5 टन लोहे से बना पांटून डूबता नहीं:2500 साल पहले फारसी इंजीनियरों ने बनाया; महाकुंभ में तैरने वाले पुल की कहानी

5 टन लोहे से बना पांटून डूबता नहीं:2500 साल पहले फारसी इंजीनियरों ने बनाया; महाकुंभ में तैरने वाले पुल की कहानी

‘अगस्त 2023 में हमें पांटून पुल (पीपा पुल) बनाने की जिम्मेदारी मिली। सवा साल में 2 हजार 213 पांटून (पीपे) बनाने थे। इतनी बड़ी संख्या में कभी भी पांटून नहीं बनाए गए थे। करीब 1 हजार कर्मचारी, इंजीनियर और अधिकारी जुटे। 14-14 घंटे काम चला। हम अक्टूबर, 2024 में सारे पांटून पुल बनाकर मेला प्रशासन को सौंप चुके हैं।’ लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर आलोक कुमार ने हमें यह बताया। उन्होंने कहा- महाकुंभ मेले में इस बार सबसे ज्यादा 30 पांटून पुल बनाए गए हैं। ये पुल गंगा के एक छोर को दूसरे से जोड़ते हैं। यानी यह एक तरह से पूरे मेला क्षेत्र को आपस में कनेक्ट करते हैं। श्रद्धालुओं के लिए यात्रा सरल बनाते हैं। मेला खत्म होते ही इन्हें फिर से समेट लिया जाता है। कुंभ मेले में सबसे जरूरी हिस्सों में पांटून पुल शामिल हैं। ये पांटून पुल 2500 साल पहले (498 ईस्वी पूर्व) फारसी इंजीनियरों ने तैयार किए थे। अब महाकुंभ की लाइफ लाइन हैं। लोहे के ये पांटून पुल बनते कैसे हैं? कितना वजन होता है? पुल बनाने का खर्च कितना आता है? ऐसा क्या सिस्टम काम करता है कि इतने भारी होने के बावजूद ये डूबते नहीं? ये कितना भार सह सकते हैं? दैनिक भास्कर में ऐसे ही सवालों के जवाब जानिए… डेढ़ किलोमीटर में 10 पुल बनाए जा रहे
परेड ग्राउंड से होते हुए हम कुंभ मेला क्षेत्र पहुंचे। यहां संगम और झूंसी फ्लाई-ओवर के बीच करीब डेढ़ किलोमीटर के एरिया में कुल 10 पांटून पुल बनाए गए हैं। हम पांटून पुल के पास पहुंचे और उसे बना रहे मजदूरों से बात की। पीपा पुल बना रहे अमित कुमार गौड़ बताते हैं- हमें दो पुल बनाने का काम मिला है। दोनों अगल-बगल ही हैं। हम करीब 100 लोग पिछले एक महीने से इन दोनों पुलों को बनाने का काम कर रहे हैं। हमने पूछा कि आपका काम कैसे शुरू होता है? अमित जवाब देते हैं- ट्रक के जरिए यहां पांटून आता है। फिर उसे क्रेन की मदद से उतारा जाता है। इसके बाद हमारे कुछ साथी दो पांटून को एक साथ रखकर उसके ऊपर गाटर सेट करते हैं। नट-बोल्ट पहनाते हैं। इसके बाद उसे हाइड्रा के जरिए नदी में धकेल दिया जाता है। यहीं काम कर रहे कामता निषाद पहले नाव चलाते थे। अब पांटून पुल बनाते हैं। हमने कामता से पूछा कि यह टूटता क्यों नहीं? कामता अपनी समझ के आधार पर कहते हैं- इसका प्रॉसेस बहुत अलग है। इंजीनियर तमाम चीजों को देखकर इसे बनाते हैं। इसके अंदर कुछ भी भरा नहीं होता। बड़ी-बड़ी नाव जिस मॉडल पर बनती है, उसी तरह से यह भी बनता है। इसलिए ज्यादा वजन के बावजूद यह नहीं डूबता। हम यहां कुछ देर रुके। आसपास बन रहे पुलों के पास पहुंचे। एक प्रॉसेस के आधार पर काम आगे बढ़ता नजर आया। हर 5 मीटर पर एक पांटून लगाया गया। यानी 100 मीटर के पुल में 20 पांटून की जरूरत पड़ती है। पांटून के दोनों तरफ 20-20 मीटर लंबे मोटे