आजकल ब्यूरोक्रेसी में जाति की वजह से एक साहब की कुर्सी बचने की चर्चा खूब हो रही है। साहब राजधानी के चमकते सितारे हैं। एक माननीय की उनके ही विभाग में नहीं चल रही है। पढ़ाई-लिखाई वाले विभाग में वह तबादला एक्सप्रेस चलाना चाहते हैं, लेकिन अफसर नियम के बाहर जाने ही नहीं दे रहे। राजनीति में चर्चा है कि भगवा पार्टी से टिकट के लिए दिल्ली की दौड़ लगाने वाले नेता मायूस हैं। उन्हें कह दिया गया है कि यूपी में दखल नहीं दिया जा रहा है। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए ब्यूरोक्रेसी और राजनीति में चल रही चर्चाएं… माननीय की नहीं सुनते साहब स्कूली शिक्षा से जुड़े महकमे में इन दिनों माननीय और साहब के बीच खींचतान चल रही है। महकमे के दो बड़े साहब ने मिलकर माननीय को अच्छा खासा परेशान कर रखा है। दोनों साहब माननीय को नियमों के इधर-उधर कुछ भी नहीं करने दे रहे। प्रशासनिक कामकाज में भी माननीय का दखल कम कर दिया है। चर्चा है कि माननीय महकमे में तबादला एक्सप्रेस चलाना चाहते हैं, लेकिन साहब इसके खिलाफ हैं। माननीय के परिवार का राजनीतिक कद बीते दिनों घटा भी है। पहले जैसा रसूख नहीं रहा, नहीं तो वह सबको हिला कर रख देते। विभाग के एक साहब सत्ता के करीब हैं। इस कारण माननीय भी पंगा लेने से बच रहे हैं। दिल्ली का दखल नहीं चलेगा
देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव में भगवा टोली की हार का ठीकरा यूपी वालों ने दिल्ली वालों पर फोड़ा। दिल्ली वालों ने हार के लिए यूपी को जिम्मेदार ठहराया। करीब दो महीने तक चले इस खेल के बाद इस बात पर सैद्धांतिक सहमति बनी कि अब सूबे में भगवा टोली के हर काम में दिल्ली का दखल नहीं होगा। जैसे ही यह खबर सूबे में फैली, उप चुनाव में टिकट के दावेदारों के दिल्ली दौरे भी कम हो गए। वो मायूस हो गए हैं। पहले अगर यूपी में नहीं सुनी जाती थी तो दिल्ली से सीधे ‘वीटो’ लगवा देते थे। अब टिकट तो दूर की बात है, सुनवाई भी हो जाए तो बड़ी बात है। गजब का मजाक है
पिछले दिनों आधी रात में कुछ आईएएस अधिकारियों के तबादले हुए। पहले खबर आई की लखनऊ के जिलाधिकारी को भी हटा दिया गया। कौन बना, यह नाम भी चल गया। जिनका नाम चला वह बधाइयां स्वीकार करने लगे। पश्चिमी यूपी से प्रदेश की राजधानी की बागडोर संभालने की तैयारी करने लगे। खबर देर रात की थी, इसलिए अखबारों को भी कन्फर्म करने का मौका नहीं मिला। कई अखबारों में इनके जाने की और उनके आने की खबरें पहले पेज पर छप गईं। बाद में पता चला कि साहब का तो ट्रांसफर ही नहीं हुआ। अगर ट्रांसफर नहीं हुआ तो फिर नाम कैसे चल गया? क्या देर रात तबादलों में कोई बदलाव किया गया? यह जानने के लिए वह साहब ज्यादा परेशान हैं, जिनका नाम राजधानी के कलेक्टर के तौर पर अखबारों में भी छप गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उनके साथ यह मजाक किसने किया? ट्रांसफर लिस्ट को लेकर बढ़ा बीपी
पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री ने कानून-व्यवस्था को लेकर बैठक की। बैठक में कई बड़े अफसरों के काम को लेकर नाराजगी भी जताई। माना जा रहा था कि जिनके कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं, उन पर गाज गिर सकती है। कुछ अफसर लखनऊ में अपने चाहने वालों से यह जानने की कोशिश करने में लगे हैं कि आने वाली संभावित लिस्ट में उनका नाम तो नहींं? अब नाम किसका है और किसका नहीं? यह तो किसी को नहीं पता, लिस्ट का इंतजार सबको है। कुछ की धड़कनें और कुछ का बीपी इस लिस्ट को लेकर पहले से बढ़ गया है। वहीं, साइड पोस्टिंग में सजा काट रहे अफसर भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद इस लिस्ट में उनका नाम आ जाए और वह साइड पोस्टिंग से निजात पा जाएं। और सूर्य ढलने से बच गया
बीते दिनों बड़े साहब लोगों की एक तबादला सूची जारी हुई। तबादला सूची को लेकर सोशल मीडिया में खबर चली कि लखनऊ में बीते दो साल से छाया सूर्य अस्त हो गया है। लेकिन, जब सरकार की अधिकृत सूची आई तो पता चला कि सूर्य आसानी से ढलने वाला नहीं है। सूर्य को अस्त करने की कोशिश हुई तो जात और जमात के पैरोकार सक्रिय हो गए। किसी ने एक जाति के दो अफसरों को एक साथ साइडलाइन करने पर वोट बैंक के नुकसान का तर्क दिया। तो किसी ने तीन-चार महीने बाद होने वाले प्रमोशन के बाद हटाने की सलाह दी। खैर अब एसपीजी यूनिट पता करने में लगी है कि सोशल मीडिया में अंदर की बात किसने बाहर की। ये भी पढ़ें… भगवा दल में अब नो टेंशन वाले नेताजी:मंत्री के पीआरओ की सोने की चेन चर्चा में; बड़े साहब के दफ्तर में ठेकेदार की बैठकी आजकल ब्यूरोक्रेसी में जाति की वजह से एक साहब की कुर्सी बचने की चर्चा खूब हो रही है। साहब राजधानी के चमकते सितारे हैं। एक माननीय की उनके ही विभाग में नहीं चल रही है। पढ़ाई-लिखाई वाले विभाग में वह तबादला एक्सप्रेस चलाना चाहते हैं, लेकिन अफसर नियम के बाहर जाने ही नहीं दे रहे। राजनीति में चर्चा है कि भगवा पार्टी से टिकट के लिए दिल्ली की दौड़ लगाने वाले नेता मायूस हैं। उन्हें कह दिया गया है कि यूपी में दखल नहीं दिया जा रहा है। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए ब्यूरोक्रेसी और राजनीति में चल रही चर्चाएं… माननीय की नहीं सुनते साहब स्कूली शिक्षा से जुड़े महकमे में इन दिनों माननीय और साहब के बीच खींचतान चल रही है। महकमे के दो बड़े साहब ने मिलकर माननीय को अच्छा खासा परेशान कर रखा है। दोनों साहब माननीय को नियमों के इधर-उधर कुछ भी नहीं करने दे रहे। प्रशासनिक कामकाज में भी माननीय का दखल कम कर दिया है। चर्चा है कि माननीय महकमे में तबादला एक्सप्रेस चलाना चाहते हैं, लेकिन साहब इसके खिलाफ हैं। माननीय के परिवार का राजनीतिक कद बीते दिनों घटा भी है। पहले जैसा रसूख नहीं रहा, नहीं तो वह सबको हिला कर रख देते। विभाग के एक साहब सत्ता के करीब हैं। इस कारण माननीय भी पंगा लेने से बच रहे हैं। दिल्ली का दखल नहीं चलेगा
देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव में भगवा टोली की हार का ठीकरा यूपी वालों ने दिल्ली वालों पर फोड़ा। दिल्ली वालों ने हार के लिए यूपी को जिम्मेदार ठहराया। करीब दो महीने तक चले इस खेल के बाद इस बात पर सैद्धांतिक सहमति बनी कि अब सूबे में भगवा टोली के हर काम में दिल्ली का दखल नहीं होगा। जैसे ही यह खबर सूबे में फैली, उप चुनाव में टिकट के दावेदारों के दिल्ली दौरे भी कम हो गए। वो मायूस हो गए हैं। पहले अगर यूपी में नहीं सुनी जाती थी तो दिल्ली से सीधे ‘वीटो’ लगवा देते थे। अब टिकट तो दूर की बात है, सुनवाई भी हो जाए तो बड़ी बात है। गजब का मजाक है
पिछले दिनों आधी रात में कुछ आईएएस अधिकारियों के तबादले हुए। पहले खबर आई की लखनऊ के जिलाधिकारी को भी हटा दिया गया। कौन बना, यह नाम भी चल गया। जिनका नाम चला वह बधाइयां स्वीकार करने लगे। पश्चिमी यूपी से प्रदेश की राजधानी की बागडोर संभालने की तैयारी करने लगे। खबर देर रात की थी, इसलिए अखबारों को भी कन्फर्म करने का मौका नहीं मिला। कई अखबारों में इनके जाने की और उनके आने की खबरें पहले पेज पर छप गईं। बाद में पता चला कि साहब का तो ट्रांसफर ही नहीं हुआ। अगर ट्रांसफर नहीं हुआ तो फिर नाम कैसे चल गया? क्या देर रात तबादलों में कोई बदलाव किया गया? यह जानने के लिए वह साहब ज्यादा परेशान हैं, जिनका नाम राजधानी के कलेक्टर के तौर पर अखबारों में भी छप गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उनके साथ यह मजाक किसने किया? ट्रांसफर लिस्ट को लेकर बढ़ा बीपी
पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री ने कानून-व्यवस्था को लेकर बैठक की। बैठक में कई बड़े अफसरों के काम को लेकर नाराजगी भी जताई। माना जा रहा था कि जिनके कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं, उन पर गाज गिर सकती है। कुछ अफसर लखनऊ में अपने चाहने वालों से यह जानने की कोशिश करने में लगे हैं कि आने वाली संभावित लिस्ट में उनका नाम तो नहींं? अब नाम किसका है और किसका नहीं? यह तो किसी को नहीं पता, लिस्ट का इंतजार सबको है। कुछ की धड़कनें और कुछ का बीपी इस लिस्ट को लेकर पहले से बढ़ गया है। वहीं, साइड पोस्टिंग में सजा काट रहे अफसर भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद इस लिस्ट में उनका नाम आ जाए और वह साइड पोस्टिंग से निजात पा जाएं। और सूर्य ढलने से बच गया
बीते दिनों बड़े साहब लोगों की एक तबादला सूची जारी हुई। तबादला सूची को लेकर सोशल मीडिया में खबर चली कि लखनऊ में बीते दो साल से छाया सूर्य अस्त हो गया है। लेकिन, जब सरकार की अधिकृत सूची आई तो पता चला कि सूर्य आसानी से ढलने वाला नहीं है। सूर्य को अस्त करने की कोशिश हुई तो जात और जमात के पैरोकार सक्रिय हो गए। किसी ने एक जाति के दो अफसरों को एक साथ साइडलाइन करने पर वोट बैंक के नुकसान का तर्क दिया। तो किसी ने तीन-चार महीने बाद होने वाले प्रमोशन के बाद हटाने की सलाह दी। खैर अब एसपीजी यूनिट पता करने में लगी है कि सोशल मीडिया में अंदर की बात किसने बाहर की। ये भी पढ़ें… भगवा दल में अब नो टेंशन वाले नेताजी:मंत्री के पीआरओ की सोने की चेन चर्चा में; बड़े साहब के दफ्तर में ठेकेदार की बैठकी उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर