<p style=”text-align: justify;”><strong>Bakra River Bridge Collapsed:</strong> बिहार के अररिया में 12 करोड़ की लागत से तौयार हुआ पुल उद्घाटन से पहले ही ध्वस्त हो गया है. ये पुल अररिया जिले के सिकटी में बकरा नदी पर बनाया गया था. </p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Bakra River Bridge Collapsed:</strong> बिहार के अररिया में 12 करोड़ की लागत से तौयार हुआ पुल उद्घाटन से पहले ही ध्वस्त हो गया है. ये पुल अररिया जिले के सिकटी में बकरा नदी पर बनाया गया था. </p> बिहार चुनाव हारने वाले उज्जवल निकम की इस पद पर फिर हुई नियुक्ति, महाराष्ट्र सरकार का फैसला
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अमृतपाल व साथियों की NSA 1 साल बढ़ी:लोकसभा चुनावों के परिणाम से 1 दिन पहले जारी हुआ ऑर्डर; खडूर साहिब से है सांसद
अमृतपाल व साथियों की NSA 1 साल बढ़ी:लोकसभा चुनावों के परिणाम से 1 दिन पहले जारी हुआ ऑर्डर; खडूर साहिब से है सांसद पंजाब के खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह की नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) की मियाद को एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। अमृतपाल के साथ-साथ उसके सभी 9 साथियों पर भी ऑर्डर लागू किया गया है। फिलहाल, अमृतपाल सिंह अपने साथियों के साथ असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है और लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की है। पंजाब सरकार के सूत्रों के अनुसार इन आदेशों को लोकसभा चुनावों के दो दिन बाद व परिणाम के एक दिन पहले ही 3 जून को जारी कर दिया गया था। फिलहाल परिवार व अमृतपाल के वकील को भी इसकी पूरी जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि अमृतपाल सिंह को NSA से बाहर निकालने के लिए प्रयास जारी हैं। मार्च 2023 से डिब्रूगढ़ जेल में बंद है अमृतपाल अमृतपाल सिंह की बात करें तो मार्च 2023 से NSA के तहत असम के डिब्रूगढ़ में जेल में हैं। NSA एक ऐसा कानून है जो सरकार को औपचारिक आरोपों के बिना 12 महीने तक व्यक्तियों को हिरासत में रखने की अनुमति देता है। लेकिन अमृतपाल सिंह को अब एक साल से भी अधिक हो चुका है। चुनावों से पहले परिवार ने अमृतपाल सिंह और उसके 9 साथियों को पंजाब शिफ्ट करने की कई कोशिशें की, जो नाकामयाब रहीं। अंत में परिवार ने अमृतपाल सिंह को लोकसभा चुनावों में उतारने की कोशिश की दी। हैरानी की बात है कि खडूर साहिब के लोंगो ने रिवायती पार्टियों को इस कदर निकारा कि अमृतपाल 1.97 लाख वोटों के अंतर से जीत गया। 6 महीने के अंदर-अंदर शपथ लेगा अमृतपाल नियमों अनुसार अमृतपाल सिंह को 6 महीने के अंदर-अंदर संसद पहुंच शपथ लेनी होगी। इसके लिए उसे 1 दिन की पैरोल मिल सकती है। इसी साल मार्च में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, जो उस समय मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में तिहाड़ में कैद थे, को एक अदालत ने दूसरे कार्यकाल के लिए राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ लेने की अनुमति दी थी। ट्रायल कोर्ट ने जेल सुपरिंटेंडेंट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उसे पर्याप्त सुरक्षा के साथ संसद तक ले जाया जाए और वापस जेल में ले जाया जाए। 2021 में, असम के सिबसागर से जीतने के बाद एक NIA अदालत ने अखिल गोगोई को असम विधान सभा के सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए अस्थायी रूप से जेल छोड़ने की अनुमति दी थी। 12 मामले हैं अमृतपाल पर सरकार चुनावों के परिणाम देखते हुए अगर NSA हटा देती है तो भी अमृतपाल सिंह को अदालतों के फेर में फंसे रहना पड़ेगा। अमृतपाल सिंह पर अजनाला थाने पर अवैध हथियारों के साथ हमला करने सहित 12 मामले विभिन्न थानों में दर्ज है। इतना ही नहीं, एक मामला उस पर असम के थाने में भी दर्ज है। जिसमें उससे पुलिस ने सर्च के दौरान डिब्रूगढ़ जेल से इलेक्ट्रानिक गैजेट्स बरामद किए थे।
लुधियाना कांग्रेस में गुटबाजी जारी:आत्मनगर विधानसभा क्षेत्र में आशु की बैठक, बैंस बंधु नदारद
लुधियाना कांग्रेस में गुटबाजी जारी:आत्मनगर विधानसभा क्षेत्र में आशु की बैठक, बैंस बंधु नदारद पंजाब के लुधियाना में कांग्रेस ने जीत जरूर हासिल की है और सांसद अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। लेकिन कांग्रेस में गुटबाजी अभी भी जारी है। कांग्रेसी आत्म नगर हलके में बैठकें कर रहे हैं लेकिन बैंस उन बैठकों में नजर नहीं आ रहे हैं। इससे पहले सिमरजीत सिंह बैंस को लोकसभा टिकट मिलने की चर्चा खूब रही थी। उस समय भी कुछ कांग्रेसियों ने विरोध किया था और बैंस को टिकट नहीं मिला था। इसके बाद आखिरकार बैंस ने अपने भाई बलविंदर सिंह के साथ पार्टी का विलय कर दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। बैंस के गढ़ में आशु की बैठकें आत्म नगर हलका सिमरजीत सिंह बैंस का गढ़ है। दो दिन पहले कार्यकारी अध्यक्ष भारत भूषण आशु ने बैंस के गढ़ में धन्यवाद बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में कांग्रेस के पूर्व पार्षद भी शामिल हुए थे, जिनका बैंस से 36 का आंकड़ा है। सिमरजीत इस बैठक में नहीं आए। इसके बाद अगले ही दिन आत्म नगर के सभी कांग्रेस पदाधिकारी उनसे मिलने चंडीगढ़ पहुंच गए। पार्टी में वरिष्ठ नेताओं के बीच खींचतान इसी तरह जारी रही तो आगामी निगम चुनाव में विवाद होना तय है। आत्म नगर से मिली कांग्रेस को 5096 लीड भारत भूषण आशु ने जो 2 दिन पहले बैठक में धन्यवाद वर्करों को किया क्योंकि आत्म नगर से पार्टी को 5096 की लीड मिली थी। बेशक इस लीड का कारण सिमरजीत सिंह बैंस है क्योंकि उनका खुद का वोट बैंक भी काफी है। उनकी पार्टी का विलय कांग्रेस में होने के कारण भी वोट कांग्रेस को मिले लेकिन इस धन्यवाद बैठक में 7 पार्षद सहित अन्य वर्कर शामिल थे। वहीं जो नेता वड़िंग से मिलने चंडीगढ़ गए थे ये वह नेता थे जो आशु की बैठक में नहीं गए थे। लोकसभा चुनाव में आशु खिलाफ विधायकों ने खोला था मोर्चा लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले कांग्रेस टिकट के लिए भारत भूषण आशु का नाम सबसे आगे था। लेकिन आशु के खिलाफ कांग्रेस के पुराने दिग्गज विधायकों ने मोर्चा खोल दिया था। आखिर समय में पार्टी ने प्रदेश प्रधान वड़िंग को लुधियाना संसदीय सीट से चुनाव लड़वाया। चुनाव प्रचार दौरान भी लुधियाना में वड़िंग ज्यादातर अकेले ही वोट मांगते दिखे थे। उस समय यह भी चर्चा रही कि आशु खुलकर चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो रहे थे। इन्हीं कारणों से पार्टी में अंदर खाते कलह बढ़ गई है।
करनाल में पुरानी टीम के साथ मनोहर लाल हुए एक्टिव:बिना संगठन कैसे होगी सुमिता सिंह की नैया पार, गुटबाजी से भीतरघात का खतारा
करनाल में पुरानी टीम के साथ मनोहर लाल हुए एक्टिव:बिना संगठन कैसे होगी सुमिता सिंह की नैया पार, गुटबाजी से भीतरघात का खतारा हरियाणा में करनाल विधानसभा चुनाव में एक बार पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर एक्टिव हो चुके है। ऐसे मे कांग्रेस प्रत्याशी सुमिता सिंह अब राह आसान नहीं है। क्योंकि पूर्व सीएम मनोहर लाल अब पूरे संगठन व पुरानी टीम के साथ करनाल विधासभा चुनाव में जगमोहन आनंद के प्रचार में उतर चुके है। वहीं अगर हम बात करे तो कांग्रेस पिछले 10 साल से अपना संगठन भी नहीं बना पाई है। करनाल कांग्रेस में कोई हुड्डा गुट से है तो कोई सैलजा-सुरजेवाला गुट से। टीम भी बिखरी पड़ी है। ऐसे में बिना संगठन सुमिता सिंह की नैया कैसे पार होगी? यह अपने आप में बड़ा सवाल है। दूसरी ओर, बीजेपी मजबूत संगठन के सहारे मैदान में है। बीजेपी पन्ना प्रमुख तक उतार चुकी है। भीतरघात का भी कांग्रेस को खतरा करनाल की राजनीति में अच्छी समझ रखने वाले DAV कॉलेज के प्राचार्य आर.पी सैनी की मांने तो इस बार सिर्फ संगठन ही नहीं, बल्कि कांग्रेस भीतरघात का शिकार भी होती नजर आ रही है। क्योंकि कई कांग्रेस के नेता मंचों पर तो दिख रहे है, लेकिन उनके मन में आज भी टिकट कटने की टिस है। अंदरूनी कलह कांग्रेस की प्रत्याशी के लिए बड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त संगठन को लेकर कांग्रेस गंभीर भी नहीं दिख रही। चुनाव प्रचार के दौरान संगठन एक बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। पंजाबी वोटर का दबदबा करनाल विधानसभा की अगर हम बात करें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा वोटर पंजाबी समाज से आते है, उसके बाद वैश्य समाज फिर जाट और जट सिख है। सैनी का मानना है कि पूर्व विधायक सुमिता सिंह लंबे समय तक लोगों के बीच से गायब रही, लेकिन चुनावों से पहले एक्टिव हो गई। जिससे लोगों में भी नाराजगी जरूर दिखी। कांग्रेस की नजर पंजाबी वोटर पर है और पंजाबी वोटर साधने के लिए कांग्रेस हर संभव प्रयास में जुटी हुई है। दूसरी ओर, बीजेपी के करनाल सांसद एवं कैबिनेट मंत्री मनोहर लाल भी एक्टिव हो चुके है, हालांकि पिछले दिनों पंजाबी समाज ने कांग्रेस का समर्थन करने का ऐलान किया था, लेकिन मनोहर लाल पंजाबी तबके को अपने पक्ष में करने में जुटे हुए है। कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुश्किलें बढ़ रही है। करनाल में बीजेपी के पूर्व सीएम एक्टिव है, जबकि कांग्रेस की तरफ से ऐसा कोई चेहरा नजर नहीं आ रहा कि वह पंजाबी वोटर को साध सके। तरलोचन सिंह भी मैदान में नजर तो आ रहे है, लेकिन अंदर से इनको भी टिकट कटने का दर्द है। पूर्व मेयर को मानने में कायब रही भाजपा सैनी ने कहा कि दूसरी ओर, बीजेपी पूर्व मेयर को मनाने में भी कामयाब हो चुकी है और उनके पति बृज गुप्ता को कार्यकारी जिलाध्यक्ष नियुक्त करके राजनीति पैतरा फेंका है। इससे मेयर की नाराजगी तो दूर हुई, साथ ही उन्होंने भी बीजेपी को मजबूत करने के लिए प्रचार शुरू कर दिया। बीजेपी कांग्रेस को घेरने के लिए लगी हुई है। जिन पार्षदों ने अपने कार्यकाल में काम नहीं करवाए, और वे अब बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस में जा रहे है, ऐसे पार्षदों से भी करनाल की जनता नाराज दिख रही है। ऐसे में दस साल से प्रदेश में कांग्रेस अपना संगठन नहीं बना पाई। दूसरा, पार्टी अलग-अलग धड़ों में बंटी है और गुटबाजी हावी है और तीसरा दिग्गज नेताओं के एक-दूसरे के क्षेत्र में मदद करने की संभावना कम नजर आ रही है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनावी राह आसान नहीं है और यह 8 अक्तूबर को पता चलेगा कि लोग किसके पक्ष में वोट करते है।