ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी गठित होने के बाद वक्फ संपत्ति को लेकर लगातार घमासान मचा हुआ है। लखनऊ में जेपीसी कमेटी की बैठक के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई कि 78% वक्फ संपत्ति सरकारी है। 14000 हेक्टेयर में 11000 हेक्टेयर जमीन वक्फ की नहीं है। इन आंकड़ों को लेकर लखनऊ के उलेमा ने नाराजगी जताई। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड चेयरमैन ने ये दावा निराधार बताया। 21 जनवरी को लखनऊ के एक निजी होटल में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर सुझाव लेने के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अंतिम बैठक थी। यूपी शासन की ओर से जेपीसी को बताया गया कि यूपी में वक्फ बोर्डों की 78 प्रतिशत जमीन सरकारी है। प्रदेश में कुल 14 हजार हेक्टयेर वक्फ भूमि है, जिसमें से 11 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि राजस्व रिकॉर्ड में सरकारी है। राजस्व विभाग ने भी किया था दावा बैठक में राजस्व विभाग के अधिकारी भी शामिल थे। कहा ये जा रहा है राजस्व ने अपना पक्ष रखते हुए बताया था कि 58 हजार वक्फ संपत्तियां राजस्व रिकॉर्ड में श्रेणी 5 व 6 की हैं। इन दोनों श्रेणियों में सरकारी और ग्राम सभा की जमीन दर्ज होती है। लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा और अयोध्या में स्थित बहू बेगम का मकबरा भी सरकारी जमीन में बने होने की चर्चा लगातार हो रही है। आंकड़ों का कोई आधार नहीं शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी ने कहा कि 78 प्रतिशत संपत्ति सरकारी है। ये किस का आधिकारिक बयान है इसकी कोई जानकारी नहीं है। अगर ये आंकड़े सरकारी हैं तो कहां से और किसने जारी किया। जेपीसी कमेटी की बैठक में हम मौजूद थे वहां इस प्रकार की कोई बात नहीं हुई। हम खुद चिंता में हैं कि ये चर्चा का विषय कैसे बना। इमाम बाड़ा हुसैनाबाद ट्रस्ट में दर्ज अली जैदी ने कहा बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा सरकारी जमीन पर है। ये किसका दावा है और किस आधार पर है इसकी भी कोई जानकारी नहीं। इमाम बाड़े का हुसैनाबाद ट्रस्ट एक्ट है। बादशाह मोहम्मद अली शाह की डीड है। इमामबाड़ा और वहां की संपत्तियां उसी के जरिए कंट्रोल होती हैं। हाईकोर्ट के आदेशानुसार जिलाधिकारी इसके अध्यक्ष हैं। डीड के अनुसार हुसैनाबाद ट्रस्ट सभी कार्य कर रहा है। पहले भी हुए हैं संशोधन वक्फ एक्ट में समय-समय पर संशोधन किए गए। एक बार फिर सरकार इसमें संशोधन लेकर आई है। जेपीसी कमेटी में पूरे देश में इसपर विरोध और सुझाव दोनों ही दर्ज किए गए। लखनऊ समेत विभिन्न जनपदों में वक्फ की संपत्ति पर अवैध कब्जों को खाली करवाया गया जिसमें मुख्य रूप से मेरठ, लखनऊ और प्रयागराज शामिल है। वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कदम उठाना चाहिए। अंग्रेजों का विरोध करने पर नजूल में चढ़ी संपत्ति मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि सरकार को गुमराह किया गया है। 78 प्रतिशत सरकार की संपत्ति है ये बिल्कुल गलत है। ये बात कही जा रही है कि नजूल में लिखा हुआ है इसलिए यह सरकारी संपत्ति है। 1857 में जब अंग्रेजों ने कब्जा किया उस समय जिन लोगों ने उनका समर्थन नहीं किया उनकी संपत्ति नजूल में डाल दी गई। नजूल का कानून अंग्रेजों का बनाया हुआ है, जो हमारा अधिकार है वो रहेगा। हमारे बुजुर्गों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी इसलिए उनकी संपत्ति नजूल में चढ़ाई गई। बुजुर्गों की दान की हुई संपत्ति है इस्लामिक सेंटर ऑफ़ इंडिया के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निजामी ने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने अपनी निजी संपत्ति को वक्फ किया है। मस्जिद, मदरसा और दरगाहों के रूप में इसका इस्तेमाल हो रहा है। यह किसी की संपत्ति पर कोई अवैध निर्माण नहीं है। सरकार का यह दावा है कि ढाई प्रतिशत संपत्ति सिर्फ वक्फ की है ये गलत आंकड़े हैं। सरकार की ओर से यह बात भी कही जा रही है कि मुसलमान की संपत्ति को ले लिया जाएगा। यह अन्याय है। ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट को प्रदर्शित के साथ लाया जाए। ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी गठित होने के बाद वक्फ संपत्ति को लेकर लगातार घमासान मचा हुआ है। लखनऊ में जेपीसी कमेटी की बैठक के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई कि 78% वक्फ संपत्ति सरकारी है। 14000 हेक्टेयर में 11000 हेक्टेयर जमीन वक्फ की नहीं है। इन आंकड़ों को लेकर लखनऊ के उलेमा ने नाराजगी जताई। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड चेयरमैन ने ये दावा निराधार बताया। 21 जनवरी को लखनऊ के एक निजी होटल में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर सुझाव लेने के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अंतिम बैठक थी। यूपी शासन की ओर से जेपीसी को बताया गया कि यूपी में वक्फ बोर्डों की 78 प्रतिशत जमीन सरकारी है। प्रदेश में कुल 14 हजार हेक्टयेर वक्फ भूमि है, जिसमें से 11 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि राजस्व रिकॉर्ड में सरकारी है। राजस्व विभाग ने भी किया था दावा बैठक में राजस्व विभाग के अधिकारी भी शामिल थे। कहा ये जा रहा है राजस्व ने अपना पक्ष रखते हुए बताया था कि 58 हजार वक्फ संपत्तियां राजस्व रिकॉर्ड में श्रेणी 5 व 6 की हैं। इन दोनों श्रेणियों में सरकारी और ग्राम सभा की जमीन दर्ज होती है। लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा और अयोध्या में स्थित बहू बेगम का मकबरा भी सरकारी जमीन में बने होने की चर्चा लगातार हो रही है। आंकड़ों का कोई आधार नहीं शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अली जैदी ने कहा कि 78 प्रतिशत संपत्ति सरकारी है। ये किस का आधिकारिक बयान है इसकी कोई जानकारी नहीं है। अगर ये आंकड़े सरकारी हैं तो कहां से और किसने जारी किया। जेपीसी कमेटी की बैठक में हम मौजूद थे वहां इस प्रकार की कोई बात नहीं हुई। हम खुद चिंता में हैं कि ये चर्चा का विषय कैसे बना। इमाम बाड़ा हुसैनाबाद ट्रस्ट में दर्ज अली जैदी ने कहा बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा सरकारी जमीन पर है। ये किसका दावा है और किस आधार पर है इसकी भी कोई जानकारी नहीं। इमाम बाड़े का हुसैनाबाद ट्रस्ट एक्ट है। बादशाह मोहम्मद अली शाह की डीड है। इमामबाड़ा और वहां की संपत्तियां उसी के जरिए कंट्रोल होती हैं। हाईकोर्ट के आदेशानुसार जिलाधिकारी इसके अध्यक्ष हैं। डीड के अनुसार हुसैनाबाद ट्रस्ट सभी कार्य कर रहा है। पहले भी हुए हैं संशोधन वक्फ एक्ट में समय-समय पर संशोधन किए गए। एक बार फिर सरकार इसमें संशोधन लेकर आई है। जेपीसी कमेटी में पूरे देश में इसपर विरोध और सुझाव दोनों ही दर्ज किए गए। लखनऊ समेत विभिन्न जनपदों में वक्फ की संपत्ति पर अवैध कब्जों को खाली करवाया गया जिसमें मुख्य रूप से मेरठ, लखनऊ और प्रयागराज शामिल है। वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कदम उठाना चाहिए। अंग्रेजों का विरोध करने पर नजूल में चढ़ी संपत्ति मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि सरकार को गुमराह किया गया है। 78 प्रतिशत सरकार की संपत्ति है ये बिल्कुल गलत है। ये बात कही जा रही है कि नजूल में लिखा हुआ है इसलिए यह सरकारी संपत्ति है। 1857 में जब अंग्रेजों ने कब्जा किया उस समय जिन लोगों ने उनका समर्थन नहीं किया उनकी संपत्ति नजूल में डाल दी गई। नजूल का कानून अंग्रेजों का बनाया हुआ है, जो हमारा अधिकार है वो रहेगा। हमारे बुजुर्गों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी इसलिए उनकी संपत्ति नजूल में चढ़ाई गई। बुजुर्गों की दान की हुई संपत्ति है इस्लामिक सेंटर ऑफ़ इंडिया के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निजामी ने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने अपनी निजी संपत्ति को वक्फ किया है। मस्जिद, मदरसा और दरगाहों के रूप में इसका इस्तेमाल हो रहा है। यह किसी की संपत्ति पर कोई अवैध निर्माण नहीं है। सरकार का यह दावा है कि ढाई प्रतिशत संपत्ति सिर्फ वक्फ की है ये गलत आंकड़े हैं। सरकार की ओर से यह बात भी कही जा रही है कि मुसलमान की संपत्ति को ले लिया जाएगा। यह अन्याय है। ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट को प्रदर्शित के साथ लाया जाए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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चंडीगढ़ में सिपाही ने दोस्तों संग बाउंसर को पीटा:पीड़ित बोला- तलवारों से किए वार, अंगूठा कटा; बाजू-उंगली पर लगे 30 टांके
चंडीगढ़ में सिपाही ने दोस्तों संग बाउंसर को पीटा:पीड़ित बोला- तलवारों से किए वार, अंगूठा कटा; बाजू-उंगली पर लगे 30 टांके चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियल एरिया स्थित सेंट्रा मोल में बुधवार देर रात वीडियो बनाने को लेकर हुई मामूली बहस के बाद पंजाब पुलिस के सिपाही और उसके साथियों ने बाउंसर पर तलवारों और डंडों से हमला कर दिया। हमले में बाउंसर का अंगूठा कटकर अलग हो गया। उसके सिर बाजू और उंगली पर लगभग 30 टांके आए। घायल की पहचान 31 वर्षीय बरिंदर कुमार निवासी कैम्बवाला के नाम से हुई है। जिसका सेक्टर-33 के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। इलाज के बावजूद अंगूठा जुड़ नहीं पाया इंडस्ट्रियल एरिया थाना पुलिस ने बरिंदर के दोस्त सुमित राणा की शिकायत पर आरोपी रमन कुमार और अन्य के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज कर दिला है। मामले में अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। आरोपी सिपाही रमन और अन्य आरोपी फरार हैं। सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई वारदात बरिंदर के दोस्त सुमित ने बताया कि बेसमेंट में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिसमें पूरी घटना कैद हो गई। घटना साढ़े तीन बजे की है। पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी कैमरे की वीडियो भी दिखाई थी। सुमित ने बताया सिपाही रमन कुमार क्लबों में पार्टी करने आता रहता है। उसे कई बार क्लबों में देखा है। वह मोहाली फेज-11 में रहता है और फेज-1 में ड्यूटी करता है। क्लब में स्नैप बनाने को लेकर हुई सिपाही से बहस पीड़ित बरिंदर कुमार ने बताया कि वह क्लबों में बाउंसर की ड्यूटी करता है। बुधवार रात ढाई बजे वह इंडस्ट्रियल एरिया के सेंट्रा मोल में अपने मामा के बेटे रविंदर और दो दोस्तों सुमित राणा और विनय के साथ पार्टी करने गया था। सभी क्लब में डीजे के पास कंसोल पर खड़े थे। रविंदर स्नैप बना रहा था। सिपाही रमन कुमार ने वीडियो बनाने का विरोध किया और रविंदर से बहस करने लगा। बरिंदर के बीच बचाव के बाद मामला शांत हुआ। रविंदर ने भी वीडियो बनाने के लिए रमन से माफी मांगी ली। ड्यूटी पर तैनात बाउंसर पकड़कर बेसमेंट में ले गए बरिंदर को बरिंदर ने बताया कि सिपाही रमन से बहस होने के बाद क्लब में ड्यूटी पर तैनात बाउंसर विक्की और बादल उसे पकड़कर क्लब के बाहर ले गए, ताकि झगड़ा न हो सके। बाउंसर उसे लिफ्ट से लेकर बेसमेंट में चले गए। तभी अचानक रमन और उसके साथी बेसमेंट में आ गए। उन्होंने तलवारों और डंडों से बरिंदर पर हमला कर दिया। सोने की चेन, 40 हजार नकदी और फोन ले गए आरोपी सुमित राणा ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि आरोपी बरिंदर से मारपीट करने के बाद उसका फोन, 40 हजार नकदी और सोने की चेन लेकर फरार हो गए। हमला करने वाले 7 से 8 आरोपी थे। उनके पास 2 तलवारें और डंडे थे। हमले के बाद सुमित, रविंदर और विनय लहूलुहान अवस्था में बरिंदर को सेक्टर 32 अस्पताल लेकर गए। मामले की जांच कर रही पुलिस डीएसपी दिलबाग सिंह ने कहा कि बाउंसर से मारपीट मामले में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। आरोपियों में पंजाब पुलिस का एक सिपाही भी शामिल है। सीसीटीवी कैमरे की फुटेज कब्जे में ले ली है। आरोपियों की तलाश में छापेमारी की जा रही है।
‘कच्ची जमीन पर बनी थी दरगाह, कैसे हो सकता है मंदिर?’ अजमेर मामले पर मुस्लिम नेताओं ने उठाए सवाल
‘कच्ची जमीन पर बनी थी दरगाह, कैसे हो सकता है मंदिर?’ अजमेर मामले पर मुस्लिम नेताओं ने उठाए सवाल <p style=”text-align: justify;”><strong>Ajmer Dargah Sharif News:</strong> राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह पर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं. हाल ही में एक दावा किया गया है कि यह दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाई गई थी, जिसको लेकर स्थानीय अदालत में याचिका दायर की गई थी. अब इस याचिका से राजस्थान में राजनीतिक और मुस्लिम नेताओं के बीच तीखी बहस छिड़ गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने याचिका को मंजूर करते हुए ASI, अजमेर दरगाह समिति और केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस जारी किया है और सुनवाई की तारीख 9 दिसंबर तय की है. राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने शुक्रवार को कहा कि मुगल शासक बाबर और औरंगजेब ने मुगल आक्रमण के दौरान मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवाई थीं. अगर अदालत खुदाई का आदेश देती है तो खुदाई में मिलने वाले अवशेषों के आधार पर फैसला होगा. कोटा में मदन दिलावर से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं कहना, कोर्ट निर्णय करेगा.’’ </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रहार'</strong><br />वहीं, कांग्रेस विधायक रफीक खान ने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के संवैधानिक अधिकार पर प्रहार है. उन्होंने कहा, ‘यह दरगाह 12वीं शताब्दी में बनी थी और इसे 2024 में चुनौती दी जा रही है. यह सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास है और भाईचारे के खिलाफ है. यह धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता पर प्रहार है.'</p>
<p style=”text-align: justify;”>रफीक खान ने मोदी सरकार पर विभाजन और भेदभाव की राजनीति करने का भी आरोप लगाते हुए कहा, ‘युवाओं और आने वाली पीढ़ी को उज्ज्वल भविष्य देने के बजाय सरकार उन्हें पीछे धकेल रही है और गुमराह कर रही है, क्योंकि उनके पास अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करने के लिए कुछ भी नहीं है.'</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इतिहास की किताब पर उठे सवाल</strong><br />अजमेर दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता के हर बिलास सारदा की पुस्तक ‘अजमेर- ऐतिहासिक और वर्णनात्मक’ के दावे पर सवाल उठाया. याचिकाकर्ता गुप्ता ने याचिका में उल्लेख किया है कि एक ब्राह्मण दंपती महादेव मंदिर में पूजा करता था, जहां दरगाह बनाई गई थी. चिश्ती ने कहा कि कई अन्य पुस्तकें हैं जिनमें दरगाह का इतिहास है, लेकिन उनमें ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अजमेर दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख दीवान जैनुल आबेदीन खान ने कुछ पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा कि सूफी संत की कब्र ‘कच्ची’ भूमि पर थी और 150 वर्षों से वहां कोई ‘पक्का’ निर्माण नहीं हुआ था और ऐसी स्थिति में मंदिर का दावा कैसे किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसी याचिकाओं से सामाजिक सौहार्द और भाईचारे को बहुत नुकसान पहुंचने की संभावना है और यह देश के हित के खिलाफ है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>’नेहरू से मोदी तक, हर प्रधानमंत्री ने यहां चढ़ाई चादर'<br />सरवर चिश्ती ने कहा, ‘जवाहर लाल नेहरू के समय से लेकर नरेन्द्र मोदी तक, सालाना उर्स के दौरान ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भारत के प्रधानमंत्री के नाम से चादर आती है. दरगाह के इतिहास पर कई किताबें लिखी गई हैं. वायसराय लॉर्ड कर्जन कहते थे कि एक मकबरा भारत पर राज कर रहा है. यह सभी के लिए श्रद्धा का स्थान है.'</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सांप्रदायिक सौहार्द, विविधता में एकता और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है. हम नहीं चाहते कि देश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’सुनी-सुनाई बातों पर लिखी किताब'</strong><br />इसके अलावा, आबेदीन अली खान ने कहा, “याचिकाकर्ता ने हर बिलास सारदा की 1910 में लिखी किताब का हवाला दिया है. सारदा इतिहासकार नहीं थे और उन्होंने लोगों से जो सुना था उसके अनुसार लिखा था. सूफी संत की कब्र कच्ची जमीन पर थी और पक्का निर्माण 150 साल बाद हुआ. ऐसी स्थिति में कोई कैसे दावा कर सकता है कि वहां मंदिर था? इतिहास की और भी किताबें हैं, जिनमें दरगाह के इतिहास का विवरण है.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा, “पूरा विवाद किताब के शब्दों से है. सबसे पहले तो सारदा इतिहासकार नहीं थे, वे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे. उन्होंने 1910 में जो सुना था, उसके अनुसार लिखा है. किताब में लिखा है- ‘परंपरा कहती है’, ‘ऐसा कहा जाता है’, ‘ऐसा सुना जाता है’ आदि.” उन्होंने कहा कि सूफी संत के वंशज होने के कारण उन्हें पक्ष नहीं बनाया गया. याचिका सस्ती लोकप्रियता के लिए दायर की गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आबेदीन अली खान ने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति अदालत जा सकता है, लेकिन कोई भी फैसला तथ्यों और सबूतों के आधार पर ही लिया जा सकता है. मेरे पास वकीलों का एक पैनल है और वकीलों से सलाह-मशविरा करने के बाद मैं तय करूंगा कि क्या करना है.'</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/rajasthan/ajmer-sharif-dargah-temple-issue-syed-sarwar-chishti-secretary-of-anjuman-syed-zadgan-pc-2833230″>अजमेर दरगाह पर अंजुमन सैय्यद जादगान का बयान, ‘कोर्ट में जिस झरने का जिक्र, वो पानी की बावड़ी'</a></strong></p>