<p style=”text-align: justify;”><strong>Maha Kumbh 2025:</strong> संगम नगरी प्रयागराज के महाकुंभ में तमाम ऐसे संत महात्मा भी धूनी रमा रहे हैं, जो विदेशों में लाखों रुपए कमा रहे थे, लेकिन अब सनातन में आस्था जताते हुए संगम की रेती पर धर्म और आध्यात्म की गंगा बहा रहे हैं. इन्हीं में एक है जूना अखाड़े के महंत जवान गिरि. महंत जवान गिरि इटली के रहने वाले हैं. पेशे से डॉक्टर हैं. इटली के बड़े अस्पताल में बतौर सर्जन काम करते थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उनके मुताबिक साल 2018 में वह राजस्थान के पुष्कर मेले में घूमने के लिए आए हुए थे. यहां उनकी मुलाकात सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े के कुछ संतों से हुई. जवान गिरि ने इन संतों के साथ कुछ दिन गुजारे और सनातन को करीब से जाना. सनातनी परंपरा से इतने प्रभावित हुए के 2019 के कुंभ में प्रयागराज आए और यही संन्यास की दीक्षा ले ली. वह जूना अखाड़े से जुड़े हुए हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”>अखाड़े ने उन्हें इटली में ही सनातन धर्म के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी दी हुई है. महंत जवान गिरि इसी वजह से छह महीने भारत में रहते हैं और छह महीने इटली में. डॉक्टरी का पेशा अब वह छोड़ चुके हैं और अपना पूरा जीवन सनातन को समर्पित कर दिया है. इटली में भी वह पहाड़ों और गुफाओं में रहकर साधना करते हैं. लोगों से मिलकर उन्हें सनातन के बारे में जानकारी देते हैं और उसे जोड़ने की कोशिश करते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भारत में वह राजस्थान में ही अलग-अलग स्थान पर अपने गुरु के साथ भ्रमण करते रहते हैं. प्रयागराज महाकुंभ में वह पिछले दस दिनों से आए हुए हैं. वह बसंत पंचमी पर होने वाले तीसरे शाही स्नान के बाद ही राजस्थान वापस लौटेंगे. महाकुंभ में उनका पूरा दिन साधना करते हुए बीतता है. उनका कहना है कि जवान गिरि नाम उनके गुरु का दिया हुआ है. आकर्षक कद काठी और हैंडसम पर्सनालिटी की वजह से गुरु ने उन्हें जवान गिरि का नाम दिया. </p>
<p style=”text-align: justify;”>जवान गिरि के मुताबिक सन्यास परंपरा का पालन करते हुए वह परिवार से नाता तोड़ चुके हैं. उनका कहना है कि डॉक्टरी के पेशे से जुदा होने की वजह से उनके पास पैसों और ऐश ओ आराम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन जिंदगी में खुशी और सुकून नहीं था. सुकून तलाशने ही भारत आए थे और ईश्वर की कृपा से वह सन्यासी हो गए. जवान गिरि के मुताबिक इस जीवन से वह बेहद खुश हैं. सन्यासी बनने के बाद उनका जीवन धन्य हो गया है. उनका कहना है कि इस महाकुंभ में गुरु ने उन्हें कुछ नई जिम्मेदारी देने को कहा है. जो भी काम सौंपा जाएगा, उसे वह पूरी निष्ठा के साथ करेंगे. </p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Maha Kumbh 2025:</strong> संगम नगरी प्रयागराज के महाकुंभ में तमाम ऐसे संत महात्मा भी धूनी रमा रहे हैं, जो विदेशों में लाखों रुपए कमा रहे थे, लेकिन अब सनातन में आस्था जताते हुए संगम की रेती पर धर्म और आध्यात्म की गंगा बहा रहे हैं. इन्हीं में एक है जूना अखाड़े के महंत जवान गिरि. महंत जवान गिरि इटली के रहने वाले हैं. पेशे से डॉक्टर हैं. इटली के बड़े अस्पताल में बतौर सर्जन काम करते थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उनके मुताबिक साल 2018 में वह राजस्थान के पुष्कर मेले में घूमने के लिए आए हुए थे. यहां उनकी मुलाकात सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े के कुछ संतों से हुई. जवान गिरि ने इन संतों के साथ कुछ दिन गुजारे और सनातन को करीब से जाना. सनातनी परंपरा से इतने प्रभावित हुए के 2019 के कुंभ में प्रयागराज आए और यही संन्यास की दीक्षा ले ली. वह जूना अखाड़े से जुड़े हुए हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”>अखाड़े ने उन्हें इटली में ही सनातन धर्म के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी दी हुई है. महंत जवान गिरि इसी वजह से छह महीने भारत में रहते हैं और छह महीने इटली में. डॉक्टरी का पेशा अब वह छोड़ चुके हैं और अपना पूरा जीवन सनातन को समर्पित कर दिया है. इटली में भी वह पहाड़ों और गुफाओं में रहकर साधना करते हैं. लोगों से मिलकर उन्हें सनातन के बारे में जानकारी देते हैं और उसे जोड़ने की कोशिश करते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भारत में वह राजस्थान में ही अलग-अलग स्थान पर अपने गुरु के साथ भ्रमण करते रहते हैं. प्रयागराज महाकुंभ में वह पिछले दस दिनों से आए हुए हैं. वह बसंत पंचमी पर होने वाले तीसरे शाही स्नान के बाद ही राजस्थान वापस लौटेंगे. महाकुंभ में उनका पूरा दिन साधना करते हुए बीतता है. उनका कहना है कि जवान गिरि नाम उनके गुरु का दिया हुआ है. आकर्षक कद काठी और हैंडसम पर्सनालिटी की वजह से गुरु ने उन्हें जवान गिरि का नाम दिया. </p>
<p style=”text-align: justify;”>जवान गिरि के मुताबिक सन्यास परंपरा का पालन करते हुए वह परिवार से नाता तोड़ चुके हैं. उनका कहना है कि डॉक्टरी के पेशे से जुदा होने की वजह से उनके पास पैसों और ऐश ओ आराम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन जिंदगी में खुशी और सुकून नहीं था. सुकून तलाशने ही भारत आए थे और ईश्वर की कृपा से वह सन्यासी हो गए. जवान गिरि के मुताबिक इस जीवन से वह बेहद खुश हैं. सन्यासी बनने के बाद उनका जीवन धन्य हो गया है. उनका कहना है कि इस महाकुंभ में गुरु ने उन्हें कुछ नई जिम्मेदारी देने को कहा है. जो भी काम सौंपा जाएगा, उसे वह पूरी निष्ठा के साथ करेंगे. </p> उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ओडिशा के बालेश्वर से महाकुंभ पहुंचे शेख रफीक, पहनी रुद्राक्ष की माला, कहा- किसी से डर नहीं लगता