लाश कंधे पर ढाेने वाले भाइयों के गांव से रिपोर्ट:बोले-पैर में छाले पड़ गए; सड़क बनी नहीं, 22 KM जंगल का रास्ता लखीमपुर जिले की 12वीं की छात्रा शिवानी। अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। रास्ता बंद था, चारों तरफ पानी ही पानी। बाढ़ के बीच बहन के शव को कंधे पर लादकर उसके दोनों भाई 5 किमी पैदल चलकर घर पहुंचे। जब भाई थकता तो दूसरा बहन के शव को कंधे पर लादकर चलने लगता। जब दोनों थक जाते तो शव को जमीन पर रखकर थोड़ी देर आराम करते। फिर शव को कंधे पर लेकर निकल पड़ते। दोनों करीब 2 घंटे में अपने घर पहुंचे। यह कहानी सिर्फ शिवानी की नहीं है। यहां गांव में रास्ते खराब होने से आए दिन किसी न किसी प्रसूता की मौत हो जाती है। किसी को गंभीर बीमारी हुई तो वह अस्पताल तक पहुंच नहीं पाता। उस दिन क्या हुआ था, यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम उस बेटी के गांव लखीमपुर जिले के एलनगंज पहुंची। यह गांव विकास खंड बिजुआ में आता है और जिसका थाना क्षेत्र मैलानी है। सबसे पहले उस गांव के बारे में जानते हैं जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर एलनगंज गांव है। लखीमपुर का यह गांव जिला पीलीभीत और शाहजहांपुर के बार्डर पर है। यहां पहुंचना इतना आसान नहीं है। यह गांव 3 ओर से जंगल और नदी से घिरा हुआ है। पास से होकर शारदा और उल्ल नदी बहती हैं। भास्कर टीम को भीरा थाने से आगे अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी। वजह- आगे का रास्ता कच्चा और पानी में जगह-जगह डूबा होना है। थाना क्षेत्र से 22 किमी की दूरी जंगल के रास्ते गांव तक बाइक से तय की। सबसे पहले भाई की जुबानी पढ़िए उस दिन की कहानी
कंधे पर बहन का शव रखकर ढोने वाले भाई सरोज ने बताया कि पलिया में हमारा घर बन रहा है। हम लोग वहीं रुकते थे। शिवानी की तबीयत वहीं पर खराब हुई थी, उसे बुखार था। उसका इलाज चल रहा था। जब शिवानी को रेफर किया गया था तो उसकी मृत्यु नाव तक पहुंचने से पहले ही हो चुकी थी। उसके साथ मां भी थी इसलिए उनको मृत्यु के बारे में नहीं बताया। पलिया से अतरिया गेट तक चार पहिया वाहन से आए थे। उसके बाद नाव वाले से बात की। नाव वाले से शिवानी की मौत के बारे में छिपाया। अगर बता देता तो वह नाव में नहीं बैठाता। नाव में बैठने के करीब 2 किमी के बाद टूटी रेलवे लाइन आ गयी और वहीं पर नाव वाले ने उतार दिया। नाव वाले ने 1 व्यक्ति का उसने 200 रुपया लिया था। इस दौरान दिमाग काम नहीं कर रहा था कि क्या करें। मेरा मोबाइल भी कहीं गिर गया था। रेलवे लाइन के सहारे पत्थरों के किनारे चलते-चलते मेरे और मेरे भाई के पैर में छाले पड़ गये थे। उस समय ऐसा लगा कि हम आजादी से पहले वाली दुनिया में पहुंच गए हैं। जैसा हमारे साथ हुआ भगवान किसी के साथ न करें। शिवानी का पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहती थी
टीम जब घर पहुंची तो शिवानी की मां पुष्पा रोते हुए मिली। वह बार-बार अपनी बेटी को याद करके रो-रोकर बेहोश हो रही थी। उसके पिता देवेंद्र अपने आंसू को पोछते हुए उन्हें संभाल रहे थे। पिता ने बताया कि उनके 4 बच्च हैं। सरोज, मनोज, शिवानी और संध्या। शिवानी तीसरे नंबर पर थी। शिवानी पढ़ने में काफी होशियार थी। इस बार उसका इंटर था। उसकी इच्छा थी कि वह पढ़ लिखकर डॉक्टर बने, लेकिन क्या पता था कि डॉक्टरी सुविधाएं न मिल पाने से डॉक्टर बनने का उसका सपना-सपना ही रह जाएगा। अब जानिए गांव की हालत… एलनगंज गांव की आबादी करीब 1800 है। गांव में एससी आबादी 30%, ओबीसी 70% और एक ब्राह्मण परिवार है। गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है। स्वास्थ्य सुविधा तो दूर की बात है। लोगों के पास मोबाइल तो है, लेकिन मोबाइल में नेटवर्क सही से नहीं रहता। यहां बिजली के लिए 4 साल पहले सोलर पैनल लगवाए गए थे। शुरुआत में 10 घंटे लाइट मिली और अब बैटरी खराब होने से मात्र 4 से 5 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। वो भी तब जब तक धूप सही मिलती है। गांव में एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती
गांव के लोगों का कहना है कि शिवानी को उसके भाई कंधे पर लादकर पैदल चलकर आए। वीडियो देखा तो प्रशासन और सरकार पर बहुत गुस्सा आया। लोगों ने बताया कि हमारे गांव में किसी को गंभीर बीमारी हुई तो वह अस्पताल तक नहीं पहुंच पाता और उसकी मौत हो जाती है। गांव तक एंबुलेंस बहुत मुश्किल से पहुंच पाती है। कभी-कभी मोबाइल में नेटवर्क न होने से एम्बुलेंस वाले भी भटकते नजर आते हैं। किशनपुर सेंक्चुरी होने से जंगल में बाघ, भालू, तेंदुए जैसे पशुओं के भय और खराब रास्ता होने की वजह से अधिकारी और पुलिस के लोग यहां आने से कतराते हैं। अब गांव वालों का दर्द जानिए… गांव के बाबूराम कहते हैं- यह गांव शारदा नदी और उल्ल नदी कि किनारे पर है। निचले स्थान पर फसल बोते हैं तो नदी से फसल बर्बाद हो जाती है। यहां सबके पास तो ट्रैक्टर और बड़े वाहन हैं नहीं। जंगल में रास्ता सही न होने से मोटरसाइकिल से खाद व बीज ढोने में बड़ी कठिनाई होती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि खेत में पानी लगाने के लिए डीजल 22 किमी दूर से भीरा पेट्रोल पंप से ढोना होता है। मैंने अपनी 70 वर्ष की उम्र में इलाज के अभाव में कई लोगों को मरते देखा। पड़ोस के गांव कांप टांडा निवासी मंशा देवी का कहना है कि यहां पर 3 ग्राम पंचायत हैं, सभी का हाल ऐसा ही है। मेरे सामने ही कई गर्भवती महिलाओं ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। गाड़ी के अंदर वह तड़पती रही और जंगल में रास्ता सही न होने से गाड़ी अस्पताल पहुंचने से पहले जब मृत्यु हो गई। सरकार भी हम लोगों के लिए कुछ न कर रही, नेता गांव में आकर सिर्फ वादे करके चले जाते हैं। 70 साल बाद भी बेबसी-मजबूरी की जिंदगी जी रहे एलनगंज के ग्राम प्रधान जय प्रकाश का कहना है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम लोग बेबसी और मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं । हमारे यहां जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है, वह तो अपने बच्चों को बाहर पढ़ने भेजते हैं, लेकिन जिनके पास व्यवस्था नहीं है, वह लोग कक्षा-8 तक बच्चों को पढ़ाई करके घर बैठा देते हैं। इलाज की कोई सुविधा नहीं है। गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची। हर काम के लिए 22 KM दूर भीरा आना पड़ता है
स्थानीय पत्रकार हाकिम वारसी का कहना है कि वह भीरा के रहने वाले हैं। 22 किमी दूर इस गांव तक उनका आना-जाना रहता है। गांव के पिछड़ेपन के बारे में बताते हैं कि यहां पर किसी भी कंपनी का नेटवर्क नहीं आता। घरों की छत या घर के बाहर निकलने पर ही नेटवर्क मिल पाता है। यही कारण है कि गांव में कोई जनसेवा केंद्र तक नहीं है। जब भी पैसे निकलाने हो या फिर जाति, आय और निवास जैसे दस्तावेज तैयार करने हो तो जंगल के रास्ते अपनी जान जोखिम में डालकर भीरा तक जाते हैं।