अखिलेश के टारगेट पर एसटीएफ, उसकी कहानी:जब बनी तब माउस छूने से डरते थे जवान; श्रीप्रकाश शुक्ला, ददुआ-ठोकिया का सफाया किया

अखिलेश के टारगेट पर एसटीएफ, उसकी कहानी:जब बनी तब माउस छूने से डरते थे जवान; श्रीप्रकाश शुक्ला, ददुआ-ठोकिया का सफाया किया

‘सरेआम ठोको फोर्स’ में तैनात लोगों का आंकड़ा बता रहा है कि ये तथाकथित ‘विशेष कार्य बल’ (विकाब) कुछ बलशाली कृपा-प्राप्त लोगों का ‘व्यक्तिगत बल’ बनकर रह गया है। ‘योगी जी अपनी STF को जान लें। लोग तो यहां तक चर्चा कर रहे कि STF का मतलब- स्पेशल ठाकुर फोर्स है। STF क्या दिखाना चाहती है? कोई अपराधी है तो उसके लिए न्यायालय है। ‘ ये दोनों बयान STF को टारगेट करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दिए हैं। सुल्तानपुर डकैती में STF की मुठभेड़ में मारे गए एक लाख के इनामी बदमाश मंगेश यादव को लेकर वह लगातार एनकाउंटर, STF के बहाने योगी सरकार पर हमलावर हैं। इस बार संडे बिग स्टोरी में पढ़िए STF से जुड़े रोचक किस्से, अखिलेश सरकार में कैसे काम करती थी STF, सबसे ज्यादा एनकाउंटर किसके समय में किए गए? STF का रोल कैसे बदलता गया? सबसे पहले STF बनने और उससे जुड़े किस्से…
साल 1993 की बात है। गोरखपुर में एक छात्रा कॉलेज से अपने घर लौट रही थी। उसे देखकर राकेश तिवारी नाम का व्यक्ति सीटी बजा रहा था। लड़की के भाई को इसका पता चला तो उसने गुस्से में राकेश को गोली मार दी। भाई का नाम था- श्रीप्रकाश शुक्ला। 1993 में केवल 20 साल की उम्र में पहला मर्डर करने के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक चला गया। कुछ समय बाद भारत लौटा तो बिहार का रुख किया। वहां मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को एक-47 से भून डाला। शुक्ला देखते-ही-देखते अपराध की दुनिया का बड़ा नाम हो गया। श्रीप्रकाश उस वक्त इकलौता ऐसा अपराधी था, जिसने मॉडर्न एके-47 का इस्तेमाल करके सनसनी फैला दी थी। शुक्ला अब UP की राजधानी लखनऊ से ही फिरौती और हत्या की सुपारी लेने लगा था। 31 मार्च, 1997 सुबह 10:30 बजे लखनऊ में एक स्कूल के सामने UP के बाहुबली नेता वीरेंद्र शाही को भी गोली से उड़ा दिया। पहले शुक्ला ने वीरेंद्र शाही के मुंह और सीने पर गोलियां मारीं। इसके बाद हार्ट किधर है, इस पर कन्फ्यूजन था तो पहले दाईं तरफ 5 गोली मारी, फिर बाईं तरफ 5 गोली मारीं। इससे पूरे UP में उसका खौफ फैल गया। प्रदेश की राजधानी में इन ताबड़तोड़ घटनाओं से खौफ था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने उस वक्त UP के CM कल्याण सिंह की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी ले ली। UP के पूर्व पुलिस अफसर और STF के पहले प्रमुख अजय राज शर्मा ने अपनी किताब ‘बाइटिंग द बुलेट : मेमोरी ऑफ ए पुलिस ऑफिसर’ और कुछ मीडिया इंटरव्यू में ये पूरा किस्सा शेयर किया। अजय राज शर्मा बताते हैं- मैं उस वक्त सीतापुर में था। मेरे पास फोन आया कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह आज शाम को आपसे मिलना चाहते हैं। जब मैं गया तो वे अपने कमरे में टहल रहे थे। काफी घबराए लग रहे थे। मैंने पूछा, सर क्या बात है? उन्होंने कहा, श्रीप्रकाश शुक्ला ने इतना उधम मचाया है कि मेरी सरकार के लिए नासूर बन गया है। ये हर रोज क्राइम करता है। क्राइम भी ऐसे कि हर अखबार में छपता है। विधानसभा में हर रोज मुझे इसका जवाब देना पड़ता है। मैंने कहा, आप इतने परेशान सिर्फ इस बात से तो नहीं हैं, ये तो आपके लिए रोज की समस्या है। उन्होंने कहा कि सही कह रहे हो, मैं दूसरे कारण से ज्यादा परेशान हूं। मैंने कहा कि बताइए। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी जान को खतरा है और इसकी वजह भी श्रीप्रकाश शुक्ला है। उसने मुझे मारने के लिए 5 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है। मुझे मालूम है कि इस गैंग के अंदर ये काबिलियत है कि सारी सिक्योरिटी तोड़कर मुझे मार सकते हैं। मैंने कहा- ये मामला तो काफी सीरियस है। इस पर उन्होंने कहा, इसीलिए आपको बुलाया है। कल से आप ADG लॉ एंड ऑर्डर का चार्ज ले लीजिए। मैंने कहा कि मुझे मंजूर है। मैं कल चार्ज ले लूंगा, लेकिन मेरी एक गुजारिश है। वे बोले क्या? मैंने कहा, मुझे एक छोटी-सी नई यूनिट चाहिए। वो भी अभी, क्योंकि कल मुझे चार्ज लेना है। इसी यूनिट को स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF का नाम दिया गया। यह तारीख थी- 4 मई 1998 चीफ बने अजय राज शर्मा। इसमें उस समय लखनऊ के SSP अरुण कुमार और CO हजरतगंज राजेश पांडेय को शामिल किया गया। इस यूनिट में UP पुलिस के 50 बेहतरीन जवानों को छांटकर शामिल किया गया। इन सभी की उम्र 35 साल से कम थी। इस फोर्स को पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का मिला। STF ने अपने गठन के 5 महीने बाद 23 अक्टूबर, 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला को गाजियाबाद में हुए एनकाउंटर में मार गिराया। STF की स्थापना के समय डीएसपी रहे रिटायर्ड IPS राजेश पांडेय पांडे ने एक इंटरव्यू में बताया था- शुरुआत में कोई निगरानी उपकरण नहीं था। न ही अधिक कंप्यूटर थे। शुरू में तो पुलिस वाले माउस पकड़ने से भी डरते थे, क्योंकि उन्हें करंट लगने का डर रहता था। पुलिस अधिकारियों को कंप्यूटर का उपयोग करने के तरीके सिखाने के लिए एक कंप्यूटर संस्थान के मालिक को भी शामिल किया गया था। STF ने IIT कानपुर के एक छात्र को श्रीप्रकाश शुक्ला की फोन पर की गई बातचीत ट्रैक करने के लिए एक उपकरण बनाने के लिए कहा। यह संभवतः भारत में टेलीफोन टैपिंग का पहला मामला था। यह डिवाइस 5000 रुपए में बनाई गई थी। STF की सफलता का राज अब तक STF की सफलता में सर्विलांस का बहुत योगदान रहा है। इसके लिए STF ने अपनी टीम में जांबाज अधिकारियों के साथ टेक्निकल एक्सपर्ट की टीम को भी पूरा सम्मान दिया। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- STF के जवानों का सिलेक्शन काफी टफ होता है। यही वजह है, STF बनने के कई साल बाद तक 100 से भी कम जवानों का इस टास्क फोर्स में सिलेक्शन हुआ था। पुलिस जवानों का STF में चयन इन 5 बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है- 1. भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता का आरोप नहीं होना चाहिए। 2. पुलिस में सेवा करते हुए किसी विवाद में नाम नहीं आया हो। 3. स्वास्थ्य अच्छा हो। 4. पुलिस विभाग में रहते हुए बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया हो। 5. पढ़े-लिखे और टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ रखते हाें। अखिलेश यादव के समय में STF की वर्किंग
