पंजाब कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू आज अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जा रहे हैं। वह सीमा पार श्री करतारपुर साहिब में माथा टेकेंगे। नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने दौरे का पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर किया है। जानकारी के मुताबिक सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर, राबिया, करण और बहू इनायत भी इस यात्रा पर उनके साथ होंगी। श्री करतारपुर साहिब की यह उनकी दूसरी यात्रा है। इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू नवंबर 2021 में श्री करतारपुर साहिब गए थे। तब कोरोना काल के बंद के बाद करतारपुर साहिब को श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोल दिया गया था, लेकिन उस समय पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और वह खुद पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे। बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू के परिवार ने लंबे समय से कांग्रेस से दूरी बना रखी है। नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति छोड़ क्रिकेट में व्यस्त हैं। हाल ही में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर भाजपा नेता तरनजीत सिंह संधू से मिलने पहुंची थीं। जिसके बाद पंजाब कांग्रेस में हलचल मच गई थी। पाकिस्तान को लेकर विवादों में रहे हैं सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू और पाकिस्तान के बीच विवाद मुख्य रूप से उनके बयानों और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ उनकी दोस्ती से जुड़ा है। सिद्धू कई बार पाकिस्तान जा चुके हैं, जिसमें करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह में उनकी मौजूदगी और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलना शामिल है। इस घटना से भारत में काफी विवाद हुआ, खासकर भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने इसके लिए सिद्धू की आलोचना की। पाकिस्तान के प्रति सिद्धू की सकारात्मक टिप्पणियों को अक्सर भारतीय राजनीति में गलत समझा जाता रहा है। उनका कहना है कि उनका प्रयास भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना है, खासकर करतारपुर साहिब जैसे सिख समुदाय के धार्मिक स्थलों के लिए। लेकिन उनके विरोधियों का मानना है कि उनकी ऐसी हरकतें राष्ट्र की सुरक्षा और भारत-पाक संबंधों के संवेदनशील मुद्दों से समझौता कर सकती हैं। सिद्धू परिवार राजनीति से दूर
विधानसभा चुनाव 2022 हारने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को अचानक जेल जाना पड़ा। 1988 के रोडरेज मामले में उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई। 2023 में जेल से बाहर आने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू और उनके पूरे परिवार ने राजनीति से दूरी बना ली। लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारकों की सूची में नाम होने के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू ने कहीं भी प्रचार नहीं किया। इतना ही नहीं, वे कांग्रेस की बैठकों से भी दूर रहे। नवजोत सिंह सिद्धू का सियासी सफर 2004 में राजनीति में कदम रखा
नवजोत सिंह सिद्धू ने 2004 में भाजपा के टिकट पर राजनीति में कदम रखा। उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से टिकट मिला, और वे भारी मतों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। संसद सदस्य के रूप में उन्होंने भाजपा के साथ अपनी पहचान मजबूत की और पंजाब में पार्टी के महत्वपूर्ण चेहरों में से एक बन गए। 2004-2014 तक लोकसभा सदस्य रहे
सिद्धू ने अमृतसर से सांसद रहते हुए कई बार चुनाव लड़े और जीते। उन्होंने 2004, 2009 और 2014 के चुनावों में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई। हालांकि, 2014 में भाजपा ने अमृतसर सीट पर अरुण जेटली को टिकट दिया, जिसके चलते सिद्धू ने यह चुनाव नहीं लड़ा और इससे उनकी पार्टी के साथ असहमति बढ़ने लगी। 2016 में राज्यसभा सदस्यता और भाजपा से इस्तीफा
2016 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया, लेकिन पार्टी के साथ उनके मतभेद इतने बढ़ गए थे कि कुछ ही महीनों बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और भाजपा से भी अलग हो गए। इस फैसले से उनके राजनीतिक करियर में एक बड़ा मोड़ आया। 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए
भाजपा छोड़ने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें अमृतसर (पूर्व) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद उन्हें पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों का कार्यभार संभाला। कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्यकाल और मतभेद
कैबिनेट मंत्री के रूप में सिद्धू ने पर्यटन और संस्कृति के क्षेत्र में काम किया, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उनके मतभेद सामने आने लगे। इन मतभेदों के चलते उन्हें 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद भी वे कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहे, लेकिन उनकी भूमिका को लेकर विवाद जारी रहा। 2021 में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बने
2021 में, कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में पार्टी को मजबूत करने के लिए सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया। लेकिन सिद्धू और तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तनातनी बढ़ने से अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद पार्टी के भीतर घमासान मच गया। हार के बाद सिद्धू का प्रभाव पार्टी में कम
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी और आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सिद्धू का प्रभाव पार्टी में कम हो गया। 2022 में नवजोत सिंह सिद्धू को रोडरेज केस में 1 साल के लिए जेल में जाना पड़ा। 1 साल जेल में रहने के बाद 2023 में उनकी रिहाई हुई, लेकिन राजनीति में वे सक्रिय नहीं हुए। इसी दौरान उनकी पत्नी का कैंसर का ट्रीटमेंट भी चला। लोकसभा चुनावों में भी नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस के हक में प्रचार नहीं किया। सामान्य जीवन में वापस लौट रही डॉ. नवजोत कौर
कैंसर का इलाज करवाने के बाद डॉ. नवजोत कौर अब स्वस्थ हैं और धीरे-धीरे सामान्य जीवन में वापस लौट रही हैं। नवजोत सिंह सिद्धू के बीते साल जेल से बाहर आने से पहले ही उन्होंने अपना इलाज शुरू करवा दिया था। कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू हमेशा उनके साथ रहे। बीते दिनों नवजोत सिंह सिद्धू के जन्मदिन पर डल्हौजी में पूरे परिवार ने एक साथ समय बताया था। जहां नवजोत कौर ने साइकलिंग करते व डांस करते की तस्वीरों को सांझा किया था। सिद्धू परिवार के कांग्रेस से रिश्ते क्यों खराब हुए?
नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू का कांग्रेस के साथ रिश्ता हाल के वर्षों में कमजोर होता गया है। इसकी मुख्य वजह कांग्रेस के अंदर सिद्धू परिवार के साथ हुए मतभेद और अंदरूनी राजनीति बताई जा रही है। 1. अमरिंदर सिंह के साथ मतभेद
नवजोत सिंह सिद्धू ने 2017 में कांग्रेस जॉइन करने के बाद अमरिंदर सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन जल्द ही उनके और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच मतभेद पैदा हो गए। सिद्धू ने कई मुद्दों पर अपनी असहमति व्यक्त की, खासकर भ्रष्टाचार और अन्य प्रशासनिक मामलों पर। उनके और कैप्टन के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि 2019 में सिद्धू को लोकल बॉडी मिनिस्टर के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्हें बिजली विभाग दिया गया, लेकिन नवजोत सिद्धू ने वे विभाग लेने से मना कर दिया। इन मतभेदों के कारण सिद्धू परिवार और कांग्रेस में दूरियां बढ़ने लगीं। 2. पार्टी नेतृत्व और कार्यशैली पर असहमति
पंजाब कांग्रेस में सिद्धू की कार्यशैली और उनके मुखर रवैये से कई वरिष्ठ नेताओं को आपत्ति रही। सिद्धू का यह मानना था कि पार्टी में उन्हें और उनके सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। उन्होंने कई बार खुलकर नेतृत्व की आलोचना भी की, जो पार्टी के कुछ सदस्यों को नागवार गुजरी। इसके चलते कांग्रेस के अंदर उनकी स्थिति कमजोर होती गई। 3. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद की समस्याएं
2021 में सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, ताकि पार्टी में एक नया जोश आए। लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी में एकता की बजाय अंतर्कलह बढ़ गई। सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच भी कई मुद्दों पर मतभेद सामने आए, जिससे पार्टी के अंदर अस्थिरता बनी रही। इस स्थिति से कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं में असंतोष फैला, जिससे सिद्धू का कांग्रेस में ग्राफ गिरने लगा। 4. 2022 का विधानसभा चुनाव और कांग्रेस की हार
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने सिद्धू की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए। आम आदमी पार्टी की जीत के बाद कांग्रेस के अंदर हार का ठीकरा सिद्धू के सिर पर भी फूटा। चुनाव के बाद से कांग्रेस ने पंजाब में नए सिरे से रणनीति बनानी शुरू कर दी, जिसमें सिद्धू को कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली। इस हार के बाद सिद्धू और कांग्रेस के बीच रिश्ते और कमजोर हो गए। पंजाब कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू आज अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जा रहे हैं। वह सीमा पार श्री करतारपुर साहिब में माथा टेकेंगे। नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने दौरे का पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर किया है। जानकारी के मुताबिक सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर, राबिया, करण और बहू इनायत भी इस यात्रा पर उनके साथ होंगी। श्री करतारपुर साहिब की यह उनकी दूसरी यात्रा है। इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू नवंबर 2021 में श्री करतारपुर साहिब गए थे। तब कोरोना काल के बंद के बाद करतारपुर साहिब को श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोल दिया गया था, लेकिन उस समय पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और वह खुद पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे। बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू के परिवार ने लंबे समय से कांग्रेस से दूरी बना रखी है। नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति छोड़ क्रिकेट में व्यस्त हैं। हाल ही में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर भाजपा नेता तरनजीत सिंह संधू से मिलने पहुंची थीं। जिसके बाद पंजाब कांग्रेस में हलचल मच गई थी। पाकिस्तान को लेकर विवादों में रहे हैं सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू और पाकिस्तान के बीच विवाद मुख्य रूप से उनके बयानों और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ उनकी दोस्ती से जुड़ा है। सिद्धू कई बार पाकिस्तान जा चुके हैं, जिसमें करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह में उनकी मौजूदगी और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलना शामिल है। इस घटना से भारत में काफी विवाद हुआ, खासकर भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने इसके लिए सिद्धू की आलोचना की। पाकिस्तान के प्रति सिद्धू की सकारात्मक टिप्पणियों को अक्सर भारतीय राजनीति में गलत समझा जाता रहा है। उनका कहना है कि उनका प्रयास भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना है, खासकर करतारपुर साहिब जैसे सिख समुदाय के धार्मिक स्थलों के लिए। लेकिन उनके विरोधियों का मानना है कि उनकी ऐसी हरकतें राष्ट्र की सुरक्षा और भारत-पाक संबंधों के संवेदनशील मुद्दों से समझौता कर सकती हैं। सिद्धू परिवार राजनीति से दूर
विधानसभा चुनाव 2022 हारने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को अचानक जेल जाना पड़ा। 1988 के रोडरेज मामले में उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई। 2023 में जेल से बाहर आने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू और उनके पूरे परिवार ने राजनीति से दूरी बना ली। लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारकों की सूची में नाम होने के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू ने कहीं भी प्रचार नहीं किया। इतना ही नहीं, वे कांग्रेस की बैठकों से भी दूर रहे। नवजोत सिंह सिद्धू का सियासी सफर 2004 में राजनीति में कदम रखा
नवजोत सिंह सिद्धू ने 2004 में भाजपा के टिकट पर राजनीति में कदम रखा। उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से टिकट मिला, और वे भारी मतों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। संसद सदस्य के रूप में उन्होंने भाजपा के साथ अपनी पहचान मजबूत की और पंजाब में पार्टी के महत्वपूर्ण चेहरों में से एक बन गए। 2004-2014 तक लोकसभा सदस्य रहे
सिद्धू ने अमृतसर से सांसद रहते हुए कई बार चुनाव लड़े और जीते। उन्होंने 2004, 2009 और 2014 के चुनावों में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई। हालांकि, 2014 में भाजपा ने अमृतसर सीट पर अरुण जेटली को टिकट दिया, जिसके चलते सिद्धू ने यह चुनाव नहीं लड़ा और इससे उनकी पार्टी के साथ असहमति बढ़ने लगी। 2016 में राज्यसभा सदस्यता और भाजपा से इस्तीफा
2016 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया, लेकिन पार्टी के साथ उनके मतभेद इतने बढ़ गए थे कि कुछ ही महीनों बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और भाजपा से भी अलग हो गए। इस फैसले से उनके राजनीतिक करियर में एक बड़ा मोड़ आया। 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए
भाजपा छोड़ने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें अमृतसर (पूर्व) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद उन्हें पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों का कार्यभार संभाला। कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्यकाल और मतभेद
