यूपी में सरकार चाहे जो रही हो, अपने हिसाब से ही अधिकारियों की तैनाती करती है। चाहे वह भाजपा की कल्याण सिंह सरकार रही हो, मुलायम सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती, अखिलेश यादव या अब योगी आदित्यनाथ की सरकार। यही वजह है कि इस समय यूपी की ब्यूरोक्रेसी दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। आईएएस हों या आईपीएस, आखिरी बार इनके एसोसिएशन की बैठक कब हुई? कब आईएएस-आईपीएस वीक मनाया गया, अफसर यह भूल चुके हैं। योगी सरकार बनने के बाद (मार्च, 2017) आए अफसर तो यह भी नहीं जानते कि प्रदेश में उनकी कोई एसोसिएशन भी है। हाल यह है कि जो एक बार मुखिया की नजरों में जमा, उसे जिला-दर-जिला मिलता गया। जो नजरों से गिरा, उसके लिए जिलों के रास्ते बंद हो गए। कई तो ऐसे हैं, जिन्हें अब भी पहली फील्ड पोस्टिंग का इंतजार है। 10 से 12 साल की नौकरी हो गई, लेकिन एक बार भी फील्ड में तैनाती नहीं मिली। जबकि ऐसे भी अफसर हैं, जो लगातार फील्ड पोस्टिंग में हैं। इसी की पड़ताल करती हुई यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट… ऐसे अफसर, जिन्हें नहीं मिली जिले की कमान
12 से ज्यादा आईएएस-आईपीएस ऐसे हैं, जिन्हें 10 साल की सर्विस के बाद या पीपीएस से आईपीएस और पीसीएस से आईएएस बनने के बरसों बाद भी जिले की कमान नहीं मिली। मसलन रवीना त्यागी 2014 बैच की आईपीएस हैं। इन्हें जिले की कमान संभालने का मौका अब तक नहीं मिला। रवीना की ही तरह उनकी बैच की पूजा यादव और रईस अख्तर भी हैं। इन दोनों अफसरों को भी किसी जिले की कमान अब तक नहीं सौंपी गई। इन अफसरों के पास जिले की पोस्टिंग के नाम पर अलग-अलग पुलिस कमिश्नरेट में डीसीपी की पोस्टिंग रही है। पुलिस कमिश्नरेट में डीसीपी की पोस्टिंग जिले में एडिशनल एसपी के पोस्टिंग के बराबर मानी जाती है। यानी उसके पास पूरे जिले की कमान नहीं होती। इसी तरह कुछ अफसर ऐसे हैं, जिन्हें सिर्फ एक या दो पोस्टिंग ही दी गईं। मसलन, प्रताप गोपेंद्र यादव 2012 बैच के आईपीएस हैं। यानी 12 साल से सेवा में हैं। जिले में बतौर कप्तान वे चित्रकूट में रहे। वहां से हटे, तो दोबारा फील्ड की पोस्टिंग नहीं मिली। 2013 बैच के आईएएस राज कमल यादव बागपत में जिलाधिकारी रहे। बीते 11 साल में जिलाधिकारी के तौर पर यह उनकी इकलौती पोस्टिंग रही। आईएएस अफसरों में प्रमोशन पाए ऐसे अफसरों की संख्या अनगिनत है, जिन्हें आईएएस बनने के बाद से अब तक फील्ड में पोस्टिंग नहीं मिली। पीसीएस से आईएएस बने संजय कुमार यादव, रणविजय यादव, राम सिंघासन प्रेम, ओम प्रकाश राय, कृष्ण कुमार गुप्ता समेत 12 से अधिक अफसरों के नाम इस सूची में शामिल हैं। अफसर, जो फील्ड से हटे ही नहीं
कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें एक बार मौका मिला तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मसलन, योगी आदित्यनाथ जब प्रदेश के मुखिया बने तो प्रशांत कुमार पीएसी में एडीजी थे। मुख्यमंत्री ने उन्हें पहले ट्रैफिक निदेशालय में तैनाती दी। उसके तीन महीने बाद मेरठ जोन का एडीजी बना दिया। मेरठ जोन में प्रशांत कुमार 16 जुलाई 2017 से 26 मई 2020 तक एडीजी रहे। इसके बाद उन्हें सीधे लखनऊ में एडीजी कानून व्यवस्था जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रशांत कुमार ने इसे भी बखूबी निभाया। 31 जनवरी 2024 को कार्यवाहक डीजीपी बनने से पहले प्रशांत कुमार लगातार एडीजी कानून व्यवस्था, स्पेशल डीजी कानून व्यवस्था के पद पर रहे। वह मौजूदा समय में सबसे पावरफुल डीजीपी में से एक हैं। एडीजी कानून व्यवस्था अमिताभ यश के नाम ऐसा रिकाॅर्ड है, जिसे शायद ही कोई अफसर तोड़ सके। अमिताभ यश साढ़े 7 साल से यूपी एसटीएफ के चीफ हैं। मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक अमिताभ यश मौजूदा समय में एडीजी कानून व्यवस्था का काम भी देख रहे हैं। इसके अलावा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एडीजी अखिल कुमार, एडीजी भानु भास्कर, एडीजी कानपुर जोन आलोक सिंह लगातार फील्ड पोस्टिंग पर हैं। झांसी के डीआईजी कलानिधि नैथानी एसपी बनने के बाद से लेकर डीआईजी बनने तक केवल तीन महीने साइड पोस्टिंग पर रहे। डीआईजी बने, तब भी सीधे फील्ड में पहुंचे। इसी तरह सहारनपुर के डीआईजी अजय साहनी बीते 7 साल से लगातार फील्ड में हैं। वे केवल तीन महीने के लिए फील्ड से हटे हैं। मथुरा के एसएसपी शैलेश पांडेय हों या मेरठ के एसएसपी विपिन टाडा, जब से ये एसपी बने हैं, अब तक एक दिन के लिए भी वह साइड पोस्टिंग पर नहीं रहे। आईएएस अफसरों में प्रतिनियुक्ति पर आए अंजनेय कुमार सिंह का नाम सबसे ऊपर है। वे जब से आए हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमे हैं। पहले रामपुर के जिलाधिकारी थे और अब मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त हैं। क्यों रहती है फील्ड पोस्टिंग की चाहत
आईएएस हों या आईपीएस, हर किसी की तमन्ना होती है कि वह एक बार जिले का कलेक्टर या कप्तान बन जाए। प्रमोशन हो तो मंडलायुक्त, डीआईजी, आईजी रेंज और कमिश्नरेट का पुलिस कमिश्नर, एडीजी जोन बने। यह सारी पोस्टिंग अहम मानी जाती है। खासकर जिले के डीएम और कप्तान का रुतबा अलग ही होता है। वहीं, हेडक्वार्टर या सचिवालय की पोस्टिंग में ज्यादातर काम फाइलों में जूझे रहने का होता है। अधिकारी को किसी न किसी एचओडी के अधीन रहना होता है। यहां तैनात अफसरों का फैसला स्वतंत्र नहीं होता। जबकि, फील्ड में पोस्टिंग के दौरान अपने विवेक से भी फैसला लिया जा सकता है। हर सरकार के होते हैं अपने अफसर
सरकार मायावती की रही हो, अखिलेश यादव की या योगी आदित्यनाथ की। हर मुख्यमंत्री अपनी पसंद के अफसर की तैनाती करते रहे हैं। मायावती दलित अफसरों को तरजीह देती थीं और अहम जिलों की कमान, अहम पद उन्हीं को सौंपती थीं। इसी तरह अखिलेश की सरकार में यादव और मुस्लिमों को अच्छे पदों पर तैनाती मिलती रही है। सरकारें बदलती हैं तो ऐसे अफसरों को किनारे लगा दिया जाता है, जो उस सरकार में अहम पदों पर तैनात रहे हों। यही वजह है कि 75 में से सिर्फ एक जिले में मुस्लिम पुलिस कप्तान है। वह भी ललितपुर में, जहां मुश्ताक अहमद एसपी हैं। वहीं, एक भी मुस्लिम जिलाधिकारी जिलों में नहीं है। इसी तरह एक भी जिले में पुलिस में यादव जाति के एसपी की तैनाती नहीं है। यही हाल जिलाधिकारी के रूप में यादवों का है। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार हो रहा है। पहले की सरकारें भी पूर्ववर्ती सरकार के अफसरों को हटाकर अपनी पसंद के अफसरों की तैनाती करती रही हैं। कम हुआ पीपीएस का दबदबा
यूपी कॉडर में जो भी आईएएस या आईपीएस होते हैं, उनमें 33% प्रमोशन से भरे जाते हैं। यानी राज्य पुलिस सेवा और राज्य सिविल सेवा के अधिकारियों को प्रमोशन देकर आईपीएस और आईएएस बनाया जाता है। उम्मीद रहती है कि इसी रेश्यो में जिलों में भी तैनाती मिलेगी। लेकिन मौजूदा समय में 68 जिलों में से 55 जिलों में पुलिस कप्तान के रूप में डायरेक्ट आईपीएस तैनात हैं। जबकि, प्रमोटी अफसर केवल 13 जिलों में कप्तान हैं। अमूमन, प्रमोटी अफसरों की संख्या 22 से 23 होनी चाहिए। मुलायम सिंह की सरकार में एक समय आधे से ज्यादा जिलों में प्रमोटी अफसरों की तैनाती कर दी गई थी। जिनको नहीं मिला मौका, उन्होंने किया केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रुख
कई अफसर ऐसे भी हैं जिन्हें प्रदेश में मौका नहीं मिला, तो उन्होंने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रुख कर लिया। इनमें 2011 बैच के मोहम्मद इमरान, 2012 बैच के सलमान ताज पाटिल, 2007 बैच की प्रतिभा अम्बेडकर समेत कई ऐसे अफसर शामिल हैं। आईएएस और आईपीएस की तैनाती के क्या है नियम और प्रोसेस
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन बताते हैं- सेवा में आने के बाद पहले दो साल प्रशिक्षण का समय होता है। अगले दो साल एसडीएम के तौर पर काम करना होता है। 4 साल की सेवा के बाद सीनियर स्केल मिल जाता है। इसके बाद आईएएस की जिलाधिकारी के तौर पर तैनाती की जा सकती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में परंपरा यह रही है कि सीनियर स्केल मिलने के बाद कम से कम दो साल बतौर सीडीओ पोस्टिंग दी जाती है। यानी जिलाधिकारी बनने के लिए डायरेक्ट अफसर को 6 साल तक इंतजार करना होता है। इसी तरह आईपीएस में भी चार साल की सर्विस के बाद जिले की कमान सौंपी जा सकती है। पीपीएस से आईपीएस बनने वाले और पीसीएस से आईएएस बनने वाले अफसरों को प्रमोशन के फौरन बाद जिले की कमान सौंपी जाती रही है। फील्ड पोस्टिंग न होने पर क्या अफसर चुनौती दे सकता है
किसी भी अफसर के लिए फील्ड पोस्टिंग जरूरी मानी जाती है। लेकिन इसे कोई कानूनी तौर पर चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि उसके बराबर की पोस्ट सचिवालय और पुलिस मुख्यालय में है, जहां पोस्टिंग मिल जाती है। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- पुलिस एक यूनिफॉर्म फोर्स है। यहां किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता और न ही करना चाहिए। हर अफसर को जिले में काम करने का मौका मिलना चाहिए। यह काम डीजीपी का होता है। वह देखे कि अगर किसी के साथ भेदभाव हो रहा है तो वह न होने दे। लेकिन जो अपनी जिम्मेदारियों से भागते हों, उन्हें फील्ड में तैनाती का मौका नहीं मिलना चाहिए। पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल का कहना है- किस अधिकारी को कहां पोस्ट करना है, यह पूरी तरह से मुख्यमंत्री का विवेकाधिकार होता है। वह चाहे जिलों की तैनाती हो या सचिवालय की तैनाती। चुनी हुई सरकार को हक है कि वह उन अधिकारियों को योग्यता के हिसाब से उस रैंक के पद पर कहीं भी तैनात कर सकती है। न तो कम से कम समय के लिए कोई मानक तय है और न ही अधिक से अधिक समय के लिए। यानी इसमें न तो किसी नियम का उल्लंघन है और न ही ऐसी कोई वैधानिक बाध्यता। जिसे सरकार फील्ड में रखना चाहती है, फील्ड में रखती है। जिसे शासन या साइड पोस्टिंग में रखना चाहती है, उसे वहां रखती है। —————- ये भी पढ़ें… यूपी के टॉप अफसर 2025 में हो जाएंगे रिटायर, नए चेहरों को मिलेगी कमान; मनोज सिंह का कार्यकाल नहीं बढ़ा तो 3 नाम कतार में यूपी में 2025 में टॉप ब्यूरोक्रेसी का चेहरा बदल जाएगा। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह और कृषि उत्पादन आयुक्त मोनिका एस गर्ग सहित कई बड़े आईएएस अफसर रिटायर हो जाएंगे। जो रिटायर हो रहे हैं, उनमें से कई एसीएस, निदेशक और आयुक्त हैं। नए चेहरों के साथ शासन-सत्ता की नई तस्वीर देखने को मिलेगी। जनवरी से दिसंबर 2025 तक यूपी कैडर के 27 आईएएस अफसर रिटायर होंगे। ये भी पढ़ें… यूपी में सरकार चाहे जो रही हो, अपने हिसाब से ही अधिकारियों की तैनाती करती है। चाहे वह भाजपा की कल्याण सिंह सरकार रही हो, मुलायम सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती, अखिलेश यादव या अब योगी आदित्यनाथ की सरकार। यही वजह है कि इस समय यूपी की ब्यूरोक्रेसी दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। आईएएस हों या आईपीएस, आखिरी बार इनके एसोसिएशन की बैठक कब हुई? कब आईएएस-आईपीएस वीक मनाया गया, अफसर यह भूल चुके हैं। योगी सरकार बनने के बाद (मार्च, 2017) आए अफसर तो यह भी नहीं जानते कि प्रदेश में उनकी कोई एसोसिएशन भी है। हाल यह है कि जो एक बार मुखिया की नजरों में जमा, उसे जिला-दर-जिला मिलता गया। जो नजरों से गिरा, उसके लिए जिलों के रास्ते बंद हो गए। कई तो ऐसे हैं, जिन्हें अब भी पहली फील्ड पोस्टिंग का इंतजार है। 10 से 12 साल की नौकरी हो गई, लेकिन एक बार भी फील्ड में तैनाती नहीं मिली। जबकि ऐसे भी अफसर हैं, जो लगातार फील्ड पोस्टिंग में हैं। इसी की पड़ताल करती हुई यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट… ऐसे अफसर, जिन्हें नहीं मिली जिले की कमान
12 से ज्यादा आईएएस-आईपीएस ऐसे हैं, जिन्हें 10 साल की सर्विस के बाद या पीपीएस से आईपीएस और पीसीएस से आईएएस बनने के बरसों बाद भी जिले की कमान नहीं मिली। मसलन रवीना त्यागी 2014 बैच की आईपीएस हैं। इन्हें जिले की कमान संभालने का मौका अब तक नहीं मिला। रवीना की ही तरह उनकी बैच की पूजा यादव और रईस अख्तर भी हैं। इन दोनों अफसरों को भी किसी जिले की कमान अब तक नहीं सौंपी गई। इन अफसरों के पास जिले की पोस्टिंग के नाम पर अलग-अलग पुलिस कमिश्नरेट में डीसीपी की पोस्टिंग रही है। पुलिस कमिश्नरेट में डीसीपी की पोस्टिंग जिले में एडिशनल एसपी के पोस्टिंग के बराबर मानी जाती है। यानी उसके पास पूरे जिले की कमान नहीं होती। इसी तरह कुछ अफसर ऐसे हैं, जिन्हें सिर्फ एक या दो पोस्टिंग ही दी गईं। मसलन, प्रताप गोपेंद्र यादव 2012 बैच के आईपीएस हैं। यानी 12 साल से सेवा में हैं। जिले में बतौर कप्तान वे चित्रकूट में रहे। वहां से हटे, तो दोबारा फील्ड की पोस्टिंग नहीं मिली। 2013 बैच के आईएएस राज कमल यादव बागपत में जिलाधिकारी रहे। बीते 11 साल में जिलाधिकारी के तौर पर यह उनकी इकलौती पोस्टिंग रही। आईएएस अफसरों में प्रमोशन पाए ऐसे अफसरों की संख्या अनगिनत है, जिन्हें आईएएस बनने के बाद से अब तक फील्ड में पोस्टिंग नहीं मिली। पीसीएस से आईएएस बने संजय कुमार यादव, रणविजय यादव, राम सिंघासन प्रेम, ओम प्रकाश राय, कृष्ण कुमार गुप्ता समेत 12 से अधिक अफसरों के नाम इस सूची में शामिल हैं। अफसर, जो फील्ड से हटे ही नहीं
कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें एक बार मौका मिला तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मसलन, योगी आदित्यनाथ जब प्रदेश के मुखिया बने तो प्रशांत कुमार पीएसी में एडीजी थे। मुख्यमंत्री ने उन्हें पहले ट्रैफिक निदेशालय में तैनाती दी। उसके तीन महीने बाद मेरठ जोन का एडीजी बना दिया। मेरठ जोन में प्रशांत कुमार 16 जुलाई 2017 से 26 मई 2020 तक एडीजी रहे। इसके बाद उन्हें सीधे लखनऊ में एडीजी कानून व्यवस्था जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रशांत कुमार ने इसे भी बखूबी निभाया। 31 जनवरी 2024 को कार्यवाहक डीजीपी बनने से पहले प्रशांत कुमार लगातार एडीजी कानून व्यवस्था, स्पेशल डीजी कानून व्यवस्था के पद पर रहे। वह मौजूदा समय में सबसे पावरफुल डीजीपी में से एक हैं। एडीजी कानून व्यवस्था अमिताभ यश के नाम ऐसा रिकाॅर्ड है, जिसे शायद ही कोई अफसर तोड़ सके। अमिताभ यश साढ़े 7 साल से यूपी एसटीएफ के चीफ हैं। मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक अमिताभ यश मौजूदा समय में एडीजी कानून व्यवस्था का काम भी देख रहे हैं। इसके अलावा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एडीजी अखिल कुमार, एडीजी भानु भास्कर, एडीजी कानपुर जोन आलोक सिंह लगातार फील्ड पोस्टिंग पर हैं। झांसी के डीआईजी कलानिधि नैथानी एसपी बनने के बाद से लेकर डीआईजी बनने तक केवल तीन महीने साइड पोस्टिंग पर रहे। डीआईजी बने, तब भी सीधे फील्ड में पहुंचे। इसी तरह सहारनपुर के डीआईजी अजय साहनी बीते 7 साल से लगातार फील्ड में हैं। वे केवल तीन महीने के लिए फील्ड से हटे हैं। मथुरा के एसएसपी शैलेश पांडेय हों या मेरठ के एसएसपी विपिन टाडा, जब से ये एसपी बने हैं, अब तक एक दिन के लिए भी वह साइड पोस्टिंग पर नहीं रहे। आईएएस अफसरों में प्रतिनियुक्ति पर आए अंजनेय कुमार सिंह का नाम सबसे ऊपर है। वे जब से आए हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमे हैं। पहले रामपुर के जिलाधिकारी थे और अब मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त हैं। क्यों रहती है फील्ड पोस्टिंग की चाहत
आईएएस हों या आईपीएस, हर किसी की तमन्ना होती है कि वह एक बार जिले का कलेक्टर या कप्तान बन जाए। प्रमोशन हो तो मंडलायुक्त, डीआईजी, आईजी रेंज और कमिश्नरेट का पुलिस कमिश्नर, एडीजी जोन बने। यह सारी पोस्टिंग अहम मानी जाती है। खासकर जिले के डीएम और कप्तान का रुतबा अलग ही होता है। वहीं, हेडक्वार्टर या सचिवालय की पोस्टिंग में ज्यादातर काम फाइलों में जूझे रहने का होता है। अधिकारी को किसी न किसी एचओडी के अधीन रहना होता है। यहां तैनात अफसरों का फैसला स्वतंत्र नहीं होता। जबकि, फील्ड में पोस्टिंग के दौरान अपने विवेक से भी फैसला लिया जा सकता है। हर सरकार के होते हैं अपने अफसर
सरकार मायावती की रही हो, अखिलेश यादव की या योगी आदित्यनाथ की। हर मुख्यमंत्री अपनी पसंद के अफसर की तैनाती करते रहे हैं। मायावती दलित अफसरों को तरजीह देती थीं और अहम जिलों की कमान, अहम पद उन्हीं को सौंपती थीं। इसी तरह अखिलेश की सरकार में यादव और मुस्लिमों को अच्छे पदों पर तैनाती मिलती रही है। सरकारें बदलती हैं तो ऐसे अफसरों को किनारे लगा दिया जाता है, जो उस सरकार में अहम पदों पर तैनात रहे हों। यही वजह है कि 75 में से सिर्फ एक जिले में मुस्लिम पुलिस कप्तान है। वह भी ललितपुर में, जहां मुश्ताक अहमद एसपी हैं। वहीं, एक भी मुस्लिम जिलाधिकारी जिलों में नहीं है। इसी तरह एक भी जिले में पुलिस में यादव जाति के एसपी की तैनाती नहीं है। यही हाल जिलाधिकारी के रूप में यादवों का है। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार हो रहा है। पहले की सरकारें भी पूर्ववर्ती सरकार के अफसरों को हटाकर अपनी पसंद के अफसरों की तैनाती करती रही हैं। कम हुआ पीपीएस का दबदबा
यूपी कॉडर में जो भी आईएएस या आईपीएस होते हैं, उनमें 33% प्रमोशन से भरे जाते हैं। यानी राज्य पुलिस सेवा और राज्य सिविल सेवा के अधिकारियों को प्रमोशन देकर आईपीएस और आईएएस बनाया जाता है। उम्मीद रहती है कि इसी रेश्यो में जिलों में भी तैनाती मिलेगी। लेकिन मौजूदा समय में 68 जिलों में से 55 जिलों में पुलिस कप्तान के रूप में डायरेक्ट आईपीएस तैनात हैं। जबकि, प्रमोटी अफसर केवल 13 जिलों में कप्तान हैं। अमूमन, प्रमोटी अफसरों की संख्या 22 से 23 होनी चाहिए। मुलायम सिंह की सरकार में एक समय आधे से ज्यादा जिलों में प्रमोटी अफसरों की तैनाती कर दी गई थी। जिनको नहीं मिला मौका, उन्होंने किया केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रुख
कई अफसर ऐसे भी हैं जिन्हें प्रदेश में मौका नहीं मिला, तो उन्होंने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रुख कर लिया। इनमें 2011 बैच के मोहम्मद इमरान, 2012 बैच के सलमान ताज पाटिल, 2007 बैच की प्रतिभा अम्बेडकर समेत कई ऐसे अफसर शामिल हैं। आईएएस और आईपीएस की तैनाती के क्या है नियम और प्रोसेस
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन बताते हैं- सेवा में आने के बाद पहले दो साल प्रशिक्षण का समय होता है। अगले दो साल एसडीएम के तौर पर काम करना होता है। 4 साल की सेवा के बाद सीनियर स्केल मिल जाता है। इसके बाद आईएएस की जिलाधिकारी के तौर पर तैनाती की जा सकती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में परंपरा यह रही है कि सीनियर स्केल मिलने के बाद कम से कम दो साल बतौर सीडीओ पोस्टिंग दी जाती है। यानी जिलाधिकारी बनने के लिए डायरेक्ट अफसर को 6 साल तक इंतजार करना होता है। इसी तरह आईपीएस में भी चार साल की सर्विस के बाद जिले की कमान सौंपी जा सकती है। पीपीएस से आईपीएस बनने वाले और पीसीएस से आईएएस बनने वाले अफसरों को प्रमोशन के फौरन बाद जिले की कमान सौंपी जाती रही है। फील्ड पोस्टिंग न होने पर क्या अफसर चुनौती दे सकता है
किसी भी अफसर के लिए फील्ड पोस्टिंग जरूरी मानी जाती है। लेकिन इसे कोई कानूनी तौर पर चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि उसके बराबर की पोस्ट सचिवालय और पुलिस मुख्यालय में है, जहां पोस्टिंग मिल जाती है। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- पुलिस एक यूनिफॉर्म फोर्स है। यहां किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता और न ही करना चाहिए। हर अफसर को जिले में काम करने का मौका मिलना चाहिए। यह काम डीजीपी का होता है। वह देखे कि अगर किसी के साथ भेदभाव हो रहा है तो वह न होने दे। लेकिन जो अपनी जिम्मेदारियों से भागते हों, उन्हें फील्ड में तैनाती का मौका नहीं मिलना चाहिए। पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल का कहना है- किस अधिकारी को कहां पोस्ट करना है, यह पूरी तरह से मुख्यमंत्री का विवेकाधिकार होता है। वह चाहे जिलों की तैनाती हो या सचिवालय की तैनाती। चुनी हुई सरकार को हक है कि वह उन अधिकारियों को योग्यता के हिसाब से उस रैंक के पद पर कहीं भी तैनात कर सकती है। न तो कम से कम समय के लिए कोई मानक तय है और न ही अधिक से अधिक समय के लिए। यानी इसमें न तो किसी नियम का उल्लंघन है और न ही ऐसी कोई वैधानिक बाध्यता। जिसे सरकार फील्ड में रखना चाहती है, फील्ड में रखती है। जिसे शासन या साइड पोस्टिंग में रखना चाहती है, उसे वहां रखती है। —————- ये भी पढ़ें… यूपी के टॉप अफसर 2025 में हो जाएंगे रिटायर, नए चेहरों को मिलेगी कमान; मनोज सिंह का कार्यकाल नहीं बढ़ा तो 3 नाम कतार में यूपी में 2025 में टॉप ब्यूरोक्रेसी का चेहरा बदल जाएगा। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह और कृषि उत्पादन आयुक्त मोनिका एस गर्ग सहित कई बड़े आईएएस अफसर रिटायर हो जाएंगे। जो रिटायर हो रहे हैं, उनमें से कई एसीएस, निदेशक और आयुक्त हैं। नए चेहरों के साथ शासन-सत्ता की नई तस्वीर देखने को मिलेगी। जनवरी से दिसंबर 2025 तक यूपी कैडर के 27 आईएएस अफसर रिटायर होंगे। ये भी पढ़ें… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर