हरियाणा में नई सरकार के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कवायद शुरू कर दी है। मंत्रिमंडल के लिए 15 विधायकों के नाम शॉर्ट लिस्ट किए गए हैं। इनमें 7 मंत्री और एक डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने नाम फाइनल करने से पहले विधायकों की प्रोफाइल मंगाई है। जो चेहरे शॉर्ट लिस्ट किए गए हैं, उनमें नायब सैनी, अनिल विज, राव नरबीर सिंह, विपुल गोयल, मूलचंद शर्मा, कृष्णा गहलावत, कृष्णलाल पंवार, हरविंदर कल्याण, रणबीर गंगवा, महिपाल ढांडा, बिमला चौधरी, लक्ष्मण यादव, घनश्याम सर्राफ, आरती राव और श्रुति चौधरी शामिल हैं। 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया था। भाजपा ने 48, कांग्रेस ने 37, इनेलो ने 2 और 3 निर्दलीयों ने जीत दर्ज की। तीनों निर्दलीय विधायक भाजपा को समर्थन दे चुके हैं। जिसके बाद भाजपा के पास विधायकों की संख्या 51 हो गई है। कल पंचकूला में विधायक दल की मीटिंग होगी। मीटिंग में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद रहेंगे। सिलसिलेवार ढंग से जानिए, किसकी दावेदारी क्यों मजबूत…. 1. राव नरबीर सिंह : बादशाहपुर सीट से चुनाव जीते राव नरबीर सिंह अहीरवाल बेल्ट के बड़े नेता कहे जाने वाले राव इंद्रजीत सिंह के धुर विरोधी रहे हैं। पूरे इलाके में राव नरबीर ही इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने दम पर न केवल हाईकमान से सीधे टिकट हासिल की, बल्कि इस इलाके में सबसे बड़ी जीत भी दर्ज की है। नरबीर सिंह 2014 में मनोहर लाल खट्टर की सरकार में पावरफुल कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके सीधे हाईकमान से अच्छे संबंध है। उनकी कैबिनेट मंत्री के पद पर दावेदारी काफी मजबूत है। इसकी दूसरी वजह उनका राव इंद्रजीत सिंह का विरोधी होना भी है। 10 विधायकों में राव इंद्रजीत सिंह के धुर विरोधी में इकलौते राव नरबीर ही है। भाजपा नरबीर को मंत्री बनाकर इलाके में राव इंद्रजीत सिंह के बराबर नेता खड़ा कर सकती है। 2. बिमला चौधरी : बिमला चौधरी ने पटौदी विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है। वह 2014 में भी इसी सीट से विधायक बनी थीं। 2019 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया था। वह राव इंद्रजीत सिंह की करीबी हैं। बिमला चौधरी की दावेदारी इसलिए भी मजबूत है, क्योंकि वह जातीय संतुलन के हिसाब से राव इंद्रजीत सिंह के कोटे में वह फिट बैठती हैं। इसके अलावा उन्हें विधायक रहते हुए प्रशासनिक अनुभव भी है। 3. लक्ष्मण यादव : वह रेवाड़ी सीट से चुनाव जीते है। वह 2019 में कोसली से विधायक चुने गए थे। राव इंद्रजीत सिंह और संगठन दोनों की पसंद की वजह से उन्हें टिकट मिला। अहीरवाल इलाके में यादवों की वोट एक तरह से एक तरफा भाजपा के पक्ष में पड़ा। 2019 में भले ही रेवाड़ी सीट पर भाजपा जीत दर्ज नहीं कर पाई, लेकिन 2014 में यहां पहली बार कमल खिला था।अहीरवाल बेल्ट की राजधानी कहे जाने वाले रेवाड़ी को पिछले 10 सालों में मंत्रीपद नहीं मिल पाया। ऐसे में लक्ष्मण सिंह यादव के नाम पर राव इंद्रजीत सिंह भी सहमति जता सकते हैं। 4. आरती राव : राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव ने अटेली से चुनाव जीता है। पिछले 3 चुनाव में अटेली में भाजपा उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। इलाके में खुद के प्रभाव के चलते ही राव इंद्रजीत सिंह ने बेटी को टिकट दिलाया। ऐसे में आरती राव को मंत्रिमंडल में शामिल कराकर राव इंद्रजीत सिंह महेंद्रगढ़ जिले को मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं। 5. विपुल गोयल : यह वैश्य समुदाय से आते हैं। 2014 में चुनाव जीतकर कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। हालांकि फरीदाबाद सांसद कृष्ण पाल गुर्जर के मतभेदों के कारण टिकट काट दिया गया था। इस बार सीधी हाईकमान में पकड़ होने के कारण इनको टिकट मिला, इसके साथ ही नए मंत्रिमंडल में इसी कारण से कैबिनेट मंत्री के रूप में मजबूत दावेदार बने हुए हैं। 6 मूलचंद शर्मा: भाजपा में ब्राह्मणों के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पंडित रामबिलास शर्मा का नाम आता था, लेकिन 2019 में उनके चुनाव हारने के बाद उनके ही रिश्तेदार बल्लभगढ़ से विधायक मूलचंद शर्मा को मनोहर लाल के दूसरे टर्म में परिवहन मंत्री बनाया गया। मूलचंद शर्मा लगातार तीसरी बार इस सीट से विधायक चुने गए हैं। 5 साल मंत्री रहने के दौरान उनकी परफॉर्मेंस ठीक रही, जिसकी वजह से वह इस बार भी कैबिनेट मंत्री पद के दावेदार हैं। उनकी दावेदारी की दूसरी बड़ी वजह इस बार के चुनाव में ब्राह्मण वोटर्स का एकतरफा झुकाव भाजपा की तरफ रहना भी है। 7. महिपाल ढांडा: पानीपत ग्रामीण से विधायक बने हैं। पार्टी का बड़ा जाट चेहरा बनकर उभरे हैं। नायब सैनी के सीएम बनाए जाने के बाद ढांडा को राज्यमंत्री बनाया गया था। अपने छोटे से कार्यकाल में काफी एक्टिव दिखाई दिए थे। जिसके बाद भाजपा ने इन्हें तीसरी बार फिर टिकट दिया। ढांडा की सबसे बड़ी बात यह भी है कि उनके ऊपर अभी तक कोई भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। 8. कृष्णा गहलावत: राई विधानसभा सीट पर कृष्णा गहलावत ने जीत दर्ज की है। ये सीट पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ मानी जाती है। जाट समुदाय से आने वाली कृष्णा गहलावत 1996 में बंसीलाल सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। भाजपा सोनीपत, रोहतक और झज्जर की जाट बेल्ट में अपना आधार बढ़ाने के लिए उन्हें कैबिनेट में जगह दे सकती है। 9. श्रुति चौधरी: तोशाम विधानसभा सीट पर भाजपा से श्रुति चौधरी ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर उनका मुकाबला अपने चचेरे भाई अनिरुद्ध चौधरी से था। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से सांसद रही श्रुति चौधरी को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिला था। इसके बाद वे अपनी मां किरण चौधरी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। तोशाम पर बंसीलाल परिवार का खासा प्रभाव रहा है। इससे पहले किरण चौधरी इस सीट से लगातार जीत हासिल करती रही हैं। उन्हें अब राज्यसभा भेज दिया गया है। ऐसे में श्रुति चौधरी कैबिनेट में मंत्रीपद के मजबूत दावेदारी मानी जा रही है। 10. हरविंदर कल्याण: ये रोड़ समाज से आते हैं। प्रदेश की घरौंडा सीट से इन्होंने जीत दर्ज की है। 2019 में भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। मनोहर लाल खट्टर के बाद नायब सैनी के कार्यकाल में भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो पाए थे, इस बार इस समाज को बीजेपी नई सरकार में प्रतिनिधित्व देना चाहती है, इसलिए दावेदारी मजबूत है। ये पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं। 11. कृष्ण लाल पंवार: बतौर राज्यसभा सांसद रहते हुए इसराना से विधानसभा चुनाव लड़ा। अब तक 6 बार के विधायक रह चुके हैं। सीनियोरिटी के हिसाब से बीजेपी में दूसरे नंबर पर आते हैं। इनसे पहले अनिल विज सात बार के विधायक बन चुके हैं। दलित समाज से आते हैं। इस चुनाव में दलितों के समर्थन मिलने के बाद बीजेपी में पंवार की मजबूत दावेदारी है। इसके साथ ही पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के भी काफी करीबी हैं। 12. रणबीर गंगवा: संसदीय मामलों के अच्छे जानकार हैं। मनोहर लाल खट्टर और नायब सैनी की सरकार में डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं। गंगवा इस बार बरवाला सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचेंगे। इस नई सरकार में उन्हें स्पीकर या डिप्टी स्पीकर की जिम्मेदारी दी जा सकती है। 13. घनश्याम सर्राफ: भिवानी से लगातार चार बार विधायक हैं। 2014 में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में राज्य मंत्री रह चुके हैं। वैश्य समाज से आते हैं। बीजेपी ने इस चुनाव में 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने का वादा किया है, ऐसे में उनके अनुभव को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व उन्हें राज्य मंत्री पद की जिम्मेदारी दे सकता है। 14. अनिल विज: हरियाणा में इस बार विधानसभा में सबसे सीनियर अनिल विज होंगे। इसकी वजह यह है कि यह ऐसे पहले विधायक बने हैं, जिन्होंने सात बार लगातार विधानसभा चुनाव जीता है। मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में सेकेंड पोजीशन पर रहे। हालांकि नायब सैनी के कार्यकाल में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन इस बार वह फिर से कैबिनेट में अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं। पार्टी यदि डिप्टी सीएम फॉर्मूला लाती है तो विज को डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है। अनिल विज पंजाबी समुदाय से आते हैं। हरियाणा में नई सरकार के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कवायद शुरू कर दी है। मंत्रिमंडल के लिए 15 विधायकों के नाम शॉर्ट लिस्ट किए गए हैं। इनमें 7 मंत्री और एक डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने नाम फाइनल करने से पहले विधायकों की प्रोफाइल मंगाई है। जो चेहरे शॉर्ट लिस्ट किए गए हैं, उनमें नायब सैनी, अनिल विज, राव नरबीर सिंह, विपुल गोयल, मूलचंद शर्मा, कृष्णा गहलावत, कृष्णलाल पंवार, हरविंदर कल्याण, रणबीर गंगवा, महिपाल ढांडा, बिमला चौधरी, लक्ष्मण यादव, घनश्याम सर्राफ, आरती राव और श्रुति चौधरी शामिल हैं। 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया था। भाजपा ने 48, कांग्रेस ने 37, इनेलो ने 2 और 3 निर्दलीयों ने जीत दर्ज की। तीनों निर्दलीय विधायक भाजपा को समर्थन दे चुके हैं। जिसके बाद भाजपा के पास विधायकों की संख्या 51 हो गई है। कल पंचकूला में विधायक दल की मीटिंग होगी। मीटिंग में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद रहेंगे। सिलसिलेवार ढंग से जानिए, किसकी दावेदारी क्यों मजबूत…. 1. राव नरबीर सिंह : बादशाहपुर सीट से चुनाव जीते राव नरबीर सिंह अहीरवाल बेल्ट के बड़े नेता कहे जाने वाले राव इंद्रजीत सिंह के धुर विरोधी रहे हैं। पूरे इलाके में राव नरबीर ही इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने दम पर न केवल हाईकमान से सीधे टिकट हासिल की, बल्कि इस इलाके में सबसे बड़ी जीत भी दर्ज की है। नरबीर सिंह 2014 में मनोहर लाल खट्टर की सरकार में पावरफुल कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके सीधे हाईकमान से अच्छे संबंध है। उनकी कैबिनेट मंत्री के पद पर दावेदारी काफी मजबूत है। इसकी दूसरी वजह उनका राव इंद्रजीत सिंह का विरोधी होना भी है। 10 विधायकों में राव इंद्रजीत सिंह के धुर विरोधी में इकलौते राव नरबीर ही है। भाजपा नरबीर को मंत्री बनाकर इलाके में राव इंद्रजीत सिंह के बराबर नेता खड़ा कर सकती है। 2. बिमला चौधरी : बिमला चौधरी ने पटौदी विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है। वह 2014 में भी इसी सीट से विधायक बनी थीं। 2019 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया था। वह राव इंद्रजीत सिंह की करीबी हैं। बिमला चौधरी की दावेदारी इसलिए भी मजबूत है, क्योंकि वह जातीय संतुलन के हिसाब से राव इंद्रजीत सिंह के कोटे में वह फिट बैठती हैं। इसके अलावा उन्हें विधायक रहते हुए प्रशासनिक अनुभव भी है। 3. लक्ष्मण यादव : वह रेवाड़ी सीट से चुनाव जीते है। वह 2019 में कोसली से विधायक चुने गए थे। राव इंद्रजीत सिंह और संगठन दोनों की पसंद की वजह से उन्हें टिकट मिला। अहीरवाल इलाके में यादवों की वोट एक तरह से एक तरफा भाजपा के पक्ष में पड़ा। 2019 में भले ही रेवाड़ी सीट पर भाजपा जीत दर्ज नहीं कर पाई, लेकिन 2014 में यहां पहली बार कमल खिला था।अहीरवाल बेल्ट की राजधानी कहे जाने वाले रेवाड़ी को पिछले 10 सालों में मंत्रीपद नहीं मिल पाया। ऐसे में लक्ष्मण सिंह यादव के नाम पर राव इंद्रजीत सिंह भी सहमति जता सकते हैं। 4. आरती राव : राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव ने अटेली से चुनाव जीता है। पिछले 3 चुनाव में अटेली में भाजपा उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। इलाके में खुद के प्रभाव के चलते ही राव इंद्रजीत सिंह ने बेटी को टिकट दिलाया। ऐसे में आरती राव को मंत्रिमंडल में शामिल कराकर राव इंद्रजीत सिंह महेंद्रगढ़ जिले को मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं। 5. विपुल गोयल : यह वैश्य समुदाय से आते हैं। 2014 में चुनाव जीतकर कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। हालांकि फरीदाबाद सांसद कृष्ण पाल गुर्जर के मतभेदों के कारण टिकट काट दिया गया था। इस बार सीधी हाईकमान में पकड़ होने के कारण इनको टिकट मिला, इसके साथ ही नए मंत्रिमंडल में इसी कारण से कैबिनेट मंत्री के रूप में मजबूत दावेदार बने हुए हैं। 6 मूलचंद शर्मा: भाजपा में ब्राह्मणों के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पंडित रामबिलास शर्मा का नाम आता था, लेकिन 2019 में उनके चुनाव हारने के बाद उनके ही रिश्तेदार बल्लभगढ़ से विधायक मूलचंद शर्मा को मनोहर लाल के दूसरे टर्म में परिवहन मंत्री बनाया गया। मूलचंद शर्मा लगातार तीसरी बार इस सीट से विधायक चुने गए हैं। 5 साल मंत्री रहने के दौरान उनकी परफॉर्मेंस ठीक रही, जिसकी वजह से वह इस बार भी कैबिनेट मंत्री पद के दावेदार हैं। उनकी दावेदारी की दूसरी बड़ी वजह इस बार के चुनाव में ब्राह्मण वोटर्स का एकतरफा झुकाव भाजपा की तरफ रहना भी है। 7. महिपाल ढांडा: पानीपत ग्रामीण से विधायक बने हैं। पार्टी का बड़ा जाट चेहरा बनकर उभरे हैं। नायब सैनी के सीएम बनाए जाने के बाद ढांडा को राज्यमंत्री बनाया गया था। अपने छोटे से कार्यकाल में काफी एक्टिव दिखाई दिए थे। जिसके बाद भाजपा ने इन्हें तीसरी बार फिर टिकट दिया। ढांडा की सबसे बड़ी बात यह भी है कि उनके ऊपर अभी तक कोई भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। 8. कृष्णा गहलावत: राई विधानसभा सीट पर कृष्णा गहलावत ने जीत दर्ज की है। ये सीट पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ मानी जाती है। जाट समुदाय से आने वाली कृष्णा गहलावत 1996 में बंसीलाल सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। भाजपा सोनीपत, रोहतक और झज्जर की जाट बेल्ट में अपना आधार बढ़ाने के लिए उन्हें कैबिनेट में जगह दे सकती है। 9. श्रुति चौधरी: तोशाम विधानसभा सीट पर भाजपा से श्रुति चौधरी ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर उनका मुकाबला अपने चचेरे भाई अनिरुद्ध चौधरी से था। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से सांसद रही श्रुति चौधरी को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिला था। इसके बाद वे अपनी मां किरण चौधरी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। तोशाम पर बंसीलाल परिवार का खासा प्रभाव रहा है। इससे पहले किरण चौधरी इस सीट से लगातार जीत हासिल करती रही हैं। उन्हें अब राज्यसभा भेज दिया गया है। ऐसे में श्रुति चौधरी कैबिनेट में मंत्रीपद के मजबूत दावेदारी मानी जा रही है। 10. हरविंदर कल्याण: ये रोड़ समाज से आते हैं। प्रदेश की घरौंडा सीट से इन्होंने जीत दर्ज की है। 2019 में भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। मनोहर लाल खट्टर के बाद नायब सैनी के कार्यकाल में भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो पाए थे, इस बार इस समाज को बीजेपी नई सरकार में प्रतिनिधित्व देना चाहती है, इसलिए दावेदारी मजबूत है। ये पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं। 11. कृष्ण लाल पंवार: बतौर राज्यसभा सांसद रहते हुए इसराना से विधानसभा चुनाव लड़ा। अब तक 6 बार के विधायक रह चुके हैं। सीनियोरिटी के हिसाब से बीजेपी में दूसरे नंबर पर आते हैं। इनसे पहले अनिल विज सात बार के विधायक बन चुके हैं। दलित समाज से आते हैं। इस चुनाव में दलितों के समर्थन मिलने के बाद बीजेपी में पंवार की मजबूत दावेदारी है। इसके साथ ही पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के भी काफी करीबी हैं। 12. रणबीर गंगवा: संसदीय मामलों के अच्छे जानकार हैं। मनोहर लाल खट्टर और नायब सैनी की सरकार में डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं। गंगवा इस बार बरवाला सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचेंगे। इस नई सरकार में उन्हें स्पीकर या डिप्टी स्पीकर की जिम्मेदारी दी जा सकती है। 13. घनश्याम सर्राफ: भिवानी से लगातार चार बार विधायक हैं। 2014 में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में राज्य मंत्री रह चुके हैं। वैश्य समाज से आते हैं। बीजेपी ने इस चुनाव में 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने का वादा किया है, ऐसे में उनके अनुभव को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व उन्हें राज्य मंत्री पद की जिम्मेदारी दे सकता है। 14. अनिल विज: हरियाणा में इस बार विधानसभा में सबसे सीनियर अनिल विज होंगे। इसकी वजह यह है कि यह ऐसे पहले विधायक बने हैं, जिन्होंने सात बार लगातार विधानसभा चुनाव जीता है। मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में सेकेंड पोजीशन पर रहे। हालांकि नायब सैनी के कार्यकाल में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन इस बार वह फिर से कैबिनेट में अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं। पार्टी यदि डिप्टी सीएम फॉर्मूला लाती है तो विज को डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है। अनिल विज पंजाबी समुदाय से आते हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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UGC ने देशभर के 157 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर घोषित किया है। इसमें 108 सरकारी विश्वविद्यालय, 47 निजी विश्वविद्यालय और 2 डीम्ड विश्वविद्यालय शामिल हैं। बागवानी के क्षेत्र में प्रगति के लिए हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी
महाराणा प्रताप हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी करनाल बागवानी के क्षेत्र में समर्पित है। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य बागवानी के क्षेत्र में उन्नत तकनीकों और ज्ञान को प्रसारित करना है। इसकी स्थापना हरियाणा सरकार द्वारा की गई थी, ताकि राज्य में बागवानी के क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य किसानों और छात्रों को आधुनिक तकनीकों और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना है, जिससे बागवानी के क्षेत्र में प्रगति हो सके। 2019 में स्थापित हुई थी स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा (Sports University of Haryana) राई, सोनीपत, हरियाणा में स्थित है और यह भारत में स्पोर्ट्स की शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है। यह विश्वविद्यालय 2019 में स्थापित किया गया था और स्पोर्ट्स और एक्टिविटी के क्षेत्र में उच्च शैक्षणिक और प्रशिक्षण के लिए एक प्रमुख केंद्र बनने का लक्ष्य रखता है। इस यूनिवर्सिटी में विभिन्न स्पोर्ट्स जैसे क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, गोल्फ, राइफल और पिस्टल, और व्यायाम जैसी गतिविधियों में शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
57 साल बाद हार, जनता के बीच भजनलाल परिवार:गांव-गांव काम गिनवा रहे भव्य-कुलदीप बिश्नोई; गढ़ वापस पाने को OBC-बिश्नोई वोटर्स को मना रहे
57 साल बाद हार, जनता के बीच भजनलाल परिवार:गांव-गांव काम गिनवा रहे भव्य-कुलदीप बिश्नोई; गढ़ वापस पाने को OBC-बिश्नोई वोटर्स को मना रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भजनलाल परिवार एक बार फिर लोगों के बीच पहुंचा है। कुलदीप बिश्नोई और उनके बेटे भव्य बिश्नोई आदमपुर के विभिन्न गांव में जाकर धन्यवादी दौरे कर रहे हैं। 3 दिवसीय दौरे का आज अंतिम दिन है। 3 दिन में बिश्नोई परिवार 54 गांव को कवर करेगा। 2 दिनों में आधे से ज्यादा गांव कवर किए गए हैं। दौरे के दौरान भव्य और कुलदीप बिश्नोई लोगों से संवाद कर रहे हैं, वहीं हार पर भी मंथन किया जा रहा है। बिश्नोई परिवार गांव-गांव जाकर कह रहा है कि आदमपुर उनका परिवार है। अगर थोड़ा जोर और लगा देते थे तो भजनलाल परिवार का स्वर्णिम दौर वापस आ सकता था। मगर, फिर भी लोगों के काम न पहले रुके थे, न इस बार रुकेंगे। पहले भी केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार थी और अब भी है। आज भी किसी अधिकारी के पास काम लेकर जाते हैं तो वह मना नहीं करता। बता दें कि 57 साल बाद आदमपुर से बिश्नोई परिवार को हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में वह जनता के बीच जाकर दोबारा अपनी खिसक चुकी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। भव्य बिश्नोई बोले- सेवा के लिए पद जरूरी नहीं
भव्य बिश्नोई ने आदमपुर के एक गांव में लोगों से कहा कि चौधरी भजनलाल परिवार को सेवा करने के लिए किसी पद की आवश्यकता नहीं है। अगर परिणाम हमारे पक्ष में आते तो आदमपुर को बहुत बड़ी ताकत मिलने वाली थी। जो स्वर्णिम दौर चौधरी भजनलाल लाने की बात करते थे, वह दौर कुलदीप जी और सबके प्रयास से हमारे नजदीक आ गया था। आप सभी और हमसे भूल चूक हुई। मगर, आप चिंता मत करें, ऊपर और नीचे सरकार हमारी है। आप सभी ने पिता जी का कद इतना बड़ा बनाया है। मंत्री और अधिकारी कोई कितना बड़ा क्यों न हो, यदि कोई काम उनके पास लेकर जाते हैं तो वह तुरंत प्रभाव से पूरा होता है। आपके काम में कभी रुकावट नहीं आएगी। पहले की तरह ही हम आपका काम करते रहेंगे। नाराज बिश्नोई और ओबीसी वोटरों को मनाने का प्रयास
आदमपुर विधानसभा सीट पर करीब 1.78 लाख वोटर हैं। इनमें पुरुष वोटर 94 हजार 940 और महिला वोटर 93 हजार 708 हैं। इस सीट पर जाट और ओबीसी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आदमपुर में सबसे ज्यादा जाट वोटर करीब 55 हजार हैं। बिश्नोई समुदाय के 28 हजार वोट हैं। अगर ओबीसी में बिश्नोई समुदाय के वोटों को छोड़ दें तो करीब 29 हजार वोट हैं। इनमें सबसे ज्यादा 8200 वोटर जांगड़ा और कुम्हार जाति के हैं। इस चुनाव में कांग्रेस बिश्नोई और ओबीसी वोटरों में सेंध लगाने में सफल रही थी। ऐसे में बिश्नोई परिवार नाराज बिश्नोई वोटरों को मनाने का प्रयास कर रहा है। हार के बाद भावुक होकर रो पड़े थे कुलदीप बिश्नोई
8 अक्टूबर को मिली हार के बाद भजनलाल परिवार आदमपुर मंडी में पैतृक आवास पर पहुंचा था, जहां लोगों की भीड़ उमड़ी। इस दौरान कुलदीप बिश्नोई समर्थकों को संबोधित करते हुए भावुक हो गए और रोने लगे। इसके बाद समर्थकों ने कहा कि आदमपुर के लोग आपके साथ हैं। कुलदीप बिश्नोई को रोते देखकर समर्थकों ने चौधरी भजनलाल अमर रहे के नारे लगाए। बेटे भव्य बिश्नोई ने कुलदीप बिश्नोई को सांत्वना दी। भजनलाल के करीबी रहे रामजी लाल के भतीजे ने हराया
कांग्रेस ने इस बार भजनलाल परिवार की घेराबंदी की थी। भाजपा ने यहां कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को दूसरी बार मैदान में उतारा था। भव्य बिश्नोई 2 साल पहले यहां से उप-चुनाव लड़े और जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस ने यहां से पूर्व IAS चंद्र प्रकाश को अपना उम्मीदवार बनाया। चंद्र प्रकाश पंडित रामजीलाल के भतीजे हैं। रामजीलाल को चौधरी भजनलाल का परम सखा माना जाता था। एक तरह से बिश्नोई परिवार के नजदीकी रहे परिवार में से ही कांग्रेस ने टिकट दिया। इसका लाभ कांग्रेस को मिला और नजदीकी मुकाबले में भव्य बिश्नोई 1768 वोटों से हार गए। आदमपुर सीट पर पहली बार 1967 में चौधरी भजनलाल जीते थे। इस चुनाव से पहले तक इस सीट पर भजनलाल परिवार के सदस्य ही चुनाव जीतते आ रहे थे।