कैबिनेट मंत्री के रूप में सिद्धू ने पर्यटन और संस्कृति के क्षेत्र में काम किया, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उनके मतभेद सामने आने लगे। इन मतभेदों के चलते उन्हें 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद भी वे कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहे, लेकिन उनकी भूमिका को लेकर विवाद जारी रहा। 2021 में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बने
2021 में, कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में पार्टी को मजबूत करने के लिए सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया। लेकिन सिद्धू और तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तनातनी बढ़ने से अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद पार्टी के भीतर घमासान मच गया। हार के बाद सिद्धू का प्रभाव पार्टी में कम
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी और आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सिद्धू का प्रभाव पार्टी में कम हो गया। 2022 में नवजोत सिंह सिद्धू को रोडरेज केस में 1 साल के लिए जेल में जाना पड़ा। 1 साल जेल में रहने के बाद 2023 में उनकी रिहाई हुई, लेकिन राजनीति में वे सक्रिय नहीं हुए। इसी दौरान उनकी पत्नी का कैंसर का ट्रीटमेंट भी चला। लोकसभा चुनावों में भी नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस के हक में प्रचार नहीं किया। सामान्य जीवन में वापस लौट रही डॉ. नवजोत कौर
कैंसर का इलाज करवाने के बाद डॉ. नवजोत कौर अब स्वस्थ हैं और धीरे-धीरे सामान्य जीवन में वापस लौट रही हैं। नवजोत सिंह सिद्धू के बीते साल जेल से बाहर आने से पहले ही उन्होंने अपना इलाज शुरू करवा दिया था। कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू हमेशा उनके साथ रहे। बीते दिनों नवजोत सिंह सिद्धू के जन्मदिन पर डल्हौजी में पूरे परिवार ने एक साथ समय बताया था। जहां नवजोत कौर ने साइकलिंग करते व डांस करते की तस्वीरों को सांझा किया था। सिद्धू परिवार के कांग्रेस से रिश्ते क्यों खराब हुए?
नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू का कांग्रेस के साथ रिश्ता हाल के वर्षों में कमजोर होता गया है। इसकी मुख्य वजह कांग्रेस के अंदर सिद्धू परिवार के साथ हुए मतभेद और अंदरूनी राजनीति बताई जा रही है। 1. अमरिंदर सिंह के साथ मतभेद
नवजोत सिंह सिद्धू ने 2017 में कांग्रेस जॉइन करने के बाद अमरिंदर सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन जल्द ही उनके और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच मतभेद पैदा हो गए। सिद्धू ने कई मुद्दों पर अपनी असहमति व्यक्त की, खासकर भ्रष्टाचार और अन्य प्रशासनिक मामलों पर। उनके और कैप्टन के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि 2019 में सिद्धू को लोकल बॉडी मिनिस्टर के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्हें बिजली विभाग दिया गया, लेकिन नवजोत सिद्धू ने वे विभाग लेने से मना कर दिया। इन मतभेदों के कारण सिद्धू परिवार और कांग्रेस में दूरियां बढ़ने लगीं। 2. पार्टी नेतृत्व और कार्यशैली पर असहमति
पंजाब कांग्रेस में सिद्धू की कार्यशैली और उनके मुखर रवैये से कई वरिष्ठ नेताओं को आपत्ति रही। सिद्धू का यह मानना था कि पार्टी में उन्हें और उनके सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। उन्होंने कई बार खुलकर नेतृत्व की आलोचना भी की, जो पार्टी के कुछ सदस्यों को नागवार गुजरी। इसके चलते कांग्रेस के अंदर उनकी स्थिति कमजोर होती गई। 3. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद की समस्याएं
2021 में सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, ताकि पार्टी में एक नया जोश आए। लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी में एकता की बजाय अंतर्कलह बढ़ गई। सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच भी कई मुद्दों पर मतभेद सामने आए, जिससे पार्टी के अंदर अस्थिरता बनी रही। इस स्थिति से कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं में असंतोष फैला, जिससे सिद्धू का कांग्रेस में ग्राफ गिरने लगा। 4. 2022 का विधानसभा चुनाव और कांग्रेस की हार
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने सिद्धू की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए। आम आदमी पार्टी की जीत के बाद कांग्रेस के अंदर हार का ठीकरा सिद्धू के सिर पर भी फूटा। चुनाव के बाद से कांग्रेस ने पंजाब में नए सिरे से रणनीति बनानी शुरू कर दी, जिसमें सिद्धू को कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली। इस हार के बाद सिद्धू और कांग्रेस के बीच रिश्ते और कमजोर हो गए। पंजाब | दैनिक भास्कर