8 गैंगस्टर का एनकाउंटर करने वाले IPS ज्ञानंजय सिंह:एयरफोर्स की तैयारी करते-करते पुलिस अफसर बने; दोनों हाथ से गोली चलाने वाले बदमाश को ढेर किया IPS कुंवर ज्ञानंजय सिंह यूपी पुलिस फोर्स में एक बड़ा नाम है। 2000 के दशक में जब बहुत कम एनकाउंटर होते थे, तब भी अपराधी उन्हें देखकर जिला छोड़ देते थे। उनके नाम पर 20 एनकाउंटर दर्ज हैं, जिनमें 8 बदमाशों को ढेर किया है। 1994 बैच के PPS ज्ञानंजय सिंह दिसंबर, 2023 में IPS बने। इस समय वह वेस्ट यूपी के हापुड़ में एसपी हैं। वह 15 जिलों में सीओ, एडिशनल एसपी भी रहे हैं। बचपन में उनका सपना टीचर बनने का था। लेकिन, जब परिवार ने उन्हें पढ़ाई के लिए प्रयागराज भेजा तो वह उनका मन सिविल सेवा की तैयारी में लग गया। ज्ञानंजय सिंह का बचपन कैसा था? कैसे वह सिलेक्ट हुए? कैसे उन्होंने क्रिमिनल केस सॉल्व किए? दैनिक भास्कर की खास सीरीज खाकी वर्दी में आज IPS ज्ञानंजय सिंह की कहानी 6 चैप्टर में पढ़ेंगे… आजमगढ़ में जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर दीदारगंज से सटा खरसहन कला गांव है। इसी गांव के रहने वाले नरेंद्र सिंह सरकारी शिक्षक थे। 10 मार्च, 1969 को उनके घर में बेटे ने जन्म लिया। मां सावित्री सिंह ने बेटे का नाम ज्ञानंजय रखा। मगर, जब पिता ने स्कूल में दाखिला कराया तो नाम कुंवर ज्ञानंजय सिंह लिखवा दिया। ज्ञानंजय सिंह बताते हैं- मेरी शुरुआती शिक्षा गांव से एक किमी दूर दीदारगंज के सरकारी स्कूल में हुई। आज के सरकारी स्कूल तो निजी स्कूलों की तरह हैं, लेकिन उस समय स्कूलों की हालत बहुत जर्जर थी। जमीन पर टाटपट्टी पर बैठकर पढ़ाई करते थे। कई बार बारिश के समय छत टपकने लगती, तो कभी दिन में ही इतना अंधेरा हो जाता कि किताब में कुछ दिखता ही नहीं था। ज्ञानंजय सिंह अपने बचपन को याद करते हुए बताते हैं कि चप्पल मयस्सर नहीं थी। कक्षा एक से लेकर पांच तक दूसरे बच्चों के साथ दीदारगंज गांव तक पैदल जाना पड़ता था। उस समय नंगे पैर ही स्कूल आते जाते थे। गर्मियों में दोपहर के समय सड़क तनपे लगती तो पैर जल जाता था। बचने के लिए नाली का कीचड़ पैरों पर लगा लेते थे। दूसरे बच्चे भी ऐसा ही करते थे। बाद में घर पहुंचकर पैरों को पानी से धो लेते। लेकिन, जब थोड़ा बड़े हुए तो फिर चप्पल मिली। कक्षा 6 से 8 तक की पढ़ाई अपने ननिहाल में आझू राय इंटर कॉलेज सिकरारा, जौनपुर में की। यहां मामा विजयपाल स्कूल के संस्थाापक होने के साथ प्रिंसिपल थे, तो कई बार स्कूल में दूसरे बच्चों के साथ क्लास भी छोड़ दिया करते थे। दूसरे बच्चे कहते थे- मामा प्रिंसिपल हैं, कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन, उसके बाद पिता ने ताऊ राजेंद्र सिंह के साथ वाराणसी में कमलापति त्रिपाठी इंटर कॉलेज में पढ़ने के लिए भेज दिया, क्योंकि ताऊ जी यहां प्रवक्ता थे। 1983 में प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल पास किया। 1985 में दूसरी श्रेणी में इंटर पास किया। कुंवर ज्ञानंजय सिंह ने कहा- इंटर करने के बाद पापा ने कहा कि अब पढ़ने के लिए प्रयागराज जाना होगा। इसके बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीए में एडमिशन ले लिया। पहले सोचा था कि पापा भी प्राथमिक विद्यालय में सरकारी टीचर हैं, तो मैं भी टीचर ही बनूंगा। 1988 में बीए पास करने के बाद वहीं रहकर दर्शन शास्त्र से 1990 में एमए की पढ़ाई पूरी की। अब एयरफोर्स में जाने का मन बनाया और तैयारी शुरू कर दी। एक माह बाद ही फिर मन बदल गया। हम यूनिवर्सिटी के हॉलैंड हॉल में रहकर पढ़ाई करते थे। कई साथियों को सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते देखा। उस समय प्रयागराज में आज की तरह ही लड़के कॉम्पिटिशन की तैयारी करते थे। उस समय सीमेंट की चादर की छत थी। जब गर्मियों में टीन तपती तो खिड़कियां खोल लेते थे, कई बार जून के महीने में कपड़े भिगोकर पंखे के पास लटका देते थे, जिससे हवा में ठंडक रहे। ज्ञानंजय ने बताया कि मेरे रूम में रहने वाला मेरा दोस्त राजेश राय और नलिन अवस्थी भी तैयारी कर रहे थे। बराबर के रूम में अरुण प्रकाश (अब IAS हैं) भी तैयारी कर रहे थे। यह देखकर मैंने भी मन बना लिया कि अब अफसर ही बनना है। कॉम्पिटिशन की तैयारी करनी शुरू कर दी। यह सुनकर मां और पिता का सीना और भी चौड़ा हो गया। पिता ने कई बार कहा कि मुझे उस दिन बड़ा गर्व होगा, जब मेरा बेटा अफसर बनेगा। फिर मैं और मेहनत करने लगा। सिर्फ त्योहार पर ही छुट्टी लेकर घर आता था। UPSC की तैयारी शुरू कर दी। बराबर के रूम में रहने वाले अरुण प्रकाश के छोटे भाई राजेश कुमार 1993 में PPS बन गए। मुझे तीसरे अटेम्प्ट में कामयाबी मिली। मैं PPS अफसर बन गया। 1994 का बैच मिला। डिप्टी एसपी बनने की खुशी को आज भी शब्दों में बता नहीं पाऊंगा। बराबर के रूम में रहने वाले अरुण प्रकाश भी मेरे ही बैच में PCS बने थे। ज्ञानंजय कहते हैं कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का यह हॉस्टल बहुत ही लकी रहा। लगातार 2 साल में ही हम 7 लोग PCS और PPS बने। डिप्टी एसपी बनने के बाद जब गांव में पहुंचा तो मां और पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पिता हमेशा यही सीख देते थे कि खुद को कभी कमजोर नहीं आंकना चाहिए। बड़ी सोच और मेहनत सफलता की तरफ ले जाती है। ज्ञानंजय बताते हैं- वाराणसी, कानपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, रामपुर, लखनऊ, फतेहपुर और प्रयागराज में सीओ (क्षेत्राधिकारी) रहा। 2004 में कानपुर नगर में सीओ कर्नलगंज था। उस समय कानपुर में लूट और रंगदारी की घटनाएं हो रही थीं। सीनियर ऑफिसर लगातार कहते कि कानपुर में क्या बाहर के बदमाश आने लगे हैं। फिर हमें एक अहम टिप मिली कि जावेद रिंगबाज अपने गैंग में 8 से 10 बदमाशों के साथ वारदात कर रहा है। जावेद उस समय कानपुर का नामचीन अपराधी था, जो व्यापारियों से रंगदारी मांगने के अलावा लूट और डकैती की वारदात करता था। जावेद पर 1 लाख रुपए का इनाम था। एक दिन एक थाना प्रभारी ने उसे घेरने का प्रयास किया, तो फायरिंग कर भाग निकला। तब हम लोगों ने ठान लिया कि हर हाल में जावेद रिंगबाज का पूरा नेटवर्क तोड़ना है। मुखबिरों ने जावेद की एक प्रेमिका के बारे में हमें बताया। हमने जावेद की प्रेमिका को ट्रेस किया। यह भी पता चला कि जावेद अपनी प्रेमिका से मिलने आता है। ज्ञानंजय बताते हैं कि शाम का वक्त था। मुख्य बाजार और चौराहों पर पुलिस अलर्ट थी। तभी सूचना मिली की चेकिंग के दौरान जावेद पुलिस पर फायरिंग करके भाग निकला। उस समय जावेद दोनों हाथ से गोली चलाता था। उसकी गोली से एक कॉन्स्टेबल बाल-बाल बच गया। मैंने काफी देर तक उसका पीछा किया। फिर उसकी घेराबंदी के बाद फायरिंग शुरू हुई। करीब आधा घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलीं, आखिरकार जावेद गोली लगने से मारा गया। जावेद का ऐसा खौफ था कि उसके खिलाफ कोई बोलता नहीं था। उसके मारे जाने के बाद लोग अपना दर्द सुनाने पुलिस के पास आने लगे। ज्ञानंजय बताते हैं कि 2015 में लखीमपुर खीरी में एडिशनल एसपी का चार्ज मिला। तब वहां एक गैंग चलता था, जिसके लीडर थे डालू और बग्गा सिंह। डालू पर 1 लाख रुपए का इनाम घोषित था। डालू का दूसरा साथी बग्गा सिंह भी नेपाल में बैठकर अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलता था। व्यापारियों को धमकी देकर रंगदारी वसूलता। न देने पर सीधे हत्या कर देता। 10 सितंबर, 2013 को कचहरी में पेशी पर बग्गा को लाया गया। जहां डालू ने गैंग के साथ सिपाही विक्रम की हत्या कर दी और कचहरी परिसर से भाग गया। इस हत्या में डालू को पकड़ने के लिए पुलिस के साथ यूपी STF भी लगी हुई थी। एक दिन हमें डालू की लोकेशन मिली। SOG और पुलिस टीम एक्टिव हो गई। घेराबंदी के बाद डालू ने पुलिस पर गोली चलाना शुरू कर दिया। सभी पुलिस वालों को कहा गया कि मुठभेड़ के समय बुलेट प्रूफ जैकेट के बिना पुलिसकर्मी न रहें, वह पहले ही एक कॉन्स्टेबल की जान ले चुका था। दो तरफा फायरिंग में आखिरकार डालू को मार दिया गया। तीन साल बाद 2018 में यूपी एसटीएफ और लखीमपुर पुलिस ने गैंग के दूसरे साथी बग्गा सिंह को भी ढेर कर दिया। ज्ञानंजय सिंह बताते हैं कि मई, 2024 की बात है। मैं गाजियाबाद में डीसीपी था। अचानक गाजियाबाद के कारोबारी योगेंद्र शर्मा लापता हो गए। परिवार ने पुलिस को जानकारी दी। पुलिस ने CCTV और परिजनों की CDR देखी। पुलिस को केस में अहम क्लू मिले। पुलिस कारोबारी के 3 दोस्तों तक पहुंची। उन्हें हिरासत में लिया गया। तीनों पूछताछ में अपने-अपने बयान बदलते रहे। जब वारदात की टाइमिंग के अनुसार उनकी लोकेशन जांची गई, तब सामने आया कि दो लोगों ने मोबाइल बंद करके गाजियाबाद में ही छोड़ दिए थे। 1 आरोपी की लोकेशन मेरठ के दौराला क्षेत्र में मिली। जब मेरठ जाने पर सवाल किया, तब तीनों खामोश हो गए। फिर उन्होंने घटना कबूल करते हुए कहा – हमने 10 लाख की फिरौती के लिए कारोबारी का अपहरण किया और उसको मारकर शव कार में ले जाकर 80 किमी दूर एक खेत में दबा दिया। विकास नाम के शख्स ने बताया कि मैंने योगेंद्र की प्रॉपर्टी पर ही कार वाश सेंटर शुरू किया था, जहां घाटा होने लगा। हमारे ऊपर कर्ज चढ़ने लगा। तब कारोबारी को किडनैप करने का प्लान बनाया। ज्ञानंजय सिंह ने बताया कि इस घटना में शामिल तीनों आरोपियों ने कारोबारी को वॉट्सऐप कॉल की थी, जिससे पुलिस को संदेह न हो। उसको किराया देने के लिए बुलाया और अपहरण कर लिया। उसको बेहोश करने के लिए हमने एनेस्थीसिया की हैवी डोज दे दी। इससे कारोबारी के मुंह से ब्लीडिंग होने लगी। फिर हमने उसका गला दबाकर हत्या कर दी। गाजियाबाद में ऐसे कई ब्लाइंड मर्डर केस सॉल्व किए। ज्ञानंजय सिंह बताते हैं कि गढ़ थाना क्षेत्र के शेरपुर में रहने वाले 60 साल के सईद की हत्या कर दी गई। सीओ और इंस्पेक्टर मौके पर पहुंचे। मैंने पूरा क्राइम सीन देखा। फोरेंसिक एक्सपर्ट भी बुलाए। सईद का शव खून से लथपथ हालत में चारपाई पर पड़ा था। गले को चाकू से रेतने के निशान थे। जिस तरह से गला काटकर हत्या की गई, सबसे पहला शक अवैध संबंधों पर गया। पीड़ित परिवार से बात की। लोग कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए। ज्ञानंजय ने कहा- कुछ उम्रदराज लोग वहां पर मौजूद थे, मैंने कहा कि कुछ पता है कि कैसे और किसने हत्या की है, यह सुनकर वह बोले कि आप एसपी साहब हैं। मैंने कहा कि हां, मैं एसपी हापुड़ हूं। इस पर वह चुप रहे। फिर अलग से लोगों से बात की गई। लोगों ने कहा कि वह अपने कर्मों की वजह से मारा गया। उसको उम्र का भी लिहाज नहीं था। इस पर पूछा गया कि महिला कौन है, तो बताया कि वह भी पड़ोस के घर की है। ज्ञानंजय सिंह बताते हैं कि जैसे ही हमें महिला का नाम पता चला, हमने उसको अरेस्ट कर लिया। महिला के पति शरीफ ने बताया कि मैंने ही हत्या की है। शरीफ ने कहा- मैं अपनी पत्नी को सईद के साथ देख चुका था। बदनामी के साथ मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ रही थी। 2 महीने तक मैंने प्लान किया। इसके बाद सईद का मर्डर कर दिया। सिर्फ 2 घंटे के अंदर केस वर्कआउट हो गया। इसके अलावा बहराइच के सबसे बड़े माफिया गब्बर सिंह पर गैंगस्टर एक्ट लगाते हुए करोड़ों की प्रॉपर्टी जब्त की। उसके होटल पर ताला लगवा दिया। कांवड़ यात्रा में हाईवे की सिक्योरिटी संभालते रहे ज्ञानंजय सिंह बताते हैं कि वेस्ट यूपी में सावन माह की कांवड़ यात्रा सबसे बड़ी चुनौती होती है। मेरठ के बाद हापुड़ की सीमा से ही कांवड़िए निकलते हैं। जहां खुद कई बार एडीजी मेरठ और आईजी निरीक्षण करने आते। रात में हाईवे पर कांवड़ में सुरक्षा व्यवस्था देखी। कांवड़ियों की जहां भी कोई मामला आता, वहां मैं खुद मौके पर जाता था। अचीवमेंट्स खाकी वर्दी सीरीज की यह स्टोरी भी पढ़ें… 10 महीने तैयारी कर IPS बने आकाश तोमर: जुनून में छोड़ी 15 लाख के पैकेज वाली जॉब, बरेली का पहला केस आज भी याद 15 लाख रुपए के पैकेज की नौकरी छोड़ने वाले आकाश ने 24 साल की उम्र में सिविल सर्विस जॉइन की। अब तक के करियर में वह 6 जिलों के SP और SSP रहे। उन्होंने सबसे बड़ा एक्शन सहारनपुर में लिया। यहां बतौर SSP आकाश तोमर ने नामी खनन माफिया की 105 करोड़ की संपत्ति कुर्क कराई। इस समय वह PAC बटालियन बरेली में कमांडेंट हैं। पढ़ें पूरी खबर…