भजनलाल ने रातोंरात बदल दी थी हरियाणा सरकार:विधायक दल-बदल न करें, इसलिए बंदूक रखते थे; पुण्यतिथि पर पूर्व CM के रोचक किस्से 6 अक्टूबर 1930 को संयुक्त पंजाब के बहावलपुर में जन्मे भजनलाल का परिवार बंटवारे के बाद हरियाणा के हिसार जिले के आदमपुर में आकर बस गया। उन्होंने पहले कारोबार में हाथ आजमाया, लेकिन फिर अचानक राजनीति में आ गए। 1960 में भजनलाल आदमपुर के पंच चुने गए, और 1968 में उन्होंने पहली बार विधायक के रूप में विधानसभा में कदम रखा। हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 11 साल और 9 महीने का कार्यकाल पूरा किया, जो उन्हें राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक बनाता है। भजनलाल को देश के पहले ऐसे नेता के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने रातोंरात पूरी सरकार बदल दी थी। 1972 में, उन्हें MLA हॉस्टल के बाहर कंधे पर दुनाली बंदूक टांगकर पहरा देते हुए देखा गया था, ताकि विधायकों को दल-बदल करने से रोका जा सके। 3 जून 2011 को भजनलाल का निधन हो गया था। आज, उनकी 14वीं पुण्यतिथि पर उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से जानिए… पहले इन्फोग्राफिक्स से भजनलाल के राजनीतिक करियर के बारे में जानिए… अब भजनलाल के बारे में जानिए कि वे कैसे कारोबारी से विधायक बने… MLA हॉस्टल के बाहर बंदूक टांगकर पहरा देते थे
भजनलाल को कांग्रेस नेता बंसीलाल का करीबी माना जाता था। पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ. सतीश त्यागी बताते हैं- ‘1968 में भजनलाल विधायक बने, तब चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस सरकार में भजनलाल को हरियाणा मार्केटिंग बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। 2 साल बाद यानी, 1970 में बंसीलाल ने भजनलाल को कृषि मंत्री बना दिया। 1972 में दोबारा विधायक चुने जाने के बाद चौधरी भजनलाल फिर कृषि मंत्री बने। 7 साल बीत गए, चौधरी भजनलाल ने बंसीलाल का पूरा भरोसा हासिल कर लिया। भजनलाल की गिनती चौधरी बंसीलाल के करीबी और ताकतवर नेताओं में होने लगी। उस समय भजनलाल MLA हॉस्टल के बाहर दुनाली बंदूक कंधे पर टांगकर पहरा देते थे, ताकि कोई विधायक दल-बदल न कर सके। इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। चौधरी भजनलाल कांग्रेस छोड़कर बाबू जगजीवन राम की ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ में शामिल हो गए। आगे चलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का विलय जनता पार्टी में हो गया। देवीलाल का तख्तापलट कर पहली बार मुख्यमंत्री बने भजनलाल
साल 1977, इमरजेंसी के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री। ये आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसमें भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल के साथ ही कांग्रेस से टूटकर बने दल शामिल थे। हालांकि कुछ दिनों बाद ही जनता पार्टी के अलग-अलग धड़ों के बीच अनबन होने लगी। जनसंघ से आए सांसदों पर दबाव बनाया जाने लगा कि वे या तो जनता पार्टी छोड़ दें या RSS। इधर, हरियाणा की जनता पार्टी सरकार में भी उथल-पुथल मची थी। मुख्यमंत्री देवीलाल के करीबी ही बगावत पर उतारू थे। इस बीच 19 अप्रैल, 1979 को देवीलाल ने जनसंघ से आए मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। 6 जून 1979, मुख्यमंत्री देवीलाल हिसार और सिरसा के दौरे पर थे। उन्हें खबर मिली कि उनके चार मंत्रियों ने बगावत कर दी है। डेयरी मंत्री भजनलाल भी इनमें से एक थे। देवीलाल ने फौरन विधायकों को बचाने की कवायद शुरू कर दी। उन्होंने सिरसा जिले के तेजा खेड़ा में अपने किलेनुमा घर में 42 विधायकों को बंद कर लिया। कहा जाता है कि देवीलाल बंदूक लेकर विधायकों की रखवाली कर रहे थे। इधर, तख्तापलट के लिए भजनलाल के पास दो विधायक कम पड़ रहे थे। देवीलाल खेमे के दो विधायक उनके घर से बाहर निकले। एक विधायक के घर शादी थी और दूसरे विधायक के चाचा बीमार थे। देवीलाल को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वे बिन बुलाए विधायक के घर शादी में पहुंच गए। देवीलाल ने देखा कि भजनलाल वहां पहले से ही मौजूद हैं। दरअसल, तेजा खेड़ा में बंद विधायकों से मिलने उनकी पत्नियां और परिवार के लोग जाते थे। इनके जरिए ही भजनलाल अपना मैसेज इन विधायकों तक पहुंचाते थे। बाद में दोनों विधायक भजनलाल के खेमे में आ गए। 26 जून 1979, देवीलाल को बहुमत साबित करना था। उन्होंने संख्या बल जुटाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। एक दिन पहले ही देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। इस तरह भजनलाल तख्तापलट कर पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। जनता पार्टी के मुख्यमंत्री बनकर गए, कांग्रेस के बनकर लौटे
हरियाणा कैडर के IAS ऑफिसर रहे राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं, 14 जनवरी 1980, इंदिरा गांधी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। तब हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी और चौधरी भजनलाल मुख्यमंत्री। 6 दिन बाद यानी, 20 जनवरी को भजनलाल अचानक फूलों का गुलदस्ता लेकर इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गए। दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई। भजनलाल हरियाणा लौट आए। 22 जनवरी 1980, भजनलाल फिर से दिल्ली पहुंचे। इस बार भी इंदिरा से उनकी मुलाकात हुई, लेकिन जब हरियाणा लौटे तो वे जनता पार्टी के नहीं, बल्कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। जनता पार्टी की पूरी सरकार कांग्रेस सरकार में बदल गई। दरअसल, जनता पार्टी ने सत्ता में आने के बाद कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बर्खास्त की थीं। भजनलाल को इसी बात का डर था कि इंदिरा भी उनकी सरकार बर्खास्त करेंगी। इसलिए भजनलाल पूरी सरकार के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा ली। भजनलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, देवीलाल ने राज्यपाल को थप्पड़ मारा
साल 1982… हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके थे। कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं थीं। लोकदल को 33, भाजपा को 6, जगजीवनराम की कांग्रेस को 2 सीटें ही मिलीं। 11 निर्दलीय विधायक चुने गए। यानी, किसी को भी बहुमत हासिल नहीं था। राज्यपाल तपासे ने लोकदल के नेता चौधरी देवीलाल और भाजपा के नेता मंगलसेन को बुलाया और दो दिन बाद राजभवन में 45 या इससे ज्यादा विधायकों के साथ बहुमत साबित करने को कहा। इधर, अगले ही दिन राज्यपाल दिल्ली पहुंच गए। उसी दिन दिल्ली के हरियाणा भवन में कांग्रेस नेता भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। देवीलाल को पता चला, तो वे आगबबूला हो गए। अगले दिन वे सीधे राजभवन पहुंचे और भजनलाल सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर अड़ गए। राज्यपाल तपासे से देवीलाल की बहस हो गई। इसी दौरान गुस्साए देवीलाल ने तपासे की ठुड्डी पकड़ी और उनके गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया। इस घटना के बाद देवीलाल की देशभर में आलोचना हुई। हालांकि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। 24 जून 1982 को भजनलाल ने 57 विधायकों के साथ बहुमत साबित कर दिया। चुनावी नतीजों के 30 दिन बाद ही भजनलाल ने विरोधी पार्टी के 20 विधायक अपने पाले में कर लिए थे। इनमें कुछ लोकदल और कुछ निर्दलीय विधायक थे। नियम के मुताबिक, 9 मंत्री बनाए जा सकते थे। भजनलाल ने 5 निर्दलीय विधायकों समेत कुल 19 लोगों को मंत्री बनाया था। देवीलाल परिवार में फूट, भजनलाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने
1987 की बात है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। उसे सिर्फ 5 सीटें ही मिल सकी थीं। लोकदल के देवीलाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके दोनों बेटों ओमप्रकाश चौटाला और रणजीत चौटाला में मतभेद खुलकर सामने आने लगे। 1989 में देवीलाल डिप्टी पीएम बनकर केंद्र में चले गए और बेटे ओमप्रकाश को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया। रोहतक की महम सीट पर उप चुनाव हुआ, जो हिंसा की भेंट चढ़ गया। चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में दड़बा सीट से चौटाला विधायक बने और फिर मुख्यमंत्री, लेकिन इस फेरबदल से प्रधानमंत्री वीपी सिंह खुश नहीं थे। 1991 में पार्टी में बढ़ते अंतर्कलह की वजह से चौटाला सरकार गिर गई और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। भजनलाल ने इस मौके का फायदा उठाया। इस दौरान वह केंद्र में कृषि मंत्री थे। उन्होंने फौरन अपने पद से इस्तीफा देकर 1991 में आदमपुर सीट से हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। भजनलाल तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। चुनाव भजनलाल के नाम पर लड़ा गया, लेकिन मुख्यमंत्री बन गए भूपेंद्र हुड्डा
27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च, 2005 को CM के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व CM अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंडीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- ‘कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ इस तरह भजनलाल चौथी बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 2007 में छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ मिलकर एक नई पार्टी ‘हरियाणा जनहित कांग्रेस’ यानी, हजकां का गठन किया। 2009 में लड़ा आखिरी चुनाव, चौटाला के करीबी को 6 हजार वोट से हराया
2009 में चौधरी भजनलाल ने अपनी नई पार्टी हजकां के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके सामने इनेलो की तरफ से चौटाला परिवार के खास रहे प्रो. संपत सिंह मैदान में थे। भजनलाल ने संपत सिंह को 6 हजार वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया। 2009 में ही हरियाणा विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों में से 40 और इनेलो ने 31 पर जीत दर्ज की। वहीं, 6 सीटें जीतकर हजकां किंगमेकर बनकर उभरी, लेकिन भूपेंद्र हुड्डा ने रातों-रात इसके 5 विधायक तोड़ लिए और सरकार बना ली। 3 जून 2011 को भजनलाल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इन्फोग्राफिक्स से भजनलाल के परिवार के बारे में जानिए, जिनकी पत्नी से लेकर पोता तक विधायक रहा ————————- भजनलाल से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें :- विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला साल 1977, इमरजेंसी के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री। ये आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसमें भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल और कांग्रेस से अलग हुए दल शामिल थे। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही जनता पार्टी के अलग-अलग धड़ों के बीच अनबन होने लगी। पढ़ें पूरी खबर…