रस्से में लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा पानी में डाल दिया जाता है। मजदूर कहते हैं कि कुछ वक्त बाद लकड़ी का यह हिस्सा बालू में डूब जाएगा। पांटून इधर से उधर नहीं होगा। जिन पुलों पर लकड़ी बिछाई जा चुकी है, उसके ऊपर दोमट मिट्टी डाली जा रही है। फिर उसके ऊपर बालू डाली जा रही। दोनों तरफ 4-4 फीट के मजबूत लोहे के एंगल लगाए जा रहे। इसके बाद इसे तारों से कसा जाएगा। आखिर में पुल पर चेकर्ड प्लेट (धातु के टुकड़े) लगाई जाएगी। इस कुंभ में पांटून पुल वन-वे होंगे। यानी जिस पांटून के जरिए आप नदी के दूसरी तरफ जाएंगे, उससे वापस नहीं आ पाएंगे। मेले में भीड़ के चलते यह फैसला लिया गया है। 5 टन से ज्यादा का भार नहीं उठा सकता पुल
सवाल आता है, पांटून पुल कितना वजन उठा सकता है? इसके लिए हम संगम से पांटून पुल के जरिए ही त्रिवेणीपुरम कटका पहुंचे। यहां पांटून स्टोर होता है। पांटून यहीं से मेले के अलग-अलग हिस्सों में जाता है। यहां एक खुले मैदान में तमाम पांटून रखे नजर आते हैं। हमारी मुलाकात सुपरवाइजर गगन अरोड़ा से हुई। वह पांटून से जुड़े काम में 15-20 साल से हैं। गगन के मामा सरदार देवेंदर सिंह के पास सारे पांटून पुल को नदी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। गगन कहते हैं- सारे पांटून प्रयागराज में ही बनते हैं। यहीं से कुंभ और पूरे यूपी में सप्लाई किए जाते हैं। एक पांटून 15-20 साल आराम से चल जाता है। हमने पूछा कि आपसे मेला प्राधिकरण कैसे संपर्क करता है? गगन कहते हैं कि हमसे पुल बनाने वाले ठेकेदार संपर्क करते हैं। उन्हीं से सारी डील होती है। 17 करोड़ 31 लाख रुपए में बने 30 पांटून पुल
हमने पता किया कि 30 पुल को बनाने का बजट कितना है? पता चला कि इसके लिए कुल 17 करोड़ 31 लाख रुपए का बजट तय हुआ। एक हैरान करने वाली जानकारी यह मिली कि इसे बनाने के लिए ठेकेदार तैयार नहीं होते। मेला प्रशासन ने 20 जून, 2024 से आवेदन मांगे थे। कोई भी आवेदन नहीं आया। 12 से 17 अगस्त के बीच टेंडर निकाला गया। उसमें भी कोई तैयार नहीं हुआ। तीसरी बार जब टेंडर खोला गया, तब 11 पुलों के लिए एक-एक टेंडर पड़े। इसमें 3 प्रयागराज के और 8 दूसरे जिलों से आए थे। नागवासुकी से झूंसी की तरफ को जोड़ने वाले पांटून पुल का बजट सबसे ज्यादा 1 करोड़ 13 लाख रुपए है। इसके अलावा गंगेश्वर पुल का बजट 89 लाख, भारद्वाज पुल का 88 लाख, चक्रमाधव का 73 लाख रुपए है। इसके अलावा जितने भी पुल हैं, सभी 50 से 70 लाख के बजट में बन रहे हैं। जिन्हें पुल बनाने का ठेका मिला है, उन्हें ही अगले 3 महीने तक इसके रखरखाव की भी जिम्मेदारी दी गई है। मेरा सवाल था कि जब मेला खत्म होगा तो इतनी बड़ी संख्या में तैयार पांटून को रखा कहां जाएगा? किस इस्तेमाल में लिया जाएगा? इंजीनियर कहते हैं- पहले यहीं परेड ग्राउंड में रखे जाते रहे हैं। लेकिन इस बार विभाग ने सरायइनायत के पास कनिहार में जगह ली है, वहां स्टोर किए जाएंगे। कुछ त्रिवेणीपुरम और परेड ग्राउंड में भी रखे जाएंगे। साथ ही यूपी के जिन इलाकों में नदी पर अस्थाई पुल की जरूरत होती है, वहां के सांसद-विधायक भी मांग करते हैं। उन्हें भी अलॉट किया जाता है। यहीं से पांटून जाते हैं। 5 टन लोहे से बना पांटून डूबता क्यों नहीं
