हरियाणा में करनाल के MBA पास युवक कोल्हू के काम से घर बैठे 4 लाख महीने की कमाई कर रहा है। करीब चार साल में ही उसने एक से 4 कोल्हू बना लिए। इन कोल्हू में सरसों के अलावा बादाम, तिल, मूंगफली, रामतिल, कुसुम तिल और अलसी समेत कई तरह के तेल निकाले जाते हैं। एक महीने में वह 1 हजार लीटर तक तेल निकाल रहा है। तेल की क्वालिटी की वजह से इसकी डिमांड हरियाणा–दिल्ली ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दुबई और अमेरिका जैसे देशों में भी है। जहां से NRI सीधे ऑर्डर करते हैं। साढ़े 6 लाख सालाना पैकेज की नौकरी छोड़ कोल्हू शुरू करने के पीछे की वजह के बारे में युवक पुष्पेंद्र बताते हैं कि सड़क पर बैलों को बेसहारा घूमते देख मुझे उनके इस्तेमाल का आइडिया आया। अभी भी 3 बेसहारा बैल कोल्हू में इस्तेमाल करते हैं। कोल्हू पर कितना खर्च, कितनी कमाई और मार्केटिंग कैसे, युवा किसान की जुबानी पढ़ें.. नौकरी में मन नहीं लगा, खुद का बिजनेस करने की सोची
पुष्पेंद्र बताते हैं कि मैंने MBA की डिग्री की। इसके बाद प्राइवेट कंपनियों में जॉब की तलाश की। मुझे गुरुग्राम में सेमसंग कंपनी में अच्छी जॉब मिल गई। साल का मेरा 6 लाख का पैकेज था। शुरुआत में सब ठीक रहा, लेकिन मेट्रो सिटीज की भागदौड़ वाली जिंदगी में मन नहीं लगा। 2017 में मैंने जॉब छोड़ दी। घर आया तो तय कर लिया था कि अब नौकरी नहीं करनी। परिवार के पास 6 एकड़ जमीन थी। उसी में खेती करनी शुरू कर दी। हालांकि इससे अपने लिए तो अनाज हो जाता था, लेकिन मन कुछ और करने का था। बैल बेसहारा घूमते दिखे तो इनका इस्तेमाल करने की सोची
पुष्पेंद्र ने कहा कि मैं किसी नए आइडिया की तलाश में था। मैं अक्सर खेतों-सड़कों पर बेसहारा बैलों को घूमते हुए देखता था। उनकी हड्डियां निकली होती थी। कोई कुछ खाने को नहीं देता। ऐसे में सोचने लगा कि कोई ऐसा काम किया जाए, जिससे मेरा बिजनेस भी चले और बैलों को भी भरपेट अच्छा खाना मिल सके। पहले खेती, फिर ठंडी चक्की, कोल्हू का आइडिया आया
पहले खेती के बारे में सोचा, लेकिन अब बैलों से खेत जोतना यानी हल लगाने का काम नहीं होता। इसकी जगह ट्रैक्टर व अन्य मशीनें आ गई हैं। फिर मैंने सोचा कि पुराने जमाने में बैलों का इस्तेमाल ठंडी चक्की और कोल्हू में होता था। पहले मैंने ठंडी चक्की लगाने का प्लान बनाया। उसमें भी बैलों से ही गेहूं की पिसाई होती है। इसका आटा पूरी पोषक क्वालिटी वाला होता है, क्योंकि मशीन वाली चक्की में आटे के पिसाई के वक्त गर्म होने से सारे गुण खत्म हो जाते हैं। मैंने कई जगह ठंडी चक्की बनाने वाला ढूंढा, लेकिन कोई नहीं मिला। राजस्थान बॉर्डर पर मिला कोल्हू बनाने वाला
इसके बाद 2020 में कोल्हू के आइडिया पर काम शुरू कर दिया। मगर दिक्कत ये आई कि इसे अब ज्यादा लोग नहीं बनाते। फिर मुझे पता चला कि राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर नारनौल के किसी गांव में कोई कोल्हू बनाने का काम करता है। उससे कोल्हू बनवाया। उसे मॉडर्न तरीके से अपडेट कराया। पुराने टाइम में बैलों की आंखों पर पट्टी भी बांध देते थे और वे चलते रहते थे। मैंने 10 हजार में 2 बैल खरीदकर इसकी शुरुआत की। मगर उन्हें कोल्हू में जुड़ने का कोई अभ्यास ही नहीं था। इस वजह से खुद बैल के साथ जुड़ता था और तेल निकालता था। अब बैलों को अच्छा अभ्यास हो चुका है और बैल अच्छी तरह से काम करते हैं। बैलों के लिए एक एकड़ में हरा चारा लगाया
पहले सिर्फ एक कोल्हू से शुरुआत की। 4 साल बाद 4 कोल्हू चल रहे हैं। मौजूदा वक्त में मेरे पास सात से आठ बैल हैं। जिसमें से 3 बैल सड़कों पर घूमने वाले हैं। शुरुआत में 60 हजार रुपए का एक कोल्हू पड़ा था और आज यह 80 हजार से 1 लाख रुपए तक में तैयार होता है। बैलों को कोल्हू की खल खिलाई जाती है। एक एकड़ में उनके लिए हरा चारा लगाया गया है। तूड़ी और पराली का भी स्टॉक रखा हुआ है। इनकम अच्छी लेकिन समय को लेकर संयम जरूरी
पुष्पेंद्र ने बताया कि कोल्हू से इनकम तो अच्छी है, लेकिन संयम की बहुत ही ज्यादा जरूरत पड़ती है। ऐसा नहीं कि कोल्हू में सरसों या फिर बादाम डाला और तेल बाहर निकल गया। एक बार में 10 किलो बादाम या फिर सरसों डाली जाती है। करीब ढाई घंटे तक लगातार कोल्हू चलाया जाता है। तब बूंद-बूंद करके तेल निकलता है। एक दिन में एक कोल्हू से 5 से 7 लीटर तक तेल निकलता है। चूंकि मेरे पास चार कोल्हू हैं, इसलिए 30 से 40 लीटर तेल निकल जाता है। महीने में 700 से 1000 लीटर तक तेल निकाल लिया जाता है। सरसों का तेल 500 रुपए लीटर और बादाम का तेल 3 हजार रुपए प्रति लीटर बेचा जाता है। खर्च निकालकर 1 लाख रुपए तक बच जाते हैं। जो वेस्ट बच जाता है उसकी खल बनती है, वह भी अच्छे रेट में बिक जाती है। शुरुआत में मार्केटिंग की दिक्कत रही, क्वालिटी से काम चल निकला
पुष्पेंद्र ने बताया कि जब उसने स्टार्टिंग में तेल निकाला तो उसके पास मार्केटिंग को लेकर दिक्कत आई। लोगों ने कहा कि यह बिजनेस नहीं चलने वाला, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मार्केट में तेल बेचने वालों को सैंपल दिए। जिन्होंने तेल की गुणवत्ता की सराहना की। मगर, तेल महंगा होने से शुरुआत में परेशानी हुई। फिर दोस्तों-अन्य जगहों पर तेल की क्वालिटी बताई। जिसके बाद काम चल निकला। तेल की पैकिंग में प्लास्टिक यूज नहीं करते
पुष्पेंद्र ने बताया कि अगर वे कोरियर से कहीं पर तेल भेजते हैं तो वह टीन के डिब्बे में भेजा जाता है। यह 1 और 5 लीटर की पैकिंग में रहता है। गुरुग्राम, फरीदाबाद, दिल्ली व अन्य दूर के जिलों से यहां पर तेल लेने के लिए लोग आते हैं। उनको कांच की बोतलों में तेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि शुद्धता के साथ काम करो तो शुद्ध प्रोडक्ट खरीदने वालों की कोई कमी नहीं है। बाजार में मिलती कच्ची घानी और इसमें क्या अंतर
पुष्पेंद्र कहते हैं कि जिस कच्ची घानी की हम अक्सर बात करते हैं, उसे कोल्हू से तेल निकालने वाले प्रोसेस को बोलते हैं। बाजार में जो तेल बिकता है, वह कच्ची घानी का नहीं है। कोल्हू का बेस नीम से बना हुआ है और पिसाई करने वाला लाट कीकर यानी बबूल की लकड़ी से बना हुआ है। जिसकी पिसाई इसके अंदर होगी, उस तेल में नीम और कीकर के गुण भी होंगे। मशीन में जो भी तेल निकलता है, वह 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। जबकि कोल्हू का तेल रूम टेंपरेचर पर होता है। बूंद-बूंद करके तेल निकलता है। ऐसे में जो भी पोषक तत्व बीज में होते हैं, वह ज्यों के त्यों ही बने रहते हैं। कोल्हू का तेल ज्यादा अच्छा क्यों?
पुष्पेंद्र बताते हैं कि आयुर्वेद कहता है कि अगर आप कोई भी तेल यूज कर रहे हैं तो वह एक ही बार गर्म होना चाहिए। बाजार में मिलने वाले तेल को देखें तो स्पेलर मशीन ने तेल निकालते वक्त गर्म कर दिया। वही तेल घर में भी गर्म कर दिया जाता है। जब तक हमारे खाने में वह तेल जाता है तो वह तीसरी बार का प्रोसेस होता है और तब तक उसके सभी पोषक तत्व खत्म हो चुके होते हैं। हमारी पुरानी पद्धति बहुत अच्छी थी, उसी के कारण हमारे बुजुर्ग बीमारियों से दूर रहते थे। युवाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे
खुद का बिजनेस करने वाले युवाओं को कोल्हू की तरफ आना चाहिए। अगर कोई सीखना चाहे तो मैं ट्रेनिंग देता हूं। करीब 20 से 25 युवा काम सीखकर जा चुके हैं। हरियाणा ही नहीं इससे बाहर भी कुछ युवाओं ने काम शुरू किया है। अब मेरे पास भी 6 से 7 लोग काम करते हैं। अब मेरा मकसद आटे की ठंडी चक्की लगाने का है। हरियाणा में करनाल के MBA पास युवक कोल्हू के काम से घर बैठे 4 लाख महीने की कमाई कर रहा है। करीब चार साल में ही उसने एक से 4 कोल्हू बना लिए। इन कोल्हू में सरसों के अलावा बादाम, तिल, मूंगफली, रामतिल, कुसुम तिल और अलसी समेत कई तरह के तेल निकाले जाते हैं। एक महीने में वह 1 हजार लीटर तक तेल निकाल रहा है। तेल की क्वालिटी की वजह से इसकी डिमांड हरियाणा–दिल्ली ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दुबई और अमेरिका जैसे देशों में भी है। जहां से NRI सीधे ऑर्डर करते हैं। साढ़े 6 लाख सालाना पैकेज की नौकरी छोड़ कोल्हू शुरू करने के पीछे की वजह के बारे में युवक पुष्पेंद्र बताते हैं कि सड़क पर बैलों को बेसहारा घूमते देख मुझे उनके इस्तेमाल का आइडिया आया। अभी भी 3 बेसहारा बैल कोल्हू में इस्तेमाल करते हैं। कोल्हू पर कितना खर्च, कितनी कमाई और मार्केटिंग कैसे, युवा किसान की जुबानी पढ़ें.. नौकरी में मन नहीं लगा, खुद का बिजनेस करने की सोची
पुष्पेंद्र बताते हैं कि मैंने MBA की डिग्री की। इसके बाद प्राइवेट कंपनियों में जॉब की तलाश की। मुझे गुरुग्राम में सेमसंग कंपनी में अच्छी जॉब मिल गई। साल का मेरा 6 लाख का पैकेज था। शुरुआत में सब ठीक रहा, लेकिन मेट्रो सिटीज की भागदौड़ वाली जिंदगी में मन नहीं लगा। 2017 में मैंने जॉब छोड़ दी। घर आया तो तय कर लिया था कि अब नौकरी नहीं करनी। परिवार के पास 6 एकड़ जमीन थी। उसी में खेती करनी शुरू कर दी। हालांकि इससे अपने लिए तो अनाज हो जाता था, लेकिन मन कुछ और करने का था। बैल बेसहारा घूमते दिखे तो इनका इस्तेमाल करने की सोची
पुष्पेंद्र ने कहा कि मैं किसी नए आइडिया की तलाश में था। मैं अक्सर खेतों-सड़कों पर बेसहारा बैलों को घूमते हुए देखता था। उनकी हड्डियां निकली होती थी। कोई कुछ खाने को नहीं देता। ऐसे में सोचने लगा कि कोई ऐसा काम किया जाए, जिससे मेरा बिजनेस भी चले और बैलों को भी भरपेट अच्छा खाना मिल सके। पहले खेती, फिर ठंडी चक्की, कोल्हू का आइडिया आया
पहले खेती के बारे में सोचा, लेकिन अब बैलों से खेत जोतना यानी हल लगाने का काम नहीं होता। इसकी जगह ट्रैक्टर व अन्य मशीनें आ गई हैं। फिर मैंने सोचा कि पुराने जमाने में बैलों का इस्तेमाल ठंडी चक्की और कोल्हू में होता था। पहले मैंने ठंडी चक्की लगाने का प्लान बनाया। उसमें भी बैलों से ही गेहूं की पिसाई होती है। इसका आटा पूरी पोषक क्वालिटी वाला होता है, क्योंकि मशीन वाली चक्की में आटे के पिसाई के वक्त गर्म होने से सारे गुण खत्म हो जाते हैं। मैंने कई जगह ठंडी चक्की बनाने वाला ढूंढा, लेकिन कोई नहीं मिला। राजस्थान बॉर्डर पर मिला कोल्हू बनाने वाला
इसके बाद 2020 में कोल्हू के आइडिया पर काम शुरू कर दिया। मगर दिक्कत ये आई कि इसे अब ज्यादा लोग नहीं बनाते। फिर मुझे पता चला कि राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर नारनौल के किसी गांव में कोई कोल्हू बनाने का काम करता है। उससे कोल्हू बनवाया। उसे मॉडर्न तरीके से अपडेट कराया। पुराने टाइम में बैलों की आंखों पर पट्टी भी बांध देते थे और वे चलते रहते थे। मैंने 10 हजार में 2 बैल खरीदकर इसकी शुरुआत की। मगर उन्हें कोल्हू में जुड़ने का कोई अभ्यास ही नहीं था। इस वजह से खुद बैल के साथ जुड़ता था और तेल निकालता था। अब बैलों को अच्छा अभ्यास हो चुका है और बैल अच्छी तरह से काम करते हैं। बैलों के लिए एक एकड़ में हरा चारा लगाया
पहले सिर्फ एक कोल्हू से शुरुआत की। 4 साल बाद 4 कोल्हू चल रहे हैं। मौजूदा वक्त में मेरे पास सात से आठ बैल हैं। जिसमें से 3 बैल सड़कों पर घूमने वाले हैं। शुरुआत में 60 हजार रुपए का एक कोल्हू पड़ा था और आज यह 80 हजार से 1 लाख रुपए तक में तैयार होता है। बैलों को कोल्हू की खल खिलाई जाती है। एक एकड़ में उनके लिए हरा चारा लगाया गया है। तूड़ी और पराली का भी स्टॉक रखा हुआ है। इनकम अच्छी लेकिन समय को लेकर संयम जरूरी
पुष्पेंद्र ने बताया कि कोल्हू से इनकम तो अच्छी है, लेकिन संयम की बहुत ही ज्यादा जरूरत पड़ती है। ऐसा नहीं कि कोल्हू में सरसों या फिर बादाम डाला और तेल बाहर निकल गया। एक बार में 10 किलो बादाम या फिर सरसों डाली जाती है। करीब ढाई घंटे तक लगातार कोल्हू चलाया जाता है। तब बूंद-बूंद करके तेल निकलता है। एक दिन में एक कोल्हू से 5 से 7 लीटर तक तेल निकलता है। चूंकि मेरे पास चार कोल्हू हैं, इसलिए 30 से 40 लीटर तेल निकल जाता है। महीने में 700 से 1000 लीटर तक तेल निकाल लिया जाता है। सरसों का तेल 500 रुपए लीटर और बादाम का तेल 3 हजार रुपए प्रति लीटर बेचा जाता है। खर्च निकालकर 1 लाख रुपए तक बच जाते हैं। जो वेस्ट बच जाता है उसकी खल बनती है, वह भी अच्छे रेट में बिक जाती है। शुरुआत में मार्केटिंग की दिक्कत रही, क्वालिटी से काम चल निकला
पुष्पेंद्र ने बताया कि जब उसने स्टार्टिंग में तेल निकाला तो उसके पास मार्केटिंग को लेकर दिक्कत आई। लोगों ने कहा कि यह बिजनेस नहीं चलने वाला, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मार्केट में तेल बेचने वालों को सैंपल दिए। जिन्होंने तेल की गुणवत्ता की सराहना की। मगर, तेल महंगा होने से शुरुआत में परेशानी हुई। फिर दोस्तों-अन्य जगहों पर तेल की क्वालिटी बताई। जिसके बाद काम चल निकला। तेल की पैकिंग में प्लास्टिक यूज नहीं करते
पुष्पेंद्र ने बताया कि अगर वे कोरियर से कहीं पर तेल भेजते हैं तो वह टीन के डिब्बे में भेजा जाता है। यह 1 और 5 लीटर की पैकिंग में रहता है। गुरुग्राम, फरीदाबाद, दिल्ली व अन्य दूर के जिलों से यहां पर तेल लेने के लिए लोग आते हैं। उनको कांच की बोतलों में तेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि शुद्धता के साथ काम करो तो शुद्ध प्रोडक्ट खरीदने वालों की कोई कमी नहीं है। बाजार में मिलती कच्ची घानी और इसमें क्या अंतर
पुष्पेंद्र कहते हैं कि जिस कच्ची घानी की हम अक्सर बात करते हैं, उसे कोल्हू से तेल निकालने वाले प्रोसेस को बोलते हैं। बाजार में जो तेल बिकता है, वह कच्ची घानी का नहीं है। कोल्हू का बेस नीम से बना हुआ है और पिसाई करने वाला लाट कीकर यानी बबूल की लकड़ी से बना हुआ है। जिसकी पिसाई इसके अंदर होगी, उस तेल में नीम और कीकर के गुण भी होंगे। मशीन में जो भी तेल निकलता है, वह 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। जबकि कोल्हू का तेल रूम टेंपरेचर पर होता है। बूंद-बूंद करके तेल निकलता है। ऐसे में जो भी पोषक तत्व बीज में होते हैं, वह ज्यों के त्यों ही बने रहते हैं। कोल्हू का तेल ज्यादा अच्छा क्यों?
पुष्पेंद्र बताते हैं कि आयुर्वेद कहता है कि अगर आप कोई भी तेल यूज कर रहे हैं तो वह एक ही बार गर्म होना चाहिए। बाजार में मिलने वाले तेल को देखें तो स्पेलर मशीन ने तेल निकालते वक्त गर्म कर दिया। वही तेल घर में भी गर्म कर दिया जाता है। जब तक हमारे खाने में वह तेल जाता है तो वह तीसरी बार का प्रोसेस होता है और तब तक उसके सभी पोषक तत्व खत्म हो चुके होते हैं। हमारी पुरानी पद्धति बहुत अच्छी थी, उसी के कारण हमारे बुजुर्ग बीमारियों से दूर रहते थे। युवाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे
खुद का बिजनेस करने वाले युवाओं को कोल्हू की तरफ आना चाहिए। अगर कोई सीखना चाहे तो मैं ट्रेनिंग देता हूं। करीब 20 से 25 युवा काम सीखकर जा चुके हैं। हरियाणा ही नहीं इससे बाहर भी कुछ युवाओं ने काम शुरू किया है। अब मेरे पास भी 6 से 7 लोग काम करते हैं। अब मेरा मकसद आटे की ठंडी चक्की लगाने का है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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