<p><strong>MP Lok Sabha Result 2024:</strong> राजगढ़ से कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह आगे चल रहे हैं. शुरुआती रुझानों के मुताबिक और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ पीछे चल रहे हैं. वहीं गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया आगे चल रहे हैं. </p> <p><strong>MP Lok Sabha Result 2024:</strong> राजगढ़ से कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह आगे चल रहे हैं. शुरुआती रुझानों के मुताबिक और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ पीछे चल रहे हैं. वहीं गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया आगे चल रहे हैं. </p> मध्य प्रदेश Azamgarh Lok Sabha Result 2024: आजमगढ़ में सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव और निरहुआ के बीच कड़ी टक्कर, वोटों की गिनती कुछ देर में
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पीएम मोदी के मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल की कहानी:मुलायम ने पहली बार टिकट दिया, सपा-बसपा से होते हुए भाजपा में आए, अब मोदी के करीबी
पीएम मोदी के मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल की कहानी:मुलायम ने पहली बार टिकट दिया, सपा-बसपा से होते हुए भाजपा में आए, अब मोदी के करीबी पीएम मोदी ने तीसरी बार शपथ ली तो आगरा के सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल ने दूसरी बार केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। एसपी सिंह बघेल की राजनीति का सफर बड़ा रोचक और दिलचस्प है। यूपी पुलिस के एक दरोगा के रूप में तैनात एसपी सिंह को राजनीति के मैदान में दिवंगत नेता मुलायम सिंह ने उतारा था। इसके बाद तो प्रो. बघेल ने मुड़कर नहीं देखा। सपा, बसपा से होते हुए वो भाजपा में आए। यहां से विधायक बने। योगी सरकार में मंत्री के रहते हुए आगरा से सांसद चुने गए और पहली बार मोदी सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री बने। दोबारा टिकट मिला और बडे़ अंतर से चुनाव जीतकर फिर मंत्री बने हैं। कामयाबी के साथ उनके साथ विवाद भी जुडे़ रहे हैं। हर चुनाव में उनकी जाति को लेकर विवाद सामने आता है। आइये आपके बताते हैं एसपी सिंह बघेल की पूरी कहानी। यूपी के औरेया के मूल निवासी
आगरा के सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल का पूरा नाम सत्यपाल सिंह बघेल है। वो मूलरूप से उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के भटपुरा के रहने वाले हैं। इनके पिता रामभरोसे सिंह मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में तैनात थे। पिता रामभरोसे खरगौन से रिटायर हुए, इसलिए प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा मध्यप्रदेश में ही हुई। पढ़ाई के बाद प्रो. एसपी सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुए। एसपी सिंह बघेल को भर्ती होने के बाद पहली अहम जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का सुरक्षागार्ड बनने की मिली थी। मुलायम के संपर्क में आकर चमकी किस्मत
1989 में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रो. बघेल मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा में शामिल किए गए। बस यहीं से प्रो. बघेल की किस्मत ने पलटा मारा। अपनी निडरता, मेहनत और ईमानदारी के बल पर वो मुलायम सिंह के चेहते बन गए। पहली बार 1998 में मुलायम सिंह यादव ने उनको जलेसर सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उतारा। पहली बार में ही प्रो. बघेल चुनाव जीत गए। इसके बाद वो फिर से 1999 और 2004 में सपा की टिकट पर चुनाव जीते। सपा से सांसद रहने के बाद पार्टी में उनका मतभेद हो गया। 2010 में उन्होंने सपा को छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया। बसपा ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। साथ ही राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी भी दी। बसपा ने उन्हें 2014 में फिरोजाबाद लोकसभा से सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के सामने चुनाव लड़ाया, हालांकि वह यह चुनाव हार गए। इसके बाद बसपा के सत्ता से दूर होने के बाद एसपी सिंह बघेल ने राजनीतिक माहौल को समझते हुए राज्यसभा से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ली। भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। योगी सरकार में मंत्री रहे
भाजपा में 2017 विधानसभा चुनाव में टूंडला सुरक्षित सीट से मैदान में उतारा गया। यहां से चुनाव जीतकर भाजपा विधायक बने। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टीम में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। जानकार कहते हैं कि इसके बाद भाजपा में उनका कद बढ़ता गया। उन्हें अमित शाह से मजबूत रिश्तों का लाभ भी मिला। कैबिनेट मंत्री रहते हुए 2019 में पीएम मोदी के दूसरी बार चुनाव में जाने से पहले उन्हें आगरा की सुरक्षित सीट पर सीटिंग सांसद रामशंकर कठेरिया की जगह पर टिकट दी गई। 2019 में प्रो. बघेल ने बड़ी जीत दर्ज की। रामशंकर कठेरिया पर भारी पड़े एसपी सिंह बघेल
पीएम मोदी के पहले टर्म में आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया को मंत्रिमंडल में जगह मिली थी। दूसरी बार में रामशंकर कठेरिया इटावा से जीतकर संसद पहुंचे थे। ऐसे में दूसरी बार पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में रामशंकर कठेरिया और प्रो. एसपी सिंह बघेल का नाम चर्चा में था। कठेरिया का पलड़ा भारी माना जा रहा था, लेकिन बाजी मारी आगरा सांसद एसपी सिंह बघेल ने मारी। उन्हें केंद्रीय विधि एवं कानून राज्यमंत्री बनाया गया। दरोगा थे तब मेरठ की टीचर से की लव मैरिज
प्रो. एसपी सिंह बघेल ने बताया कि बात 1985 की है। उन दिनों मैं यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर था। मेरी पोस्टिंग मेरठ शहर की सरधना तहसील में थी। मेरी वर्किंग ऐसी थी कि मुझे क्षेत्र के ज्यादातर लोग जानते थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का महावीर जयंती पर मेरठ में कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम में जैन कॉलेज मेरठ के स्कूली बच्चे भी आए थे। उनके साथ एक शिक्षिका भी थीं, उनका नाम मधु पुरी था। हालांकि तब उनका नाम नहीं पता था। पहली बार उन्हें देखा तो उनकी सादगी बहुत पसंद आई। हमने बात नहीं कि लेकिन नजरों ने सब कुछ बयां कर दिया था। बस यहीं से प्रेम कहानी की शुरुआत हुई। आंखों ही आंखों में इकरार होने के बाद धीरे-धीरे मिलना जुलना शुरू हुआ। छह माह बाद ही तय कर लिया कि शादी करेंगे। मगर, मन में एक बात चल रही थी कि जाति को लेकर घरवालों आपत्ति कर सकते हैं, लेकिन मैंने तय कर लिया था। पुलिस में था तो काफी रिश्ते भी आते थे। घर वाले जब शादी के लिए बोलते थे तो टाल देता था। ऐसे करते हुए लंबा समय निकाल दिया। कई रिश्तों के मना करने पर जब घरवालों ने कारण पूछा तो साफ-साफ बता दिया कि मैं किसी से प्यार करता हूं। लड़की मेरठ की है, पंजाबी परिवार से है और उससे ही शादी करेंगे। इसके बाद पिताजी थोड़ा नाराज हुए, लेकिन बाद में सभी तैयार हो गए। वहीं, पत्नी के परिवार में किसी को कोई परेशानी नहीं थी। आज मंत्री बनाए गए एसपी सिंह बघेल और मधु बघेल के एक बेटा और एक बेटी है। दोनों डॉक्टर हैं। जाति को लेकर रहा है विवाद
प्रो. बघेल के साथ एक विवाद जुड़ा है। ये विवाद उनकी जाति को लेकर है। जब भी चुनाव होते हैं, उनकी जाति को लेकर विवाद सामने आता है। इस बार भी चुनाव में उनकी जाति को लेकर शिकायत की गई । उनके जाति प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए डॉ. आंबेडकर सेवा ट्रस्ट के अनिल सोनी ने मंडलायुक्त से शिकायत की थी। सोनी ने मंडलायुक्त से स्क्रूटनी कमेटी बनाए जाने की मांग की । सोनी का कहना है कि एसपी सिंह बघेल ने तीन बार अपनी जातियां बदली हैं। पढ़ाई के दौरान वे ठाकुर जाति के थे। नौकरी पिछड़ी जाति से पाई। अब चुनाव अनुसूचित जाति से लड़ रहे हैं। ये शिकयत पहली बार नहीं हुई। इससे पहले जब वो मैनपुरी के करहल से अखिलेश यादव के सामने विधानसभा चुनाव लडे़ थे, तब भी आगरा के अधिवक्ता ने शिकायत की थी।
सुखबीर को लगता था कि बेटी को भगाने में दरबारा का हाथ
सुखबीर को लगता था कि बेटी को भगाने में दरबारा का हाथ भास्कर न्यूज | अमृतसर एसजीपीसी दफ्तर में शनिवार को अकाउंट्स क्लर्क दरबारा सिंह की हत्या के मामले में पुलिस ने आरोपी सुखबीर सिंह, उसके 2 बेटों समेत 5 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। थाना ई-डिवीजन में मृतक की पत्नी बलविंदर कौर ने अपने बयान में बताया है कि सुखबीर की लड़की विगत में घर से भाग गई थी और वह इसमें दरबारा का हाथ होने को लेकर शक करता था। बता दें कि खैराबाद निवासी दरबारा सिंह के दफ्तर में शनिवार को दोपहर करीब 1.15 बजे धर्म प्रचार कमेटी में ड्यूटी करने वाले सुखबीर निवासी जलालपुरा (वर्तमान 44 बी गोल्डन टैंपल कॉलोनी, सुल्तानविंड) अपने साथ कुछ लोगों को लेकर घुस आया और किरपाण से छाती पर 5 वार किए, जिससे दरबारा जमीन पर गिर गया। दरबारा को अस्पताल में दाखिल करवाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। दरबारा के बच्चे विदेश में रहते हैं और वह पत्नी के साथ यहां रहते हंै। उनकी 31 अक्टूबर को रिटायरमेंट थी। पुलिस ने मृतक दरबारा सिंह की पत्नी बलविंदर कौर के बयानों पर हत्या का मामला दर्ज किया है। बलविंदर कौर ने अपने बयान में बताया है कि कुछ दिन पहले सुखबीर की लड़की घर से भाग गई थी। इसमें वह दरबारा के हाथ होने का शक करता था और इसी को लेकर रंजिश रखने लगा था। इस बात को लेकर अकसर झगड़ा करता था। इसके बाद पुलिस ने सुखबीर के दोनों बेटों अर्श, साजन के अलावा मलकीत सिंह निवासी टाउन हाल रोड और एक अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। फिलहाल पुलिस फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही है। वहीं घटना के बाद एसजीपीसी ने आरोपी सुखबीर को सस्पेंड कर दिया हैं। पुलिस का कहना है कि मृतक दरबारा सिंह की पत्नी के बयानों पर केस दर्ज करके आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गई है। आरोपियों को जल्द काबू कर लिया जाएगा। किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा। पीड़ित परिवार को जल्द बनता इंसाफ दिलवाया जाएगा।
हरियाणा में 5% कम वोटिंग से किसे नुकसान:पिछले 2 चुनाव में बंपर वोटिंग का फायदा BJP को मिला; कांग्रेस कम मतदान के बावजूद पॉजिटिव
हरियाणा में 5% कम वोटिंग से किसे नुकसान:पिछले 2 चुनाव में बंपर वोटिंग का फायदा BJP को मिला; कांग्रेस कम मतदान के बावजूद पॉजिटिव हरियाणा में छठे चरण में सभी 10 सीटों पर वोटिंग हो गई। मतदान 65 फीसदी हुआ। इन 10 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है। 2009 में इन 10 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 67.51% रहा। 2014 में मतदान 3.94 फीसदी से अधिक बढ़कर 71.45% प्रतिशत पहुंच गया। साल 2019 में इस वोटिंग प्रतिशत 1.11 प्रतिशत की गिरावट आकर 70.34% चला गया। इस बार ये आंकड़ा 65.00 फीसदी ही रह गया, यानी 2019 के मुकाबले करीब 5.34 फीसदी कम। आंकड़ों को यदि हम देखें तो 2014 और 2019 के चुनावी मुकाबले में बंपर वोटिंग भाजपा के पक्ष में गई, इस बार कम वोटिंग को लेकर कांग्रेस पॉजिटिव दिख रही है। भास्कर ने एक्सपट्र्स की मदद से पिछले 5 लोकसभा चुनावों के डेटा का एनालिसिस कर घटे मतदान के मायने समझने की कोशिश की… कम वोटिंग प्रतिशत किसकी चिंता बढ़ाएगा?
आमतौर पर हरियाणा में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है। वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। कम होने पर कांग्रेस फायदा उठाकर ले जाती है। ऐसे में इस बार वोटिंग के कम प्रतिशत ने भाजपा और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है। वोट शेयर में कितना अंतर रहेगा? सवाल ये भी है कि कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में बड़ा अंतर रहा है। इस कारण से कांग्रेस पिछले दो बार से लगातार हार का मुंह देख रही है। हालांकि इस बार कम वोटिंग को लेकर भी कांग्रेस कुछ ज्यादा आशान्वित नहीं दिख रही है। यहां पढ़िए सभी 10 सीटों की 3 चुनाव की ओवर ऑल स्थिति… यहां देखिए हर सीट का लेखा-जोखा…