लखनऊ में कलाकारों ने की दर्शकों की आंखें नम:नाटक दर्द भरी दास्तां में दिखा विभाजन का दर्द; 78 साल पहले की सच्चाई से कराया रूबरू

लखनऊ में कलाकारों ने की दर्शकों की आंखें नम:नाटक दर्द भरी दास्तां में दिखा विभाजन का दर्द; 78 साल पहले की सच्चाई से कराया रूबरू

काकोरी स्थित शहीद मंदिर बाजगांव में आज आयुक्त लखनऊ डॉ. रोशन जैकब और जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार के संयुक्त निर्देशन में संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी महोत्सव के अंतर्गत रंगकर्मी, फ़िल्म अभिनेता महेश चन्द्र देवा द्वारा लिखित नाटक दर्द भरी दास्तां का मंचन किया गया। तस्वीरों में देखिए मंच पर 7 कलाकारों ने विभाजन का दर्द दिखाया। अंग्रेजों की कूटनीति ने भारत को बंटवारे की आग ने झोंक दिया। किस तरह से 14 अगस्त की सूचना मिलते ही लाखों परिवार बेघर हो जाते हैं, दुकानों को लूट लिया जाता है। महिलाओं, बेटियों की अस्मत लूट ली जाती है। फैसले रातों- रात लोगो की नींद हराम कर देते हैं। बैलगाड़ी, बसों, रेलगाड़ियों से लोग बचते-बचाते अपनों घरों, ज़मीन, व्यवसायों को छोड़कर भारत लौटते हैं। नाटक 4 अहम् पात्रों के इर्द गिर्द घूमता है। 85 साल का नन्दलाल जब 8 वर्ष का होता है तो विभाजन की त्रासदी का काले सच से रूबरू करता है। मानवीय पीड़ा अपनों का बिछड़ना, घर बार मिट्टी का छूटना। तो लायलकोट की रहने वाली 45 साल की अरुणा अपने दादा-दादी और बुआ पर ज़ुल्मों की कहानी को बयां करती है। खचाखच भरे ट्रेन में लोगो की चीख पुकार दर्द को छलकाते हुए स्वरों के बीच जीवन और मरण के खेल को दर्शाती है। दूसरी तरफ लाहौर से सरदार रणजीत सिंह रोते-रोते अपनी मां पर हुए ज़ुल्म को बताते हैं, तो वही सियालकोट की रजनी अपनी मां की डायरी को पढ़ते हुए अपनी बहन की हत्या और परिवार पर आकस्मिक गिरे पहाड़ को अपने अभिनय के माध्यम से दर्द बयां करती है। जिसमें एक तरफ स्वतंत्र भारत का उत्सव मनाया जाता है, तो दूसरी तरफ लोगों को ज़िन्दगी बचाने के प्रयासों में उलझना पड़ता है। पचास मिनट के नाटक में सूत्रधार महेश चंद्र देवा, अमन आहिल ने नन्दलाल, शिखा वाल्मीकि ने अरुणा तो रणजीत सिंह हरी वर्मा, सोनाली वाल्मीकि ने रजनी की भूमिका अदा की। कलाकारों ने सशक्त व शानदार अभिनय के माध्यम से दर्शकों को झकझोंरा तो कई बार आंखें नम की। इसके अलावा कलाकारों में ख़ुशी गौतम, स्नेहा गौतम, ऋतिक शाक्य रहे। काकोरी स्थित शहीद मंदिर बाजगांव में आज आयुक्त लखनऊ डॉ. रोशन जैकब और जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार के संयुक्त निर्देशन में संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी महोत्सव के अंतर्गत रंगकर्मी, फ़िल्म अभिनेता महेश चन्द्र देवा द्वारा लिखित नाटक दर्द भरी दास्तां का मंचन किया गया। तस्वीरों में देखिए मंच पर 7 कलाकारों ने विभाजन का दर्द दिखाया। अंग्रेजों की कूटनीति ने भारत को बंटवारे की आग ने झोंक दिया। किस तरह से 14 अगस्त की सूचना मिलते ही लाखों परिवार बेघर हो जाते हैं, दुकानों को लूट लिया जाता है। महिलाओं, बेटियों की अस्मत लूट ली जाती है। फैसले रातों- रात लोगो की नींद हराम कर देते हैं। बैलगाड़ी, बसों, रेलगाड़ियों से लोग बचते-बचाते अपनों घरों, ज़मीन, व्यवसायों को छोड़कर भारत लौटते हैं। नाटक 4 अहम् पात्रों के इर्द गिर्द घूमता है। 85 साल का नन्दलाल जब 8 वर्ष का होता है तो विभाजन की त्रासदी का काले सच से रूबरू करता है। मानवीय पीड़ा अपनों का बिछड़ना, घर बार मिट्टी का छूटना। तो लायलकोट की रहने वाली 45 साल की अरुणा अपने दादा-दादी और बुआ पर ज़ुल्मों की कहानी को बयां करती है। खचाखच भरे ट्रेन में लोगो की चीख पुकार दर्द को छलकाते हुए स्वरों के बीच जीवन और मरण के खेल को दर्शाती है। दूसरी तरफ लाहौर से सरदार रणजीत सिंह रोते-रोते अपनी मां पर हुए ज़ुल्म को बताते हैं, तो वही सियालकोट की रजनी अपनी मां की डायरी को पढ़ते हुए अपनी बहन की हत्या और परिवार पर आकस्मिक गिरे पहाड़ को अपने अभिनय के माध्यम से दर्द बयां करती है। जिसमें एक तरफ स्वतंत्र भारत का उत्सव मनाया जाता है, तो दूसरी तरफ लोगों को ज़िन्दगी बचाने के प्रयासों में उलझना पड़ता है। पचास मिनट के नाटक में सूत्रधार महेश चंद्र देवा, अमन आहिल ने नन्दलाल, शिखा वाल्मीकि ने अरुणा तो रणजीत सिंह हरी वर्मा, सोनाली वाल्मीकि ने रजनी की भूमिका अदा की। कलाकारों ने सशक्त व शानदार अभिनय के माध्यम से दर्शकों को झकझोंरा तो कई बार आंखें नम की। इसके अलावा कलाकारों में ख़ुशी गौतम, स्नेहा गौतम, ऋतिक शाक्य रहे।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर