पेरिस ओलिंपिक में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने पर डिस्क्वालिफाई हुईं विनेश फोगाट के केस में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) ने 24 पेज की ऑर्डर कॉपी जारी की है। जिसमें CAS ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी का वजन कम-ज्यादा होने का कारण और जिम्मेदार खुद खिलाड़ी ही है। नियमों से ऊपर कोई भी कारण नहीं हो सकता है। CAS ने आगे कहा कि खेलों में सभी प्रतिभागियों के लिए नियम समान होते हैं और इन नियमों में कोई भी ढील नहीं दी जा सकती। विनेश फोगाट का मामला यह था कि उनका वजन निर्धारित सीमा से 100 ग्राम अधिक था। उन्होंने इस मामूली बढ़त के लिए सहनशीलता की मांग की थी, क्योंकि यह वृद्धि मासिक धर्म (पीरियड्स) के कारण पानी के रिटेंशन और पानी पीने के कारण हुई थी। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और स्पष्ट कर दिया कि नियमों में कोई सहनशीलता का प्रावधान नहीं है। CAS के ऑर्डर की खास बातें… पानी की कमी की दलील दी CAS ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि विनेश फोगाट फाइनल से पहले वजन मापने के दौरान असफल साबित हुईं। यानी उनका वजन 50 किग्रा वेट कैटेगरी के लिहाज से ज्यादा पाया गया। इसमें विनेश का मानना यह था कि सिर्फ 100 ग्राम वजन ज्यादा है। इसे पीरियड्स, वॉटर रिटेंशन के चलते विलेज तक आने के कारण पानी नहीं मिल पाया। नियम सभी के लिए समान एथलीट्स के लिए समस्या यह है कि वजन को लेकर नियम साफ हैं और सभी के लिए समान भी हैं। इसमें कितना ज्यादा है, यह देखने के लिए कोई सहनशीलता प्रदान नहीं की गई है। यह सिंगलेट (फाइटिंग के दौरान पहलने वाली जर्सी) के वजन की भी अनुमति नहीं देता है। यह भी साफ है कि एथलीट को ही यह देखना होगा कि उसका वजन नियम के अनुसार ही हो। थोड़ी भी छूट देने का अधिकार नहीं यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के नियमों में साफ दिया गया है कि पहलवान को न सिर्फ टूर्नामेंट के शुरुआत में खेलने के योग्य होना चाहिए, बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही उसे योग्य होना चाहिए। यानी एंट्री से लेकर फाइनल तक ऐसे में नियमों में जरा भी अधिकार नहीं दिया गया है कि थोड़ी भी छूट दी जाए। इससे समझ सकते हैं कि क्यों ये नियम प्रदान करते हैं कि एक बार जब कोई पहलवान प्रतियोगिता के दौरान अयोग्य हो जाता है, तो अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू होते हैं। उस दिन के हालात पर छूट का प्रावधान नहीं एथलीट ने यह भी मांग की है कि वजन के नियमों में दी गई लिमिट को उस दिन की उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार बदला जाए और उस लिमिट पर सहनशीलता लागू की जाए। यानी 100 ग्राम वजन को ज्यादा न समझा जाए और 50 किग्रा वेट कैटेगरी में खेलने की अनुमति दी जाए। मगर, नियमों को देखा जाए तो उसमें ऐसी कोई छूट देने का प्रावधान ही नहीं है। नियम साफ हैं कि 50 किग्रा वेट एक लिमिट है. इसमें व्यक्तिगत तौर पर सहूलियत देने या विवेकाधिकार प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। विनेश ने पहले मापे गए वजन की दलील दी एथलीट का पहले दिन का वजन नियम के अनुसार था। उन्हें दूसरे दिन यानी फाइनल से पहले भी वजन माप में सफल होना था। नियमों के अनुच्छेद 11 के लागू होने के कारण विनेश टूर्नामेंट से बाहर हो गईं और बिना किसी रैंक के आखिरी स्थान पर आ गईं। इसने उनसे सिल्वर मेडल भी छीन लिया, जो उन्होंने सेमीफाइनल जीतने के साथ ही पक्का कर लिया था। इस पर विनेश की दलील है कि वो सिल्वर मेडल के लिए योग्य और पात्र बनी रहीं और 6 अगस्त (पहले दिन) को उनका जो सफल वजन माप हुआ था, उसे दूसरे दिन भी लागू किया जाए। नियमों में मेडल देने का प्रावधान नहीं नियमों में कोई विवेकाधिकार नहीं दिया गया है। इसे लागू करने के लिए एकमात्र मध्यस्थ पूरी तरह से बाध्य हैं। एकमात्र मध्यस्थ इस दलील में भी दम देखता है कि फाइनल से पहले जो वजन माप किया गया था, वो नियम के खिलाफ था तो विनेश को सिर्फ फाइनल के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए। यानी उन्हें सिल्वर दिया जाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से आवेदक के लिए नियमों में यह भी सुविधा भी प्रदान नहीं की गई है। फैसला कानूनी रूप से लिया गया एथलीट ने यह अनुरोध किया है कि अपील किए गए निर्णय को इस तरह से अलग रखा जाए कि नियमों के अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू न हों या अनुच्छेद 11 को इस तरह से समझा जाए कि यह सिर्फ टूर्नामेंट के आखिरी दौर पर लागू हो और यह टूर्नामेंट के शुरुआत से ही लागू न हो। यह विवाद का विषय नहीं है कि एथलीट दूसरे वजन-माप में असफल रहा। आवेदक ने नियमों के अनुच्छेद 11 को चुनौती नहीं दी है। इसका मतलब यह है कि फैसला कानूनी रूप से लिया गया था और अनुच्छेद 11 लागू होता है। जॉइंट मेडल का नियम नहीं एथलीट ने यह भी माना है कि नियमों के लिहाज से वो अयोग्य हो गई हैं। इस कारण सेमीफाइनल में उनसे हारने वाली एथलीट फाइनल खेलने के लिए योग्य हो गई हैं। उन्हें ही सिल्वर या गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। विनेश यह नहीं चाहती कि कोई अन्य पहलवान अपना मेडल खो दे। वो तो संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल चाहती हैं। ऐसे में कोई नियम नहीं है, जिसके आधार पर विनेश को संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल दिए जाने की सहूलियत प्रदान की जाए। कोई गैरकानूनी काम नहीं किया इन सभी नियमों और बातों का मतलब है कि एकमात्र मध्यस्थ विनेश द्वारा मांगी गई राहत को देने से इनकार करता है और उनका यह आवेदन खारिज करता है।एकमात्र मध्यस्थ ने यह पाया है कि विनेश ने खेल के मैदान में एंट्री की और पहले ही दिन 3 राउंड के मुकाबले में फाइटिंग करते हुए जीत हासिल की। इसके दम पर उन्होंने पेरिस ओलिंपिक गेम्स में 50 किग्रा वेट कैटेगरी के रेसलिंग फाइनल में पहुंचीं। मगर, दूसरे दिन वजन माप में वो असफल रहीं और फाइनल के लिए अयोग्य हो गईं। विनेश की ओर से कोई भी गलत काम (गैरकानूनी) करने का कोई संकेत नहीं मिला है। पेरिस ओलिंपिक में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने पर डिस्क्वालिफाई हुईं विनेश फोगाट के केस में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) ने 24 पेज की ऑर्डर कॉपी जारी की है। जिसमें CAS ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी का वजन कम-ज्यादा होने का कारण और जिम्मेदार खुद खिलाड़ी ही है। नियमों से ऊपर कोई भी कारण नहीं हो सकता है। CAS ने आगे कहा कि खेलों में सभी प्रतिभागियों के लिए नियम समान होते हैं और इन नियमों में कोई भी ढील नहीं दी जा सकती। विनेश फोगाट का मामला यह था कि उनका वजन निर्धारित सीमा से 100 ग्राम अधिक था। उन्होंने इस मामूली बढ़त के लिए सहनशीलता की मांग की थी, क्योंकि यह वृद्धि मासिक धर्म (पीरियड्स) के कारण पानी के रिटेंशन और पानी पीने के कारण हुई थी। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और स्पष्ट कर दिया कि नियमों में कोई सहनशीलता का प्रावधान नहीं है। CAS के ऑर्डर की खास बातें… पानी की कमी की दलील दी CAS ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि विनेश फोगाट फाइनल से पहले वजन मापने के दौरान असफल साबित हुईं। यानी उनका वजन 50 किग्रा वेट कैटेगरी के लिहाज से ज्यादा पाया गया। इसमें विनेश का मानना यह था कि सिर्फ 100 ग्राम वजन ज्यादा है। इसे पीरियड्स, वॉटर रिटेंशन के चलते विलेज तक आने के कारण पानी नहीं मिल पाया। नियम सभी के लिए समान एथलीट्स के लिए समस्या यह है कि वजन को लेकर नियम साफ हैं और सभी के लिए समान भी हैं। इसमें कितना ज्यादा है, यह देखने के लिए कोई सहनशीलता प्रदान नहीं की गई है। यह सिंगलेट (फाइटिंग के दौरान पहलने वाली जर्सी) के वजन की भी अनुमति नहीं देता है। यह भी साफ है कि एथलीट को ही यह देखना होगा कि उसका वजन नियम के अनुसार ही हो। थोड़ी भी छूट देने का अधिकार नहीं यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के नियमों में साफ दिया गया है कि पहलवान को न सिर्फ टूर्नामेंट के शुरुआत में खेलने के योग्य होना चाहिए, बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही उसे