पंजाब के फाजिल्का शहर की धींगड़ा कॉलोनी के रहने वाले एक मजदूर की लॉटरी लगी है। लॉटरी विजेता का कहना है कि इनाम निकलने से आधा घंटा पहले ही उसने डियर नागालैंड स्टेट लॉटरी का टिकट मेहरिया बाजार से रूपचंद लॉटरी के यहां से खरीदा था l आधे घंटे बाद उसे फोन आया कि उसके द्वारा खरीदे गए टिकट पर लॉटरी लगी है l जिसके बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा l घोषणा से आधे घंटे पहले खरीदा टिकट लॉटरी विजेता राकेश कुमार ने बताया कि वह फाजिल्का के धींगड़ा कॉलोनी गली नंबर 1 का रहने वाला है l उसके घर का राशन खत्म हो चुका था l मजदूरी करने के बाद वह घर का राशन लेने के लिए बाजार गया था। वापस आते वक्त उसने मेहरिया बाजार में रूपचंद लॉटरी के यहां से एक लॉटरी का टिकट खरीदा l इसके बाद वह घर आ गया और आधे घंटे बाद उसे फोन आया कि उसे डियर नागालैंड स्टेट लॉटरी का दूसरा इनाम निकला है l उसका कहना है कि वह रोजाना मेहनत मजदूरी करता है l अब उसका 45 हजार रुपए का इनाम निकला है l जिसके बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा l 2 साल से खरीद रहा था टिकट रूपचंद लॉटरी के संचालक बॉबी ने बताया कि उक्त व्यक्ति पिछले करीब 2 साल से उनसे लॉटरी का टिकट खरीदता आ रहा है l जिसे आज 2 साल बाद पहली बार लॉटरी लगी है l इनाम निकले के बाद विजेता ने मिठाई बांटकर अपनी खुशी जताई। पंजाब के फाजिल्का शहर की धींगड़ा कॉलोनी के रहने वाले एक मजदूर की लॉटरी लगी है। लॉटरी विजेता का कहना है कि इनाम निकलने से आधा घंटा पहले ही उसने डियर नागालैंड स्टेट लॉटरी का टिकट मेहरिया बाजार से रूपचंद लॉटरी के यहां से खरीदा था l आधे घंटे बाद उसे फोन आया कि उसके द्वारा खरीदे गए टिकट पर लॉटरी लगी है l जिसके बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा l घोषणा से आधे घंटे पहले खरीदा टिकट लॉटरी विजेता राकेश कुमार ने बताया कि वह फाजिल्का के धींगड़ा कॉलोनी गली नंबर 1 का रहने वाला है l उसके घर का राशन खत्म हो चुका था l मजदूरी करने के बाद वह घर का राशन लेने के लिए बाजार गया था। वापस आते वक्त उसने मेहरिया बाजार में रूपचंद लॉटरी के यहां से एक लॉटरी का टिकट खरीदा l इसके बाद वह घर आ गया और आधे घंटे बाद उसे फोन आया कि उसे डियर नागालैंड स्टेट लॉटरी का दूसरा इनाम निकला है l उसका कहना है कि वह रोजाना मेहनत मजदूरी करता है l अब उसका 45 हजार रुपए का इनाम निकला है l जिसके बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा l 2 साल से खरीद रहा था टिकट रूपचंद लॉटरी के संचालक बॉबी ने बताया कि उक्त व्यक्ति पिछले करीब 2 साल से उनसे लॉटरी का टिकट खरीदता आ रहा है l जिसे आज 2 साल बाद पहली बार लॉटरी लगी है l इनाम निकले के बाद विजेता ने मिठाई बांटकर अपनी खुशी जताई। पंजाब | दैनिक भास्कर
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शपथ ग्रहण से पहले मोदी ने बादल को किया:बोले- NDA में उनका बड़ा योगदान, किसान आंदोलन पर टूटा था गठबंधन नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले पंजाब के पांच बार के मुख्यमंत्री रहे स्व. प्रकाश सिंह बादल को याद किया है। उन्होंने एनडीए संसदीय दल की मीटिंग में कहा कि NDA में प्रकाश सिंह बादल का योगदान काफी अहम रहा है। हालांकि किसान आंदोलन की वजह से गठबंधन टूट गया था। इस बार अकेले लड़े थे चुनाव इस बार शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के मिलकर लाेकसभा चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी थी। दोनों दलों में मीटिंगों का दौर भी शुरू हो गया था। लेकिन चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले फिर से किसान आंदोलन शुरू हो गया था। इसके अलावा बंदी सिखों की रिहाई जैसे कई मुद्दे थे। जिस पर दोनों दलों में सहमति नहीं बन पाई थी। इसके बाद दोनों दलों ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया गया। दोनों दलों की तरफ से सभी 13 सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतार गए। हालांकि इससे पहले साल 2022 विधानसभा चुनाव भी दोनों ने अकेले लड़ा था। साथ लड़ते तो 5 सीटें जीत सकते थे साल 2024 के लोकसभा चुनाव में गत वर्षों की तुलना में अकाली दल और बीजेपी का परिणाम बहुत ही खराब रहा है। भाजपा एक भी सीट राज्य में नहीं जीत पाई है। जबकि शिरोमणि अकाली दल अपनी बठिंडा सीट को बचाने में कामयाब रही है। यहां से पार्टी प्रधान सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर चौथी बार सांसद बनी है। हालांकि चुनाव नतीजों की तरफ देखे तो अगर यह दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ते थे, तो पांच सीटें जीते सकते थे। क्योंकि इन सीटों पर मिले वोटों की संख्या विजेता रहे उम्मीदवारों से काफी अधिक हैं। इन सीटों में गुरदासपुर, पटियाला, लुधियाना, फिरोजपुर व अमृतसर शामिल हैं। हालांकि शिरोमणि अकाली दल के नेता भी इस चीज को मान रहे हैं कि अलग चुनाव लड़ने का फैसला गलत था। अकाली नेता प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा का कहना है कि हमारी हालत तो नोटा जैसी हो गई है। गठजोड़ किया होता तो शायद जीते जाते। जबकि 2019 के चुनाव में चार सीटें दोनों दलों ने जीती थी। कौन थे प्रकाश सिंह बादल प्रकाश सिंह बादल ने साल 1947 में राजनीति शुरू की थी। उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब वे सबसे कम उम्र के सरपंच बने थे। 1957 में उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। 1969 में उन्होंने दोबारा जीत हासिल की। 1969-70 तक वे पंचायत राज, पशु पालन, डेयरी आदि मंत्रालयों के मंत्री रहे। इसके अलावा वे 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। वे 1972, 1980 और 2002 में विरोधी दल के नेता भी बने। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते वे सांसद भी चुने गए। 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद वे सबसे अधिक उम्र के उम्मीदवार भी बने। हालांकि चुनाव में वह हार गए थे।
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हैदराबाद-चंडीगढ़ फ्लाइट में बम की सूचना से हड़कंप:यात्रियों को विमान से निकाला बाहर, किया आइसोलेट, नहीं मिला कुछ संदिग्ध चंडीगढ़ के इंटरनेशनल एयरपोर्ट की फ्लाई नंबर 6-ई (108) में बम होने की धमकी मिलने के बाद हड़कंप मच गया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडिगो एयरलाइंस की हैदराबाद से चंडीगढ़ जाने वाली उक्त फ्लाइट में बम होने की सूचना मिली थी। सूचना मिलने के बाद पूरे एयरपोर्ट पर पुलिस की अलग अलग पार्टियां और फायर ब्रिगेड की टीमें तैनात कर दी गई। एयरलाइन ने कहा कि धमकी के बाद चंडीगढ़ पहुंचने पर फ्लाइट को आइसोलेट किया गया और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए यात्रियों को उतारा गया। विमान की जांच में किसी प्रकार की कोई चीज नहीं मिली है। फिलहाल मामले में जांच जारी है। फिलहाल इस संबंध में एयरपोर्ट अथॉरिटी की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। मौके पर पुलिस अधिकारी पहुंच गए हैं। धमकियों को लेकर 10 सोशल मीडिया अकाउंट ब्लॉक किए लगातार मिल रही धमकियों के बीच दिल्ली पुलिस द्वारा अभी तक मामले में 6 FIR दर्ज की जा चुकी है। उधर, सरकार ने विमान में बम होने के फर्जी दावे करने वाले 10 सोशल मीडिया अकाउंट को ब्लॉक कर दिया है। मिनिस्ट्री ने कहा कि आरोपियों की पहचान करने का प्रयास किया जा रहा है। सभी साइबर यूनिट्स को धमकी देने वाले सोशल मीडिया अकाउंट को ट्रैक करने का निर्देश दिया गया है। इनमें से ज्यादातर अकाउंट विदेश से ऑपरेट हो रहे हैं। अभी तक इन फ्लाइट को मिल चुकी धमकी 17 अक्टूबर: फ्रेंकफर्ट-मुंबई विस्तारा फ्लाइट में बम की धमकी विस्तारा की फ्रैंकफर्ट-मुंबई फ्लाइट UK 028 की मुंबई में आपात लैंडिंग कराई गई। यह धमकी सोशल मीडिया के जरिए दी गई। जब अधिकारियों ने बम की धमकी की सूचना क्रू मेंबर्स को दी, विमान पाकिस्तान के एयर स्पेस में उड़ान भर रहा था। 16 अक्टूबर: इंडियन एयरलाइंस की 7 फ्लाइट्स में बम की धमकी इंडियन एयरलाइंस की सात फ्लाइट्स में बम होने की धमकी मिली। इसमें इंडिगो की चार, स्पाइसजेट की 2 और अकासा की एक फ्लाइट शामिल है। जांच में सभी धमकी फर्जी निकली। हालांकि, सभी एयरपोर्ट्स पर सिक्योरिटी बढ़ाई गई है। 15 अक्टूबर: एक शख्स ने धमकी भेजी थी, सभी झूठी निकली 7 फ्लाइट्स में बम होने की धमकी मिली थी। धमकी मिलने वाली फ्लाइट्स में एअर इंडिया की दिल्ली से शिकागो जाने वाला विमान भी शामिल था। इसके बाद उसे कनाडा डायवर्ट कर दिया गया। प्लेन को कनाडा के इकालुइट एयरपोर्ट पर उतारा गया। यहां यात्रियों और उसमें मौजूद सामान की जांच की गई थी। 9 अक्टूबर: विस्तार की लंदन-दिल्ली फ्लाइट धमकी वाला टिश्यू पेपर लंदन से दिल्ली जाने वाली विस्तारा एयरलाइन की फ्लाइट UK18 में बम की सूचना से हड़कंप मच गया था। फ्लाइट के दिल्ली पहुंचने से करीब साढ़े 3 घंटे पहले एक यात्री ने प्लेन के टॉयलेट में धमकी भरा टिश्यू पेपर देखा। उसने क्रू मेंबर को सूचना दी।
तरनतारन के सुखजीत सुक्खा आएंगे पेरिस ओलंपिक में नजर:भारतीय हॉकी टीम में सेलेक्शन; व्हील-चेयर से मैदान तक का सफर किया पूरा
तरनतारन के सुखजीत सुक्खा आएंगे पेरिस ओलंपिक में नजर:भारतीय हॉकी टीम में सेलेक्शन; व्हील-चेयर से मैदान तक का सफर किया पूरा तरनतारन के अधीन पड़ते मियांविंड के गांव जवंदपुर निवासी 26 वर्षीय सुखजीत सिंह सुक्खा का चयन जुलाई में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली भारतीय हॉकी टीम में हुआ है। सूचना पहुंचने के बाद से गांव में खुशी की लहर है। फिलहाल सुखजीत सिंह बेंगलुरु में चल रहे भारतीय हॉकी टीम के कैंप में है। गांववासियों ने बताया कि सुखजीत सिंह का जन्म गांव जवंदपुर में हुआ है। सुखजीत सिंह के पिता अजीत सिंह पंजाब पुलिस में हैं। उनके पिता खुद हॉकी खिलाड़ी रहे हैं, जो 25 साल पहले पंजाब पुलिस में भर्ती हुए थे। जिसके बाद परिवार को जालंधर जाना पड़ा। गांव जवंदपुर निवासी सुखजोत के चाचा भीता सिंह ने बताया कि अजीत को हॉकी खेलने का शौक था। जिसे उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर पूरा किया है, बचपन से सुखजीत पर की गई मेहनत आज पूरी हुई है। 2006 में स्टेट एकेडमी में शामिल हुए चाचा भीता सिंह ने बताया कि सुखजीत की ट्रेनिंग 8 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। 2006 में उसे मोहाली में स्थापित राज्य सरकार द्वारा संचालित हॉकी एकेडमी में भर्ती कराया गया। सुखजीत का प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ा। चाचा भीता सिंह के दो बेटे हैं और दोनों ही हॉकी खिलाड़ी हैं। एक एसजीपीसी द्वारा संचालित एकेडमी का हिस्सा है, जबकि दूसरा मोहाली की एकेडमी में खेलता है। सुखजीत की मेहनत सफल हुई सुखजीत के चाचा भीता सिंह के अलावा गांव जवंदपुर के सरपंच एसपी सिंह, गांव घसीटपुर निवासी हॉकी कोच बलकार सिंह, मियांविंड के सरपंच दीदार सिंह व क्षेत्र के अन्य लोगों का मानना है कि सुखजीत सिंह द्वारा की गई मेहनत सफल हुई है। जिस तरह से उसने 8 साल की उम्र में हॉकी को अपनाया और कड़ी मेहनत की, आज उसे उसका फल मिला है। फिलहाल सुखजीत बेंगलुरु में आयोजित कैंप में मौजूद हैं। सुखजीत का सपना ओलंपिक तक पहुंचना था। अब अगर हॉकी ने एक बार फिर ओलंपिक में कमाल कर दिया तो पूरे गांव का नाम रोशन होगा। सुखजीत के व्हीलचेयर से मैदान तक की कहानी 8 साल की उम्र से हॉकी टीम में पहुंचने का सपना देखने वाले सुखजीत के लिए 2018 से पहले संभव नहीं था। ये वे दौर था, जब सुखजीत व्हीलचेयर पर थे। परिवार व सुखजीत उस समय हॉकी करियर के खत्म होने का शोक मना रहे थे। सभी को यही लगता था कि सुखजीत का करियर अब खत्म है। लोग कहते हैं कि चमत्कार होते हैं, सुखजीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। समय 2018 का है। अजीत पहली बार भारतीय हॉकी टीम के लिए चुना गया था। उम्र मात्र 21 साल थी। तीन चार दिन के बाद ऐसी घटना घटी कि सुखजीत व्हीलचेयर पर आ गए। प्रो लीग के दौरान भारतीय टीम बेल्जियम में थी। नए माहौल के बीच सुखजीत बीमार हो गया। सुखजीत ने यहां अपने आप को नहीं देखा और अपनी प्रैक्टिस को जारी रखा। इसी बीच सुखजीत के पीठ में दर्द होना शुरू हो गया। सुखजीत ने इससे भी निपटने की कोशिश की। सुखजीत ने विदेश में एक फिजियो से मदद मांगी। फिजियो ऑस्ट्रेलिया से थे। इसी दौरान फिजियो ने एक नस दबा दी और समस्या बहुत गंभीर हो गई। सुखजीत का दाहिना हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया। व्हील-चेयर पर भारत लौटा तो लगा करियर खत्म एक इंटरव्यू में सुखजीत ने बताया था कि वे व्हील चेयर पर भारत लौटे थे। पिता अजीत सिंह ने उन्हें उठाया और कार में बैठाया। लगा, करियर खत्म हो गया। वापस आते ही संदेश भी मिल गया कि अब वे भारतीय हॉकी कैंप का हिस्सा नहीं रहे। हालत ऐसे थे कि खुद बिस्तर से उठ नहीं सकते थे, वॉशरूम नहीं जा सकते थे और खाना नहीं खा सकते थे। अजीत हॉकी में इतने अच्छे थे कि उन्हें पंजाब पुलिस में स्पोर्ट्स कोटा की नौकरी मिल गई, लेकिन वे इतने अच्छे नहीं थे कि राष्ट्रीय टीम में जगह बना सकें। सुखजीत कहते हैं, “इसलिए उन्होंने मुझे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की।” पिता ने प्रेरित कर किया पैरों पर खड़ा खेलने की उम्मीद छोड़ दी गई। लेकिन पिता अजीत के लिए हार मानना कोई विकल्प नहीं था। पिता अजीत सिंह ने सुखजीत को दौबारा खड़ा करने के लिए कोशिशें शुरू कर दी। उसकी मालिश करते, डॉक्टर के पास ले जाते। 6 महीने की मेहनत रंग लाई। सुखजीत अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अब लक्ष्य दौबारा भारतीय टीम में पहुंचना था। वह फिर से हॉकी स्टिक पकड़ सकता था। शुरुआती सालों में अजीत ने उसे जो मजबूत बुनियादी बातें सिखाई थीं, वे सुखजीत के काम आईं क्योंकि उसे एहसास हुआ कि उसने अपनी मांसपेशियों की याददाश्त नहीं खोई है। 2019 के अंत तक, वह घरेलू हॉकी में वापस आ गया। इसी बीच कोविड का दौर शुरू हो गया। लेकिन सुखजीत ने हिम्मत नहीं हारी। इस दौरान उसने अपनी मांसपेशियों की ताकत को वापस पाने की कोशिश की। आज उसकी मेहनत रंग लाई है।