हम इस सिद्धांत को समझना चाहते थे कि 5 हजार 269 किलो वजन होने के बावजूद यह पानी में तैरता कैसे रहता है? इंजीनियर कहते हैं- इसमें फिजिक्स के आर्किमिडीज के सिद्धांत का प्रयोग होता है। हर पांटून उस पानी के द्रव्यमान के बराबर भार सह सकता है, जिस पर उसे विस्थापित किया जाता है। पांटून जितना वजनी होता है, उतना ही वजन यह सहन कर सकता है। मतलब, अगर इसके ऊपर 5 टन से ऊपर का भार लगेगा तब यह डूब और टूट सकता है। पुल बनाते वक्त पांटून को एक-दूसरे से गाटर से जोड़ा जाता है। पुल पर भी भीड़ को एकत्रित होने के बजाय लगातार चलने को कहा जाता है। ———————————————————————- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ की सुरक्षा में ढाई करोड़ तक के घोड़े, अमेरिकन ब्रीड का दारा ग्रुप का सरदार, गले में लगी चिप में 7 पीढ़ियों का इतिहास महाकुंभ-2025 की सुरक्षा व्यवस्था में हॉर्स पावर यानी अश्व-शक्ति लगाई गई है। ये घोड़े आम नहीं, वेल ट्रेंड हैं। इशारों पर कदमताल करते हुए रास्ता बनाते हैं। जमीन के साथ-साथ पानी में भी दौड़ सकते हैं। मेले में क्राउड कंट्रोल के लिए यूपी की ट्रेंड माउंटेड पुलिस इन घोड़ों के साथ तैनात है। 130 घोड़ों के साथ जवान जब अलग-अलग ग्रुप में पेट्रोलिंग पर निकलते हैं, तो लोग इन्हें देखते रह जाते हैं। घुड़सवारों के दस्ते में भारतीय ब्रीड के अलावा अमेरिकन और इंग्लैंड ब्रीड के घोड़े भी शामिल हैं। इनकी कीमत 50 लाख से ढाई करोड़ तक है। पढ़ें पूरी खबर… ‘अगस्त 2023 में हमें पांटून पुल (पीपा पुल) बनाने की जिम्मेदारी मिली। सवा साल में 2 हजार 213 पांटून (पीपे) बनाने थे। इतनी बड़ी संख्या में कभी भी पांटून नहीं बनाए गए थे। करीब 1 हजार कर्मचारी, इंजीनियर और अधिकारी जुटे। 14-14 घंटे काम चला। हम अक्टूबर, 2024 में सारे पांटून पुल बनाकर मेला प्रशासन को सौंप चुके हैं।’ लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर आलोक कुमार ने हमें यह बताया। उन्होंने कहा- महाकुंभ मेले में इस बार सबसे ज्यादा 30 पांटून पुल बनाए गए हैं। ये पुल गंगा के एक छोर को दूसरे से जोड़ते हैं। यानी यह एक तरह से पूरे मेला क्षेत्र को आपस में कनेक्ट करते हैं। श्रद्धालुओं के लिए यात्रा सरल बनाते हैं। मेला खत्म होते ही इन्हें फिर से समेट लिया जाता है। कुंभ मेले में सबसे जरूरी हिस्सों में पांटून पुल शामिल हैं। ये पांटून पुल 2500 साल पहले (498 ईस्वी पूर्व) फारसी इंजीनियरों ने तैयार किए थे। अब महाकुंभ की लाइफ लाइन हैं। लोहे के ये पांटून पुल बनते कैसे हैं? कितना वजन होता है? पुल बनाने का खर्च कितना आता है? ऐसा क्या सिस्टम काम करता है कि इतने भारी होने के बावजूद ये डूबते नहीं? ये कितना भार सह सकते हैं? दैनिक भास्कर में ऐसे ही सवालों के जवाब जानिए… डेढ़ किलोमीटर में 10 पुल बनाए जा रहे
परेड ग्राउंड से होते हुए हम कुंभ मेला क्षेत्र पहुंचे। यहां संगम और झूंसी फ्लाई-ओवर के बीच करीब डेढ़ किलोमीटर के एरिया में कुल 10 पांटून पुल बनाए गए हैं। हम पांटून पुल के पास पहुंचे और उसे बना रहे मजदूरों से बात की। पीपा पुल बना रहे अमित कुमार गौड़ बताते हैं- हमें दो पुल बनाने का काम मिला है। दोनों अगल-बगल ही हैं। हम करीब 100 लोग पिछले एक महीने से इन दोनों पुलों को बनाने का काम कर रहे हैं। हमने पूछा कि आपका काम कैसे शुरू होता है? अमित जवाब देते हैं- ट्रक के जरिए यहां पांटून आता है। फिर उसे क्रेन की मदद से उतारा जाता है। इसके बाद हमारे कुछ साथी दो पांटून को एक साथ रखकर उसके ऊपर गाटर सेट करते हैं। नट-बोल्ट पहनाते हैं। इसके बाद उसे हाइड्रा के जरिए नदी में धकेल दिया जाता है। यहीं काम कर रहे कामता निषाद पहले नाव चलाते थे। अब पांटून पुल बनाते हैं। हमने कामता से पूछा कि यह टूटता क्यों नहीं? कामता अपनी समझ के आधार पर कहते हैं- इसका प्रॉसेस बहुत अलग है। इंजीनियर तमाम चीजों को देखकर इसे बनाते हैं। इसके अंदर कुछ भी भरा नहीं होता। बड़ी-बड़ी नाव जिस मॉडल पर बनती है, उसी तरह से यह भी बनता है। इसलिए ज्यादा वजन के बावजूद यह नहीं डूबता। हम यहां कुछ देर रुके। आसपास बन रहे पुलों के पास पहुंचे। एक प्रॉसेस के आधार पर काम आगे बढ़ता नजर आया। हर 5 मीटर पर एक पांटून लगाया गया। यानी 100 मीटर के पुल में 20 पांटून की जरूरत पड़ती है। पांटून के दोनों तरफ 20-20 मीटर लंबे मोटे रस्से में लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा पानी में डाल दिया जाता है। मजदूर कहते हैं कि कुछ वक्त बाद लकड़ी का यह हिस्सा बालू में डूब जाएगा। पांटून इधर से उधर नहीं होगा। जिन पुलों पर लकड़ी बिछाई जा चुकी है, उसके ऊपर दोमट मिट्टी डाली जा रही है। फिर उसके ऊपर बालू डाली जा रही। दोनों तरफ 4-4 फीट के मजबूत लोहे के एंगल लगाए जा रहे। इसके बाद इसे तारों से कसा जाएगा। आखिर में पुल पर चेकर्ड प्लेट (धातु के टुकड़े) लगाई जाएगी। इस कुंभ में पांटून पुल वन-वे होंगे। यानी जिस पांटून के जरिए आप नदी के दूसरी तरफ जाएंगे, उससे वापस नहीं आ पाएंगे। मेले में भीड़ के चलते यह फैसला लिया गया है। 5 टन से ज्यादा का भार नहीं उठा सकता पुल
सवाल आता है, पांटून पुल कितना वजन उठा सकता है? इसके लिए हम संगम से पांटून पुल के जरिए ही त्रिवेणीपुरम कटका पहुंचे। यहां पांटून स्टोर होता है। पांटून यहीं से मेले के अलग-अलग हिस्सों में जाता है। यहां एक खुले मैदान में तमाम पांटून रखे नजर आते हैं। हमारी मुलाकात सुपरवाइजर गगन अरोड़ा से हुई। वह पांटून से जुड़े काम में 15-20 साल से हैं। गगन के मामा सरदार देवेंदर सिंह के पास सारे पांटून पुल को नदी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। गगन कहते हैं- सारे पांटून प्रयागराज में ही बनते हैं। यहीं से कुंभ और पूरे यूपी में सप्लाई किए जाते हैं। एक पांटून 15-20 साल आराम से चल जाता है। हमने पूछा कि आपसे मेला प्राधिकरण कैसे संपर्क करता है? गगन कहते हैं कि हमसे पुल बनाने वाले ठेकेदार संपर्क करते हैं। उन्हीं से सारी डील होती है। 17 करोड़ 31 लाख रुपए में बने 30 पांटून पुल
हमने पता किया कि 30 पुल को बनाने का बजट कितना है? पता चला कि इसके लिए कुल 17 करोड़ 31 लाख रुपए का बजट तय हुआ। एक हैरान करने वाली जानकारी यह मिली कि इसे बनाने के लिए ठेकेदार तैयार नहीं होते। मेला प्रशासन ने 20 जून, 2024 से आवेदन मांगे थे। कोई भी आवेदन नहीं आया। 12 से 17 अगस्त के बीच टेंडर निकाला गया। उसमें भी कोई तैयार नहीं हुआ। तीसरी बार जब टेंडर खोला गया, तब 11 पुलों के लिए एक-एक टेंडर पड़े। इसमें 3 प्रयागराज के और 8 दूसरे जिलों से आए थे। नागवासुकी से झूंसी की तरफ को जोड़ने वाले पांटून पुल का बजट सबसे ज्यादा 1 करोड़ 13 लाख रुपए है। इसके अलावा गंगेश्वर पुल का बजट 89 लाख, भारद्वाज पुल का 88 लाख, चक्रमाधव का 73 लाख रुपए है। इसके अलावा जितने भी पुल हैं, सभी 50 से 70 लाख के बजट में बन रहे हैं। जिन्हें पुल बनाने का ठेका मिला है, उन्हें ही अगले 3 महीने तक इसके रखरखाव की भी जिम्मेदारी दी गई है। मेरा सवाल था कि जब मेला खत्म होगा तो इतनी बड़ी संख्या में तैयार पांटून को रखा कहां जाएगा? किस इस्तेमाल में लिया जाएगा? इंजीनियर कहते हैं- पहले यहीं परेड ग्राउंड में रखे जाते रहे हैं। लेकिन इस बार विभाग ने सरायइनायत के पास कनिहार में जगह ली है, वहां स्टोर किए जाएंगे। कुछ त्रिवेणीपुरम और परेड ग्राउंड में भी रखे जाएंगे। साथ ही यूपी के जिन इलाकों में नदी पर अस्थाई पुल की जरूरत होती है, वहां के सांसद-विधायक भी मांग करते हैं। उन्हें भी अलॉट किया जाता है। यहीं से पांटून जाते हैं। 5 टन लोहे से बना पांटून डूबता क्यों नहीं
हम इस सिद्धांत को समझना चाहते थे कि 5 हजार 269 किलो वजन होने के बावजूद यह पानी में तैरता कैसे रहता है? इंजीनियर कहते हैं- इसमें फिजिक्स के आर्किमिडीज के सिद्धांत का प्रयोग होता है। हर पांटून उस पानी के द्रव्यमान के बराबर भार सह सकता है, जिस पर उसे विस्थापित किया जाता है। पांटून जितना वजनी होता है, उतना ही वजन यह सहन कर सकता है। मतलब, अगर इसके ऊपर 5 टन से ऊपर का भार लगेगा तब यह डूब और टूट सकता है। पुल बनाते वक्त पांटून को एक-दूसरे से गाटर से जोड़ा जाता है। पुल पर भी भीड़ को एकत्रित होने के बजाय लगातार चलने को कहा जाता है। ———————————————————————- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ की सुरक्षा में ढाई करोड़ तक के घोड़े, अमेरिकन ब्रीड का दारा ग्रुप का सरदार, गले में लगी चिप में 7 पीढ़ियों का इतिहास महाकुंभ-2025 की सुरक्षा व्यवस्था में हॉर्स पावर यानी अश्व-शक्ति लगाई गई है। ये घोड़े आम नहीं, वेल ट्रेंड हैं। इशारों पर कदमताल करते हुए रास्ता बनाते हैं। जमीन के साथ-साथ पानी में भी दौड़ सकते हैं। मेले में क्राउड कंट्रोल के लिए यूपी की ट्रेंड माउंटेड पुलिस इन घोड़ों के साथ तैनात है। 130 घोड़ों के साथ जवान जब अलग-अलग ग्रुप में पेट्रोलिंग पर निकलते हैं, तो लोग इन्हें देखते रह जाते हैं। घुड़सवारों के दस्ते में भारतीय ब्रीड के अलावा अमेरिकन और इंग्लैंड ब्रीड के घोड़े भी शामिल हैं। इनकी कीमत 50 लाख से ढाई करोड़ तक है। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर