खबर की शुरुआत 2 बयानों से… ‘टालेंगे तो और भी बुरा हारेंगे। पहले मिल्कीपुर का उपचुनाव टाला, अब बाकी सीटों के उपचुनाव की तारीख, भाजपा इतनी कमजोर कभी न थी। दरअसल बात ये है कि यूपी में ‘महा-बेरोजगारी’ की वजह से जो लोग पूरे देश में काम-रोजगार के लिए जाते हैं, वो दिवाली और छठ की छुट्टी लेकर यूपी आए हुए हैं, और उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालने वाले थे।’ –अखिलेश यादव, सपा प्रमुख ‘कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख 20 नवंबर तय कर जनता की भावनाओं का आदर किया है। लेकिन, सपा मुखिया अखिलेश यादव का तिथि परिवर्तन पर “दुखी” होना… वाह! यह वही दुख है जो साइकिल पंचर होने पर होता है।’ -केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी सीएम प्रदेश की 9 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में वोटिंग की तारीख बदलने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। तारीख बदले जाने पर बड़े–बड़े नेता बड़े–बड़े बयान दे रहे हैं। बेचैनी सबसे ज्यादा सपा नेताओं में है, इसकी वजह भी है। जानिए चुनाव आयोग के तारीख बदलने के फैसले से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? सबसे पहले जानिए किस आधार पर चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख बढ़ाई भाजपा और सहयोगी पार्टी रालोद ने आयोग से कार्तिक पूर्णिमा के चलते तारीख बदलने की मांग की थी। तर्क था- कार्तिक पूर्णिमा का स्नान प्रयागराज में होता है, पश्चिमी यूपी से आने वाले श्रद्धालुओं को आने जाने में तीन से चार दिन का समय लगता है। ऐसे में चुनाव के समय बड़ी संख्या में लोग बाहर रहेंगे और मतदान करने से वंचित रह जाएंगे। चुनाव आयोग ने यह बात मान ली और 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को वोटिंग की डेट तय कर दी। क्या तारीख तय करते समय आयोग ने इस पहलू का नहीं रखा ध्यान? आयोग हर चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के साथ बैठक करता है। यूपी में भी 10 सीटों पर चुनाव होना था। ऐसे में स्वाभाविक है कि तारीख घोषित होने से पहले आयोग सरकार के अफसरों से फोर्स की उपलब्धता, सुरक्षा, कानून व्यवस्था समेत तमाम पहलुओं पर मंथन करता है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी कहते हैं कि क्योंकि यूपी में माहौल भाजपा के खिलाफ है। इसी वजह से यूपी की सीटों पर हरियाणा और जम्मू के साथ चुनाव नहीं कराया गया। रिट का बहाना बना कर मिल्कीपुर में चुनाव टाल दिया गया। जब तारीख घोषित होने के बाद भी भाजपा चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाई तो तारीख ही बदल दी गई। क्योंकि इससे ज्यादा चुनाव टाला नहीं जा सकता था, वजह किसी भी सीट के रिक्त होने से 6 महीने के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य होता है, इसलिए चुनाव कराना मजबूरी थी। भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व में पत्रकार रहे अवनीश त्यागी कहते हैं कि 13 नवंबर को चुनाव होने से फायदा किसी का नहीं, नुकसान सभी का था। उत्तर प्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान प्रमुख स्नानों में से एक है। गंगा स्नान के इस मेले में सिर्फ अगड़े नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में पिछड़ी जाति के लोग जाते हैं। कुछ मान्यता ऐसी होती है, जिसे पूरा करने के लिए इसमें जाना जरूरी होता है। इसमें सिर्फ भाजपा के वोटर जाते हैं, यह बात सही नहीं है। जहां तक आयोग की इस ओर ध्यान न देने की बात है, तो आयोग बड़े त्योहारों को देखता है, रूट लेवल पर ध्यान नहीं देता। खास बात यह है कि इस चुनाव के लिए जो पुलिस प्रबंध की आवश्यकता होती है, वह भी इस दिन पूरी नहीं हो पाती। वजह सिर्फ त्योहार या कुछ और भी? दरअसल चुनाव आयोग कोई भी चुनाव का शेड्यूल तय करता है तो कैलेंडर उसके सामने होता है। आयोग यह भी देखता है कि जिस दिन मतदान होगा, उस इलाके का मौसम आम तौर पर उन दिनों में कैसा रहता है। ऐसे में आयोग से चूक हुई या फिर सत्ता पक्ष का कोई ऐसा दबाव था, जिसकी वजह से चुनाव की तारीख को बदलना पड़ा। विपक्ष कह रहा है कि तारीख बदलने से परिणाम नहीं बदलेंगे। त्योहारों की वजह से भाजपा अपनी तैयारी पूरी नहीं कर सकी थी, जिसकी वजह से तारीख को आगे बढ़ाया गया है। तारीख बढ़ने से किसको ज्यादा फायदा होगा? इस पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि सपा ने नौ अक्टूबर को ही मीरापुर, कुंदरकी, खैर और गाजियाबाद सदर की सीट छोड़कर 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। हालांकि घोषणा से पहले से ही प्रत्याशियों को सपा ने तैयारी के लिए कह दिया था। जबकि भाजपा इसमें पिछड़ गई थी। नामांकन शुरू हुआ तब जाकर भाजपा ने 24 अक्टूबर को 7 प्रत्याशी घोषित किए। इसलिए तैयारियों में सपा प्रत्याशी की तुलना में भाजपा प्रत्याशियों को प्रचार के लिए कम समय मिल पाया था। दूसरी बात यह है कि सीएम योगी झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में स्टार प्रचारकों की सूची में हैं। उनकी वहां ज्यादा डिमांड है। इसलिए कम समय होने की वजह से वो यूपी के उपचुनाव में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। अब उन्हें समय मिल जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि तारीख बदलने की मांग केवल सत्ता पक्ष की थी, जिसे आयोग ने मान लिया। हरियाणा में भी केवल भाजपा ने तारीख बदलने की मांग की थी। जाहिर है भाजपा ने अपनी सुविधा और अपने लाभ के लिए तारीख बदलवाई है, ताकि उसे प्रचार के लिए अधिक समय मिल जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ज्यादातर कार्यक्रम झारखंड और महाराष्ट्र में नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में लगे हुए हैं। ऐसे में यूपी के उपचुनावों में अधिक प्रचार नहीं कर पाते। इसलिए तारीख आगे बढ़वाई गई है। लेकिन इसका लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि भाजपा सोच रही है कि चुनाव को जितना लंबा खींचा जाएगा, उन्हें प्रचार करने का समय ज्यादा मिलेगा। मांग केवल मीरापुर के लिए हुई थी। इनको लगता है कि स्थितियां अपने पक्ष में कर लेंगे। ऐसा हो पाएगा या नहीं, यह चुनाव के परिणाम होने के बाद पता चलेगा। कार्तिक पूर्णिमा का स्नान 15 को है। हर काम धर्म के नाम पर हो रहा है। विपक्ष क्यों पहले चाह रहा था चुनाव एक्सपर्ट्स कहते हैं– चुनाव में आयोग की ओर से खर्च करने की भले ही सीमा तय हो, लेकिन प्रत्याशी अपने हिसाब से पैसे खर्च करता है। जो प्रत्याशी पहले से घोषित हो चुके होते हैं, उनका खर्च ज्यादा होता है। तारीख बढ़ने के बाद यह खर्च भी बढ़ जाता है। जबकि सत्ता पक्ष पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उसके पास तमाम ऐसे संसाधन होते हैं, जिनसे खर्च मैनेज हो जाता है। प्रत्याशी की जेब से कम पैसे खर्च होते हैं। इसके अलावा सपा-कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में जीत मिली है। सपा को लग रहा है कि हवा उसके पक्ष में हैं। जनता भाजपा से नाराज है, इसलिए इस गुस्से का फायदा उपचुनाव में भी मिलेगा। इसलिए वह जल्द वोटिंग चाह रही है। अखिलेश के दावों में कितनी सच्चाई है? चुनाव की तारीख बदलने पर अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी में महा-बेरोजगारी है। जो दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए जाते हैं, वे दिवाली और छठ पर अपने गांव लौटे हैं। वे उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालने वाले थे। जैसे ही भाजपा को इसकी भनक लगी, उसने उपचुनावों को आगे खिसका दिया, जिससे लोगों की छुट्टी ख़त्म हो जाए और वो बिना वोट डाले ही वापस चले जाएं। ये भाजपा की पुरानी चाल है। हारेंगे तो टालेंगे। इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस बात में ज्यादा दम नहीं है। जिन सीटों पर वोटिंग होनी है, वो अधिकतर मध्य और पश्चिम की सीटें हैं। सिर्फ फूलपुर सीट पूर्वांचल में आती है। वहां भी छठ का क्रेज नहीं है। दिवाली के बाद 10-12 दिन रुककर बहुत कम लोग होंगे जो वोट डालेंगे। अगर ये सीटें बिहार से लगी यूपी के जिलों में होती तो यह बात सही होती। ———————————— यह भी पढ़ें:- योगी बोले-घंटी और शंख भी नहीं बजाने देंगे:ताकत का एहसास करवाइए, जब भी हिंदू बंटे, निर्ममता से कटे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झारखंड के कोडरमा और बड़कागांव में बटेंगे तो कटेंगे का नारा दोहराया। उन्होंने जनता से कहा- अपनी ताकत का एहसास करवाइए। अपनी ताकत का अहसास कराएंगे तो यह जो पत्थरबाज हैं, आपके लिए झाड़ू लगाकर रास्ता साफ करते हुए दिखाई देंगे। हमें जातियों में नहीं बंटना है। जाति के नाम पर कुछ लोग आपको बांटेंगे, कांग्रेस और विपक्ष यही काम करती है। ये लोग बांग्लादेशी घुसपैठियों, रोहिंग्या को बुला रहे हैं। एक दिन ये लोग आपको घर के अंदर घंटी और शंख भी नहीं बजाने देंगे। इसलिए एक रहिए और नेक रहिए। मैं तो कहता हूं कि देश का इतिहास गवाह है जब भी बंटे हैं, निर्ममता से कटे हैं। पढ़ें पूरी खबर… खबर की शुरुआत 2 बयानों से… ‘टालेंगे तो और भी बुरा हारेंगे। पहले मिल्कीपुर का उपचुनाव टाला, अब बाकी सीटों के उपचुनाव की तारीख, भाजपा इतनी कमजोर कभी न थी। दरअसल बात ये है कि यूपी में ‘महा-बेरोजगारी’ की वजह से जो लोग पूरे देश में काम-रोजगार के लिए जाते हैं, वो दिवाली और छठ की छुट्टी लेकर यूपी आए हुए हैं, और उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालने वाले थे।’ –अखिलेश यादव, सपा प्रमुख ‘कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख 20 नवंबर तय कर जनता की भावनाओं का आदर किया है। लेकिन, सपा मुखिया अखिलेश यादव का तिथि परिवर्तन पर “दुखी” होना… वाह! यह वही दुख है जो साइकिल पंचर होने पर होता है।’ -केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी सीएम प्रदेश की 9 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में वोटिंग की तारीख बदलने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। तारीख बदले जाने पर बड़े–बड़े नेता बड़े–बड़े बयान दे रहे हैं। बेचैनी सबसे ज्यादा सपा नेताओं में है, इसकी वजह भी है। जानिए चुनाव आयोग के तारीख बदलने के फैसले से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? सबसे पहले जानिए किस आधार पर चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख बढ़ाई भाजपा और सहयोगी पार्टी रालोद ने आयोग से कार्तिक पूर्णिमा के चलते तारीख बदलने की मांग की थी। तर्क था- कार्तिक पूर्णिमा का स्नान प्रयागराज में होता है, पश्चिमी यूपी से आने वाले श्रद्धालुओं को आने जाने में तीन से चार दिन का समय लगता है। ऐसे में चुनाव के समय बड़ी संख्या में लोग बाहर रहेंगे और मतदान करने से वंचित रह जाएंगे। चुनाव आयोग ने यह बात मान ली और 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को वोटिंग की डेट तय कर दी। क्या तारीख तय करते समय आयोग ने इस पहलू का नहीं रखा ध्यान? आयोग हर चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के साथ बैठक करता है। यूपी में भी 10 सीटों पर चुनाव होना था। ऐसे में स्वाभाविक है कि तारीख घोषित होने से पहले आयोग सरकार के अफसरों से फोर्स की उपलब्धता, सुरक्षा, कानून व्यवस्था समेत तमाम पहलुओं पर मंथन करता है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी कहते हैं कि क्योंकि यूपी में माहौल भाजपा के खिलाफ है। इसी वजह से यूपी की सीटों पर हरियाणा और जम्मू के साथ चुनाव नहीं कराया गया। रिट का बहाना बना कर मिल्कीपुर में चुनाव टाल दिया गया। जब तारीख घोषित होने के बाद भी भाजपा चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाई तो तारीख ही बदल दी गई। क्योंकि इससे ज्यादा चुनाव टाला नहीं जा सकता था, वजह किसी भी सीट के रिक्त होने से 6 महीने के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य होता है, इसलिए चुनाव कराना मजबूरी थी। भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व में पत्रकार रहे अवनीश त्यागी कहते हैं कि 13 नवंबर को चुनाव होने से फायदा किसी का नहीं, नुकसान सभी का था। उत्तर प्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान प्रमुख स्नानों में से एक है। गंगा स्नान के इस मेले में सिर्फ अगड़े नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में पिछड़ी जाति के लोग जाते हैं। कुछ मान्यता ऐसी होती है, जिसे पूरा करने के लिए इसमें जाना जरूरी होता है। इसमें सिर्फ भाजपा के वोटर जाते हैं, यह बात सही नहीं है। जहां तक आयोग की इस ओर ध्यान न देने की बात है, तो आयोग बड़े त्योहारों को देखता है, रूट लेवल पर ध्यान नहीं देता। खास बात यह है कि इस चुनाव के लिए जो पुलिस प्रबंध की आवश्यकता होती है, वह भी इस दिन पूरी नहीं हो पाती। वजह सिर्फ त्योहार या कुछ और भी? दरअसल चुनाव आयोग कोई भी चुनाव का शेड्यूल तय करता है तो कैलेंडर उसके सामने होता है। आयोग यह भी देखता है कि जिस दिन मतदान होगा, उस इलाके का मौसम आम तौर पर उन दिनों में कैसा रहता है। ऐसे में आयोग से चूक हुई या फिर सत्ता पक्ष का कोई ऐसा दबाव था, जिसकी वजह से चुनाव की तारीख को बदलना पड़ा। विपक्ष कह रहा है कि तारीख बदलने से परिणाम नहीं बदलेंगे। त्योहारों की वजह से भाजपा अपनी तैयारी पूरी नहीं कर सकी थी, जिसकी वजह से तारीख को आगे बढ़ाया गया है। तारीख बढ़ने से किसको ज्यादा फायदा होगा? इस पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि सपा ने नौ अक्टूबर को ही मीरापुर, कुंदरकी, खैर और गाजियाबाद सदर की सीट छोड़कर 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। हालांकि घोषणा से पहले से ही प्रत्याशियों को सपा ने तैयारी के लिए कह दिया था। जबकि भाजपा इसमें पिछड़ गई थी। नामांकन शुरू हुआ तब जाकर भाजपा ने 24 अक्टूबर को 7 प्रत्याशी घोषित किए। इसलिए तैयारियों में सपा प्रत्याशी की तुलना में भाजपा प्रत्याशियों को प्रचार के लिए कम समय मिल पाया था। दूसरी बात यह है कि सीएम योगी झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में स्टार प्रचारकों की सूची में हैं। उनकी वहां ज्यादा डिमांड है। इसलिए कम समय होने की वजह से वो यूपी के उपचुनाव में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। अब उन्हें समय मिल जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि तारीख बदलने की मांग केवल सत्ता पक्ष की थी, जिसे आयोग ने मान लिया। हरियाणा में भी केवल भाजपा ने तारीख बदलने की मांग की थी। जाहिर है भाजपा ने अपनी सुविधा और अपने लाभ के लिए तारीख बदलवाई है, ताकि उसे प्रचार के लिए अधिक समय मिल जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ज्यादातर कार्यक्रम झारखंड और महाराष्ट्र में नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में लगे हुए हैं। ऐसे में यूपी के उपचुनावों में अधिक प्रचार नहीं कर पाते। इसलिए तारीख आगे बढ़वाई गई है। लेकिन इसका लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि भाजपा सोच रही है कि चुनाव को जितना लंबा खींचा जाएगा, उन्हें प्रचार करने का समय ज्यादा मिलेगा। मांग केवल मीरापुर के लिए हुई थी। इनको लगता है कि स्थितियां अपने पक्ष में कर लेंगे। ऐसा हो पाएगा या नहीं, यह चुनाव के परिणाम होने के बाद पता चलेगा। कार्तिक पूर्णिमा का स्नान 15 को है। हर काम धर्म के नाम पर हो रहा है। विपक्ष क्यों पहले चाह रहा था चुनाव एक्सपर्ट्स कहते हैं– चुनाव में आयोग की ओर से खर्च करने की भले ही सीमा तय हो, लेकिन प्रत्याशी अपने हिसाब से पैसे खर्च करता है। जो प्रत्याशी पहले से घोषित हो चुके होते हैं, उनका खर्च ज्यादा होता है। तारीख बढ़ने के बाद यह खर्च भी बढ़ जाता है। जबकि सत्ता पक्ष पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उसके पास तमाम ऐसे संसाधन होते हैं, जिनसे खर्च मैनेज हो जाता है। प्रत्याशी की जेब से कम पैसे खर्च होते हैं। इसके अलावा सपा-कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में जीत मिली है। सपा को लग रहा है कि हवा उसके पक्ष में हैं। जनता भाजपा से नाराज है, इसलिए इस गुस्से का फायदा उपचुनाव में भी मिलेगा। इसलिए वह जल्द वोटिंग चाह रही है। अखिलेश के दावों में कितनी सच्चाई है? चुनाव की तारीख बदलने पर अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी में महा-बेरोजगारी है। जो दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए जाते हैं, वे दिवाली और छठ पर अपने गांव लौटे हैं। वे उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए वोट डालने वाले थे। जैसे ही भाजपा को इसकी भनक लगी, उसने उपचुनावों को आगे खिसका दिया, जिससे लोगों की छुट्टी ख़त्म हो जाए और वो बिना वोट डाले ही वापस चले जाएं। ये भाजपा की पुरानी चाल है। हारेंगे तो टालेंगे। इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस बात में ज्यादा दम नहीं है। जिन सीटों पर वोटिंग होनी है, वो अधिकतर मध्य और पश्चिम की सीटें हैं। सिर्फ फूलपुर सीट पूर्वांचल में आती है। वहां भी छठ का क्रेज नहीं है। दिवाली के बाद 10-12 दिन रुककर बहुत कम लोग होंगे जो वोट डालेंगे। अगर ये सीटें बिहार से लगी यूपी के जिलों में होती तो यह बात सही होती। ———————————— यह भी पढ़ें:- योगी बोले-घंटी और शंख भी नहीं बजाने देंगे:ताकत का एहसास करवाइए, जब भी हिंदू बंटे, निर्ममता से कटे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झारखंड के कोडरमा और बड़कागांव में बटेंगे तो कटेंगे का नारा दोहराया। उन्होंने जनता से कहा- अपनी ताकत का एहसास करवाइए। अपनी ताकत का अहसास कराएंगे तो यह जो पत्थरबाज हैं, आपके लिए झाड़ू लगाकर रास्ता साफ करते हुए दिखाई देंगे। हमें जातियों में नहीं बंटना है। जाति के नाम पर कुछ लोग आपको बांटेंगे, कांग्रेस और विपक्ष यही काम करती है। ये लोग बांग्लादेशी घुसपैठियों, रोहिंग्या को बुला रहे हैं। एक दिन ये लोग आपको घर के अंदर घंटी और शंख भी नहीं बजाने देंगे। इसलिए एक रहिए और नेक रहिए। मैं तो कहता हूं कि देश का इतिहास गवाह है जब भी बंटे हैं, निर्ममता से कटे हैं। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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Kolhapur Violence: शाहू महाराज ने किया इलाके का दौरा, ठंड से कांपती बच्ची को पहनाई अपनी जैकेट <p style=”text-align: justify;”><strong>Maharashtra Kolhapur Violence:</strong> महाराष्ट्र के कोल्हापुर में विशालगढ़ किले को लेकर 14 जुलाई दो गुटों में हिंसक झड़प हो गई. इसके बाद मंगलवार को कोल्हापुर से कांग्रेस सांसद शाहू महाराज ने विशालगढ़ किले के आस-पास बसे गांव का दौरा किया. इस दौरान दंगा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों से मुलाकात के दौरान कांग्रेस सांसद को एक बच्ची बारिश में भीगने की वजह से कांपती दिखाई दी. ऐसे में उन्होंने अपनी जैकेट निकालकर बच्ची को पहना दी. इसका एक वीडियो भी सामने आया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या है पूरा मामला?</strong><br />बता दें कि कोल्हापुर के ऐतहासिक विशालगढ़ किले को अतिक्रमण मुक्त कराने को लेकर सारा बवाल हो रहा है. मस्जिद में तोड़फोड़ की गई थी. मस्जिद के ऊपर एक भगवा झंडा भी फहरा दिया गया था. घटना की विपक्षी दल निंदा कर रहे हैं. वहीं हिंसा के बाद सांसद शाहू महाराज विशालगढ़ किले के आसपास बसे गांव का दौरान करने भी पहुंचे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस दौरान पुलिस ने कांग्रेस सांसद को विशालगढ़ किले के विवादित क्षेत्र में नहीं जाने दिया. शाहू महाराज ने इस दौरान तोड़फोड़ की गई मस्जिद का भी निरीक्षण किया. वहां मौजूद लोगों से बातचीत भी की. लोगों ने अपनी शिकायतें उनके सामने रखी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>एबीपी माझा की रिपोर्ट के अनुसार, शाहू महाराज के बेटे संभाजी राजे ने कुछ दिनों से अतिक्रमण के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ है. संभाजी राजे जब विशालगढ़ इलाके में गए तो वहां के लोग हिंसक हो गए और विशालगढ़ के इलाके में तोड़फोड़ करने लगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसी घटना के बाद शाहू महाराज पीड़ितों को मुआवजों देने के लिए इलाके के दौरे पर रहे. इस दौरान सांसद ने सरकार से पीड़ितों को तुरंत मुआवजा देने की मांग की. वहीं घटना को प्रशासन और पुलिस की विफलता भी बताया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें : <a title=”48 वोटों से लोकसभा चुनाव जीतने वाले रवींद्र वायकर का क्या होगा? उद्धव गुट पहुंचा हाई कोर्ट” href=”https://www.abplive.com/states/maharashtra/amol-kirtikar-challenges-shiv-sena-ravindra-waikar-victory-in-lok-sabha-elections-file-petition-in-bombay-high-court-2739017″ target=”_blank” rel=”noopener”>48 वोटों से लोकसभा चुनाव जीतने वाले रवींद्र वायकर का क्या होगा? उद्धव गुट पहुंचा हाई कोर्ट</a></strong></p>