<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi University Students’ Union Election:</strong> दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) के चुनाव 27 सितंबर को होंगे. वोटों की गिनती अगले दिन 28 सितंबर को होगी. यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi University Students’ Union Election:</strong> दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) के चुनाव 27 सितंबर को होंगे. वोटों की गिनती अगले दिन 28 सितंबर को होगी. यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी.</p> दिल्ली NCR Chhattisgarh: धमतरी में घर के टॉयलेट में पानी पीने घुसा तेंदुआ, वन विभाग ने कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ा
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गाजियाबाद में बेटे के सामने पिता की हत्या:बाइक खड़ी करने पर गुस्साया था पड़ोसी; बोला-आज तेरा किस्सा खत्म कर दूंगा
गाजियाबाद में बेटे के सामने पिता की हत्या:बाइक खड़ी करने पर गुस्साया था पड़ोसी; बोला-आज तेरा किस्सा खत्म कर दूंगा गाजियाबाद में बुधवार को बेटे के सामने पिता की चाकू से गोदकर हत्या कर दी गई। बाइक खड़ी करने को लेकर युवक का पड़ोसी से विवाद हुआ। इसके बाद पड़ोसी पीटने लगा। थोड़ी देर में चाकू को लेकर आया। पेट और चेहरे पर मारकर हत्या कर दी। बेटा सामने खड़ा था, उसने रोकने की कोशिश की। उस पर हमला किया। इससे वो भी घायल हो गया। आरोपी बोला-‘आज तेरा किस्सा खत्म कर दूंगा’। खोड़ा इंस्पेक्टर आनंद मिश्रा भी फोर्स के साथ मौके पर पहुंची। घायल बेटे को अस्पताल में भर्ती कराया। ये घटना खोड़ा थाना क्षेत्र की है। विस्तार से जानिए पूरा मामला… दो पक्ष लड़ने लगे
इंद्रा विहार मस्जिद के पास नन्हे खान (56) अपने बेटे सलमान के साथ मजूदरी करता था। इसी गली में घर के सामने मोहम्म्द जाकिर का मकान है। पुलिस ने बताया कि गली में घर के सामने बाइक खड़ी करने को लेकर पूर्व में भी विवाद हो चुका है। शाम को गली में बाइक को लेकर नन्हे व जाकिर के बीच कहासुनी हुई। जहां दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। जाकिर पक्ष के लोगों ने चाकू से हमला बोल दिया, जिसमें चाकू लगने से नन्हे की मौत हो गई। इनका बेटा सलमान गंभीर रूप से घायल हो गया। पहले से धमकी देता था जाकिर
सलमान जहां गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया है। वहीं सलमान के पिता नन्हे की माैत हो चुकी है। घटना की सूचना पर आसपास के लोगों की भीड़ लग गई। पुलिस अधिकारियों के सामने सलमान के परिजनों ने कहा कि आरोपी जाकिर पहले भी धमकी देता था। जो पूर्व में भी मारने की बात कह चुका था। शाम को अचानक से जाकिर पक्ष के तीन- 4 लोग चाकू लेकर गली में आ गए। बीच रास्ते में ही नन्हे की हत्या की गई है।
Ghatkopar Hoarding Case: घाटकोपर होर्डिंग मामले में दायर चार्जशीट में बड़ा खुलासा, ‘बिना सॉयल टेस्ट के ही…’
Ghatkopar Hoarding Case: घाटकोपर होर्डिंग मामले में दायर चार्जशीट में बड़ा खुलासा, ‘बिना सॉयल टेस्ट के ही…’ <p style=”text-align: justify;”><strong>Mumbai Crime Branch:</strong> मुंबई क्राइम ब्रांच की एसआईटी की ओर से घाटकोपर होर्डिंग गिरने के मामले में दाखिल की गई 3,299 पन्नों की चार्जशीट में जीआरपी और बीएमसी अधिकारियों के बीच नेक्सस को भी बताया गया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पूर्व कमिश्नर पर संदेह</strong><br />चार्जशीट इस मामले में गिरफ्तार चार आरोपियों के खिलाफ दायर की है. वहीं बीएमसी और जीआरपी के अधिकारियों की भूमिका की जांच अभी भी चल रही है. मामले में पूर्व कमिश्नर पर संदेह है कि उन्होंने ईगो मीडिया के साथ मिलीभगत कर कानूनी नियमों को अनदेखा करवाया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>चार्जशीट में बड़ा खुलासा</strong><br />चार्जशीट में बताया गया है कि बड़े होर्डिंग की खुदाई के दौरान पास का एक पेड़ गिर गया, जिसके बाद जेसीबी ऑपरेटर ने मिट्टी के परीक्षण की सिफारिश की क्योंकि जमीन नरम थी. इसके बावजूद ईगो मीडिया के निदेशक और मुख्य आरोपी ने इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और आवश्यक मिट्टी परीक्षण किए बिना आगे बढ़ गए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आरोपियों में से एक, भावेश भिंडे, निलंबित आईपीएस अधिकारी कैसर खालिद का जानने वाला है. चार्जशीट के अनुसार, खालिद, भिंडे और बीएमसी लाइसेंस इंस्पेक्टर सुनील दलवी ने ईगो मीडिया के लिए होर्डिंग कॉन्ट्रेक्ट दिलवाने के लिए कानूनी खामियों का फायदा उठाया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भिंडे के खिलाफ आरोप दायर किए गए हैं, जबकि खालिद, अन्य जीआरपी अधिकारियों और बीएमसी अधिकारियों के खिलाफ जांच जारी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>चार्जशीट में यह भी बताया गया है कि खुदाई के दौरान, जेसीबी ऑपरेटर ने नोट किया कि मिट्टी नरम थी, जिससे पास के पेड़ गिर गए. उन्होंने मिट्टी परीक्षण का अनुरोध किया, जिसमें 15 दिन लगते, लेकिन मराठे और भिंडे ने बिना इसे किए आगे बढ़ गए, जो कि होर्डिंग गिरने एक वजह मानी जा सकती है. इस चार्जशीट में ऑपरेटर का बयान मामले में गवाह के रूप में दर्ज किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”Pune IAS Pooja Khedkar: फेक सर्टिफिकेट मामले पर IAS पूजा खेडकर के पिता की पहली प्रतिक्रिया, ‘कुछ भी गैरकानूनी…'” href=”https://www.abplive.com/states/maharashtra/pune-ias-pooja-khedkar-father-dilip-khedkar-on-fake-disability-and-obc-certificates-she-did-nothing-illegal-2737568″ target=”_blank” rel=”noopener”>Pune IAS Pooja Khedkar: फेक सर्टिफिकेट मामले पर IAS पूजा खेडकर के पिता की पहली प्रतिक्रिया, ‘कुछ भी गैरकानूनी…'</a></strong></p>
आपके विधायक के पास सिर्फ 3 मिनट:यूपी में विधानसभा-सत्र अब सिर्फ 15% चल रहा; आपकी परेशानी कैसे बताएंगे जनप्रतिनिधि
आपके विधायक के पास सिर्फ 3 मिनट:यूपी में विधानसभा-सत्र अब सिर्फ 15% चल रहा; आपकी परेशानी कैसे बताएंगे जनप्रतिनिधि मानसून सत्र की कार्यवाही कम से कम 15 दिन चलनी चाहिए। ताकि सभी सदस्यों को सदन में अपनी बात रखने का मौका मिले। -आराधना मिश्रा मोना, कांग्रेस विधायक दल की नेता सरकार जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं करना चाहती है। सरकार जिम्मेदारी से भाग रही है, वह नहीं चाहती है कि उनकी नाकामी सदन में उठे। सदन कम से कम 10 दिन चले।- रविदास महरोत्रा, सपा विधायक, कार्यमंत्रणा समिति सदस्य देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश। आबादी 25 करोड़ से अधिक। आपकी समस्याएं, विकास के मुद्दे रखने के लिए आपके विधायक को मिल रहा है 3 मिनट से भी कम समय। यूपी में विधायक 403 और मानसून सत्र चला सिर्फ चार दिन। कुल समय मिला-19 घंटे 41 मिनट। यानी एक विधायक को 3 मिनट से भी कम समय मिला। पहली और दूसरी विधानसभा के सेशन की तुलना में अब सिर्फ 15 से 20% ही सत्र चल रहा है। यानी पहले एक साल में औसत 82 दिन विधानसभा की कार्यवाही चलती थी, जो अब घटकर 20 दिन पर पहुंच गई है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में यूपी के मुकाबले दो गुना विधानसभा सत्र चलता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र हाल ही में संपन्न हुआ है। इसके बाद भास्कर ने साल 2023 में देश के प्रमुख राज्यों में विधानसभा सत्र चलने की पड़ताल की। यूपी में सपा-बसपा सरकार में क्या स्थिति थी? सबसे ज्यादा किसकी सरकार में सत्र चला? कब सबसे ज्यादा सत्र चले, सब कुछ जानिए… इस ग्राफिक्स से समझिए चिंता क्यों? आबादी चार गुना बढ़ी, सत्र घटकर 15% हुआ
पहली विधानसभा 6 साल की थी। 1952 से 1957 तक विधानसभा की कार्यवाही 425 दिन चली। हर साल औसत 71 दिन। दूसरी विधानसभा 5 साल की थी, तब 1957 से 1961 के बीच 412 दिन विधानसभा की कार्यवाही चली। यानी हर साल 82 दिन। इसके बाद लगातार विधानसभा के सत्र छोटे होते गए। अब हाल यह है कि हर साल 20 दिन ही विधानसभा की कार्यवाही चल रही है। दूसरी विधानसभा के मुकाबले अब सिर्फ 15% ही विधानसभा की कार्यवाही चल रही है। 1951 की जनगणना के मुताबिक,कुल जनसंख्या 6 करोड़ 32 लाख 19 हजार 672 थी। अब 25 करोड़ से ज्यादा है। समस्याएं बढ़ी हैं, लेकिन सुनवाई के दिन घट गए हैं। खबर में आगे बढ़ने से पहले जानिए, क्या हैं नियम और खामियां
यूपी विधानसभा देश की सबसे बड़ी विधानसभा है। विधानसभा में 403 सदस्य हैं। देश की किसी भी अन्य विधानसभा में 300 से अधिक सदस्य नहीं हैं। असेंबली प्रोसिजर-2023 के मुताबिक साल में तीन बार सदन की बैठक और 90 दिन सदन की कार्यवाही यथा संभव चलनी चाहिए। प्रदेश सरकार के संसदीय कार्य विभाग की ओर से विधानसभा सत्र आहूत करने का प्रस्ताव कैबिनेट बैठक में रखा जाता है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा जाता है। राज्यपाल कैबिनेट के प्रस्ताव पर मुहर लगाते हैं। राज्यपाल की ओर से विधानसभा सचिवालय को विधानसभा सत्र आहूत करने का आदेश दिया जाता है। विधानसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में कार्यमंत्रणा समिति गठित है। समिति में संसदीय कार्य मंत्री, विधानसभा के प्रमुख सचिव, सरकार के मंत्री, नेता प्रतिपक्ष और दलीय नेता भी शामिल किए जाते हैं। संसदीय कार्यमंत्री की ओर से समिति के समक्ष बिजनेस (सदन के योग्य कामकाज) रखे जाते हैं, उन बिजनेस के हिसाब से विधानसभा सत्र संचालन की अवधि तय होती है, लेकिन व्यवहारिकता में समिति संसदीय कार्य मंत्री सरकार के प्रतिनिधि के रूप में जितने दिन सदन चलाने का प्रस्ताव रखते हैं, उतने ही दिन सदन चलता है। विपक्ष की ओर से हमेशा विधानसभा सत्र संचालन की अवधि बढ़ाने की मांग की जाती है। कार्यमंत्रणा समिति में शामिल विपक्षी दलों के प्रतिनिधि बैठक में इसकी मांग भी रखते हैं, लेकिन बैठक में सरकार के सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण उनका विरोध दब जाता है। विपक्ष की ओर से सदन के अंदर और सदन के बाहर भी सत्र की अवधि बहुत छोटी रखने का विरोध किया जाता है, लेकिन यह केवल रस्म अदायगी ही रहती है। फिर खामियां क्या हैं?
प्रोसिजर में यथा संभव शब्द जोड़ने के कारण अब सरकारें अपनी सुविधा के अनुसार ही सेशन चलाने के दिन निर्धारित करती हैं। यूपी में बीते तीन दशक में कभी भी 90 दिन विधानसभा का सत्र संचालित नहीं हुआ। इलाहाबाद के पूर्व जस्टिस रंगनाथ पांडेय कहते हैं- मेरे विचार से सदन को 90 दिन चलना ही चाहिए। सामान्य नियम भी 90 दिन सदन चलाने का ही है। यथा संभव शब्द का लाभ केवल आकस्मिक या अपरिहार्य परिस्थिति में लिया जा सकता है। इसका लाभ लेकर सरकार हर साल सदन के दिन कम नहीं कर सकती। सदन की कार्यवाही कम चलना लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह 90 दिन सदन चलाए। यदि सदन में जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा नहीं होगी तो वेलफेयर कैसे होगा। अब बात करते हैं किसके कार्यकाल में कितने दिन सत्र चला सपा की सरकार में बसपा के मुकाबले 34% ज्यादा चला सेशन
बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और भाजपा के कुल मिलाकर 17 साल के शासन में सपा सरकार में सबसे अधिक दिन सत्र चला, जबकि बसपा सबसे पीछे है।
बसपा: 2007 से 2012 के कार्यकाल में सबसे कम सदन की कार्यवाही चली। 2009 में महज 13 दिन और 2011 में 14 दिन सदन चला। 5 साल में बसपा ने कुल 96 दिन सेशन चलाया। सपा: अखिलेश यादव की सरकार में 2012-2017 तक हर साल 24 से लेकर 27 दिन तक सदन चला। 5 साल में सपा सरकार में कुल 129 दिन सेशन चला। तब माता प्रसाद पांडेय विधानसभा अध्यक्ष हुआ करते थे। भाजपा: 2017 से 2022 तक के शासन में 2018 में सबसे अधिक 25 दिन सदन संचालित हुआ था। 5 साल में 102 दिन सदन चला है। यानी सपा के मुकाबले 27 दिन कम चला। योगी सरकार का पहला कार्यकाल ( मई 2017- 2022) रहा। यह यूपी की 17वीं विधानसभा रही। इस दौरान यूपी विधानसभा के कुल 15 सेशन हुए। इसमें कुल 102 दिन सदन की कार्यवाही चली। इस लिहाज से हर साल विधानसभा की कुल कार्यवाही औसतन 20 दिन ही चली। योगी के दूसरे कार्यकाल (2022 से अब तक) में 8 सेशन हो चुके हैं। इनमें सिर्फ 46 दिन विधानसभा की कार्यवाही चली है। अब जानिए दूसरे राज्यों की क्या स्थिति
हमने 11 राज्यों के विधानसभा सेशन की पड़ताल की। 2023 में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार और राजस्थान जैसे राज्य सेशन चलाने में यूपी से आगे रहे। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 43 दिन का सेशन था, जबकि गुजरात में 42 दिन का। वहीं, उत्तर प्रदेश में इस दौरान दोनों राज्यों के मुकाबले सत्र सिर्फ आधा समय यानी सिर्फ 20 दिन चला, जबकि तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। हमसे राजस्थान और बिहार जैसे राज्य भी विधानसभा सत्र चलाने में आगे हैं। विधानसभा अध्यक्ष अध्यक्ष ने कहा-अवधि बढ़नी चाहिए, नेता प्रतिपक्ष बोले- सरकार घबराती है
यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने दैनिक भास्कर से कहा कि विधानसभा सत्र संचालन की अवधि बढ़नी चाहिए। सत्र चलने से विधायकों को अपने क्षेत्र की समस्याएं और आवश्यकताएं सरकार के सामने रखने का मौका मिलता है। वहीं सरकार भी सदन में अपनी योजनाएं और उपलब्धियां रखती है। यूपी में बीते वर्षों से सत्र संचालन की अवधि कम हुई है, सत्र के दिन बढ़ने चाहिए। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि सरकार सदन अपने काम के आधार पर चलाती है। नियमावली में लिखे यथा संभव का लाभ लिया जाता है। मानसून सत्र पांच दिन तक चलना था, लेकिन सरकार ने चार ही दिन में खत्म कर दिया। विपक्ष से घबराने के कारण सदन की कार्यवाही को कम चलाया जाता है। कम सेशन चलाना कितना सही है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट जयदीप नारायण माथुर कहते हैं- यह बात सही है कि विधानसभा अधिक से अधिक दिन चलनी चाहिए। विधानसभा जब ज्यादा दिन चलेगी तो जनप्रतिनिधियों और सरकार की जवाबदेही बढ़ेगी। जो नियमावली बनी है उसका पालन होना चाहिए, लेकिन संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि न्यूनतम सदन कितने दिन संचालित होगा। इसलिए यह गैर कानूनी तो नहीं है। हालांकि व्यावहारिक रूप से सदन ज्यादा चलना चाहिए। यह खबर भी पढ़ें योगी आवास के पास महिला ने आत्मदाह की कोशिश की; गोद से बच्चे को किनारे रखा; पेट्रोल डालकर आग लगा ली लखनऊ में सीएम योगी के आवास के पास एक महिला ने आत्मदाह की कोशिश की। उन्नाव से महिला जनता दरबार के लिए आई थी। बाहर आकर उसने गोद में लिए बच्चे को सड़क किनारे रखा। फिर बैग से पेट्रोल की बोतल निकाली। खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली। आसपास के पुलिसकर्मी जब तक कुछ समझ पाते, महिला बुरी तरह जलने लगी। पुलिसकर्मी महिला को बचाने के लिए दौड़े। बमुश्किल पानी डालकर आग बुझाई। तब तक महिला काफी जल चुकी थी। यहां पढ़ें पूरी खबर