अखिलेश यादव की STF से नाराजगी नई नहीं है। पहले भी वह मुठभेड़ पर सवाल उठाते रहे हैं। माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और गुलाम के एनकाउंटर के समय भी STF पर हमलावर रहे। ऐसा नहीं है कि STF अखिलेश यादव सरकार में नहीं रही। उनके समय भी काम कर रही थी। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- STF सबसे ज्यादा एक्टिव कल्याण सिंह और मायावती सरकार में रही। सबसे ज्यादा बजट इन्हीं के समय मिला। आपको काम नहीं चाहिए तो घर बैठ जाइए। दो लाेगाें को आपत्ति होती है। पहला- संगठित अपराध करने वाले और दूसरा- जिनके कमाई पूत मारे जा रहे हैं। STF एक ईको सिस्टम में काम करती है। यह उसे सरकार उपलब्ध कराती है। एक मीडिया ग्रुप का 7 जून, 2014 का आर्टिकल यादवाइजेशन ऑफ यूपी कॉप्स पढ़ लीजिए, सब क्लियर हो जाएगा। यादवाइजेशन ने किस तरह से पुलिस का बेड़ा गर्क कर दिया था। बसपा, सपा और भाजपा सरकार में काम कर चुके पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं- ये सरकार की, मुख्यमंत्री की प्रायोरिटी पर डिपेंड करता है। जिस सरकार की प्रायोरिटी में यह है कि माफिया खत्म करना है, ऑर्गेनाइज्ड क्राइम खत्म हो, तो STF उसी हिसाब से काम करती है। STF को बनाया गया था ऑर्गेनाइज्ड क्राइम खत्म करने के लिए ही। हमने STF में काम कर रहे कुछ पुलिस अफसरों और रिटायर्ड अफसरों से बात की। ऑफ द रिकॉर्ड उनका कहना है कि सरकार जिस लाइन पर चलती है, उसी हिसाब से काम होता है। अखिलेश के समय लॉ एंड ऑर्डर का क्या हाल था, किसी से छिपा नहीं। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए, इससे पता चल जाएगा। रिकॉर्ड बताते हैं, जो STF उनके पिता मुलायम सिंह यादव और मायावती के सरकार में ताबड़तोड़ मुठभेड़ों में अपराधियों को ढेर करती थी, वो उनके समय में शांत हो गई। अब जानिए यूपी में किसकी सरकार में सबसे ज्यादा अपराधी मारे गए
प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए पहली बार एनकाउंटर नहीं हो रहे हैं। सभी सरकारों में इसका उपयोग किया गया। सबसे ज्यादा एनकाउंटर की बात करें तो मुलायम सिंह की 4 साल की सरकार में 499 अपराधियों को पुलिस ने मारा था। योगी सरकार के साढ़े 7 साल के मुकाबले उनके 4 साल के कार्यकाल में दोगुने से ज्यादा एनकाउंटर किए गए। दूसरे नंबर पर मायावती की सरकार रही, 5 साल की सरकार में 261 अपराधी पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। अखिलेश की सरकार में 40 अपराधी मारे गए। अब सवाल उठता है कि मुलायम सिंह सरकार के समय इतने ज्यादा एनकाउंटर क्यों हुए? पहला- उस समय बीहड़ में डकैतों का आतंक ज्यादा था। दूसरा- गैंग ज्यादा थे और लूटपाट-हत्या और अपहरण की वारदात ज्यादा होती थीं। एके जैन कहते हैं- 1994 में मैं गाजियाबाद एसएसपी था। उसी दौरान एक डॉक्टर बजाज का अपहरण हुआ था। मुलायम सिंह पर दबाव था। उसी समय डिस्कशन हुआ था कि जब पंजाब में दहशतगर्द मारे जा रहे हैं, तो फिर यूपी में क्यों नहीं? कुछ लोगों ने सजेस्ट किया था कि वहां पर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का नियम है। यहां भी अगर नियम बन जाए तो पुलिस क्रिमिनल्स को खत्म कर देगी। सिर्फ गाजियाबाद में ही 50 एनकाउंटर किए गए थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में क्या स्थिति होगी? 2022 में STF का रोल बढ़ा, इन्वेस्टिगेशन भी करने लगी
