‘इलेक्ट्रिक चाक आने से सिर्फ एक बदलाव हुआ है। अब घर का कोई भी सदस्य इसे चला लेता है। खास करके महिलाएं इस चाक पर काम कर ले रहीं हैं। काम से खाली होने के बाद हम लोग इसपर दीये गढ़ लेते हैं। घर के बच्चे भी इसे गढ़ ले रहे हैं। बस अब सरकार से एक मांग है कि बिजली के बिल की थोड़ी व्यवस्था करें। सब्सिडी दें तो यह जिंदा रहेगा। वरना धीरे-धीरे इस काम से लोग पलायित हो रहे हैं।’ ये कहना है वाराणसी के लोहता थानाक्षेत्र के भीटी की रहने वाली सरस्वती प्रजापति का। सरस्वती के परिवार बेटियां और बेटे पढ़ रहे हैं। घर की महिला और पुरुष दीयों के गढ़ने में लगे हैं। सरस्वती बताती हैं कि- बिजली के चाक से बहुत सहूलियत हुई है। लेकिन सरकार के बिजली के बिल को लेकर कुछ करना चाहिए। वहीं युवाओं ने कहा हमारी तीसरी पीढ़ी है पर अब इसमें भविष्य नहीं है। हम काम तो कर रहे हैं पर इसमें आगे नहीं बढ़ेंगे। वाराणसी में इस दीपावाली कुम्हार (प्रजापति समाज) किस तरह से दीयों का निर्माण कर रहा है ? महिलाएं इस कार्य से कैसे रोजगार कर रही हैं ? इस दीपावली कैसा ऑर्डर आया है ? इसके अलावा आने वाली पीढ़ी इस काम को करना चाहती है या नहीं? इस पर दैनिक भास्कर ने लोहता के भीटी इलाके में प्रजापति बस्ती में कुम्हारों से बात की; पेश है खास रिपोर्ट… सबसे पहले जानते हैं कितने परिवार अपने पुश्तैनी कार्य से जुड़े हुए हैं ? और महिलाएं कैसे इस व्यापार में आगे आयी हैं ? भीटी के 50 में से सिर्फ 15 परिवार बचे
लोहता के भीटी इलाके में पहले करीब 50 परिवार मिटटी के सामान बनाते थे। सरस्वती प्रजापति ने बताया- सड़क बनने के बाद कई मकान टूट गए और कई के पास जगह खत्म हो गए। ऐसे में कई परिवारों ने इस पुश्तैनी कार्य से पलायन कर लिया। अब महज 15 घर बचे हैं। जो इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। इस इलाके में साल भर नाद और गमले बनाए जाते हैं। इसी का कारोबार है लेकिन दीपावली और देव दीपावली पर दीये बनाए जाते हैं। मोदी जी के चाक से हम लोग भी रोजगार से जुड़े
सरस्वती प्रजापति ने बताया- प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की पहल पर हमें दस साल पहले इलेक्ट्रिक चाक मिला। इससे रोजगार बढ़ गया है क्योंकि पहले यह रोजगार पुरुष प्रधान था। मिटटी का काम करने और बने हुए बर्तन सुखाने के काम में थे। लेकिन अब हम भी चाक पर दीये गढ़ रहे हैं। परिवार का सहारा बने हैं। पति यदि नहीं रहते तो हमें या मेरी बेटियां काम कर लेती हैं। दिन भर में बन जाता है 2000 दिया
सरस्वती बताती हैं- साल भर काम होता है, लेकिन दीपावली पर दीये की डिमांड बढ़ जाती है। इस चाक से दिन भर में 2000 दीये बन जाते हैं। पहले सीमेंट वाले चाक पर मेहनत होती थी लेकिन बिजली का बिल नहीं देना होता था। इसपर बिल देना होता है पर काफी बदलाव आया है। राधिका का परिवार भी बना रहा दीया
वहीं भीटी की रहने वाली राधिका ने बताया- हमारे यहां भी चाक है जो बिजली से चल रहा है। 5 साल पहले हमें मिला था। तब में और अब बहुत अंतर आया है। पहले हम सिर्फ नाद और गमला बनाते थे। हम आज भी नाद-गमला बना रहे हैं; पर इस बार हमने दीया भी बनाया है जो तेजी से बिक रहा है। महंगाई है पर दुकानदारी बढ़ी है। हम लोग भी चाक पर काम करने लगे है। अब जानिए क्या समस्याएं है जो इस कारोबार में सामने आ रही हैं और युवा इससे क्यों दूर जा रहे हैं ? सबसे ज्यादा मिट्टी मिलने की समस्या
खुशबू प्रजापति काशी विद्यापीठ से बीएससी कर रही हैं। खुशबू ने बताया – सरकार ने चाक दे दिया पर सड़क चौड़ीकरण में हम सभी का मकान तोड़ दिया। घर में जगह कम होने से कई सारी समस्याएं हैं। इसके अलावा सबसे बड़ी इस बिजनेस में समस्या मिट्टी की है जो अब मिलना मुश्किल है। मिट्टी के लिए बहुत परेशाना होना पड़ रहा है। सरकार से मांग है कि कुम्हार को मुफ्त मिट्टी उपलब्ध करवाए ताकि उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े। क्या युवा इस काम में आगे जाना चाहते हैं
खुशबू ने बताया – हम बीएससी कर रहे हैं। घर में माता-पिता की हेल्प कर देते हैं। इस काम को करना हमें अच्छा लगता है। हम तीन बहनें हैं सभी पढ़ाई कर रही हैं। हमें अपना भविष्य देखना है और इस कार्य में कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में इस पुश्तैनी कार्य को आगे नहीं बढ़ाना है। इसके अलावा खुशबू ने यह भी कहा कि कल को हमारी शादी हो जाएगी तो जिस घर हम जाएंगे। वहां यह कार्य होगा की नहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में इस कार्य में अब करियर नहीं बनाना। 70 रुपए सैकड़े के हिसाब से बिक रहे हैं फैंसी दीये
कुम्हारों द्वारा सड़क किनारे मिट्टी के फैंसी दीये 70 रुपए सैकड़े बेचे जा रहे हैं। जिन्हे खरीदने के लिए ग्राहक हर समय मौजूद हैं। खुशबू ने बताया ग्राहक हैं पर सिर्फ दीपावाली तक, इसके बाद सिर्फ नाद और गमला ही बेचा या खरीदा जा रहा है। वहीं चाइनीज झालरों ने भी बाजार का दम तोड़ दिया है। लेकिन फिर भी लोग यहां आ रहे हैं और दिये ले जा रहे हैं। अब जानिए प्रदेश सरकार की योजना के तहत कुम्हारों को दे रही है निशुल्क इलेक्ट्रिक चाक दे रही है… माटी कला को बढ़ावा देने व चाक के पहिये से परिवार चलाने वाले कुम्हारों को आत्मनिर्भर बनाने व उनकी आय दोगुनी करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने माटीकला बोर्ड का गठन किया है। जिसके माध्यम से मिट्टी के बर्तन, कुल्हड़ मूर्तियां खिलौने बनाकर जीविकोपार्जन करने वाले माटीकला के कारीगरों को निशुल्क इलेक्ट्रिक चाक दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार भी प्लास्टिक की बनी चीजों को रोकने के लिए प्रयास कर रही है। जिससे मिट्टी से तैयार बर्तनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत होग। ‘इलेक्ट्रिक चाक आने से सिर्फ एक बदलाव हुआ है। अब घर का कोई भी सदस्य इसे चला लेता है। खास करके महिलाएं इस चाक पर काम कर ले रहीं हैं। काम से खाली होने के बाद हम लोग इसपर दीये गढ़ लेते हैं। घर के बच्चे भी इसे गढ़ ले रहे हैं। बस अब सरकार से एक मांग है कि बिजली के बिल की थोड़ी व्यवस्था करें। सब्सिडी दें तो यह जिंदा रहेगा। वरना धीरे-धीरे इस काम से लोग पलायित हो रहे हैं।’ ये कहना है वाराणसी के लोहता थानाक्षेत्र के भीटी की रहने वाली सरस्वती प्रजापति का। सरस्वती के परिवार बेटियां और बेटे पढ़ रहे हैं। घर की महिला और पुरुष दीयों के गढ़ने में लगे हैं। सरस्वती बताती हैं कि- बिजली के चाक से बहुत सहूलियत हुई है। लेकिन सरकार के बिजली के बिल को लेकर कुछ करना चाहिए। वहीं युवाओं ने कहा हमारी तीसरी पीढ़ी है पर अब इसमें भविष्य नहीं है। हम काम तो कर रहे हैं पर इसमें आगे नहीं बढ़ेंगे। वाराणसी में इस दीपावाली कुम्हार (प्रजापति समाज) किस तरह से दीयों का निर्माण कर रहा है ? महिलाएं इस कार्य से कैसे रोजगार कर रही हैं ? इस दीपावली कैसा ऑर्डर आया है ? इसके अलावा आने वाली पीढ़ी इस काम को करना चाहती है या नहीं? इस पर दैनिक भास्कर ने लोहता के भीटी इलाके में प्रजापति बस्ती में कुम्हारों से बात की; पेश है खास रिपोर्ट… सबसे पहले जानते हैं कितने परिवार अपने पुश्तैनी कार्य से जुड़े हुए हैं ? और महिलाएं कैसे इस व्यापार में आगे आयी हैं ? भीटी के 50 में से सिर्फ 15 परिवार बचे
लोहता के भीटी इलाके में पहले करीब 50 परिवार मिटटी के सामान बनाते थे। सरस्वती प्रजापति ने बताया- सड़क बनने के बाद कई मकान टूट गए और कई के पास जगह खत्म हो गए। ऐसे में कई परिवारों ने इस पुश्तैनी कार्य से पलायन कर लिया। अब महज 15 घर बचे हैं। जो इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। इस इलाके में साल भर नाद और गमले बनाए जाते हैं। इसी का कारोबार है लेकिन दीपावली और देव दीपावली पर दीये बनाए जाते हैं। मोदी जी के चाक से हम लोग भी रोजगार से जुड़े
सरस्वती प्रजापति ने बताया- प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की पहल पर हमें दस साल पहले इलेक्ट्रिक चाक मिला। इससे रोजगार बढ़ गया है क्योंकि पहले यह रोजगार पुरुष प्रधान था। मिटटी का काम करने और बने हुए बर्तन सुखाने के काम में थे। लेकिन अब हम भी चाक पर दीये गढ़ रहे हैं। परिवार का सहारा बने हैं। पति यदि नहीं रहते तो हमें या मेरी बेटियां काम कर लेती हैं। दिन भर में बन जाता है 2000 दिया
सरस्वती बताती हैं- साल भर काम होता है, लेकिन दीपावली पर दीये की डिमांड बढ़ जाती है। इस चाक से दिन भर में 2000 दीये बन जाते हैं। पहले सीमेंट वाले चाक पर मेहनत होती थी लेकिन बिजली का बिल नहीं देना होता था। इसपर बिल देना होता है पर काफी बदलाव आया है। राधिका का परिवार भी बना रहा दीया
वहीं भीटी की रहने वाली राधिका ने बताया- हमारे यहां भी चाक है जो बिजली से चल रहा है। 5 साल पहले हमें मिला था। तब में और अब बहुत अंतर आया है। पहले हम सिर्फ नाद और गमला बनाते थे। हम आज भी नाद-गमला बना रहे हैं; पर इस बार हमने दीया भी बनाया है जो तेजी से बिक रहा है। महंगाई है पर दुकानदारी बढ़ी है। हम लोग भी चाक पर काम करने लगे है। अब जानिए क्या समस्याएं है जो इस कारोबार में सामने आ रही हैं और युवा इससे क्यों दूर जा रहे हैं ? सबसे ज्यादा मिट्टी मिलने की समस्या
खुशबू प्रजापति काशी विद्यापीठ से बीएससी कर रही हैं। खुशबू ने बताया – सरकार ने चाक दे दिया पर सड़क चौड़ीकरण में हम सभी का मकान तोड़ दिया। घर में जगह कम होने से कई सारी समस्याएं हैं। इसके अलावा सबसे बड़ी इस बिजनेस में समस्या मिट्टी की है जो अब मिलना मुश्किल है। मिट्टी के लिए बहुत परेशाना होना पड़ रहा है। सरकार से मांग है कि कुम्हार को मुफ्त मिट्टी उपलब्ध करवाए ताकि उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े। क्या युवा इस काम में आगे जाना चाहते हैं
खुशबू ने बताया – हम बीएससी कर रहे हैं। घर में माता-पिता की हेल्प कर देते हैं। इस काम को करना हमें अच्छा लगता है। हम तीन बहनें हैं सभी पढ़ाई कर रही हैं। हमें अपना भविष्य देखना है और इस कार्य में कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में इस पुश्तैनी कार्य को आगे नहीं बढ़ाना है। इसके अलावा खुशबू ने यह भी कहा कि कल को हमारी शादी हो जाएगी तो जिस घर हम जाएंगे। वहां यह कार्य होगा की नहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में इस कार्य में अब करियर नहीं बनाना। 70 रुपए सैकड़े के हिसाब से बिक रहे हैं फैंसी दीये
कुम्हारों द्वारा सड़क किनारे मिट्टी के फैंसी दीये 70 रुपए सैकड़े बेचे जा रहे हैं। जिन्हे खरीदने के लिए ग्राहक हर समय मौजूद हैं। खुशबू ने बताया ग्राहक हैं पर सिर्फ दीपावाली तक, इसके बाद सिर्फ नाद और गमला ही बेचा या खरीदा जा रहा है। वहीं चाइनीज झालरों ने भी बाजार का दम तोड़ दिया है। लेकिन फिर भी लोग यहां आ रहे हैं और दिये ले जा रहे हैं। अब जानिए प्रदेश सरकार की योजना के तहत कुम्हारों को दे रही है निशुल्क इलेक्ट्रिक चाक दे रही है… माटी कला को बढ़ावा देने व चाक के पहिये से परिवार चलाने वाले कुम्हारों को आत्मनिर्भर बनाने व उनकी आय दोगुनी करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने माटीकला बोर्ड का गठन किया है। जिसके माध्यम से मिट्टी के बर्तन, कुल्हड़ मूर्तियां खिलौने बनाकर जीविकोपार्जन करने वाले माटीकला के कारीगरों को निशुल्क इलेक्ट्रिक चाक दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार भी प्लास्टिक की बनी चीजों को रोकने के लिए प्रयास कर रही है। जिससे मिट्टी से तैयार बर्तनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत होग। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर