हरियाणा में सरकारी नौकरियों में स्थानीय युवाओं को सामाजिक व आर्थिक आधार पर 5 अतिरिक्त अंक देने को असंवैधानिक ठहराने वाले हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यह नीति जनता को आकर्षित करने के लिए लोकनुभावन उपाय है। यह योग्यता को प्राथमिकता देने के सिद्धांत से भटकी हुई है। कॉमन एलिजिबििलटी टेस्ट (CET) के जरिए दूसरे राज्य के मेधावी छात्र को 60 अंक मिलते हैं और उतने ही अंक स्थानीय अभ्यर्थी को भी मिले हैं, लेकिन स्थानीय अभ्यर्थी दूसरे राज्य के अभ्यर्थी से सिर्फ इसीलिए आगे हो गया, क्योंकि 5 ग्रेस अंक मिले हैं। आप इस तरह की नीति का बचाव कैसे करेंगे कि बिना किसी प्रयास के एक अभ्यर्थी को 5 अंक दिए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 4 अपीलें दायर की थीं। जस्टिस एएस ओका व जस्टिस राजेश बिंदल की अवकाशकालीन पीठ ने सुनवाई की। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने दलीलें रखीं। पढ़िए प्रमुख अंश – सुप्रीम कोर्ट लाइव अटॉर्नी जनरल : ग्रुप-D के पदों पर काम करने वाले कर्मचारी स्थानीय स्तर के हैं। यह लाभ ऐसे लोगों को दिए जाते हैं, जिनके परिवार के पास आय का कोई स्रोत नहीं है। क्या ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी में अवसर नहीं दिया जाना चाहिए? हाईकोर्ट द्वारा लिखित परीक्षा दोबारा कराने का आदेश दिया जाना सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के खिलाफ है। इन पर दोबारा से विचार करने की जरूरत है। जिन्होंने परीक्षा दी है, इसमें उनकी क्या गलती है? जस्टिस ओका : आपने अपने लिए खुद मुश्किलें खड़ी की हैं। जिस तरह से प्रक्रिया संचालित की गई है, उसके बारे में हाईकोर्ट ने आदेश में लिखा है। इसके बाद कोर्ट ने राज्य कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की याचिका खारिज करते हुए फैसले में कहा, ‘जिन अभ्यर्थियों को पहले के परिणाम के आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया है, अगर वे CET की नई मेरिट सूची में आते हैं तो नई चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति होगी। जब तक नए चयन की तैयारी नहीं हो जाती, तब तक वे पदों पर बने रहेंगे। वे नई चयन प्रक्रिया में चयनित नहीं होते तो पद छोड़ना होगा और नियुक्ति समाप्त मानी जाएगी। उन्हें अन्य कोई विशेष अधिकार नहीं होगा और वे उस अवधि के वेतन के अतिरिक्त किसी अन्य लाभ के हकदार नहीं होंगे।’ 5% अंकों के लिए 2 शर्तें थीं ग्रुप-C-D की नौकरियों में सीईटी में प्रदेश के मूल निवासियों को 5% अतिरिक्त अंक की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए 2 शर्तें रखीं। पहली- परिवार पहचान पत्र में सालाना आय 1.80 लाख रुपए से कम हो। दूसरी- घर में पहले से कोई सरकारी नौकरी में न हो। इससे 2023 की भर्ती में कई युवा नौकरी से वंचित हुए तो हाईकोर्ट पहुंच गए। 31 मई 2024 को हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। इस पर HSSC ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट मे एडवोकेट हेमंत कुमार ने कहा कि जो अभ्यर्थी अतिरिक्त 5 अंक हटाकर भी मेरिट में आते हैं, उन्हें दिक्कत नहीं होगी। संविधान के अनुच्छेद-14, 16 के तहत वर्ग अनुसार ही आरक्षण का प्रावधान है। इस तह 5 अंक संविधान के अनुरूप नहीं हैं। 5 अंक हटाकर 6 माह में नए सिरे से मेरिट तय करने के आदेश हैं। तब तक ये नौकरी में बने रहेंगे। जो ये अंक हटाकर भी मेरिट में आते हैं, उन्हें दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सरकार के पास 3 विकल्प हेमंत कुमार के अनुसार, सरकार के पास अब तीन विकल्प हैं। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। हालांकि इसकी कम संभावनाएं रहती हैं कि न्यायाधीश अपना फैसला बदल दें। दूसरा- विधानसभा में विधेयक लाकर गेस्ट टीचर की तरह एडजस्ट कर दे, पर इसकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है। तीसरा- आयोग बनाकर गरीबी को लेकर सर्वे कराए। उसकी रिपोर्ट पर कानून बना दे। हालांकि, इसे भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। सैनी बोले- ग्रुप-D में अतिरिक्त अंक वालों का रिजल्ट रोका हुआ है
सीएम सैनी ने कहा कि सीईटी के पहले चरण की परीक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीईटी 3 साल के लिए मान्य है। ग्रुप-डी के 13,657 पद थे। 11 हजार ने नौकरी जॉइन की। इन्हें दिक्कत नहीं है। 2,657 अभ्यर्थी ऐसे हैं, जिन्हें 5 अतिरिक्त अंकों के चलते जॉइन करना था। इनका रिजल्ट रोका हुआ था। ग्रुप-सी के चयनित करीब 12 हजार युवाओं की भर्ती को बचाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। 2 हजार तकनीकी पद हैं। इसमें पदों से 4 गुना अभ्यर्थियों को बुलाया जाना था। कई पोस्ट ऐसी थीं, जिनमें आवेदन करने वालों की संख्या 4 गुना तक नहीं थी। सभी 50 हजार पदों पर भर्ती के लिए एक सप्ताह में शेड्यूल जारी होगा। ये 2 माह में पूरी की जाएंगी। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा श्वेत पत्र जारी कर बताएं कि उनके कार्यकाल में कितनी भर्ती हुई थीं। भाजपा ने 1.32 लाख नौकरियां बिना पर्ची और बिना खर्ची के दी हैं। हरियाणा में सरकारी नौकरियों में स्थानीय युवाओं को सामाजिक व आर्थिक आधार पर 5 अतिरिक्त अंक देने को असंवैधानिक ठहराने वाले हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यह नीति जनता को आकर्षित करने के लिए लोकनुभावन उपाय है। यह योग्यता को प्राथमिकता देने के सिद्धांत से भटकी हुई है। कॉमन एलिजिबििलटी टेस्ट (CET) के जरिए दूसरे राज्य के मेधावी छात्र को 60 अंक मिलते हैं और उतने ही अंक स्थानीय अभ्यर्थी को भी मिले हैं, लेकिन स्थानीय अभ्यर्थी दूसरे राज्य के अभ्यर्थी से सिर्फ इसीलिए आगे हो गया, क्योंकि 5 ग्रेस अंक मिले हैं। आप इस तरह की नीति का बचाव कैसे करेंगे कि बिना किसी प्रयास के एक अभ्यर्थी को 5 अंक दिए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 4 अपीलें दायर की थीं। जस्टिस एएस ओका व जस्टिस राजेश बिंदल की अवकाशकालीन पीठ ने सुनवाई की। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने दलीलें रखीं। पढ़िए प्रमुख अंश – सुप्रीम कोर्ट लाइव अटॉर्नी जनरल : ग्रुप-D के पदों पर काम करने वाले कर्मचारी स्थानीय स्तर के हैं। यह लाभ ऐसे लोगों को दिए जाते हैं, जिनके परिवार के पास आय का कोई स्रोत नहीं है। क्या ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी में अवसर नहीं दिया जाना चाहिए? हाईकोर्ट द्वारा लिखित परीक्षा दोबारा कराने का आदेश दिया जाना सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के खिलाफ है। इन पर दोबारा से विचार करने की जरूरत है। जिन्होंने परीक्षा दी है, इसमें उनकी क्या गलती है? जस्टिस ओका : आपने अपने लिए खुद मुश्किलें खड़ी की हैं। जिस तरह से प्रक्रिया संचालित की गई है, उसके बारे में हाईकोर्ट ने आदेश में लिखा है। इसके बाद कोर्ट