यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उपचुनाव के नतीजों की रही चर्चा 2014 में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उपचुनाव में हुई। इस उपचुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उपचुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उपचुनाव के नतीजों की रही चर्चा 2014 में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उपचुनाव में हुई। इस उपचुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उपचुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास 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अभिमन्यु सिंह झज्जर जिले के रहने वाले हैं। वहीं चर्चा है कि वह कोसली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। लोकसभा चुनाव में भी वह कोसली व उसके आसपास के इलाकों में BJP उम्मीदवार के लिए प्रचार करते रहे। रेवाड़ी की कोसली सीट झज्जर के साथ लगती है। जहां अभिमन्यु पिछले 2 साल से एक्टिव हैं। राव इंद्रजीत की पैतृक सीट
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पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल को कोर्ट का समन:मोहाली में चल रहा है 2018 में मिली धमकी का केस; गवाही होनी है चंडीगढ़ से सटे पंजाब के मोहाली जिले की कोर्ट ने फेमस पंजाबी गायक और कलाकार गिप्पी ग्रेवाल को कोर्ट में पेश होने के लिए जमानती समन भेजा गया है। यह समन उनकी तरफ से 2018 में मैसेज के जरिए गैंगस्टर दिलप्रीत बाबा से मिली धमकी के मामले में भेजा है। इस मामले में मोहाली के फेज-8 पुलिस स्टेशन में मुकदमा दर्ज हुआ था। मोहाली कोर्ट की तरफ से 24 जुलाई को भी उन्हें पेश होने के लिए 5 हजार रुपए का जमानती समन भेजा था। जो कि कोर्ट में वापस आ गया। अब इस मामले में अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी। गिप्पी ग्रेवाल की कोर्ट में गवाही होनी है। जाने क्या है पूरा मामला 31 मई 2018 को गिप्पी ग्रेवाल को एक अज्ञात नंबर से उनके वॉट्सऐप पर वॉइस और टैक्स्ट मैसेज आया था। इस मैसेज में उन्हें एक नंबर दिया गया था। इस नंबर पर गैंगस्टर दिलप्रीत सिंह बाबा से बात करने के लिए कहा था। उसमें लिखा था कि यह मैसेज रंगदारी मांगने के लिए की गई है। आप बात कर ले नहीं तो आपका हाल परमिश वर्मा और चमकीला जैसा कर दिया जाएगा। इसके बाद गिप्पी ग्रेवाल ने इसकी शिकायत मोहाली पुलिस को दी थी। मोहाली पुलिस ने गिप्पी ग्रेवाल की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर लिया था। अब गिप्पी ग्रेवाल को गवाही के लिए बुलाया जा रहा है, लेकिन वह कोर्ट में पेश नहीं हो रहे हैं। बता दें कि जिस समय उन्हें यह धमकी मिली थी, उस समय वह अपनी मूवी कैरी ऑन जट्टा 2 की प्रमोशन के लिए पंजाब से बाहर थे। अभी कनाडा में है गिप्पी ग्रेवाल जानकारी के अनुसार इस समय गिप्पी ग्रेवाल कनाडा में है। इसी कारण उन्हें कोर्ट के समन नहीं मिल पा रहे हैं। लेकिन इस मामले में गिप्पी ग्रेवाल के मुख्य शिकायतकर्ता होने के कारण उनकी गवाही जरूरी है। इसलिए अदालत की तरफ से आज दोबारा से समन भेजा गया है। इसके अलावा पिछली सुनवाई पर पंजाब पुलिस की डीएसपी रुपिंदर सिंह सोही को भी समन भेजा गया था। लेकिन वह भी अदालत में पेश नहीं हुई थी। वहीं एसएसपी मोहाली के जरिए मामले में आरोपी दिलप्रीत सिंह बाबा को भी जेल अथॉरिटी के लिए समन भेजा था। उसे प्रोडक्शन वारंट पर लेकर पुलिस अदालत में पेश नहीं कर पाई है।
सोनीपत में समुदाय विशेष के लोगों ने युवक को पीटा:दिवाली के दिन पटाखे चलाने पर विवाद; अगले दिन हमला, तोड़फोड़
सोनीपत में समुदाय विशेष के लोगों ने युवक को पीटा:दिवाली के दिन पटाखे चलाने पर विवाद; अगले दिन हमला, तोड़फोड़ हरियाणा के सोनीपत में दिवाली के दिन दो समुदाय के परिवारों में हुए विवाद के बाद समुदाय विशेष के लोगों ने एक युवक पर हमला कर दिया। घायल युवक ने खेत की नर्सरी में बने कमरे में खुद को बंद किया तो हमलावरों ने लोहे का दरवाजा तोड़ दिया। उसे कमरे से खींच कर बाहर ले आए और बुरी तरह से पीटा। आरोप है कि कमरे में रखा टीवी, एलइडी आदि सामान तोड़ दिया। उसको उठा कर ले जा रहे थे तो सरपंच व परिजन वहां आ गए। इसके बाद वे फरार हो गए। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है। गांव पलड़ी खुर्द के रहने वाले विनोद ने बताया कि उसने अपने खेत में फ्रेंड्स नर्सरी के नाम से नर्सरी की हुई है। 31 अक्टूबर को वह को वह दिवाली के दिन अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर के आंगन मे ग्रीन पटाखे चला रहे थे। उनके घर के सामने ही प्रिंस, आशु, बोबी सन्नी व समीर के मकान हैं। ये सभी एक विशेष समुदाय से हैं। इन सभी ने उनको रात को करीब 9.00 बजे दिवाली का त्योहार मनाने से रोका। मैंने व मेरे भाई मनोज ने इस पर सभी के बुजुर्गों से कहा कि हम ईद का त्योहार साथ मिलकर मनाते हैं। हमें दिवाली मनाने से मना कर रहे हैं। इसकी सूचना रात को पुलिस को भी दी गई। पुलिस मौके पर पहुंची और पंचायत भी हुई। इन लोगों ने पंचायत व पुलिस के सामने अपनी गलती मान ली। दोनों पक्षों में राजीनामा हो गया। विनोद ने बताया कि प्रिंस व उनके परिवार के सदस्य इस बात की मन ने रंजिश रखे हुए थे। उसने बताया कि एक नवंबर को वह नर्सरी मे काम कर रहा था। इसी बीच प्रिंस, आशु, बोबी, सन्नी, समीर अपने 6/7 साथियों के साथ लाठी डण्डे व लोहे की राड लेकर उसकी नर्सरी में आ गए। प्रिंस ने लोहे की राड से उसके सिर में वार किया। दूसरों ने भी डंडे मारने शुरू कर दिए। वह अपनी जान बचाने के लिए नर्सरी में बने कमरे में घुस गया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। इसके बाद उसने अपने परिवार के सदस्य सोनू को फोन करके सारी बात बताई। कहा कि जल्दी उसे बचाने के लिए परिवार के सदस्यों को लेकर आ जाए। इस बीच प्रिंस व उसके साथियों ने उसके कमरे का लोहे का दरवाजा तोड़ दिया। उन्होंने अंदर आकर उसके पांव पर लोहे का पाइप मारा। इससे पांव में फ्रैक्चर हो गया। वह मेज पर गिर गया । इसके बाद ये उसे जबरदस्ती कमरे से बाहर ले आए औऱ बाहर आने पर समीर व उसके साथियों ने उसको बुरी तरह से चोटें मारी। विनोद ने बताया कि इन हमलावरों ने कमरे में TV , LED कैमरे व अन्य सामान भी तोड़ दिया। ये उसे जान से मारने की नीयत अपहरण करके लेकर जान लगे। इसी बीच सामने से सरपंच नरेश किशोर, उसका भाई मनोज व सोनू और परिवार के अन्य सदस्यों को आते देखकर ये उसे वहीं पर छोड़ कर जान से मारने की धमकी देते हुए भाग गए। परिजनों ने पुलिस को वारदात की सूचना दी। बहालगढ़ थाना के आईओ कुलदीप सिंह के अनुसार 1 नवंबर की रात को सूचना मिली थी कि विनोद लडाई झगडा में घायल है। उसे अस्पताल से PGI रोहतक रेफर किया गया है। रात को उसके बयान दर्ज नहीं हो पाए। आज शनिवार काे उसने अस्पताल से विनोद की एमएलआर रिपोर्ट ली। शिकायत के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ धारा 191(3),190,115(2),351(2),(3) BNS के तहत केस दर्ज कर लिया है।