चार साल, सात शहर, एक चेहरा, पुलिस के शिकंजे में मौत का सौदागर

चार साल, सात शहर, एक चेहरा, पुलिस के शिकंजे में मौत का सौदागर

<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Crime News:</strong> वह रात की चुप्पी में चलता था, कभी सुरक्षा गार्ड की वर्दी में, कभी निर्माण स्थल का चौकीदार बन कर. मोबाइल नंबर बदलता, नाम बदलता, शहर बदलता लेकिन बदल नहीं सका अपना अतीत. चार साल पहले जिस जेल की सलाखों से उसे पैरोल पर रिहा किया गया था, वहां लौटना उसकी नियति थी. अब, दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे उस नियति से मिला ही दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>खून से सना एक षड्यंत्र</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दलीप त्रिपाठी, एक सामान्य निर्माण मजदूर, जिसकी आंखों में बस सपना था जल्दी अमीर बनने का. लेकिन रास्ता उसने चुना था खून और लूट का. अपने दो गांव के साथियों के साथ मिलकर एक व्यवसायी विनोद गुप्ता का अपहरण किया. उन्हें नोएडा बुलाया गया जहां संपत्ति दिखाने के बहाने ले जाकर उनकी गला घोंटकर हत्या कर दी गई. सोने की चेन, नकदी और कार भी लूट ली गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सलाखों के पीछे की जिंदगी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पुलिस की तफ्तीश ने उन्हें जल्द ही दबोच लिया. कोर्ट ने दलीप को उम्रकैद की सजा सुनाई. सब कुछ कानून के अनुसार चल रहा था, जब तक 2021 नहीं आया. कोविड-19 के दौरान दलीप को मिला 90 दिन का इमरजेंसी पैरोल. लेकिन वो लौटकर नहीं आया. चुपचाप गायब हो गया. दिल्ली पुलिस के लिए वो &lsquo;पैरोल जम्पर&rsquo; बन गया यानी कानूनी रूप से भगोड़ा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2021 से भागमभाग, साज़िश और गिरफ्तारी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दलीप ने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया. सोशल मीडिया से गायब हो गया. लेकिन क्राइम ब्रांच की नज़रें हर उस साए पर थीं, जहां वो छिप सकता था. मोबाइल लोकेशन ट्रैकिंग, कॉल रिकॉर्ड विश्लेषण, सोशल मीडिया स्कैनिंग हर माध्यम से उसकी परछाई को पकड़ने की कोशिश जारी रही. आख़िरकार, नौबस्ता, कानपुर की एक फैक्ट्री में बतौर सुरक्षा गार्ड काम कर रहा दलीप पकड़ में आया. जब टीम ने उसे घेरा, वो पहचानने से भी इंकार करने लगा. लेकिन उसके फिंगरप्रिंट ने सच बोल दिया.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Crime News:</strong> वह रात की चुप्पी में चलता था, कभी सुरक्षा गार्ड की वर्दी में, कभी निर्माण स्थल का चौकीदार बन कर. मोबाइल नंबर बदलता, नाम बदलता, शहर बदलता लेकिन बदल नहीं सका अपना अतीत. चार साल पहले जिस जेल की सलाखों से उसे पैरोल पर रिहा किया गया था, वहां लौटना उसकी नियति थी. अब, दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे उस नियति से मिला ही दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>खून से सना एक षड्यंत्र</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दलीप त्रिपाठी, एक सामान्य निर्माण मजदूर, जिसकी आंखों में बस सपना था जल्दी अमीर बनने का. लेकिन रास्ता उसने चुना था खून और लूट का. अपने दो गांव के साथियों के साथ मिलकर एक व्यवसायी विनोद गुप्ता का अपहरण किया. उन्हें नोएडा बुलाया गया जहां संपत्ति दिखाने के बहाने ले जाकर उनकी गला घोंटकर हत्या कर दी गई. सोने की चेन, नकदी और कार भी लूट ली गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सलाखों के पीछे की जिंदगी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पुलिस की तफ्तीश ने उन्हें जल्द ही दबोच लिया. कोर्ट ने दलीप को उम्रकैद की सजा सुनाई. सब कुछ कानून के अनुसार चल रहा था, जब तक 2021 नहीं आया. कोविड-19 के दौरान दलीप को मिला 90 दिन का इमरजेंसी पैरोल. लेकिन वो लौटकर नहीं आया. चुपचाप गायब हो गया. दिल्ली पुलिस के लिए वो &lsquo;पैरोल जम्पर&rsquo; बन गया यानी कानूनी रूप से भगोड़ा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2021 से भागमभाग, साज़िश और गिरफ्तारी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दलीप ने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया. सोशल मीडिया से गायब हो गया. लेकिन क्राइम ब्रांच की नज़रें हर उस साए पर थीं, जहां वो छिप सकता था. मोबाइल लोकेशन ट्रैकिंग, कॉल रिकॉर्ड विश्लेषण, सोशल मीडिया स्कैनिंग हर माध्यम से उसकी परछाई को पकड़ने की कोशिश जारी रही. आख़िरकार, नौबस्ता, कानपुर की एक फैक्ट्री में बतौर सुरक्षा गार्ड काम कर रहा दलीप पकड़ में आया. जब टीम ने उसे घेरा, वो पहचानने से भी इंकार करने लगा. लेकिन उसके फिंगरप्रिंट ने सच बोल दिया.</p>  दिल्ली NCR Uttarakhand Ka Mausam: उत्तराखंड में आने वाले दिनों में कैसा रहेगा मौसम? जानें मौसम विभाग की ताजा अपडेट