योग्य होना चाहिए। यानी एंट्री से लेकर फाइनल तक ऐसे में नियमों में जरा भी अधिकार नहीं दिया गया है कि थोड़ी भी छूट दी जाए। इससे समझ सकते हैं कि क्यों ये नियम प्रदान करते हैं कि एक बार जब कोई पहलवान प्रतियोगिता के दौरान अयोग्य हो जाता है, तो अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू होते हैं। उस दिन के हालात पर छूट का प्रावधान नहीं एथलीट ने यह भी मांग की है कि वजन के नियमों में दी गई लिमिट को उस दिन की उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार बदला जाए और उस लिमिट पर सहनशीलता लागू की जाए। यानी 100 ग्राम वजन को ज्यादा न समझा जाए और 50 किग्रा वेट कैटेगरी में खेलने की अनुमति दी जाए। मगर, नियमों को देखा जाए तो उसमें ऐसी कोई छूट देने का प्रावधान ही नहीं है। नियम साफ हैं कि 50 किग्रा वेट एक लिमिट है. इसमें व्यक्तिगत तौर पर सहूलियत देने या विवेकाधिकार प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। विनेश ने पहले मापे गए वजन की दलील दी एथलीट का पहले दिन का वजन नियम के अनुसार था। उन्हें दूसरे दिन यानी फाइनल से पहले भी वजन माप में सफल होना था। नियमों के अनुच्छेद 11 के लागू होने के कारण विनेश टूर्नामेंट से बाहर हो गईं और बिना किसी रैंक के आखिरी स्थान पर आ गईं। इसने उनसे सिल्वर मेडल भी छीन लिया, जो उन्होंने सेमीफाइनल जीतने के साथ ही पक्का कर लिया था। इस पर विनेश की दलील है कि वो सिल्वर मेडल के लिए योग्य और पात्र बनी रहीं और 6 अगस्त (पहले दिन) को उनका जो सफल वजन माप हुआ था, उसे दूसरे दिन भी लागू किया जाए। नियमों में मेडल देने का प्रावधान नहीं नियमों में कोई विवेकाधिकार नहीं दिया गया है। इसे लागू करने के लिए एकमात्र मध्यस्थ पूरी तरह से बाध्य हैं। एकमात्र मध्यस्थ इस दलील में भी दम देखता है कि फाइनल से पहले जो वजन माप किया गया था, वो नियम के खिलाफ था तो विनेश को सिर्फ फाइनल के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए। यानी उन्हें सिल्वर दिया जाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से आवेदक के लिए नियमों में यह भी सुविधा भी प्रदान नहीं की गई है। फैसला कानूनी रूप से लिया गया एथलीट ने यह अनुरोध किया है कि अपील किए गए निर्णय को इस तरह से अलग रखा जाए कि नियमों के अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू न हों या अनुच्छेद 11 को इस तरह से समझा जाए कि यह सिर्फ टूर्नामेंट के आखिरी दौर पर लागू हो और यह टूर्नामेंट के शुरुआत से ही लागू न हो। यह विवाद का विषय नहीं है कि एथलीट दूसरे वजन-माप में असफल रहा। आवेदक ने नियमों के अनुच्छेद 11 को चुनौती नहीं दी है। इसका मतलब यह है कि फैसला कानूनी रूप से लिया गया था और अनुच्छेद 11 लागू होता है। जॉइंट मेडल का नियम नहीं एथलीट ने यह भी माना है कि नियमों के लिहाज से वो अयोग्य हो गई हैं। इस कारण सेमीफाइनल में उनसे हारने वाली एथलीट फाइनल खेलने के लिए योग्य हो गई हैं। उन्हें ही सिल्वर या गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। विनेश यह नहीं चाहती कि कोई अन्य पहलवान अपना मेडल खो दे। वो तो संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल चाहती हैं। ऐसे में कोई नियम नहीं है, जिसके आधार पर विनेश को संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल दिए जाने की सहूलियत प्रदान की जाए। कोई गैरकानूनी काम नहीं किया इन सभी नियमों और बातों का मतलब है कि एकमात्र मध्यस्थ विनेश द्वारा मांगी गई राहत को देने से इनकार करता है और उनका यह आवेदन खारिज करता है।एकमात्र मध्यस्थ ने यह पाया है कि विनेश ने खेल के मैदान में एंट्री की और पहले ही दिन 3 राउंड के मुकाबले में फाइटिंग करते हुए जीत हासिल की। इसके दम पर उन्होंने पेरिस ओलिंपिक गेम्स में 50 किग्रा वेट कैटेगरी के रेसलिंग फाइनल में पहुंचीं। मगर, दूसरे दिन वजन माप में वो असफल रहीं और फाइनल के लिए अयोग्य हो गईं। विनेश की ओर से कोई भी गलत काम (गैरकानूनी) करने का कोई संकेत नहीं मिला है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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