ने राज्य कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की याचिका खारिज करते हुए फैसले में कहा, ‘जिन अभ्यर्थियों को पहले के परिणाम के आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया है, अगर वे CET की नई मेरिट सूची में आते हैं तो नई चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति होगी। जब तक नए चयन की तैयारी नहीं हो जाती, तब तक वे पदों पर बने रहेंगे। वे नई चयन प्रक्रिया में चयनित नहीं होते तो पद छोड़ना होगा और नियुक्ति समाप्त मानी जाएगी। उन्हें अन्य कोई विशेष अधिकार नहीं होगा और वे उस अवधि के वेतन के अतिरिक्त किसी अन्य लाभ के हकदार नहीं होंगे।’ 5% अंकों के लिए 2 शर्तें थीं ग्रुप-C-D की नौकरियों में सीईटी में प्रदेश के मूल निवासियों को 5% अतिरिक्त अंक की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए 2 शर्तें रखीं। पहली- परिवार पहचान पत्र में सालाना आय 1.80 लाख रुपए से कम हो। दूसरी- घर में पहले से कोई सरकारी नौकरी में न हो। इससे 2023 की भर्ती में कई युवा नौकरी से वंचित हुए तो हाईकोर्ट पहुंच गए। 31 मई 2024 को हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। इस पर HSSC ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट मे एडवोकेट हेमंत कुमार ने कहा कि जो अभ्यर्थी अतिरिक्त 5 अंक हटाकर भी मेरिट में आते हैं, उन्हें दिक्कत नहीं होगी। संविधान के अनुच्छेद-14, 16 के तहत वर्ग अनुसार ही आरक्षण का प्रावधान है। इस तह 5 अंक संविधान के अनुरूप नहीं हैं। 5 अंक हटाकर 6 माह में नए सिरे से मेरिट तय करने के आदेश हैं। तब तक ये नौकरी में बने रहेंगे। जो ये अंक हटाकर भी मेरिट में आते हैं, उन्हें दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सरकार के पास 3 विकल्प हेमंत कुमार के अनुसार, सरकार के पास अब तीन विकल्प हैं। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। हालांकि इसकी कम संभावनाएं रहती हैं कि न्यायाधीश अपना फैसला बदल दें। दूसरा- विधानसभा में विधेयक लाकर गेस्ट टीचर की तरह एडजस्ट कर दे, पर इसकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है। तीसरा- आयोग बनाकर गरीबी को लेकर सर्वे कराए। उसकी रिपोर्ट पर कानून बना दे। हालांकि, इसे भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। सैनी बोले- ग्रुप-D में अतिरिक्त अंक वालों का रिजल्ट रोका हुआ है
सीएम सैनी ने कहा कि सीईटी के पहले चरण की परीक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीईटी 3 साल के लिए मान्य है। ग्रुप-डी के 13,657 पद थे। 11 हजार ने नौकरी जॉइन की। इन्हें दिक्कत नहीं है। 2,657 अभ्यर्थी ऐसे हैं, जिन्हें 5 अतिरिक्त अंकों के चलते जॉइन करना था। इनका रिजल्ट रोका हुआ था। ग्रुप-सी के चयनित करीब 12 हजार युवाओं की भर्ती को बचाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। 2 हजार तकनीकी पद हैं। इसमें पदों से 4 गुना अभ्यर्थियों को बुलाया जाना था। कई पोस्ट ऐसी थीं, जिनमें आवेदन करने वालों की संख्या 4 गुना तक नहीं थी। सभी 50 हजार पदों पर भर्ती के लिए एक सप्ताह में शेड्यूल जारी होगा। ये 2 माह में पूरी की जाएंगी। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा श्वेत पत्र जारी कर बताएं कि उनके कार्यकाल में कितनी भर्ती हुई थीं। भाजपा ने 1.32 लाख नौकरियां बिना पर्ची और बिना खर्ची के दी हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर