आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने नगीना में नया इतिहास लिख दिया। उन्होंने यहां भाजपा के ओम कुमार को 1 लाख 51 हजार 473 वोटों से हरा दिया। पिछले 10 सालों में यूपी के अंदर यह पहला मौका है, जब सपा-बसपा और भाजपा के अलावा किसी पार्टी से कोई सांसद बना। चंद्रशेखर को दलितों ने एकतरफा वोट दिया। यहां बसपा प्रत्याशी सुरेंद्र पाल सिंह को सिर्फ 13 हजार 272 वोट मिले। 2019 में यहां बसपा ने जीत दर्ज की थी। आखिर चंद्रशेखर की रणनीति क्या थी? इंडी गठबंधन से टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कैसे किया? एकमात्र वर्ग के हितैषी होने का टैग कैसे हटाया? आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं। सबसे पहले चंद्रशेखर से जुड़ा यह ग्राफिक देखिए… अखिलेश ने चंद्रशेखर के बजाय मनोज कुमार को टिकट दे दिया
मार्च के दूसरे हफ्ते में अखिलेश यादव ने नगीना लोकसभा पर सपा प्रत्याशी घोषित किया। उम्मीद थी, चंद्रशेखर को टिकट मिलेगा लेकिन पूर्व जज मनोज कुमार को प्रत्याशी बना दिया गया। मीडिया में अखिलेश से चंद्रशेखर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- गठबंधन को चंद्रशेखर से कोई फायदा नजर नहीं आ रहा। चंद्रशेखर ने दावा किया, उनसे अखिलेश यादव ने डेढ़ साल पहले पूछा था कि क्या करोगे? तब हमने नगीना से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। चंद्रशेखर ने नगीना में डेढ़ साल से तैयारी की थी। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और तय किया कि अपनी ही पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा जाएगा। उन्होंने ऐलान कर दिया और कार्यकर्ताओं के बीच प्रचार शुरू कर दिया। 50% दलित-मुस्लिम वोटों के जरिए कामयाबी मिली
पश्चिमी यूपी के रुहेलखंड में आने वाली नगीना सीट एससी आरक्षित है। यहां 22% दलित और 28% मुस्लिम वोटर हैं। जिस प्रत्याशी को इनका समर्थन मिल गया, उसकी जीत तय है। 2019 में यहां बसपा के गिरीश जाटव को 56.3% वोट मिले थे। चंद्रशेखर भी इन्हीं वोटरों के बीच पहुंचे और खुद को नगीना का बेटा और भाई बताया। दूसरी तरफ, सपा-बसपा के प्रत्याशियों ने चंद्रशेखर पर व्यक्तिगत हमले किए। आकाश आनंद ने चंद्रशेखर को बेघर और बेचारा बता दिया
आकाश आनंद नगीना में बसपा प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह के पक्ष में रैली करने पहुंचे थे। उन्होंने चंद्रशेखर का नाम लिए बगैर कहा था- इंडी गठबंधन से टिकट चाहने वाला एक बेचारा बेघर घूम रहा है। ये बेचारा घबराता है कि अकेले लड़ेंगे तो जमानत जब्त हो जाएगी। यह छुटभैया नेता है। युवाओं को गुमराह करता है। धरना बुलाकर खुद चला जाता है और युवाओं पर केस लग जाता है। आकाश का यह दांव उल्टा पड़ गया। नगीना में बसपा के वोटरों ने इस युवा नेतृत्व को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। दूसरी तरफ, चंद्रशेखर मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहे। CAA प्रदर्शन के दौरान उनके लगातार आंदोलन में शामिल होने से फायदा पहुंचा। मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा वोट कर दिया। सपा को यहां सिर्फ 1 लाख 2 हजार 374 वोट मिले। पूरे चुनाव में विवादित भाषण से दूर रहे
चुनाव प्रचार के दौरान एक पत्रकार ने चंद्रशेखर से पूछा, आप दलित वर्ग के बीच ही सक्रिय रहे, क्या इस चुनाव में सवर्ण और ओबीसी का वोट नहीं चाहिए? चंद्रशेखर ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया। वह चुनाव प्रचार के दौरान ओबीसी और सवर्ण मतदाताओं के बीच भी गए। यही कारण है, इस वर्ग के लोगों ने भी चंद्रशेखर को वोट दिया। 2022 में जमानत जब्त हो गई थी
चंद्रशेखर ने अपना पहला चुनाव 2022 में गोरखपुर विधानसभा सीट पर सीएम योगी के खिलाफ लड़ा। उसमें चंद्रशेखर को महज 7 हजार 640 वोट मिले थे। यह कुल पड़े वोट का महज 3.6% था। उस चुनाव से पहले भी उन्हें सपा की तरफ से गठबंधन की उम्मीद थी। लेकिन, आखिरी वक्त में अखिलेश यादव ने गठबंधन से इनकार कर दिया था। चंद्रशेखर खुद गोरखपुर से उतरे थे। इसके अलावा प्रदेश की 111 और सीटों से प्रत्याशी उतारा था, लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली। सबकी जमानत जब्त हो गई थी। 111 प्रत्याशियों को कुल 1 लाख 19 हजार 564 वोट मिले थे। यह कुल पड़े वोटों का महज 0.1% था। आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने नगीना में नया इतिहास लिख दिया। उन्होंने यहां भाजपा के ओम कुमार को 1 लाख 51 हजार 473 वोटों से हरा दिया। पिछले 10 सालों में यूपी के अंदर यह पहला मौका है, जब सपा-बसपा और भाजपा के अलावा किसी पार्टी से कोई सांसद बना। चंद्रशेखर को दलितों ने एकतरफा वोट दिया। यहां बसपा प्रत्याशी सुरेंद्र पाल सिंह को सिर्फ 13 हजार 272 वोट मिले। 2019 में यहां बसपा ने जीत दर्ज की थी। आखिर चंद्रशेखर की रणनीति क्या थी? इंडी गठबंधन से टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कैसे किया? एकमात्र वर्ग के हितैषी होने का टैग कैसे हटाया? आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं। सबसे पहले चंद्रशेखर से जुड़ा यह ग्राफिक देखिए… अखिलेश ने चंद्रशेखर के बजाय मनोज कुमार को टिकट दे दिया
मार्च के दूसरे हफ्ते में अखिलेश यादव ने नगीना लोकसभा पर सपा प्रत्याशी घोषित किया। उम्मीद थी, चंद्रशेखर को टिकट मिलेगा लेकिन पूर्व जज मनोज कुमार को प्रत्याशी बना दिया गया। मीडिया में अखिलेश से चंद्रशेखर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- गठबंधन को चंद्रशेखर से कोई फायदा नजर नहीं आ रहा। चंद्रशेखर ने दावा किया, उनसे अखिलेश यादव ने डेढ़ साल पहले पूछा था कि क्या करोगे? तब हमने नगीना से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। चंद्रशेखर ने नगीना में डेढ़ साल से तैयारी की थी। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और तय किया कि अपनी ही पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा जाएगा। उन्होंने ऐलान कर दिया और कार्यकर्ताओं के बीच प्रचार शुरू कर दिया। 50% दलित-मुस्लिम वोटों के जरिए कामयाबी मिली
पश्चिमी यूपी के रुहेलखंड में आने वाली नगीना सीट एससी आरक्षित है। यहां 22% दलित और 28% मुस्लिम वोटर हैं। जिस प्रत्याशी को इनका समर्थन मिल गया, उसकी जीत तय है। 2019 में यहां बसपा के गिरीश जाटव को 56.3% वोट मिले थे। चंद्रशेखर भी इन्हीं वोटरों के बीच पहुंचे और खुद को नगीना का बेटा और भाई बताया। दूसरी तरफ, सपा-बसपा के प्रत्याशियों ने चंद्रशेखर पर व्यक्तिगत हमले किए। आकाश आनंद ने चंद्रशेखर को बेघर और बेचारा बता दिया
आकाश आनंद नगीना में बसपा प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह के पक्ष में रैली करने पहुंचे थे। उन्होंने चंद्रशेखर का नाम लिए बगैर कहा था- इंडी गठबंधन से टिकट चाहने वाला एक बेचारा बेघर घूम रहा है। ये बेचारा घबराता है कि अकेले लड़ेंगे तो जमानत जब्त हो जाएगी। यह छुटभैया नेता है। युवाओं को गुमराह करता है। धरना बुलाकर खुद चला जाता है और युवाओं पर केस लग जाता है। आकाश का यह दांव उल्टा पड़ गया। नगीना में बसपा के वोटरों ने इस युवा नेतृत्व को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। दूसरी तरफ, चंद्रशेखर मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहे। CAA प्रदर्शन के दौरान उनके लगातार आंदोलन में शामिल होने से फायदा पहुंचा। मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा वोट कर दिया। सपा को यहां सिर्फ 1 लाख 2 हजार 374 वोट मिले। पूरे चुनाव में विवादित भाषण से दूर रहे
चुनाव प्रचार के दौरान एक पत्रकार ने चंद्रशेखर से पूछा, आप दलित वर्ग के बीच ही सक्रिय रहे, क्या इस चुनाव में सवर्ण और ओबीसी का वोट नहीं चाहिए? चंद्रशेखर ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया। वह चुनाव प्रचार के दौरान ओबीसी और सवर्ण मतदाताओं के बीच भी गए। यही कारण है, इस वर्ग के लोगों ने भी चंद्रशेखर को वोट दिया। 2022 में जमानत जब्त हो गई थी
चंद्रशेखर ने अपना पहला चुनाव 2022 में गोरखपुर विधानसभा सीट पर सीएम योगी के खिलाफ लड़ा। उसमें चंद्रशेखर को महज 7 हजार 640 वोट मिले थे। यह कुल पड़े वोट का महज 3.6% था। उस चुनाव से पहले भी उन्हें सपा की तरफ से गठबंधन की उम्मीद थी। लेकिन, आखिरी वक्त में अखिलेश यादव ने गठबंधन से इनकार कर दिया था। चंद्रशेखर खुद गोरखपुर से उतरे थे। इसके अलावा प्रदेश की 111 और सीटों से प्रत्याशी उतारा था, लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली। सबकी जमानत जब्त हो गई थी। 111 प्रत्याशियों को कुल 1 लाख 19 हजार 564 वोट मिले थे। यह कुल पड़े वोटों का महज 0.1% था। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर