हरियाणा की राजनीति का केंद्र बिंदु बने करनाल लोकसभा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस के टिकट के लिए जबरदस्त खींचतान मची हुई है। 9 विधानसभा क्षेत्रों से 258 नेताओं ने टिकट के लिए अपना दावा ठोका है। इस संघर्ष में हर नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए है, जहां से उनके भाग्य का फैसला होगा। चुनावी मैदान में दावेदारी तो सभी कर रहे हैं, लेकिन असली चुनौती है कि पार्टी किसे अंतिम टिकट थमाएगी और वह कौन होगा जो चुनावी वैतरणी पार करेगा। करनाल की लड़ाई: पुरानी साख बनाम नए चेहरों की चमक करनाल विधानसभा, जिसे हरियाणा की राजनीति की “हॉट सीट” कहा जा रहा है, पर कांग्रेस के 23 दावेदार मैदान में हैं। इनमें प्रमुख चेहरे हैं सुमित सिंह, मनोज वधवा, अशोक खुराना, तरलोचन सिंह और पराग गाबा। ये सभी नेता दिल्ली में पार्टी आलाकमान के सामने अपनी पैरवी में जुटे हुए हैं। करनाल की सीट पर कांग्रेस के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता पाने की कोशिश नहीं है, बल्कि पार्टी के लिए अपनी पुरानी साख बचाने और नए चेहरों की चमक से मुकाबला करने की चुनौती भी है। घरौंडा: 28 साल बाद भी सत्ता की तलाश घरौंडा विधानसभा सीट पर कांग्रेस की स्थिति पिछले 28 सालों से बदहाल रही है। 1996 के बाद से कांग्रेस इस सीट को जीत नहीं पाई है, लेकिन इस बार उम्मीद की किरण नजर आ रही है। कांग्रेस के 40 नेताओं ने यहां से टिकट के लिए आवेदन किया है, जिनमें नरेंद्र सांगवान, अनिल राणा, विरेंद्र राठौर, रघुबीर संधू व भूप्पी लाठर प्रमुख चेहरे हैं। क्या घरौंडा की जनता इस बार कांग्रेस पर भरोसा करेगी, या फिर पुराने समीकरण ही हावी रहेंगे? इंद्री और असंध: अंदरूनी कलह की चुनौती इंद्री विधानसभा में 41 और असंध में 36 उम्मीदवार टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। यहां की चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी खेमेबाजी से भी है। इंद्री में पूर्व विधायक राकेश कंबोज और नवजोत कश्यप जैसे नेताओं का दिल्ली में डेरा इस बात का संकेत है कि कांग्रेस के लिए टिकट का बंटवारा आसान नहीं होगा। वहीं, असंध में मौजूदा विधायक शमशेर सिंह गोगी और सुरेंद्र नरवाल के बीच की खींचतान पार्टी के लिए सिरदर्द बनी हुई है। पानीपत: ग्रामीण बनाम शहरी का संघर्ष पानीपत जिले की चार विधानसभा सीटों में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है ग्रामीण बनाम शहरी समीकरणों को साधना। पानीपत ग्रामीण में 54 उम्मीदवारों ने टिकट के लिए आवेदन किया है, जबकि शहरी सीट से सिर्फ 10 ने। इसराना सीट पर मौजूदा विधायक बलबीर सिंह वाल्मीकि का टिकट पाना पक्का माना जा रहा है, लेकिन पार्टी आलाकमान की निगाहें शहरी और ग्रामीण सीटों के बीच के संतुलन पर हैं। कांग्रेस की रणनीति: दिल्ली से मिलेगी जीत की चाबी? दिल्ली में जमा हुए ये कांग्रेस नेता न केवल टिकट के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि यह चुनाव उनके राजनीतिक करियर का निर्णायक मोड़ भी साबित हो सकता है। सवाल यह है कि पार्टी आलाकमान किसे टिकट सौंपेगी और क्या वह नेता कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा? करनाल में कांग्रेस की जीत की चाबी किसके हाथ में होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार का चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं होगा। हरियाणा की राजनीति का केंद्र बिंदु बने करनाल लोकसभा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस के टिकट के लिए जबरदस्त खींचतान मची हुई है। 9 विधानसभा क्षेत्रों से 258 नेताओं ने टिकट के लिए अपना दावा ठोका है। इस संघर्ष में हर नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए है, जहां से उनके भाग्य का फैसला होगा। चुनावी मैदान में दावेदारी तो सभी कर रहे हैं, लेकिन असली चुनौती है कि पार्टी किसे अंतिम टिकट थमाएगी और वह कौन होगा जो चुनावी वैतरणी पार करेगा। करनाल की लड़ाई: पुरानी साख बनाम नए चेहरों की चमक करनाल विधानसभा, जिसे हरियाणा की राजनीति की “हॉट सीट” कहा जा रहा है, पर कांग्रेस के 23 दावेदार मैदान में हैं। इनमें प्रमुख चेहरे हैं सुमित सिंह, मनोज वधवा, अशोक खुराना, तरलोचन सिंह और पराग गाबा। ये सभी नेता दिल्ली में पार्टी आलाकमान के सामने अपनी पैरवी में जुटे हुए हैं। करनाल की सीट पर कांग्रेस के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता पाने की कोशिश नहीं है, बल्कि पार्टी के लिए अपनी पुरानी साख बचाने और नए चेहरों की चमक से मुकाबला करने की चुनौती भी है। घरौंडा: 28 साल बाद भी सत्ता की तलाश घरौंडा विधानसभा सीट पर कांग्रेस की स्थिति पिछले 28 सालों से बदहाल रही है। 1996 के बाद से कांग्रेस इस सीट को जीत नहीं पाई है, लेकिन इस बार उम्मीद की किरण नजर आ रही है। कांग्रेस के 40 नेताओं ने यहां से टिकट के लिए आवेदन किया है, जिनमें नरेंद्र सांगवान, अनिल राणा, विरेंद्र राठौर, रघुबीर संधू व भूप्पी लाठर प्रमुख चेहरे हैं। क्या घरौंडा की जनता इस बार कांग्रेस पर भरोसा करेगी, या फिर पुराने समीकरण ही हावी रहेंगे? 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करनाल में कांग्रेस की जीत की चाबी किसके हाथ में होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार का चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं होगा। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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