हरियाणा के भिवानी गांव हेतमपुरा में एक व्यक्ति की आग लगाकर हत्या करने के मामले में मंगलवार शाम को भिवानी कोर्ट द्वारा कुख्यात इनामी बदमाश विनोद मिताथल को उम्र कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोषी को 13,000 रुपए जुर्माने की भी सजा सुनाई है। भिवानी के सदर थाना में दर्ज मामले के अनुसार वर्ष 2016 में राजू नामक व्यक्ति ने एक शिकायत दर्ज करवाई थी। जिसमें शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया कि 7 मई 2016 सुबह करीब 6:00 उसे गांव हेतमपुरा व लहलाना के बीच सड़क के पास खेत में एक आदमी की जली हुई अवस्था में लाश पड़ी हुई दिखाई दी। आरोपी द्वारा व्यक्ति की हत्या कर लाश को खुर्द-बुर्द करने की नीयत से आग लगाकर जलाया गया था। पुलिस द्वारा छानबीन करने पर मृतक की पहचान गांव पुर निवासी नवीन के रूप में हुई थी। मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनीष कुमार की भिवानी कोर्ट ने गांव मिताथल निवासी विनोद को दोषी करार देते हुए धारा 302 के तहत उम्र कैद की सजा व 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। तलाश को खुर्द-बुर्द करने पर धारा 201 के तहत 05 वर्ष की सजा व तीन हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना न भरने पर दोषी को अतिरिक्त कारावास की सजा काटनी होगी। दर्ज है 75 मामले हरियाणा- राजस्थान में कुख्यात बदमाश विनोद पर दर्ज है 75 मामले आरोपी विनोद मिताथल पर संगीन धाराओं के तहत जिला भिवानी, सोनीपत,चरखी दादरी, हिसार, महेंद्रगढ़,रेवाड़ी, झज्जर,रोहतक नारनौल, जींद व राजस्थान में कुल 75 मामले दर्ज हैं। हरियाणा के भिवानी गांव हेतमपुरा में एक व्यक्ति की आग लगाकर हत्या करने के मामले में मंगलवार शाम को भिवानी कोर्ट द्वारा कुख्यात इनामी बदमाश विनोद मिताथल को उम्र कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोषी को 13,000 रुपए जुर्माने की भी सजा सुनाई है। भिवानी के सदर थाना में दर्ज मामले के अनुसार वर्ष 2016 में राजू नामक व्यक्ति ने एक शिकायत दर्ज करवाई थी। जिसमें शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया कि 7 मई 2016 सुबह करीब 6:00 उसे गांव हेतमपुरा व लहलाना के बीच सड़क के पास खेत में एक आदमी की जली हुई अवस्था में लाश पड़ी हुई दिखाई दी। आरोपी द्वारा व्यक्ति की हत्या कर लाश को खुर्द-बुर्द करने की नीयत से आग लगाकर जलाया गया था। पुलिस द्वारा छानबीन करने पर मृतक की पहचान गांव पुर निवासी नवीन के रूप में हुई थी। मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनीष कुमार की भिवानी कोर्ट ने गांव मिताथल निवासी विनोद को दोषी करार देते हुए धारा 302 के तहत उम्र कैद की सजा व 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। तलाश को खुर्द-बुर्द करने पर धारा 201 के तहत 05 वर्ष की सजा व तीन हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना न भरने पर दोषी को अतिरिक्त कारावास की सजा काटनी होगी। दर्ज है 75 मामले हरियाणा- राजस्थान में कुख्यात बदमाश विनोद पर दर्ज है 75 मामले आरोपी विनोद मिताथल पर संगीन धाराओं के तहत जिला भिवानी, सोनीपत,चरखी दादरी, हिसार, महेंद्रगढ़,रेवाड़ी, झज्जर,रोहतक नारनौल, जींद व राजस्थान में कुल 75 मामले दर्ज हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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भिवानी में 300 करोड़ घोटाले की CBI जांच शुरू:नगर परिषद अधिकारियों से लिया रिकार्ड, शौचालयों की जमीन पर बनी दुकानें हरियाणा के भिवानी जिला में नगर परिषद में वर्ष 2022 में हुए करीब 300 करोड़ के जमीनी व करोड़ों रुपए के चेक घोटाले की मंगलवार को सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है। मंगलवार शाम 4 बजे सीबीआई टीम रेस्ट हाउस पहुंची। नगर परिषद अधिकारियों से रिकार्ड लेकर जांच शुरू की। इसके बाद CBI टीम ने पतराम गेट व हनुमान गेट पर पहुंचकर शौचालय की जमीन पर बनाई गई दुकानों की जांच की। अभी कुछ बोलने से किया इंकार वर्ष 2022 में करोड़ों रुपए शौचालयों व तालाबों की जमीन को तत्कालीन नगर परिषद चेयरमैन रणसिंह यादव, वाइस चेयरमैन मामचंद व नप अधिकारियों द्वारा मिलीभगत कर बेचे जाने का मामला सामने आया था। कोरोना काल में करीब 40 करोड़ रुपए चेक घोटाला किया था। तालाबों के सौंदर्यीकरण के नाम पर भी घोटाला हुआ। आज भिवानी पहुंची सीबीआई टीम ने जांच से जुड़ा रिकॉर्ड कब्जे में लिया। दैनिक भास्कर रिपोर्टर ने सीबीआई टीम से बात करना चाहा, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। चेयरमैन व वाइस चेयरमैन सहित 8 गए जेल भिवानी बचाओ संगठन के नेता सुशील वर्मा के नेतृत्व में लंबा आंदोलन चला। जिसके बाद तत्कालीन चेयरमैन रणसिंह, वाइफ चेयरमैन मामचंद, नप एकाउंट सुरेश सहित 8 अधिकारी गिरफ्तार हुए थे। इस मामले में नप के तत्कालीन EO संजय यादव भी अरेस्ट हुए थे। संजय यादव कांग्रेस भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा प्रत्याशी रावदान सिंह के भतीजे बताए जाते हैं। भिवानी में चुनावी कमान संभाल रहे थे। इन शौचालयों की जमीन का किया था घोटाला – सर्कुलर रोड शौचालय की जमीन। – पतराम गेट शौचालय की जमीन पर बनाई दुकान। – बावड़ी गेट शौचालय। – सामान्य अस्पताल के सामने शौचालय की जमीन। – हनुमान गेट शौचालय के सामने जमीन। – लिबर्टी सिनेमा के साथ लगती गली की जमीन। करोड़ों के एंडर गारमेंट की दिखाई खरीद चौंकने वाली बात यह है नप द्वारा कोरोना काल में करोड़ों रुपए के महिलाओं के अंडर गारमेंट खरीदने के भी फर्जी बिलों को पास कर अपने चहेतों की फर्मों को भुगतान कर डाला था।
बसों की समस्या से जूझ रहे छात्रों ने लगाया जाम, रोडवेज विभाग के खिलाफ जताया रोष
बसों की समस्या से जूझ रहे छात्रों ने लगाया जाम, रोडवेज विभाग के खिलाफ जताया रोष भास्कर न्यूज | जठलाना यमुनानगर-करनाल सड़क पर चल रही हरियाणा रोडवेज की बसें अपने निर्धारित समय पर क्षेत्र के बस स्टॉप पर नहीं पहुंच पा रही हैं। वहीं इस रूट पर यात्रियों की संख्या अधिक और बसों की संख्या कम है, जिस कारण बसों में काफी भीड़ रहती है। मंगलवार को बस की समस्या से जूझ रहे छात्रों ने क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर गांव नागल बस स्टैंड के पास सड़क पर जाम लगा विभाग के खिलाफ नारेबाजी की। जाम की सूचना मिलते ही पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और रोष-प्रदर्शन कर रहे छात्रों को समस्या का समाधान कराने का भरोसा देकर वहां से हटाया। छात्रा निशा, संजना, शिवानी, ईशा, मनीषा, वंशिका, साहिब, तनु, आसमा, पायल, नुसरत, संगीता, भावना, काजल, मोनिका, नेहा, वर्षा, मनीषा, साहिब व अंजलि ने कहा कि वह पढ़ाई के लिए प्रतिदिन रोडवेज बस से यमुनानगर जाती हैं। लेकिन इस रूट पर निर्धारित समय पर बस नहीं पहुंचती। जिस कारण वह अपने स्कूल-कॉलेज जाने में लेट होती हैं। वहीं छुट्टी के समय भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है। जो बसें इस रूट पर चल रहीं हैं, उनमें भीड़ काफी अधिक रहती है। उन्हें बस में चढ़ने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मामले को लेकर वह कई बार विभाग के अधिकारियों को शिकायत दे चुके हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा। अधिकारी समस्या का समाधान करने की बजाए उन्हें आश्वासन देकर टरका रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस रूट पर दो बसें और लगाई जाएं जिनका समय सुबह आठ बजे और यमुनानगर से आने का समय दोपहर दो बजे का होना चाहिए, ताकि उन्हें स्कूल-कॉलेज आने-जाने में परेशानी न हो। उन्होंने विभाग के अधिकारियों व प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द ही समस्या का समाधान नहीं हुआ तो फिर से सड़क पर जाम लगाया जाएगा। मौके पर धर्मेंद्र, अमन नागल, सतीश पंडित, दानम सिंह, कर्मचंद, उन्हेड़ी व शैंटी मौजूद रहे।
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राव बीरेंद्र अंग्रेजों की फौज में कैप्टन थे:रातों-रात 12 विधायक तोड़कर CM बने; देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर दोस्ती की साल 1967, अक्टूबर का महीना, देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़कर उत्तर-पूर्व बंबई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह उनके चुनाव प्रचार के लिए बंबई पहुंचे थे। इसी बीच राव के पास खबर आई कि गया लाल उनके गठबंधन से अलग हो गए हैं। इधर, हरियाणा में चर्चा जोर पकड़ रही थी कि राव साहब बहुमत खो चुके हैं। राव प्रचार छोड़कर बंबई से सीधे दिल्ली के लिए निकल गए। उन्होंने गया लाल से भी बोल दिया कि वो भी दिल्ली पहुंचें। दोनों दिल्ली में मिले और एक ही कार से चंडीगढ़ में सीएम हाउस पहुंचे। वहां मीडिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। राव जैसे ही गाड़ी से उतर कर अंदर जाने लगे, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। गया लाल के पार्टी छोड़ने और सरकार के अल्पमत में होने को लेकर सवाल पूछने लगे। राव हंस पड़े। कुछ पलों बाद गया लाल भी गाड़ी से उतरे। राव ने कहा- गया लाल वापस आ गए हैं। जो लोग सरकार गिराना चाहते थे, उनकी साजिश नाकाम हो गई है। तब राव बीरेंद्र की सरकार तो बच गई, लेकिन गया लाल ने दल बदलना नहीं छोड़ा। उन्होंने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदला। विधायकों के बार-बार दल बदलने से तंग आकर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राव साहब महज 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में राव बीरेंद्र सिंह के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… फरवरी 1967, नए-नवेले राज्य हरियाणा की गलियों में पहले विधानसभा चुनाव की गूंज थी। संयुक्त पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस का दबदबा था। चुनाव के नतीजे इस तस्वीर को साफ बयां कर रहे थे। कांग्रेस को 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत मिली। वहीं, जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2 और स्वतंत्र पार्टी को 3 सीटें मिलीं। जबकि 16 निर्दलीय विधायक भी जीते। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चुनाव से पहले चेहरा मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा थे। नतीजों के बाद शर्मा फिर से सीएम बनने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रहे थे। वे एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे। देवीलाल और शेर सिंह जैसे दिग्गजों को तो उन्होंने विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ने दिया। जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह की सीट पर अपने खेमे के निर्दलीय उम्मीदवार से हरवाकर उन्हें भी रास्ते से हटा दिया। हालांकि तमाम हथकंडों के बाद भी एक शख्स ऐसा था, जो भगवत दयाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ था। वह इंदिरा गांधी की पसंद था और ज्यादातर विधायक भी उसके समर्थन में थे। नाम राव बीरेंद्र सिंह। अहीरवाल राज के वंशज राव बीरेंद्र सिंह राजनीति में आने से पहले अंग्रेजों की फौज में कैप्टन रह चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध में शामिल भी रहे थे। इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा से कहा कि वो राव बीरेंद्र को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं, लेकिन भगवत दयाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए सिंडिकेट से पैरवी की। दरअसल, तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी सिंडिकेट के बूते वे दोबारा मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन राव बगावत पर उतर आए। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवत दयाल की सरकार को 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। इंदिरा ने भगवत दयाल सरकार गिराने का जिम्मा देवीलाल को दिया भगवत दयाल भांप चुके थे कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। इसलिए उन्होंने अपने करीबियों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ा। नाराज विधायकों को बगावत का मौका मिल गया। वे राव बीरेंद्र से संपर्क साधने में जुट गए। हरियाणा में जो कुछ हो रहा था, उस पर केंद्र की भी नजर थी। इंदिरा गांधी भी बैक गेट से अपनी ही सरकार गिराने की बिसात बिछा रही थीं। इसका दावा भगवत दयाल शर्मा के निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा रामस्वरूप करते हैं। एक इंटरव्यू में रामस्वरूप बताते हैं- ‘प्रधानमंत्री इंदिरा खुद चाहतीं थीं कि भगवत दयाल की सरकार किसी तरीके से गिर जाए। उन्होंने भगवत दयाल के विरोधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।’ इंदिरा गांधी के इशारे पर चौधरी देवीलाल, भगवत दयाल सरकार को गिराने में जुट चुके थे, लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राव बीरेंद्र सिंह के साथ उनके सियासी मतभेद दूर हों। लेखक के. गोपी यादव लिखते हैं, ‘हरियाणा बनने से पहले देवीलाल और राव के बीच गहरी दोस्ती थी, बाद में दोनों के संबंध बिगड़ गए। दोबारा संबंध ठीक करने के लिए देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव को दिल्ली में अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाया। राव डिनर पर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे मान गए। राव उसके घर जैसे ही पहुंचे, उन्हें वहां देवीलाल मिल गए। राव बिल्डर पर गुस्सा हो गए। बिल्डर ने हिम्मत जुटाते हुए राव साहब से कहा कि देवीलाल चाहते हैं कि आप मुख्यमंत्री बनें और वह तहे दिल से आपका सहयोग करेंगे। इस पर राव ने देवीलाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते। राव का लहजा और लफ्ज दोनों ही सख्त थे, लेकिन देवीलाल ने संयम नहीं खोया। उन्होंने राव को मना लिया। उसी रोज डिनर की टेबल पर पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने का प्लान बना।’ अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लड़ा स्पीकर का चुनाव और जीत भी गए 17 मार्च 1967, भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बने एक हफ्ता बीत चुका था। अब स्पीकर चुनने की बारी थी। भगवत दयाल शर्मा ने जींद से विधायक लाला दयाकिशन का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया। इस बीच उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम स्पीकर पद के लिए प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री भगवत दयाल के खेमे में खलबली मच गई। वोटिंग हुई तो दयाकिशन को 37 वोट मिले, जबकि राव को 28 विपक्षी और कांग्रेस के 12 असंतुष्ट विधायकों को मिलाकर कुल 40 वोट मिले। इसका सीधा मतलब था कि भगवत दयाल शर्मा की सरकार खतरे में है। आखिर बहुमत परीक्षण की बारी भी आई। स्पीकर का चुनाव जीतने के बाद भी बीरेंद्र सिंह का खेमा एक विधायक को लेकर चिंतित था। वो थे चौधरी बंसीलाल, जो पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राव साहब जानते थे कि अगर बंसीलाल विधानसभा पहुंच गए, तो खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में योजना बनाई गई कि बंसीलाल को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में आने ही न दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को सदन से दूर रखने की जिम्मेदारी एक अफसर को सौंपी गई। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। थोड़ी देर बाद जब वे बाथरूम में गए, तो अफसर ने दरवाजा बंद कर दिया। वे काफी देर तक आवाज लगाते रहे, लेकिन दरवाजा तब तक नहीं खोला गया, जब तक फ्लोर टेस्ट में भगवत दयाल की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ भगवत दयाल की सरकार गिराने के बाद कांग्रेस से बागी हुए 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम की नई पार्टी बनाई। 16 निर्दलीय विधायकों ने नवीन हरियाणा पार्टी बनाई। 20 मार्च 1967 को कांग्रेस, इन सभी को मिलाकर हरियाणा संयुक्त विधायक दल पार्टी का गठन किया। चौधरी देवीलाल को इसका संयोजक बनाया गया। चार दिन बाद यानी, 24 मार्च को राव बीरेंद्र सिंह ने 15 मंत्रियों के साथ हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस तरह पहली बार राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर साथ देने की कसम खाई सीएम बनने के बाद भी राव बीरेंद्र के मन में देवीलाल को लेकर संशय बना हुआ था। के. गोपी यादव लिखते हैं- ‘देवीलाल ने संयुक्त विधायक दल की सरकार के सभी समर्थक विधायकों के सामने गंगाजल से भरी हांडी में नमक डालकर कसम खाई कि अगर वे किसान-मजदूर हितैषी राव की सरकार के साथ विश्वासघात करेंगे, तो वे हांडी में डाले गए नमक की तरह घुल जाएंगे। इसके बाद राव ने उनसे पूछा कि मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। देवीलाल ने कहा कि हमारी कोई शर्त नहीं है, लेकिन राव को अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था कि जरूर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है। तब देवीलाल ने कहा कि राव साहब, अगर आपको उचित लगे तो चांदराम को उद्योग मंत्री बना दीजिए। राव ने चांदराम को मंत्री बनाया, लेकिन उन्हें उद्योग विभाग नहीं दिया।’ देवीलाल ने ढाई महीने में ही तोड़ दी अपनी कसम राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने अभी कुछ ही महीने हुए थे कि उन्होंने देवीलाल को तवज्जो देना बंद कर दिया। देवीलाल, सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी भी जाहिर करने लगे। 5 जून 1967 को देवीलाल ने लेटर जारी किया, जिस पर 13 विधायकों और मंत्रियों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते फिर बिगड़ने लगे। 13 जुलाई को देवीलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- ‘राव बीरेंद्र सिंह की सरकार जनसंघ से प्रभावित है। इसलिए हरियाणा विरोधी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया है। देवीलाल ने राव पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि राव इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का वचन दिया जाए तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे।’ हालांकि राव ने इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि देवीलाल की नाराजगी का असली कारण उन्हें मंत्री न बनाया जाना है। सरकार बनाने पहुंचे देवीलाल तो राज्यपाल ने ठुकराया प्रस्ताव 14 जुलाई को संयुक्त विधायक दल ने 38 विधायकों के साथ बैठक की और देवीलाल को निष्कासित कर दिया। देवीलाल ने तुरंत कांग्रेस से समझौता कर लिया और राव सरकार का तख्तापलट करने में जुट गए। दावा किया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान समझौते के तहत देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार हो गया था। बशर्तें वे संयुक्त मोर्चे के कुछ विधायकों को अपने साथ ले आएं। राव को इसकी भनक लग चुकी थी। 15 जुलाई को अचानक राव बीरेंद्र सिंह ने राज्यपाल को मंत्रिमंडल का त्यागपत्र दे दिया। उनका मकसद देवीलाल समर्थकों को मंत्रिमंडल से हटाकर नया मंत्रिमंडल बनाना था। राव जब तक अपनी योजना को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही देवीलाल 51 विधायकों के समर्थन का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए, लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए देवीलाल का दावा खारिज कर दिया कि सूची में विधायकों के साइन नहीं हैं। हालांकि कहा जाता है कि उस पत्र में विधायकों के दस्तखत थे। राज्यपाल ने राव बीरेंद्र सिंह को फिर से मंत्रिमंडल बनाने को कहा। उसी दिन 15 जुलाई को राव के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली। इस बार मंत्रिमंडल में देवीलाल के करीबी चांदराम और मनीराम गोदारा को शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज देवीलाल समर्थक मुख्य संसदीय सचिव जगन्नाथ ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। अगले चार महीने यानी नवंबर तक दोनों खेमों में सियासी उठापटक चलती रही। कभी देवीलाल के सहयोगी टूटकर संयुक्त मोर्चे में शामिल होते, तो कभी संयुक्त मोर्चे के विधायक को तोड़कर देवीलाल अपने पाले में लाते। 17 नवंबर 1967 को राज्यपाल वीएन चक्रवर्ती ने हरियाणा की राजनीतिक उठापटक को लेकर राष्ट्रपति से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने 21 नवंबर 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। जबकि देवीलाल कांग्रेस में शामिल हो गए। अप्रैल-मई 1968 में हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। इस बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया। वही बंसीलाल जिन्हें एक साल पहले भगवत दयाल की सरकार गिराने के लिए बाथरूम में बंद कर दिया गया था।