क्या ‘देशद्रोहियों’ का मुल्क बनता जा रहा है पाकिस्तान?:सियासतदानों ने अपनी पिछली गलतियों से कभी कोई सबक नहीं सीखा

क्या ‘देशद्रोहियों’ का मुल्क बनता जा रहा है पाकिस्तान?:सियासतदानों ने अपनी पिछली गलतियों से कभी कोई सबक नहीं सीखा

पूर्व वजीर-ए-आजम इमरान खान पिछले एक साल से सलाखों के पीछे हैं। लेकिन इस्लामाबाद पुलिस ने उन पर 8 सितंबर, 2024 को हुई उस एक सार्वजनिक बैठक के लिए खिलाफत-ए-वतन (देशद्रोह) का मामला दर्ज किया है। जिसमें खान ने कभी हिस्सा ही नहीं लिया। पुलिस का इल्जाम है कि उनकी पार्टी के नेताओं ने उनके उकसावे पर राज्य संस्थाओं के खिलाफ भाषण दिए। लेकिन खान पहले पूर्व वजीर-ए-आजम नहीं हैं, जिन पर पाकिस्तान में देशद्रोह का इल्जाम लगा है। हकीकत तो यह है कि इस तरह के इल्जाम झेलने वाले वे मुल्क के 9वें पूर्व वजीर-ए-आजम हैं। बंगाली नेता हुसैन शहीद सुहरावर्दी पहले पूर्व वजीर-ए-आजम थे, जिन पर 1962 में देशद्रोह का मामला चला था। सुहरावर्दी 1956 में पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम बने थे। जनरल अयूब खान उन्हें सेना प्रमुख के तौर पर सलामी देते थे, लेकिन कुछ साल बाद ही सुहरावर्दी को जनरल अयूब खान की सैन्य सरकार ने देशद्रोह के इल्जाम के तहत गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उन्होंने सैन्य तानाशाही को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। 1963 में सुहरावर्दी का इंतकाल हो गया। मुहम्मद अली जिन्ना की छोटी बहन मिस फातिमा जिन्ना ने 1964 में जनरल अयूब खान के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का फैसला किया। उस समय के सभी ज्ञात “देशद्रोही’ जिन्ना की बहन का समर्थन कर रहे थे। शेख मुजीब उर रहमान ढाका में उनके मुख्य मतदान एजेंट थे। जनरल अयूब खान ने दिसंबर 1964 में टाइम पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में फातिमा जिन्ना को भारत और अमेरिका की पैरोकार बताया था। अयूब खान ने धांधली करके यह चुनाव जीत लिया था। कई विपक्षी नेताओं को देशद्रोह के इल्जाम में सलाखों के पीछे डाल दिया गया। जुल्फिकार अली भुट्टो की लोकतांत्रिक सरकार ने भी कई राजनीतिक विरोधियों को देशद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार किया। उन्होंने 1973 में बलूचिस्तान की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया और सूबे के गवर्नर मीर गौस बख्श बिजिंजू और मुख्यमंत्री सरदार अताउल्लाह मेंगल को हैदराबाद साजिश मामले में गिरफ्तार कर लिया। जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी पुस्तक “रूमर एंड रिएलिटी’ में दावा किया था कि सेना के जनरलों ने उन्हें अपने ही मंत्री मेराज मुहम्मद खान को देशद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार करने के लिए मजबूर किया। जनरल जिया ने 1977 में मार्शल लॉ लागू करने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो का मीडिया ट्रायल शुरू करवा दिया। फौज समर्थक अखबारों ने दावा किया था कि वे देशद्रोही और हत्यारे थे, इस तथ्य के बावजूद कि उन्होंने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। जनरल जिया की मौत के बाद 1988 में चुनाव हुए और बेनजीर भुट्टो वजीर-ए-आजम बनीं। उन्हें खुफिया एजेंसियों द्वारा सुचारू रूप से काम नहीं करने दिया गया। बेनजीर भुट्टो को पंजाब सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवाज शरीफ ने “सुरक्षा के लिए जोखिम’ करार दिया था। कुछ ही सालों के भीतर नवाज शरीफ मुल्क के वजीर-ए-आजम बन गए और फिर उनके विरोधियों ने उन्हें भी “सुरक्षा जोखिम’ घोषित कर दिया। इस तरह हुसैन शहीद सुहरावर्दी, जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ, गुलाम मुस्तफा जतोई, मलिक मिराज खालिद, यूसुफ रजा गिलानी और राजा परवेज़ अशरफ सहित कम से कम 8 प्रधानमंत्रियों पर अलग-अलग समय में देशद्रोह के इल्जाम लगे। उनके खिलाफ सभी इल्जाम सियासी थे और किसी भी अदालत में कुछ भी साबित नहीं हुआ। अब इमरान खान के खिलाफ इल्जाम लगे हैं। 2011 में मेमो गेट स्कैंडल के दौरान आसिफ अली जरदारी और अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी पर देशद्रोह के इल्जाम लगे थे। यह नवाज शरीफ ही थे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पीपीपी सरकार के खिलाफ एक आवेदन दायर किया था। लेकिन कुछ ही सालों के भीतर जब शरीफ़ वज़ीर-ए-आज़म बन गए तो पीपीपी उन्हें ‘मोदी का यार’ घोषित कर रही थी। पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों और सियासतदानों ने अपनी पिछली ग़लतियों से कभी कोई सबक़ नहीं सीखा। पाकिस्तानी टीवी चैनलों और पत्रकारों ने बिना सबूत के एक-दूसरे पर विदेशी फंडिंग और देशद्रोह के इल्ज़ाम लगाए और आम जनता की नजरों में अपनी छवि खराब ही की। पीटीआई नेता इमरान खान ने दावा किया था कि नवाज शरीफ मुल्क की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अब नवाज शरीफ भी खान के बारे में यही कहते हैं। यह असहिष्णुता चरमपंथ को बढ़ावा दे रही है, लेकिन हमारे ‘सुपर देशभक्तों’ को लगता है कि वे देशद्रोह के इल्जाम फैलाकर इस मुल्क को मजबूत बना रहे हैं। वे यह समझने में नाकामयाब रहे हैं कि इस देशद्रोह के कानून को पाकिस्तान के निर्माण से बहुत पहले औपनिवेशिक ताकतें केवल अपने फायदे के लिए अमल में लाई थीं। हमारे पुराने आकाओं ने तो इंग्लैंड में इन देशद्रोह कानूनों को कभी का निरस्त कर दिया है, लेकिन हम अभी भी इन औपनिवेशिक कानूनों का एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं। हमें इन औपनिवेशिक कानूनों से छुटकारा पाना होगा। हमारी सबसे बड़ी दुश्मन तो औपनिवेशिक मानसिकता है। ये कॉलम भी पढ़ें… कॉमेडी फिल्मों से हंसना चाहते हैं दोनों तरफ के लोग!:भारत-पाकिस्तान एक साथ हंसेंगे तो पूरा दक्षिण एशिया हंसेगा पूर्व वजीर-ए-आजम इमरान खान पिछले एक साल से सलाखों के पीछे हैं। लेकिन इस्लामाबाद पुलिस ने उन पर 8 सितंबर, 2024 को हुई उस एक सार्वजनिक बैठक के लिए खिलाफत-ए-वतन (देशद्रोह) का मामला दर्ज किया है। जिसमें खान ने कभी हिस्सा ही नहीं लिया। पुलिस का इल्जाम है कि उनकी पार्टी के नेताओं ने उनके उकसावे पर राज्य संस्थाओं के खिलाफ भाषण दिए। लेकिन खान पहले पूर्व वजीर-ए-आजम नहीं हैं, जिन पर पाकिस्तान में देशद्रोह का इल्जाम लगा है। हकीकत तो यह है कि इस तरह के इल्जाम झेलने वाले वे मुल्क के 9वें पूर्व वजीर-ए-आजम हैं। बंगाली नेता हुसैन शहीद सुहरावर्दी पहले पूर्व वजीर-ए-आजम थे, जिन पर 1962 में देशद्रोह का मामला चला था। सुहरावर्दी 1956 में पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम बने थे। जनरल अयूब खान उन्हें सेना प्रमुख के तौर पर सलामी देते थे, लेकिन कुछ साल बाद ही सुहरावर्दी को जनरल अयूब खान की सैन्य सरकार ने देशद्रोह के इल्जाम के तहत गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उन्होंने सैन्य तानाशाही को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। 1963 में सुहरावर्दी का इंतकाल हो गया। मुहम्मद अली जिन्ना की छोटी बहन मिस फातिमा जिन्ना ने 1964 में जनरल अयूब खान के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का फैसला किया। उस समय के सभी ज्ञात “देशद्रोही’ जिन्ना की बहन का समर्थन कर रहे थे। शेख मुजीब उर रहमान ढाका में उनके मुख्य मतदान एजेंट थे। जनरल अयूब खान ने दिसंबर 1964 में टाइम पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में फातिमा जिन्ना को भारत और अमेरिका की पैरोकार बताया था। अयूब खान ने धांधली करके यह चुनाव जीत लिया था। कई विपक्षी नेताओं को देशद्रोह के इल्जाम में सलाखों के पीछे डाल दिया गया। जुल्फिकार अली भुट्टो की लोकतांत्रिक सरकार ने भी कई राजनीतिक विरोधियों को देशद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार किया। उन्होंने 1973 में बलूचिस्तान की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया और सूबे के गवर्नर मीर गौस बख्श बिजिंजू और मुख्यमंत्री सरदार अताउल्लाह मेंगल को हैदराबाद साजिश मामले में गिरफ्तार कर लिया। जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी पुस्तक “रूमर एंड रिएलिटी’ में दावा किया था कि सेना के जनरलों ने उन्हें अपने ही मंत्री मेराज मुहम्मद खान को देशद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार करने के लिए मजबूर किया। जनरल जिया ने 1977 में मार्शल लॉ लागू करने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो का मीडिया ट्रायल शुरू करवा दिया। फौज समर्थक अखबारों ने दावा किया था कि वे देशद्रोही और हत्यारे थे, इस तथ्य के बावजूद कि उन्होंने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। जनरल जिया की मौत के बाद 1988 में चुनाव हुए और बेनजीर भुट्टो वजीर-ए-आजम बनीं। उन्हें खुफिया एजेंसियों द्वारा सुचारू रूप से काम नहीं करने दिया गया। बेनजीर भुट्टो को पंजाब सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवाज शरीफ ने “सुरक्षा के लिए जोखिम’ करार दिया था। कुछ ही सालों के भीतर नवाज शरीफ मुल्क के वजीर-ए-आजम बन गए और फिर उनके विरोधियों ने उन्हें भी “सुरक्षा जोखिम’ घोषित कर दिया। इस तरह हुसैन शहीद सुहरावर्दी, जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ, गुलाम मुस्तफा जतोई, मलिक मिराज खालिद, यूसुफ रजा गिलानी और राजा परवेज़ अशरफ सहित कम से कम 8 प्रधानमंत्रियों पर अलग-अलग समय में देशद्रोह के इल्जाम लगे। उनके खिलाफ सभी इल्जाम सियासी थे और किसी भी अदालत में कुछ भी साबित नहीं हुआ। अब इमरान खान के खिलाफ इल्जाम लगे हैं। 2011 में मेमो गेट स्कैंडल के दौरान आसिफ अली जरदारी और अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी पर देशद्रोह के इल्जाम लगे थे। यह नवाज शरीफ ही थे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पीपीपी सरकार के खिलाफ एक आवेदन दायर किया था। लेकिन कुछ ही सालों के भीतर जब शरीफ़ वज़ीर-ए-आज़म बन गए तो पीपीपी उन्हें ‘मोदी का यार’ घोषित कर रही थी। पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों और सियासतदानों ने अपनी पिछली ग़लतियों से कभी कोई सबक़ नहीं सीखा। पाकिस्तानी टीवी चैनलों और पत्रकारों ने बिना सबूत के एक-दूसरे पर विदेशी फंडिंग और देशद्रोह के इल्ज़ाम लगाए और आम जनता की नजरों में अपनी छवि खराब ही की। पीटीआई नेता इमरान खान ने दावा किया था कि नवाज शरीफ मुल्क की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अब नवाज शरीफ भी खान के बारे में यही कहते हैं। यह असहिष्णुता चरमपंथ को बढ़ावा दे रही है, लेकिन हमारे ‘सुपर देशभक्तों’ को लगता है कि वे देशद्रोह के इल्जाम फैलाकर इस मुल्क को मजबूत बना रहे हैं। वे यह समझने में नाकामयाब रहे हैं कि इस देशद्रोह के कानून को पाकिस्तान के निर्माण से बहुत पहले औपनिवेशिक ताकतें केवल अपने फायदे के लिए अमल में लाई थीं। हमारे पुराने आकाओं ने तो इंग्लैंड में इन देशद्रोह कानूनों को कभी का निरस्त कर दिया है, लेकिन हम अभी भी इन औपनिवेशिक कानूनों का एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं। हमें इन औपनिवेशिक कानूनों से छुटकारा पाना होगा। हमारी सबसे बड़ी दुश्मन तो औपनिवेशिक मानसिकता है। ये कॉलम भी पढ़ें… कॉमेडी फिल्मों से हंसना चाहते हैं दोनों तरफ के लोग!:भारत-पाकिस्तान एक साथ हंसेंगे तो पूरा दक्षिण एशिया हंसेगा   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर