69,000 शिक्षक भर्ती…योगी को फेल करने में जुटी सपा:पिछड़े वर्ग की राजनीति हो रही; उपचुनाव से पहले हल नहीं निकला तो भाजपा को होगा नुकसान

69,000 शिक्षक भर्ती…योगी को फेल करने में जुटी सपा:पिछड़े वर्ग की राजनीति हो रही; उपचुनाव से पहले हल नहीं निकला तो भाजपा को होगा नुकसान

69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती मामले में हाईकोर्ट ने नए सिरे से मेरिट जारी करने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश के 48 घंटे के भीतर सीएम योगी आदित्यनाथ ने फैसला किया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करेगी। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं होगा। इसके बावजूद आखिर क्या वजह है कि ओबीसी के हजारों अभ्यर्थी और पहली मेरिट से चयनित हजारों शिक्षक राजधानी लखनऊ में आंदोलन कर रहे हैं। दैनिक भास्कर ने 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती को लेकर शुरू हुई राजनीति के तह में जाकर पड़ताल की। सामने आया कि इसकी आड़ में NDA और INDI गठबंधन के घटक दल पिछड़े वर्ग की राजनीति कर रहे हैं। साथ ही सरकार को पिछड़ा विरोधी साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद भी आंदोलन को लेकर तीन सवाल 1- दोनों पक्षों के आंदोलन को पर्दे के पीछे से किसका समर्थन और सहयोग मिल रहा? 2- क्या यह सीएम योगी को पिछड़ा विरोधी साबित करने की मुहिम है? 3- क्या इसके सहारे विपक्ष पिछड़े वर्ग के विधायकों को लामबंद कर सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रहा? लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से सपा ने PDA की राजनीति और तेज की है। इस भर्ती में सबसे ज्यादा प्रभावित पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थी हैं। यही वजह है, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार योगी सरकार पर हमला बोल रहे हैं। वह साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि भाजपा सरकार ने पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी से वंचित रखा। अखिलेश जताना चाहते हैं कि ओबीसी और दलित वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी उनकी पार्टी के दबाव की वजह से मिल रही है। ओबीसी अभ्यर्थी भी दो फाड़
आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों में पहला आरक्षित वर्ग वह है, जो 2020 से लखनऊ हाईकोर्ट में ओबीसी को 27% और एससी को 21% आरक्षण दिलाने की मांग कर रहा है। साथ ही इस भर्ती में 19 हजार सीट पर हुए कथित आरक्षण घोटाले की लड़ाई लड़ रहा है। यह वर्ग पिछड़ा-दलित संयुक्त मोर्चा के बैनर तले आंदोलन कर रहा है। लखनऊ डबल बेंच का आदेश इसी मोर्चा की स्पेशल अपील पर आया। मोर्चे के अध्यक्ष सुशील कश्यप और प्रदेश संरक्षक भास्कर सिंह हैं। दूसरा वर्ग वह है, जो 5 जनवरी, 2022 को 6800 चयनित आरक्षित अभ्यर्थियों की सूची में शामिल था। इस सूची को हाईकोर्ट लखनऊ की सिंगल बेंच ने 13 मार्च, 2023 और डबल बेंच ने 13 अगस्त, 2024 को रद्द कर दिया था। 69 हजार शिक्षक भर्ती संघ के बैनर तले यह अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं। इनका नेतृत्व विजय यादव कर रहे हैं। ये दोनों ही वर्ग अपनी-अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। भाजपा और अपना दल में लड़ाई तेज
69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती ने प्रदेश में पिछड़े वर्ग की राजनीति को तेज कर दिया है। अपना दल (एस) की अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल पिछड़े वर्ग के हजारों युवाओं को साधने के लिए लगातार अपने गठबंधन की सरकार पर हमला बोल रही हैं। वहीं, भाजपा ने बचाव में अपने पिछड़े वर्ग के नेता डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया है। केशव मौर्य की ओर से जुलाई, 2023 में सरकार को लिखा गया पत्र ही अब सरकार और भाजपा के लिए ढाल बन रहा है। ओबीसी के अभ्यर्थी केशव का आभार जता रहे हैं। ओबीसी अभ्यर्थियों के चाचा बने केशव
69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती के ओबीसी अभ्यर्थी अब मामले में दोषी अफसरों पर कार्रवाई की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलनरत अभ्यर्थियों के हाथ में पोस्टर हैं, जिनमें डिप्टी सीएम केशव मौर्य का आभार जता रहे हैं। बीते दिनों एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें अभ्यर्थी नारा लगा रहे हैं ‘केशव चाचा ने माना है, आरक्षण घोटाला है।’ आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों के हाथ में जो पोस्टर हैं और जो वह नारे लगा रहे हैं, कहीं न कहीं राजनीतिक संदेश और संकेत है। उपचुनाव की अधिसूचना से पहले मुद्दे का हल निकालने की तैयारी
योगी सरकार और भाजपा के शीर्ष नेताओं का मानना है कि 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती के विवाद का विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना से पहले हल निकालना जरूरी है। अगर उपचुनाव तक हल नहीं निकाला गया, तो ओबीसी के साथ अगड़ी जातियों के वोट बैंक में भी भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। यही वजह है, सरकार के आदेश के बाद बेसिक शिक्षा विभाग जल्द से जल्द नई मेरिट जारी करने और उससे प्रभावित होने वाले शिक्षकों के समायोजन का रास्ता निकालने में जुटा है। अब जानिए आंदोलन कर रहे रिजर्व और अनरिजर्व कैटेगरी के अभ्यर्थियों के नेताओं का क्या कहना है? 1- जल्द मेरिट जारी कराने के लिए कर रहे आंदोलन 69 हजार शिक्षक भर्ती संघ के अध्यक्ष विजय यादव कहते हैं- 5 जनवरी, 2022 को भी आरक्षित वर्ग के 6800 अभ्यर्थियों की चयन सूची जारी की गई थी। बाद में अधिकारियों ने आचार संहिता का बहाना बनाकर चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र नहीं दिया। अधिकारी इंतजार करते रहे कि मामला कोर्ट में चला जाए और नियुक्ति नहीं देनी पड़े। अब हाईकोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें 3 महीने का समय दिया गया है। अधिकारी जानबूझकर देरी कर रहे हैं, ताकि मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में चला जाए और कुछ करना न पड़े। 2- चयन सूची पब्लिक डोमेन में दें पिछड़ा दलित संयुक्त मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कश्यप का कहना है- बेसिक शिक्षा परिषद में सभी शिक्षकों और अभ्यर्थियों का ऑनलाइन फीड है। हाईकोर्ट ने तीन महीने का समय दिया है। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार 90वें दिन ही लिस्ट जारी करे। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी चाहें तो पांच दिन में नई चयन सूची जारी कर सकते हैं। लेकिन वे मामले को टाल रहे हैं। ताकि अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दें। इससे उन्हें फिर कोर्ट की आड़ में ओबीसी के अभ्यर्थियों को चयन से वंचित रखने का मौका मिल जाएगा। 3- पहले कार्य योजना स्पष्ट करे सरकार अनारक्षित वर्ग के आंदोलनकारी शिक्षक शिवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- हमारा आंदोलन इसलिए है कि पहले बेसिक शिक्षा विभाग अपनी प्लानिंग स्पष्ट करें। वह बताएं कि वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों की नौकरी को किस प्रकार सुरक्षित रखेगा? भविष्य में भी उनकी नौकरी पर कोई संकट नहीं आएगा? प्लानिंग जारी होने से पहले अगर नई चयन सूची जारी हो गई तो जो शिक्षक नौकरी से बाहर हो जाएंगे, उनकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होगा। सामान्य वर्ग के चयनित शिक्षकों का साथ किसी भी राजनीतिक दल के नेता या मंत्री नहीं दे रहे हैं। क्या सरकार के खिलाफ पिछड़ा विरोधी मुहिम चलाई जा रही? वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी के मुताबिक, सरकार विपक्ष या किसी भी दल के नेता को मौका दे रही है कि वह सरकार को पिछड़ा विरोधी साबित कर सके। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों में सरकार के प्रति अविश्वास है। जो काम एक दिन में हो सकता है, उसके लिए 90 दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट मानते हैं, विपक्ष के साथ भाजपा के अंदर एक धड़ा सीएम योगी आदित्यनाथ को पिछड़ा विरोधी साबित करने का प्रयास कर रहा है। सीएम योगी को किसी भी हालत में सितंबर तक इस मामले का स्थायी हल निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि आरक्षित वर्ग का कोई पात्र अभ्यर्थी नौकरी से वंचित न रहे। साथ ही वर्तमान में कार्यरत किसी शिक्षक की नौकरी न जाए। सपा के मुखिया इस मुद्दे के जरिए अपने PDA के एजेंडे को धार देने में लगे हैं। यह खबर भी पढ़ें 69000 शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों को पुलिस ने ईको गार्डन पहुंचाया लखनऊ में 69000 हजार शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों के प्रदर्शन का आज चौथा दिन है। पुलिस ने दिन में करीब 12 बजे अभ्यर्थियों गाड़ी में भरकर शिक्षा निदेशालय से ईको गार्डन छोड़ा। पुलिस भर्ती परीक्षा की वजह से यहां प्रदर्शन के कारण पुलिस ने यहां प्रदर्शन पर रोक लगा दी। अभ्यर्थियों ने कहा कि पुलिस उनके साथ अन्याय कर रही है। पढ़ें पूरी खबर 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती मामले में हाईकोर्ट ने नए सिरे से मेरिट जारी करने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश के 48 घंटे के भीतर सीएम योगी आदित्यनाथ ने फैसला किया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करेगी। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं होगा। इसके बावजूद आखिर क्या वजह है कि ओबीसी के हजारों अभ्यर्थी और पहली मेरिट से चयनित हजारों शिक्षक राजधानी लखनऊ में आंदोलन कर रहे हैं। दैनिक भास्कर ने 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती को लेकर शुरू हुई राजनीति के तह में जाकर पड़ताल की। सामने आया कि इसकी आड़ में NDA और INDI गठबंधन के घटक दल पिछड़े वर्ग की राजनीति कर रहे हैं। साथ ही सरकार को पिछड़ा विरोधी साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद भी आंदोलन को लेकर तीन सवाल 1- दोनों पक्षों के आंदोलन को पर्दे के पीछे से किसका समर्थन और सहयोग मिल रहा? 2- क्या यह सीएम योगी को पिछड़ा विरोधी साबित करने की मुहिम है? 3- क्या इसके सहारे विपक्ष पिछड़े वर्ग के विधायकों को लामबंद कर सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रहा? लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से सपा ने PDA की राजनीति और तेज की है। इस भर्ती में सबसे ज्यादा प्रभावित पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थी हैं। यही वजह है, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार योगी सरकार पर हमला बोल रहे हैं। वह साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि भाजपा सरकार ने पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी से वंचित रखा। अखिलेश जताना चाहते हैं कि ओबीसी और दलित वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी उनकी पार्टी के दबाव की वजह से मिल रही है। ओबीसी अभ्यर्थी भी दो फाड़
आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों में पहला आरक्षित वर्ग वह है, जो 2020 से लखनऊ हाईकोर्ट में ओबीसी को 27% और एससी को 21% आरक्षण दिलाने की मांग कर रहा है। साथ ही इस भर्ती में 19 हजार सीट पर हुए कथित आरक्षण घोटाले की लड़ाई लड़ रहा है। यह वर्ग पिछड़ा-दलित संयुक्त मोर्चा के बैनर तले आंदोलन कर रहा है। लखनऊ डबल बेंच का आदेश इसी मोर्चा की स्पेशल अपील पर आया। मोर्चे के अध्यक्ष सुशील कश्यप और प्रदेश संरक्षक भास्कर सिंह हैं। दूसरा वर्ग वह है, जो 5 जनवरी, 2022 को 6800 चयनित आरक्षित अभ्यर्थियों की सूची में शामिल था। इस सूची को हाईकोर्ट लखनऊ की सिंगल बेंच ने 13 मार्च, 2023 और डबल बेंच ने 13 अगस्त, 2024 को रद्द कर दिया था। 69 हजार शिक्षक भर्ती संघ के बैनर तले यह अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं। इनका नेतृत्व विजय यादव कर रहे हैं। ये दोनों ही वर्ग अपनी-अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। भाजपा और अपना दल में लड़ाई तेज
69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती ने प्रदेश में पिछड़े वर्ग की राजनीति को तेज कर दिया है। अपना दल (एस) की अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल पिछड़े वर्ग के हजारों युवाओं को साधने के लिए लगातार अपने गठबंधन की सरकार पर हमला बोल रही हैं। वहीं, भाजपा ने बचाव में अपने पिछड़े वर्ग के नेता डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया है। केशव मौर्य की ओर से जुलाई, 2023 में सरकार को लिखा गया पत्र ही अब सरकार और भाजपा के लिए ढाल बन रहा है। ओबीसी के अभ्यर्थी केशव का आभार जता रहे हैं। ओबीसी अभ्यर्थियों के चाचा बने केशव
69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती के ओबीसी अभ्यर्थी अब मामले में दोषी अफसरों पर कार्रवाई की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलनरत अभ्यर्थियों के हाथ में पोस्टर हैं, जिनमें डिप्टी सीएम केशव मौर्य का आभार जता रहे हैं। बीते दिनों एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें अभ्यर्थी नारा लगा रहे हैं ‘केशव चाचा ने माना है, आरक्षण घोटाला है।’ आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों के हाथ में जो पोस्टर हैं और जो वह नारे लगा रहे हैं, कहीं न कहीं राजनीतिक संदेश और संकेत है। उपचुनाव की अधिसूचना से पहले मुद्दे का हल निकालने की तैयारी
योगी सरकार और भाजपा के शीर्ष नेताओं का मानना है कि 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती के विवाद का विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना से पहले हल निकालना जरूरी है। अगर उपचुनाव तक हल नहीं निकाला गया, तो ओबीसी के साथ अगड़ी जातियों के वोट बैंक में भी भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। यही वजह है, सरकार के आदेश के बाद बेसिक शिक्षा विभाग जल्द से जल्द नई मेरिट जारी करने और उससे प्रभावित होने वाले शिक्षकों के समायोजन का रास्ता निकालने में जुटा है। अब जानिए आंदोलन कर रहे रिजर्व और अनरिजर्व कैटेगरी के अभ्यर्थियों के नेताओं का क्या कहना है? 1- जल्द मेरिट जारी कराने के लिए कर रहे आंदोलन 69 हजार शिक्षक भर्ती संघ के अध्यक्ष विजय यादव कहते हैं- 5 जनवरी, 2022 को भी आरक्षित वर्ग के 6800 अभ्यर्थियों की चयन सूची जारी की गई थी। बाद में अधिकारियों ने आचार संहिता का बहाना बनाकर चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र नहीं दिया। अधिकारी इंतजार करते रहे कि मामला कोर्ट में चला जाए और नियुक्ति नहीं देनी पड़े। अब हाईकोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें 3 महीने का समय दिया गया है। अधिकारी जानबूझकर देरी कर रहे हैं, ताकि मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में चला जाए और कुछ करना न पड़े। 2- चयन सूची पब्लिक डोमेन में दें पिछड़ा दलित संयुक्त मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कश्यप का कहना है- बेसिक शिक्षा परिषद में सभी शिक्षकों और अभ्यर्थियों का ऑनलाइन फीड है। हाईकोर्ट ने तीन महीने का समय दिया है। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार 90वें दिन ही लिस्ट जारी करे। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी चाहें तो पांच दिन में नई चयन सूची जारी कर सकते हैं। लेकिन वे मामले को टाल रहे हैं। ताकि अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दें। इससे उन्हें फिर कोर्ट की आड़ में ओबीसी के अभ्यर्थियों को चयन से वंचित रखने का मौका मिल जाएगा। 3- पहले कार्य योजना स्पष्ट करे सरकार अनारक्षित वर्ग के आंदोलनकारी शिक्षक शिवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- हमारा आंदोलन इसलिए है कि पहले बेसिक शिक्षा विभाग अपनी प्लानिंग स्पष्ट करें। वह बताएं कि वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों की नौकरी को किस प्रकार सुरक्षित रखेगा? भविष्य में भी उनकी नौकरी पर कोई संकट नहीं आएगा? प्लानिंग जारी होने से पहले अगर नई चयन सूची जारी हो गई तो जो शिक्षक नौकरी से बाहर हो जाएंगे, उनकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होगा। सामान्य वर्ग के चयनित शिक्षकों का साथ किसी भी राजनीतिक दल के नेता या मंत्री नहीं दे रहे हैं। क्या सरकार के खिलाफ पिछड़ा विरोधी मुहिम चलाई जा रही? वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी के मुताबिक, सरकार विपक्ष या किसी भी दल के नेता को मौका दे रही है कि वह सरकार को पिछड़ा विरोधी साबित कर सके। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों में सरकार के प्रति अविश्वास है। जो काम एक दिन में हो सकता है, उसके लिए 90 दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट मानते हैं, विपक्ष के साथ भाजपा के अंदर एक धड़ा सीएम योगी आदित्यनाथ को पिछड़ा विरोधी साबित करने का प्रयास कर रहा है। सीएम योगी को किसी भी हालत में सितंबर तक इस मामले का स्थायी हल निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि आरक्षित वर्ग का कोई पात्र अभ्यर्थी नौकरी से वंचित न रहे। साथ ही वर्तमान में कार्यरत किसी शिक्षक की नौकरी न जाए। सपा के मुखिया इस मुद्दे के जरिए अपने PDA के एजेंडे को धार देने में लगे हैं। यह खबर भी पढ़ें 69000 शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों को पुलिस ने ईको गार्डन पहुंचाया लखनऊ में 69000 हजार शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों के प्रदर्शन का आज चौथा दिन है। पुलिस ने दिन में करीब 12 बजे अभ्यर्थियों गाड़ी में भरकर शिक्षा निदेशालय से ईको गार्डन छोड़ा। पुलिस भर्ती परीक्षा की वजह से यहां प्रदर्शन के कारण पुलिस ने यहां प्रदर्शन पर रोक लगा दी। अभ्यर्थियों ने कहा कि पुलिस उनके साथ अन्याय कर रही है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर