अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में आज दोपहर बाद भगवान नरसिंह की शाही जलेब निकाली जाएगी। आगे-आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी चलेगी। पीछे आधा दर्जन से ज्यादा देवी-देवता और बीच में भगवान नरसिंह की पालकी चलेगी। पालकी में रूपी रियासत के राज घराना से संबंध रखने वाले रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह नरसिंह भगवान की निशानी ढाल लेकर सवार होंगे। कुल्लू की सांस्कृतिक धरोहर एवं राजा की जलेब का दशहरे में विशेष महत्व है। जलेब यानी राजा की शोभा यात्रा। इसमें हजारों लोग और देवलू (देवता के कारिंदें) पारंपरिक बाध्य यंत्रों की थाप पर नाचते-गाते हुए आगे बढ़ेंगे। देवी देवताओं के भव्य मिलन के बाद आज दोपहर बाद नरसिंह भगवान की जलेब निकलेगी। 7 दिन तक चलने वाला अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा भगवान रघुनाथ जी की शोभा यात्रा के साथ बीते रविवार को शुरू हो गया है। इसमें 283 देवी देवता भाग ले रहे हैं, जबकि निमंत्रण 332 देवी-देवताओं को दिया गया था। इस मेले के लिए बाह्य सराज, आनी, निरमंड और सैंज की शांघड़ घाटी के दूरस्थ इलाकों के देवी-देवता पैदल चलकर पहुंचे है। जलेब का इतिहास और क्यों निकाली जाती है? माना जाता है कि रजवाड़ाशाही के दिनों में राजा यह जलेब सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था देखने के लिए निकालते थे। वहीं, देवी-देवता बुरी आसुरी शक्तियों को खत्म करने के मकसद से इस जलेब में शामिल होते थे। स्थानीय लोग इस प्रथा को आज भी कायम रखे हुए हैं। सदियों से जलेब निकालने की परंपरा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में नरसिंह भगवान की जलेब निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। नरसिंह की जलेब अगले 3 दिन तक निकाली जाएगी। इस दौरान अलग-अलग घाटियों के देवी-देवता अलग-अलग दिनों में शरीक होते हैं, जिसमें लोग नाचते गाते हुए आगे बढ़ते हैं। नरसिंग भगवान के सिंहासन से शुरू होगी जलेब यह शोभा यात्रा कुल्लू के ढालपुर में भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर के साथ बने नरसिंह भगवान के सिंहासन से शुरू होगी। जो क्षेत्रीय अस्पताल, कॉलेज गेट, लाल चंद प्रार्थी कला केंद्र से पीछे और BDO दफ्तर होकर वापस नरसिंह भगवान के सिंहासन तक पहुंचेगी। राजा जगत सिंह के समय से शुरू हुई दशहरा मनाने की परम्परा रूपी रियासत के राजा जगत सिंह ने 1637 से 1662 तक शासन किया। तब उन्होंने दमोदर दास को मूर्ति लाने का जिम्मा दिया गया। 1651 में मूर्ति राजभवन मकराहड़ वर्तमान गड़सा घाटी लाई गई। यहां मूर्ति का भव्य स्वागत हुआ। 1653 में पहला दशहरा मणिकर्ण में मनाया गया। वहीं पर दशहरा मनाने का फैसला लिया गया। 1660 में ढालपुर में मनाना शुरू हुआ। उस दौरान से मूर्ति यहां पर ही है। कुल्लू में एक साथ दिखेगी देशी और विदेशी संस्कृति कुल्लू दशहरा में करीब 25 देशों के कलाकार भाग ले रहे हैं। इसमें रूस, अमेरिका, थाईलैंड, उज्बेकिस्तान, इंडोनेशिया, म्यांमार और किर्गिस्तान के कलाकार भाग लेंगे। आईसीसीआर का संयुक्त सांस्कृतिक दल भी प्रस्तुति देगा। वहीं, उतराखंड, असम, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के सांस्कृतिक दल भी दशहरा में अपने कार्यक्रम देंगे। रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाहिद माल्या, कुलविंदर बिल्ला, ट्रेप बैंड, शारदा पंडित, हिमालयन रूट्स, गुरनाम भुल्लर, कुमार साहिल, नीरज श्रीधर और बांबे वाइकिंग जैसे कलाकार और बैंड उत्सव में लोगों का मनोरंजन करेंगे। दशहरा उत्सव में कई विदेशी राजदूत भी शामिल होंगे। इस मेले का शुभारंभ राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने किया, जबकि समापन्न अवसर पर 18 अक्टूबर को CM सुखविंदर सुक्खू विशेष तौर पर मौजूद रहेंगे। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में आज दोपहर बाद भगवान नरसिंह की शाही जलेब निकाली जाएगी। आगे-आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी चलेगी। पीछे आधा दर्जन से ज्यादा देवी-देवता और बीच में भगवान नरसिंह की पालकी चलेगी। पालकी में रूपी रियासत के राज घराना से संबंध रखने वाले रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह नरसिंह भगवान की निशानी ढाल लेकर सवार होंगे। कुल्लू की सांस्कृतिक धरोहर एवं राजा की जलेब का दशहरे में विशेष महत्व है। जलेब यानी राजा की शोभा यात्रा। इसमें हजारों लोग और देवलू (देवता के कारिंदें) पारंपरिक बाध्य यंत्रों की थाप पर नाचते-गाते हुए आगे बढ़ेंगे। देवी देवताओं के भव्य मिलन के बाद आज दोपहर बाद नरसिंह भगवान की जलेब निकलेगी। 7 दिन तक चलने वाला अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा भगवान रघुनाथ जी की शोभा यात्रा के साथ बीते रविवार को शुरू हो गया है। इसमें 283 देवी देवता भाग ले रहे हैं, जबकि निमंत्रण 332 देवी-देवताओं को दिया गया था। इस मेले के लिए बाह्य सराज, आनी, निरमंड और सैंज की शांघड़ घाटी के दूरस्थ इलाकों के देवी-देवता पैदल चलकर पहुंचे है। जलेब का इतिहास और क्यों निकाली जाती है? माना जाता है कि रजवाड़ाशाही के दिनों में राजा यह जलेब सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था देखने के लिए निकालते थे। वहीं, देवी-देवता बुरी आसुरी शक्तियों को खत्म करने के मकसद से इस जलेब में शामिल होते थे। स्थानीय लोग इस प्रथा को आज भी कायम रखे हुए हैं। सदियों से जलेब निकालने की परंपरा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में नरसिंह भगवान की जलेब निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। नरसिंह की जलेब अगले 3 दिन तक निकाली जाएगी। इस दौरान अलग-अलग घाटियों के देवी-देवता अलग-अलग दिनों में शरीक होते हैं, जिसमें लोग नाचते गाते हुए आगे बढ़ते हैं। नरसिंग भगवान के सिंहासन से शुरू होगी जलेब यह शोभा यात्रा कुल्लू के ढालपुर में भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर के साथ बने नरसिंह भगवान के सिंहासन से शुरू होगी। जो क्षेत्रीय अस्पताल, कॉलेज गेट, लाल चंद प्रार्थी कला केंद्र से पीछे और BDO दफ्तर होकर वापस नरसिंह भगवान के सिंहासन तक पहुंचेगी। राजा जगत सिंह के समय से शुरू हुई दशहरा मनाने की परम्परा रूपी रियासत के राजा जगत सिंह ने 1637 से 1662 तक शासन किया। तब उन्होंने दमोदर दास को मूर्ति लाने का जिम्मा दिया गया। 1651 में मूर्ति राजभवन मकराहड़ वर्तमान गड़सा घाटी लाई गई। यहां मूर्ति का भव्य स्वागत हुआ। 1653 में पहला दशहरा मणिकर्ण में मनाया गया। वहीं पर दशहरा मनाने का फैसला लिया गया। 1660 में ढालपुर में मनाना शुरू हुआ। उस दौरान से मूर्ति यहां पर ही है। कुल्लू में एक साथ दिखेगी देशी और विदेशी संस्कृति कुल्लू दशहरा में करीब 25 देशों के कलाकार भाग ले रहे हैं। इसमें रूस, अमेरिका, थाईलैंड, उज्बेकिस्तान, इंडोनेशिया, म्यांमार और किर्गिस्तान के कलाकार भाग लेंगे। आईसीसीआर का संयुक्त सांस्कृतिक दल भी प्रस्तुति देगा। वहीं, उतराखंड, असम, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के सांस्कृतिक दल भी दशहरा में अपने कार्यक्रम देंगे। रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाहिद माल्या, कुलविंदर बिल्ला, ट्रेप बैंड, शारदा पंडित, हिमालयन रूट्स, गुरनाम भुल्लर, कुमार साहिल, नीरज श्रीधर और बांबे वाइकिंग जैसे कलाकार और बैंड उत्सव में लोगों का मनोरंजन करेंगे। दशहरा उत्सव में कई विदेशी राजदूत भी शामिल होंगे। इस मेले का शुभारंभ राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने किया, जबकि समापन्न अवसर पर 18 अक्टूबर को CM सुखविंदर सुक्खू विशेष तौर पर मौजूद रहेंगे। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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