लखनऊ में तदर्थ यानी एडहॉक शिक्षकों का प्रदर्शन लगातार 19वें दिन जारी रहा। जमकर नारेबाजी भी हुई और तदर्थ शिक्षकों ने मांगे न माने जाने पर आर-पार की लड़ाई की बात कही। तदर्थ शिक्षक याचना कार्यक्रम के तहत सरकार से वेतन बहाली की मांग कर रहे हैं। साथ ही परमानेंट किए जाने को लेकर भी मांग है। 18 दिसंबर से जारी है धरना तदर्थ शिक्षक आंदोलन समिति के संयोजक राजमणि सिंह ने कहा कि हमने पहले भी 53 दिनों तक याचना कार्यक्रम चलाकर सरकार से गुहार लगाई पर कोई सुनवाई नहीं हुई। सरकार अभी भी इन शिक्षकों का वेतन बहाली नहीं कर रही है। न ही सेवा सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम उठा रही है। ऐसे में तदर्थ शिक्षकों के पास लड़ाई लड़ने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा है। हाईकोर्ट का आदेश तदर्थ शिक्षकों के पक्ष में राजमणि सिंह ने कहा कि सरकार ने 9 नवंबर 2023 को जो शासनादेश जारी कर 1993 से लेकर आज तक के सभी तदर्थ की सेवाएं समाप्त कर मानदेय देने का आदेश दिया था। जिसको उच्च न्यायालय ने स्थगित करते हुए वेतन जारी करने को कहा है, पर आज तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। प्रदेश में 2000 से ज्यादा तदर्थ शिक्षक राजमणि सिंह ने बताया कि यूपी में 4500 से ज्यादा एडेड विद्यालय है। इनमें लगभग 2 हजार से ज्यादा तदर्थ शिक्षकों की तैनाती रही। लंबे समय से इन्हें वेतन नही मिला। ऐसे में वेतन बहाली की मांग और नियमित करने को लेकर ये शिक्षक प्रदर्शन कर रहे है। लखनऊ में तदर्थ यानी एडहॉक शिक्षकों का प्रदर्शन लगातार 19वें दिन जारी रहा। जमकर नारेबाजी भी हुई और तदर्थ शिक्षकों ने मांगे न माने जाने पर आर-पार की लड़ाई की बात कही। तदर्थ शिक्षक याचना कार्यक्रम के तहत सरकार से वेतन बहाली की मांग कर रहे हैं। साथ ही परमानेंट किए जाने को लेकर भी मांग है। 18 दिसंबर से जारी है धरना तदर्थ शिक्षक आंदोलन समिति के संयोजक राजमणि सिंह ने कहा कि हमने पहले भी 53 दिनों तक याचना कार्यक्रम चलाकर सरकार से गुहार लगाई पर कोई सुनवाई नहीं हुई। सरकार अभी भी इन शिक्षकों का वेतन बहाली नहीं कर रही है। न ही सेवा सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम उठा रही है। ऐसे में तदर्थ शिक्षकों के पास लड़ाई लड़ने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा है। हाईकोर्ट का आदेश तदर्थ शिक्षकों के पक्ष में राजमणि सिंह ने कहा कि सरकार ने 9 नवंबर 2023 को जो शासनादेश जारी कर 1993 से लेकर आज तक के सभी तदर्थ की सेवाएं समाप्त कर मानदेय देने का आदेश दिया था। जिसको उच्च न्यायालय ने स्थगित करते हुए वेतन जारी करने को कहा है, पर आज तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। प्रदेश में 2000 से ज्यादा तदर्थ शिक्षक राजमणि सिंह ने बताया कि यूपी में 4500 से ज्यादा एडेड विद्यालय है। इनमें लगभग 2 हजार से ज्यादा तदर्थ शिक्षकों की तैनाती रही। लंबे समय से इन्हें वेतन नही मिला। ऐसे में वेतन बहाली की मांग और नियमित करने को लेकर ये शिक्षक प्रदर्शन कर रहे है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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Punjab Cabinet Reshuffle: भगवंत मान कैबिनेट में आज बड़ा फेरबदल, पांच नए मंत्री लेंगे शपथ
Punjab Cabinet Reshuffle: भगवंत मान कैबिनेट में आज बड़ा फेरबदल, पांच नए मंत्री लेंगे शपथ <p style=”text-align: justify;”><strong>Punjab News:</strong> पंजाब में करीब 10 महीने के बाद आज (23 सितंबर) कैबिनेट में फेरबदल होने जा रहा है. सीएम भगवंत मान (Bhagwant Mann) की कैबिनेट में पांच नए मंत्रियों को शामिल किया जाएगा. जबकि चार पुराने चेहरे मंत्रिमंडल से बाहर भी हो गए हैं. चार मंत्रियों ने रविवार को मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>जिन मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है उनमें बलकौर सिंह, चेतन सिंह जौड़ामाजरा, ब्रह्म शंकर जिम्पा और अनमोल गगन शामिल हैं. वहीं जिन विधायकों को भगवंत मान कैबिनेट में शामिल किया जा रहा है उनमें हरदीप सिंह मुंडियान, तरुणप्रीत एस सोंध, बरिंदर गोयल और मोहिंदर भगत हैं. ये सभी आज शाम पांच बजे राज निवास में शपथ ग्रहण करेंगे. </p>
<p style=”text-align: justify;”>पंजाब में जुलाई के महीने से ही कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा चल रही है लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के कारण संभवत: यह मामला अटका हुआ था. अब जब अरविंद केजरीवाल जमानत पर बाहर आ गए हैं तो दिल्ली के बाद पंजाब के लिए भी बड़ा फैसला होने जा रहा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हरदीप सिंह</strong><br />हरदीप सिंह मुंडियान साहनेवाल से विधायक हैं. 2022 में उन्होंने आप के टिकट से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के विक्रम सिंह बाजवा को हराया था. मुंडियान के पक्ष में 34.33 प्रतिशत वोट गए थे. साहनेवाल शिरोमणि अकाली दल की सीट रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मोहिंदर भगत</strong><br />जिन पांच नए नाम को कैबिनेट में शामिल किया जा रहा है उनमें से मोहिंदर भगत की चर्चा सबसे अधिक थी जिन्होंने जालंधऱ पश्चिम सीट पर उपचुनाव जीता है. मोहिंदर भगत ने बीजेपी प्रत्याशी शीतल अंगुराल को हराया था. मोहिंदर भगत को यहां 55,245 वोट मिले थे. शीतल अंगुराल इसी सीट से 2022 में आप के टिकट से निर्वाचित हुए थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>तरुणप्रीत एस सोंध</strong><br />तरुणप्रीत एस सोंध ने 2022 के विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के गुरकीरत सिंह कोटली को हराया था. सोंध को 62,425 वोट मिले थे जबकि कोटली को केवल 26805 वोट ही हासिल हो पाए थे. 2017 में यह सीट कोटली ने जीती थी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बरिंदर गोयल</strong><br />बरिंदर गोयल ने पिछले विधानसभा चुनाव में एसएडी(एस) के परमिंदर सिंह ढींढसा को हराया था. ढींढसा ने 2017 में इस सीट से चुनाव जीता था लेकिन गोयल ने 2022 के चुनाव में ढींढसा को बड़े अंतर से हराया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें- <a title=”‘पंजाब में बीजेपी के विधायक स्कूटर पर बैठ कर आ सकते हैं’, किस ओर है CM भगवंत मान का निशाना?” href=”https://www.abplive.com/states/punjab/bhagwant-man-claims-aam-aadmi-party-aap-victory-in-haryana-assembly-election-2024-2788678″ target=”_self”>’पंजाब में बीजेपी के विधायक स्कूटर पर बैठ कर आ सकते हैं’, किस ओर है CM भगवंत मान का निशाना?</a></strong></p>
CAS ने कहा-वजन बढ़ने की जिम्मेदार विनेश फोगाट:ऑर्डर में लिखा- खिलाड़ी को इसका ध्यान रखना होगा, जॉइंट मेडल का नियम नहीं
CAS ने कहा-वजन बढ़ने की जिम्मेदार विनेश फोगाट:ऑर्डर में लिखा- खिलाड़ी को इसका ध्यान रखना होगा, जॉइंट मेडल का नियम नहीं पेरिस ओलिंपिक में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने पर डिस्क्वालिफाई हुईं विनेश फोगाट के केस में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) ने 24 पेज की ऑर्डर कॉपी जारी की है। जिसमें CAS ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी का वजन कम-ज्यादा होने का कारण और जिम्मेदार खुद खिलाड़ी ही है। नियमों से ऊपर कोई भी कारण नहीं हो सकता है। CAS ने आगे कहा कि खेलों में सभी प्रतिभागियों के लिए नियम समान होते हैं और इन नियमों में कोई भी ढील नहीं दी जा सकती। विनेश फोगाट का मामला यह था कि उनका वजन निर्धारित सीमा से 100 ग्राम अधिक था। उन्होंने इस मामूली बढ़त के लिए सहनशीलता की मांग की थी, क्योंकि यह वृद्धि मासिक धर्म (पीरियड्स) के कारण पानी के रिटेंशन और पानी पीने के कारण हुई थी। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और स्पष्ट कर दिया कि नियमों में कोई सहनशीलता का प्रावधान नहीं है। CAS के ऑर्डर की खास बातें… पानी की कमी की दलील दी CAS ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि विनेश फोगाट फाइनल से पहले वजन मापने के दौरान असफल साबित हुईं। यानी उनका वजन 50 किग्रा वेट कैटेगरी के लिहाज से ज्यादा पाया गया। इसमें विनेश का मानना यह था कि सिर्फ 100 ग्राम वजन ज्यादा है। इसे पीरियड्स, वॉटर रिटेंशन के चलते विलेज तक आने के कारण पानी नहीं मिल पाया। नियम सभी के लिए समान एथलीट्स के लिए समस्या यह है कि वजन को लेकर नियम साफ हैं और सभी के लिए समान भी हैं। इसमें कितना ज्यादा है, यह देखने के लिए कोई सहनशीलता प्रदान नहीं की गई है। यह सिंगलेट (फाइटिंग के दौरान पहलने वाली जर्सी) के वजन की भी अनुमति नहीं देता है। यह भी साफ है कि एथलीट को ही यह देखना होगा कि उसका वजन नियम के अनुसार ही हो। थोड़ी भी छूट देने का अधिकार नहीं यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के नियमों में साफ दिया गया है कि पहलवान को न सिर्फ टूर्नामेंट के शुरुआत में खेलने के योग्य होना चाहिए, बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही उसे योग्य होना चाहिए। यानी एंट्री से लेकर फाइनल तक ऐसे में नियमों में जरा भी अधिकार नहीं दिया गया है कि थोड़ी भी छूट दी जाए। इससे समझ सकते हैं कि क्यों ये नियम प्रदान करते हैं कि एक बार जब कोई पहलवान प्रतियोगिता के दौरान अयोग्य हो जाता है, तो अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू होते हैं। उस दिन के हालात पर छूट का प्रावधान नहीं एथलीट ने यह भी मांग की है कि वजन के नियमों में दी गई लिमिट को उस दिन की उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार बदला जाए और उस लिमिट पर सहनशीलता लागू की जाए। यानी 100 ग्राम वजन को ज्यादा न समझा जाए और 50 किग्रा वेट कैटेगरी में खेलने की अनुमति दी जाए। मगर, नियमों को देखा जाए तो उसमें ऐसी कोई छूट देने का प्रावधान ही नहीं है। नियम साफ हैं कि 50 किग्रा वेट एक लिमिट है. इसमें व्यक्तिगत तौर पर सहूलियत देने या विवेकाधिकार प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। विनेश ने पहले मापे गए वजन की दलील दी एथलीट का पहले दिन का वजन नियम के अनुसार था। उन्हें दूसरे दिन यानी फाइनल से पहले भी वजन माप में सफल होना था। नियमों के अनुच्छेद 11 के लागू होने के कारण विनेश टूर्नामेंट से बाहर हो गईं और बिना किसी रैंक के आखिरी स्थान पर आ गईं। इसने उनसे सिल्वर मेडल भी छीन लिया, जो उन्होंने सेमीफाइनल जीतने के साथ ही पक्का कर लिया था। इस पर विनेश की दलील है कि वो सिल्वर मेडल के लिए योग्य और पात्र बनी रहीं और 6 अगस्त (पहले दिन) को उनका जो सफल वजन माप हुआ था, उसे दूसरे दिन भी लागू किया जाए। नियमों में मेडल देने का प्रावधान नहीं नियमों में कोई विवेकाधिकार नहीं दिया गया है। इसे लागू करने के लिए एकमात्र मध्यस्थ पूरी तरह से बाध्य हैं। एकमात्र मध्यस्थ इस दलील में भी दम देखता है कि फाइनल से पहले जो वजन माप किया गया था, वो नियम के खिलाफ था तो विनेश को सिर्फ फाइनल के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए। यानी उन्हें सिल्वर दिया जाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से आवेदक के लिए नियमों में यह भी सुविधा भी प्रदान नहीं की गई है। फैसला कानूनी रूप से लिया गया एथलीट ने यह अनुरोध किया है कि अपील किए गए निर्णय को इस तरह से अलग रखा जाए कि नियमों के अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू न हों या अनुच्छेद 11 को इस तरह से समझा जाए कि यह सिर्फ टूर्नामेंट के आखिरी दौर पर लागू हो और यह टूर्नामेंट के शुरुआत से ही लागू न हो। यह विवाद का विषय नहीं है कि एथलीट दूसरे वजन-माप में असफल रहा। आवेदक ने नियमों के अनुच्छेद 11 को चुनौती नहीं दी है। इसका मतलब यह है कि फैसला कानूनी रूप से लिया गया था और अनुच्छेद 11 लागू होता है। जॉइंट मेडल का नियम नहीं एथलीट ने यह भी माना है कि नियमों के लिहाज से वो अयोग्य हो गई हैं। इस कारण सेमीफाइनल में उनसे हारने वाली एथलीट फाइनल खेलने के लिए योग्य हो गई हैं। उन्हें ही सिल्वर या गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। विनेश यह नहीं चाहती कि कोई अन्य पहलवान अपना मेडल खो दे। वो तो संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल चाहती हैं। ऐसे में कोई नियम नहीं है, जिसके आधार पर विनेश को संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल दिए जाने की सहूलियत प्रदान की जाए। कोई गैरकानूनी काम नहीं किया इन सभी नियमों और बातों का मतलब है कि एकमात्र मध्यस्थ विनेश द्वारा मांगी गई राहत को देने से इनकार करता है और उनका यह आवेदन खारिज करता है।एकमात्र मध्यस्थ ने यह पाया है कि विनेश ने खेल के मैदान में एंट्री की और पहले ही दिन 3 राउंड के मुकाबले में फाइटिंग करते हुए जीत हासिल की। इसके दम पर उन्होंने पेरिस ओलिंपिक गेम्स में 50 किग्रा वेट कैटेगरी के रेसलिंग फाइनल में पहुंचीं। मगर, दूसरे दिन वजन माप में वो असफल रहीं और फाइनल के लिए अयोग्य हो गईं। विनेश की ओर से कोई भी गलत काम (गैरकानूनी) करने का कोई संकेत नहीं मिला है।
हरियाणा में सर्विस वोटर भाजपा से नाराज:10 में से 6 लोकसभा क्षेत्रों के पोस्टल बैलेट में BJP को मात, करनाल से पूर्व CM भी हारे
हरियाणा में सर्विस वोटर भाजपा से नाराज:10 में से 6 लोकसभा क्षेत्रों के पोस्टल बैलेट में BJP को मात, करनाल से पूर्व CM भी हारे हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी का सामना भी भाजपा को करना पड़ा। हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा को 4 सीटों पर ही सर्विस वोट कांग्रेस से अधिक मिले, बाकि स्थानों पर कांग्रेस को सरकारी कर्मचारियों ने वोट डाले। अंबाला, हिसार, करनाल, सोनीपत, रोहतक और सिरसा लोकसभा में सर्विस वोट यानी पोस्टल बैलेट से मतदान में भाजपा पिछड़ गई। वहीं पूर्व CM मनोहर लाल की करनाल सीट को छोड़ दिया जाए तो भाजपा को जहां सर्विस वोट कम पड़े हैं वहां से भाजपा हार गई। वहीं प्रदेश में सबसे ज्यादा सर्विस वोट भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर हैं यहां सबसे ज्यादा वोट भाजपा को मिले। वहीं कांग्रेस के राव दान सिंह को दूसरे नंबर पर वोट पड़े। रोहतक में दीपेंद्र हुड्डा, सिरसा में कुमारी सैलजा, सोनीपत में सतपाल ब्रह्मचारी, अंबाला में वरूण मुलाना, हिसार में जयप्रकाश, करनाल में दिव्यांशु बुद्धिराजा को सबसे ज्यादा सर्विस वोट मिले। अंबाला से बंतो कटारिया, हिसार से रणजीत सिंह, करनाल से मनोहर लाल, सोनीपत से मोहन लाल बड़ौली, रोहतक से अरविंद शर्मा, सिरसा से डा. अशोक तंवर कम सर्विस वोट मिले। हरियाणा में 1 लाख 11 हजार 143 सर्विस वोटर हैं। पूर्व CM मनोहर लाल के बयान से नाराज हुए सर्विस वोटर
सरकारी कर्मचारियों का अपने गली-मोहल्ले सहित वार्ड में प्रभाव होता है। सरकारी पद पर होने के कारण वह अनेक वोटरों को प्रभावित कर सकता है। हरियाणा में एक लाख से ऊपर सर्विस वोटर हैं। ऐसे में अधिकतर वोटरों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। इसका मुख्य कारण पूर्व CM मनोहर लाल के प्रति नाराजगी थी। दरअसल, कुछ दिन पहले CM नायब सैनी ने कहा था कि अफसरों की मनमानी हम सरकार में नहीं चलने देंगे। लिस्ट तलब कर ली गई है। वहीं पूर्व CM मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि आज तुम्हारा टाइम है, 4 जून के बाद हमारा टाइम आएगा। हरियाणा में पूर्व CM मनोहर लाल खट्टर और भाजपा नेताओं द्वारा कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ इस बयानबाजी ने तूल पकड़ लिया था। कौन हैं सर्विस वोटर
ये ऐसे वोटर्स होते हैं जो बिना पोलिंग बूथ पर गए अपना वोट गिरा सकते हैं। चुनाव आयोग के अनुसार सर्विस वोटिंग वो मतदाता कर सकता है जो सेना, अर्धसैनिक बस, या पुलिस में कार्यरत होता है। ये उन क्रेंद और राज्य के कर्मचारियों के लिए भी वैलिड होता है जिनकी वोटिंग के दौरान कहीं ड्यूटी होती है। ये सभी सर्विस वोटर्स की कैटेगरी में शामिल होते हैं। इसमें सरकार के अलग-अलग विभागों के लोगों का नाम शामिल होता है। ये सारे लोग जो सर्विस वोटिंग का हिस्सा होते हैं वो पोस्टल वोटिंग के जरिए अपना वोट डालते हैं। चुनाव के बाद जब वोटों की गिनती शुरू की जाती है तो सबसे पहले इन सर्विस वोटर्स के मतदान को गिना जाता है। कैसे होती है सर्विस वोटिंग
मतदान में शामिल होने के लिए सर्विस वोटर्स के लिए एक अलग सिस्टम निर्धारित है। वोटिंग के लिए सर्विस मतदाता को एक मेल भेजी जाती है। इस मेल को फॉर्म 2, 2ए और फॉर्म 3 कहा जाता है। मतदाताओं को इसका प्रिंट निकालकर इसमें टिक मार्क करना है। यह टिक मार्क उस उम्मीदवार या पार्टी के सामने करना होगा जिसे वोटर वोट देना चाहता है। यह वोटरों को उनके कमांडिंग ऑफिसर के सामने करना होता है। इसके बाद उस प्रिंटआउट को लिफाफे में बंद करके इसे अपने इलेक्शन एरिया के ऑफिसर को भेजना होता है। किन के लिए कौन सा फॉर्म
सशस्त्र बल के सदस्य- फॉर्म 2
राज्य सरकार के पुलिस में कार्यरत अथवा राज्य से बाहर सेवारत-फॉर्म 2ए
भारत सरकार में कार्यरत लेकिन भारत से बाहर पोस्टिंग- फॉर्म 3
यदि सर्विस वोटर खुद को सामान्य वोटर के रूप में रखना चाहता है – फॉर्म 6