वक्त के साथ-साथ STF का रोल बदलता गया। 2008 में जब मायावती सरकार में एटीएस का गठन किया गया तो STF सिर्फ अपराधियों पर काम करने लगी। इसके बाद जब साइबर क्राइम ने अपने पांव पसारने शुरू किए, तो भी STF को लगाया जाने लगा। बाद में साइबर क्राइम की भी अलग विंग बन गई। 2021 से पहले STF का काम अपराधियों को पकड़ने में पुलिस का सहयोग करने का रहता था, लेकिन उसके बाद इसके रोल बढ़ते चले गए। पहले पेपर लीक के मामलों की जांच STF के पास पहुंची, फिर विश्वविद्यालयों में हो रहे भ्रष्टाचार की जांच STF ने की। साल 2022 में राजधानी लखनऊ में सरेशाम अजीत सिंह नाम के व्यक्ति की हत्या बदमाशों ने कर दी। लखनऊ पुलिस ने जांच की तो उसमें जौनपुर के पूर्व विधायक धनंजय सिंह की भूमिका सामने आने लगी। पुलिस ने अपनी जांच में धनंजय सिंह का नाम खोल दिया और उन्हें 120-बी का मुल्जिम बना दिया। इसके बाद लखनऊ पुलिस ने धनंजय सिंह की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया। लेकिन, अचानक इस मामले की जांच STF को सौंप दी गई। STF ने अपनी जांच में धनंजय सिंह को क्लीन चिट दे दी। इस मामले को भी सपा मुखिया ने जोर-शोर से उठाया था। धनंजय की गिरफ्तारी न होने पर सरकार पर जाति देखकर कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। पड़ोसी राज्यों और यूपी STF में अंतर
यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी STF है। मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों के आंकड़े बताते हैं कि यूपी की STF ज्यादा सक्रिय है। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2022 के बीच पिछले 5 सालों में देश में 655 एनकाउंटर हुए। दूसरे पायदान पर है उत्तर प्रदेश, यहां पांच साल में 117 मामले सामने आए। ये वो मामले हैं, जिनमें मौत हुई। राजस्थान में 8, मध्य प्रदेश में 13, बिहार में 22 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए। सबसे ज्यादा 191 एनकाउंटर छत्तीसगढ़ में हुए। हालांकि यहां नक्सलियों के मूवमेंट की वजह से ज्यादा मुठभेड़ हुई हैं। ये भी पढ़ें… यूपी में यादव से ज्यादा ब्राह्मण-ठाकुरों का एनकाउंटर; साढ़े सात साल में 207 आरोपी ढेर ”लगता है सुल्तानपुर की डकैती में शामिल लोगों से सत्ता पक्ष का गहरा संपर्क था। इसीलिए तो नकली एनकाउंटर से पहले ‘मुख्य आरोपी’ से संपर्क साधकर सरेंडर करा दिया गया। अन्य लोगों के पैरों पर सिर्फ दिखावटी गोली मारी गई और ‘जाति’ देखकर जान ली गई। ” यह बातें सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 5 सितंबर को X पर लिखीं। उन्होंने डकैती के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सवाल उठाए। आरोप लगाया- मंगेश इसलिए मारा गया, क्योंकि वह जाति विशेष का था। पढ़ें पूरी खबर ‘सरेआम ठोको फोर्स’ में तैनात लोगों का आंकड़ा बता रहा है कि ये तथाकथित ‘विशेष कार्य बल’ (विकाब) कुछ बलशाली कृपा-प्राप्त लोगों का ‘व्यक्तिगत बल’ बनकर रह गया है। ‘योगी जी अपनी STF को जान लें। लोग तो यहां तक चर्चा कर रहे कि STF का मतलब- स्पेशल ठाकुर फोर्स है। STF क्या दिखाना चाहती है? कोई अपराधी है तो उसके लिए न्यायालय है। ‘ ये दोनों बयान STF को टारगेट करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दिए हैं। सुल्तानपुर डकैती में STF की मुठभेड़ में मारे गए एक लाख के इनामी बदमाश मंगेश यादव को लेकर वह लगातार एनकाउंटर, STF के बहाने योगी सरकार पर हमलावर हैं। इस बार संडे बिग स्टोरी में पढ़िए STF से जुड़े रोचक किस्से, अखिलेश सरकार में कैसे काम करती थी STF, सबसे ज्यादा एनकाउंटर किसके समय में किए गए? STF का रोल कैसे बदलता गया? सबसे पहले STF बनने और उससे जुड़े किस्से…
साल 1993 की बात है। गोरखपुर में एक छात्रा कॉलेज से अपने घर लौट रही थी। उसे देखकर राकेश तिवारी नाम का व्यक्ति सीटी बजा रहा था। लड़की के भाई को इसका पता चला तो उसने गुस्से में राकेश को गोली मार दी। भाई का नाम था- श्रीप्रकाश शुक्ला। 1993 में केवल 20 साल की उम्र में पहला मर्डर करने के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक चला गया। कुछ समय बाद भारत लौटा तो बिहार का रुख किया। वहां मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को एक-47 से भून डाला। शुक्ला देखते-ही-देखते अपराध की दुनिया का बड़ा नाम हो गया। श्रीप्रकाश उस वक्त इकलौता ऐसा अपराधी था, जिसने मॉडर्न एके-47 का इस्तेमाल करके सनसनी फैला दी थी। शुक्ला अब UP की राजधानी लखनऊ से ही फिरौती और हत्या की सुपारी लेने लगा था। 31 मार्च, 1997 सुबह 10:30 बजे लखनऊ में एक स्कूल के सामने UP के बाहुबली नेता वीरेंद्र शाही को भी गोली से उड़ा दिया। पहले शुक्ला ने वीरेंद्र शाही के मुंह और सीने पर गोलियां मारीं। इसके बाद हार्ट किधर है, इस पर कन्फ्यूजन था तो पहले दाईं तरफ 5 गोली मारी, फिर बाईं तरफ 5 गोली मारीं। इससे पूरे UP में उसका खौफ फैल गया। प्रदेश की राजधानी में इन ताबड़तोड़ घटनाओं से खौफ था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने उस वक्त UP के CM कल्याण सिंह की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी ले ली। UP के पूर्व पुलिस अफसर और STF के पहले प्रमुख अजय राज शर्मा ने अपनी किताब ‘बाइटिंग द बुलेट : मेमोरी ऑफ ए पुलिस ऑफिसर’ और कुछ मीडिया इंटरव्यू में ये पूरा किस्सा शेयर किया। अजय राज शर्मा बताते हैं- मैं उस वक्त सीतापुर में था। मेरे पास फोन आया कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह आज शाम को आपसे मिलना चाहते हैं। जब मैं गया तो वे अपने कमरे में टहल रहे थे। काफी घबराए लग रहे थे। मैंने पूछा, सर क्या बात है? उन्होंने कहा, श्रीप्रकाश शुक्ला ने इतना उधम मचाया है कि मेरी सरकार के लिए नासूर बन गया है। ये हर रोज क्राइम करता है। क्राइम भी ऐसे कि हर अखबार में छपता है। विधानसभा में हर रोज मुझे इसका जवाब देना पड़ता है। मैंने कहा, आप इतने परेशान सिर्फ इस बात से तो नहीं हैं, ये तो आपके लिए रोज की समस्या है। उन्होंने कहा कि सही कह रहे हो, मैं दूसरे कारण से ज्यादा परेशान हूं। मैंने कहा कि बताइए। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी जान को खतरा है और इसकी वजह भी श्रीप्रकाश शुक्ला है। उसने मुझे मारने के लिए 5 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है। मुझे मालूम है कि इस गैंग के अंदर ये काबिलियत है कि सारी सिक्योरिटी तोड़कर मुझे मार सकते हैं। मैंने कहा- ये मामला तो काफी सीरियस है। इस पर उन्होंने कहा, इसीलिए आपको बुलाया है। कल से आप ADG लॉ एंड ऑर्डर का चार्ज ले लीजिए। मैंने कहा कि मुझे मंजूर है। मैं कल चार्ज ले लूंगा, लेकिन मेरी एक गुजारिश है। वे बोले क्या? मैंने कहा, मुझे एक छोटी-सी नई यूनिट चाहिए। वो भी अभी, क्योंकि कल मुझे चार्ज लेना है। इसी यूनिट को स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF का नाम दिया गया। यह तारीख थी- 4 मई 1998 चीफ बने अजय राज शर्मा। इसमें उस समय लखनऊ के SSP अरुण कुमार और CO हजरतगंज राजेश पांडेय को शामिल किया गया। इस यूनिट में UP पुलिस के 50 बेहतरीन जवानों को छांटकर शामिल किया गया। इन सभी की उम्र 35 साल से कम थी। इस फोर्स को पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का मिला। STF ने अपने गठन के 5 महीने बाद 23 अक्टूबर, 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला को गाजियाबाद में हुए एनकाउंटर में मार गिराया। STF की स्थापना के समय डीएसपी रहे रिटायर्ड IPS राजेश पांडेय पांडे ने एक इंटरव्यू में बताया था- शुरुआत में कोई निगरानी उपकरण नहीं था। न ही अधिक कंप्यूटर थे। शुरू में तो पुलिस वाले माउस पकड़ने से भी डरते थे, क्योंकि उन्हें करंट लगने का डर रहता था। पुलिस अधिकारियों को कंप्यूटर का उपयोग करने के तरीके सिखाने के लिए एक कंप्यूटर संस्थान के मालिक को भी शामिल किया गया था। STF ने IIT कानपुर के एक छात्र को श्रीप्रकाश शुक्ला की फोन पर की गई बातचीत ट्रैक करने के लिए एक उपकरण बनाने के लिए कहा। यह संभवतः भारत में टेलीफोन टैपिंग का पहला मामला था। यह डिवाइस 5000 रुपए में बनाई गई थी। STF की सफलता का राज अब तक STF की सफलता में सर्विलांस का बहुत योगदान रहा है। इसके लिए STF ने अपनी टीम में जांबाज अधिकारियों के साथ टेक्निकल एक्सपर्ट की टीम को भी पूरा सम्मान दिया। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- STF के जवानों का सिलेक्शन काफी टफ होता है। यही वजह है, STF बनने के कई साल बाद तक 100 से भी कम जवानों का इस टास्क फोर्स में सिलेक्शन हुआ था। पुलिस जवानों का STF में चयन इन 5 बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है- 1. भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता का आरोप नहीं होना चाहिए। 2. पुलिस में सेवा करते हुए किसी विवाद में नाम नहीं आया हो। 3. स्वास्थ्य अच्छा हो। 4. पुलिस विभाग में रहते हुए बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया हो। 5. पढ़े-लिखे और टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ रखते हाें। अखिलेश यादव के समय में STF की वर्किंग
अखिलेश यादव की STF से नाराजगी नई नहीं है। पहले भी वह मुठभेड़ पर सवाल उठाते रहे हैं। माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और गुलाम के एनकाउंटर के समय भी STF पर हमलावर रहे। ऐसा नहीं है कि STF अखिलेश यादव सरकार में नहीं रही। उनके समय भी काम कर रही थी। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- STF सबसे ज्यादा एक्टिव कल्याण सिंह और मायावती सरकार में रही। सबसे ज्यादा बजट इन्हीं के समय मिला। आपको काम नहीं चाहिए तो घर बैठ जाइए। दो लाेगाें को आपत्ति होती है। पहला- संगठित अपराध करने वाले और दूसरा- जिनके कमाई पूत मारे जा रहे हैं। STF एक ईको सिस्टम में काम करती है। यह उसे सरकार उपलब्ध कराती है। एक मीडिया ग्रुप का 7 जून, 2014 का आर्टिकल यादवाइजेशन ऑफ यूपी कॉप्स पढ़ लीजिए, सब क्लियर हो जाएगा। यादवाइजेशन ने किस तरह से पुलिस का बेड़ा गर्क कर दिया था। बसपा, सपा और भाजपा सरकार में काम कर चुके पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं- ये सरकार की, मुख्यमंत्री की प्रायोरिटी पर डिपेंड करता है। जिस सरकार की प्रायोरिटी में यह है कि माफिया खत्म करना है, ऑर्गेनाइज्ड क्राइम खत्म हो, तो STF उसी हिसाब से काम करती है। STF को बनाया गया था ऑर्गेनाइज्ड क्राइम खत्म करने के लिए ही। हमने STF में काम कर रहे कुछ पुलिस अफसरों और रिटायर्ड अफसरों से बात की। ऑफ द रिकