‘संविधान में न्यायपालिका राज्य का तीसरा अंग है। इस तीसरे अंग के सामने सिविल और आपराधिक मुकदमों का अंबार है। इसलिए अदालतों का आधारभूत ढांचा मजबूत करना आवश्यक है, जिसके लिए बजट में जरूरी फंड की व्यवस्था करने पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है।’ इस टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार से नई अदालतों की स्थापना को लेकर जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि प्रदेश में दीवानी और आपराधिक मामलों की जल्द सुनवाई के लिए आवश्यक 9149 अदालतों की स्थापना क्यों नहीं की जा रही है? कोर्ट ने प्रमुख सचिव न्याय और अपर मुख्य सचिव वित्त को दो हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है। यूपी में अदालतों की क्या हालत है, कितने केस पेंडिंग हैं, सरकार क्यों नई अदालतें नहीं बना रही, भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सवाल 1- लखनऊ खंडपीठ का सरकार से अदालतों की स्थापना को लेकर सवाल पूछे जाने का पूरा मामला क्या है? जवाब- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस राजीव सिंह ने स्वतः संज्ञान लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने सरकार से अदालतों की स्थापना को लेकर सवाल पूछा। पीठ ने पूछा कि प्रदेश में सिविल और आपराधिक मुकदमों की तेजी से सुनवाई के लिए आवश्यक 9 हजार 149 अदालतों की स्थापना क्यों नहीं की जा रही। कोर्ट ने पूछा कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 24 अप्रैल 2024 को लिए गए निर्णय के क्रम में पहले चरण में 2 हजार 693 अदालतों की स्थापना के लिए क्या कोशिश की गई? कोर्ट ने कहा कि इसकी क्या स्थिति है इस संबंध में दो हफ्ते के अंदर प्रमुख सचिव न्याय या अपर मुख्य सचिव वित्त हलफनामा दायर कर जवाब दें। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 12 मई की तारीख तय की। सवाल 2- राज्य की अदालतों में कितने मामले पेंडिंग हैं? जवाब- इस साल की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे ज्यादा 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से ज्यादा समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, आधे से अधिक जजों की कमी और 78% की कम केस निपटाने की दर है। वहीं, जिला अदालतों में 1.2 करोड़ लंबित मामलों में से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। 23% मामले 10 से 20 साल से लंबित हैं। 20 साल से ऊपर के 40.1% मामले लंबित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति जज लंबित मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। सवाल 3- राज्य में आबादी की तुलना में जजों की संख्या कितनी है? जवाब- इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 160 जजों के पद स्वीकृत हैं। फिलहाल यहां 79 जज काम कर रहे हैं। हाई कोर्ट में 11 लाख मामले लंबित हैं। दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की निचली अदालतों यानी जिला स्तर पर करीब 5 हजार से अधिक जिला जजों के पद खाली थे। इसमें बताया गया कि देश भर में निचली अदालतों में जजों के 27 हजार से ज्यादा पद स्वीकृत थे, जिसमें से 20 हजार 500 जज ही कार्यरत थे। यूपी के साथ ही तेलंगाना, पटना, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली के हाईकोर्ट में भी जजों के 50 फीसदी पद खाली हैं। सवाल 4- यूपी सरकार की नई अदालतें बनाने को लेकर क्या योजना है? जवाब- योगी सरकार ने राज्य में न्यायिक व्यवस्था सुधारने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नई अदालतों के बजट का ऐलान किया था। इन अदालतों को बनाने का मकसद है ये है कि दीवानी और फौजदारी मामलों की जल्द से जल्द नजदीकी अदालत में सुनवाई हो सके। पूरे प्रदेश में न्यायिक ढांचे में सुधार के लिए सरकार ने बजट में 800 करोड़ रुपए का ऐलान किया था। हालांकि, हर साल बजट आवंटन के बाद भी उसका पूरी तरह उपयोग नहीं हो पा रहा है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य ने अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 93% योगदान दिया। लेकिन इसका केवल 60% ही इस्तेमाल कर सका। नाल्सा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 19% रह गया। राज्य के 97,000 गांवों के लिए केवल 120 कानूनी सेवा क्लिनिक थे। यानी औसतन एक क्लिनिक 815 गांवों को सेवा देता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की जरूरत है। सवाल 5- न्याय और कानून व्यवस्था को लेकर यूपी की क्या स्थिति है? जवाब- इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कोर्ट, पुलिस और जेलों के माध्यम से भारत में न्यायिक और कानून व्यवस्था का हाल बताया गया है। कोर्ट: सबसे ज्यादा केस 3 साल से भी पुराने 1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे अधिक 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। जिला अदालतों में, 1.2 करोड़ मामले लंबित हैं। इसमें से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। पुलिस: खाली पद पहले से कम हुए जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच पुलिस में रिक्तियां काफी कम हुई हैं। कॉन्स्टेबल की रिक्तियां 53% से घटकर 28% और अधिकारियों की रिक्तियां 63% से घटकर 42% हो गई हैं। फोरेंसिक विभाग में, हर दो में से एक वैज्ञानिक कर्मचारी की कमी है और प्रशासनिक कर्मचारियों में 19% की कमी है। 2010 से जनवरी 2023 के बीच राज्य, पुलिस में जाति कोटा पूरा नहीं कर पा रहा है। इस दौरान अनुसूचित जाति अधिकारियों के 60% से अधिक पद खाली रहे हैं। अनुसूचित जनजाति अधिकारियों के खाली पद 88% तक पहुंच गए, जो 2023 में राज्यों में सबसे अधिक थे। अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC में कुछ सुधार हुआ है, जहां रिक्तियां 2010 में 59% से घटकर जनवरी 2023 में 23% हो गईं। जेल: क्षमता से 80% अधिक भरीं उत्तर प्रदेश की जेलें अपनी क्षमता से 80% अधिक भरी हुई हैं और कुल कर्मचारियों की कमी 28% है। जेल कर्मचारियों में सबसे अधिक कमी चिकित्सा कर्मचारियों की है। प्रति चिकित्सा अधिकारी 1000 से अधिक कैदी थे। जेल भरी होने की एक बड़ी वजह अदालतों और जजों की कमी के कारण सुनवाई में देरी है। गिरफ्तार विचाराधीन कैदी भी इन जेलों में सालों पड़े रहते हैं। —————— ये खबर भी पढ़ें… अखिलेश बोले- कानपुर में शुभम के घर नहीं जाऊंगा:BJP वहां कुछ भी करा सकती है; राजा भैया से मेरा कोई परिचय नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को कहा- कानपुर में शुभम द्विवेदी के घर हम नहीं जा रहे। भाजपा वहां कुछ भी करा सकती है। इसलिए सावधान रहना चाहिए। जब मैं मुख्यमंत्री था, तब एक फौजी के यहां गया था। उस कमरे में RSS के लोग बैठे हुए थे। उन्होंने क्या करवाया था। आप पता करवा लीजिएगा। शुभम को पहलगाम में आतंकियों ने पत्नी ऐशन्या के सामने गोली मार दी थी। गुरुवार सुबह शुभम का अंतिम संस्कार कानपुर में किया गया। सीएम योगी शुभम के घर पहुंचे थे। वहां पत्नी ऐशन्या से योगी से रोते हुए कहा कि कड़ा बदला चाहिए। पढ़ें पूरी खबर ‘संविधान में न्यायपालिका राज्य का तीसरा अंग है। इस तीसरे अंग के सामने सिविल और आपराधिक मुकदमों का अंबार है। इसलिए अदालतों का आधारभूत ढांचा मजबूत करना आवश्यक है, जिसके लिए बजट में जरूरी फंड की व्यवस्था करने पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है।’ इस टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार से नई अदालतों की स्थापना को लेकर जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि प्रदेश में दीवानी और आपराधिक मामलों की जल्द सुनवाई के लिए आवश्यक 9149 अदालतों की स्थापना क्यों नहीं की जा रही है? कोर्ट ने प्रमुख सचिव न्याय और अपर मुख्य सचिव वित्त को दो हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है। यूपी में अदालतों की क्या हालत है, कितने केस पेंडिंग हैं, सरकार क्यों नई अदालतें नहीं बना रही, भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सवाल 1- लखनऊ खंडपीठ का सरकार से अदालतों की स्थापना को लेकर सवाल पूछे जाने का पूरा मामला क्या है? जवाब- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस राजीव सिंह ने स्वतः संज्ञान लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने सरकार से अदालतों की स्थापना को लेकर सवाल पूछा। पीठ ने पूछा कि प्रदेश में सिविल और आपराधिक मुकदमों की तेजी से सुनवाई के लिए आवश्यक 9 हजार 149 अदालतों की स्थापना क्यों नहीं की जा रही। कोर्ट ने पूछा कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 24 अप्रैल 2024 को लिए गए निर्णय के क्रम में पहले चरण में 2 हजार 693 अदालतों की स्थापना के लिए क्या कोशिश की गई? कोर्ट ने कहा कि इसकी क्या स्थिति है इस संबंध में दो हफ्ते के अंदर प्रमुख सचिव न्याय या अपर मुख्य सचिव वित्त हलफनामा दायर कर जवाब दें। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 12 मई की तारीख तय की। सवाल 2- राज्य की अदालतों में कितने मामले पेंडिंग हैं? जवाब- इस साल की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे ज्यादा 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से ज्यादा समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, आधे से अधिक जजों की कमी और 78% की कम केस निपटाने की दर है। वहीं, जिला अदालतों में 1.2 करोड़ लंबित मामलों में से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। 23% मामले 10 से 20 साल से लंबित हैं। 20 साल से ऊपर के 40.1% मामले लंबित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति जज लंबित मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। सवाल 3- राज्य में आबादी की तुलना में जजों की संख्या कितनी है? जवाब- इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 160 जजों के पद स्वीकृत हैं। फिलहाल यहां 79 जज काम कर रहे हैं। हाई कोर्ट में 11 लाख मामले लंबित हैं। दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की निचली अदालतों यानी जिला स्तर पर करीब 5 हजार से अधिक जिला जजों के पद खाली थे। इसमें बताया गया कि देश भर में निचली अदालतों में जजों के 27 हजार से ज्यादा पद स्वीकृत थे, जिसमें से 20 हजार 500 जज ही कार्यरत थे। यूपी के साथ ही तेलंगाना, पटना, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली के हाईकोर्ट में भी जजों के 50 फीसदी पद खाली हैं। सवाल 4- यूपी सरकार की नई अदालतें बनाने को लेकर क्या योजना है? जवाब- योगी सरकार ने राज्य में न्यायिक व्यवस्था सुधारने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नई अदालतों के बजट का ऐलान किया था। इन अदालतों को बनाने का मकसद है ये है कि दीवानी और फौजदारी मामलों की जल्द से जल्द नजदीकी अदालत में सुनवाई हो सके। पूरे प्रदेश में न्यायिक ढांचे में सुधार के लिए सरकार ने बजट में 800 करोड़ रुपए का ऐलान किया था। हालांकि, हर साल बजट आवंटन के बाद भी उसका पूरी तरह उपयोग नहीं हो पा रहा है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य ने अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 93% योगदान दिया। लेकिन इसका केवल 60% ही इस्तेमाल कर सका। नाल्सा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 19% रह गया। राज्य के 97,000 गांवों के लिए केवल 120 कानूनी सेवा क्लिनिक थे। यानी औसतन एक क्लिनिक 815 गांवों को सेवा देता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की जरूरत है। सवाल 5- न्याय और कानून व्यवस्था को लेकर यूपी की क्या स्थिति है? जवाब- इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कोर्ट, पुलिस और जेलों के माध्यम से भारत में न्यायिक और कानून व्यवस्था का हाल बताया गया है। कोर्ट: सबसे ज्यादा केस 3 साल से भी पुराने 1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे अधिक 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। जिला अदालतों में, 1.2 करोड़ मामले लंबित हैं। इसमें से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। पुलिस: खाली पद पहले से कम हुए जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच पुलिस में रिक्तियां काफी कम हुई हैं। कॉन्स्टेबल की रिक्तियां 53% से घटकर 28% और अधिकारियों की रिक्तियां 63% से घटकर 42% हो गई हैं। फोरेंसिक विभाग में, हर दो में से एक वैज्ञानिक कर्मचारी की कमी है और प्रशासनिक कर्मचारियों में 19% की कमी है। 2010 से जनवरी 2023 के बीच राज्य, पुलिस में जाति कोटा पूरा नहीं कर पा रहा है। इस दौरान अनुसूचित जाति अधिकारियों के 60% से अधिक पद खाली रहे हैं। अनुसूचित जनजाति अधिकारियों के खाली पद 88% तक पहुंच गए, जो 2023 में राज्यों में सबसे अधिक थे। अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC में कुछ सुधार हुआ है, जहां रिक्तियां 2010 में 59% से घटकर जनवरी 2023 में 23% हो गईं। जेल: क्षमता से 80% अधिक भरीं उत्तर प्रदेश की जेलें अपनी क्षमता से 80% अधिक भरी हुई हैं और कुल कर्मचारियों की कमी 28% है। जेल कर्मचारियों में सबसे अधिक कमी चिकित्सा कर्मचारियों की है। प्रति चिकित्सा अधिकारी 1000 से अधिक कैदी थे। जेल भरी होने की एक बड़ी वजह अदालतों और जजों की कमी के कारण सुनवाई में देरी है। गिरफ्तार विचाराधीन कैदी भी इन जेलों में सालों पड़े रहते हैं। —————— ये खबर भी पढ़ें… अखिलेश बोले- कानपुर में शुभम के घर नहीं जाऊंगा:BJP वहां कुछ भी करा सकती है; राजा भैया से मेरा कोई परिचय नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को कहा- कानपुर में शुभम द्विवेदी के घर हम नहीं जा रहे। भाजपा वहां कुछ भी करा सकती है। इसलिए सावधान रहना चाहिए। जब मैं मुख्यमंत्री था, तब एक फौजी के यहां गया था। उस कमरे में RSS के लोग बैठे हुए थे। उन्होंने क्या करवाया था। आप पता करवा लीजिएगा। शुभम को पहलगाम में आतंकियों ने पत्नी ऐशन्या के सामने गोली मार दी थी। गुरुवार सुबह शुभम का अंतिम संस्कार कानपुर में किया गया। सीएम योगी शुभम के घर पहुंचे थे। वहां पत्नी ऐशन्या से योगी से रोते हुए कहा कि कड़ा बदला चाहिए। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
9 हजार कोर्ट बनाने के लिए क्या कर रही सरकार?:हाईकोर्ट में 11 लाख, जिला अदालतों में 1.2 करोड़ केस पेंडिंग, धीमी सुनवाई से भर रहीं यूपी की जेल
