगर कोई जानवर लगातार इंसानी इलाकों में आता है और इंसानों की जान लेता है तो उसे आदमखोर कहा जाता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, कई बार जानवर किसी खास चोट या बीमारी के कारण भी इंसानों पर हमला करने लगते हैं। उनके लिए सामान्य शिकार जैसे हिरण या अन्य जानवरों का पीछा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इंसानों का शिकार भेड़ियों के लिए आसान हो जाता है। हालांकि, इस केस में भेड़िए झुंड में हैं। ऐसे में उनके बीमार होने की संभावना कम ही लगती है। इंसान के लिए खतरा बन जाने पर जानवर को मारने का आदेश कौन देता है?
किसी भी जानवर को मारने का आदेश चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन देता है। वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11(1) में इसका जिक्र है। हर राज्य में एक चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन होता है और उन्हीं के आदेश के बाद किसी जानवर का शिकार किया जा सकता है। इसके लिए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन के सामने शिकार करने की वजह रखनी होती है, यदि चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन वजह को सही मानता है, तो ही जानवर का शिकार किया जा सकता है। बाघ और भेड़िया जैसे जंगली जानवर इंसानी बस्ती में कैसे आ जाते हैं?
जानकार पहली वजह बताते हैं- जंगल का रकबा कम होना। अवर वर्ल्ड इन डाटा की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 से 2020 के बीच भारत में करीब 7 लाख हेक्टेयर जंगल काटा जा चुका है। भारतीय वन संरक्षण की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सोनभद्र में सबसे ज्यादा जंगलों की कमी आई है। उदाहरण के लिए पीलीभीत टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 620 वर्ग किलोमीटर है। मानक के मुताबिक, इतनी जगह में 20 से 24 बाघों को ही ठीक से रखा जा सकता है। लेकिन, 2022 में इस टाइगर रिजर्व में बाघों की गणना में सामने आया कि 73 से भी अधिक बाघ यहां रह रहे हैं। ऐसे में, यह बाघों की संख्या और पर्यटन के लिहाज से तो अच्छा है, लेकिन बाघों के लिए टेरेटरी कम पड़ने लगती है। तब वो आसपास के गांवों में जाने लगते हैं। इस तरह ऐसे जानवरों और इंसानों का आमना-सामना और संघर्ष बढ़ जाता है। आबादी वाले इलाके में बाघों के घुसने की एक वजह उनका गन्ने के खेत को जंगल समझना भी है। गोला रेंजर संजीव तिवारी कहते हैं- बाघ और तेंदुए जंगल से निकलकर आवारा पशुओं के पीछे आ जाते हैं। गन्ने के खेत में ठिकाना बना लेते हैं। यहां पर शिकार करने में उनको ज्यादा भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती। आसानी से पशुओं को दबोच लेते हैं। आबादी के आसपास जो लोग गन्ने की बुआई कर रहे हैं, उनसे कई बार गन्ना बोने से मना किया। लेकिन मानते नहीं। गन्ने की वजह से बाघ को पकड़ने में दिक्कत आती है। बाघ को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया गया है।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर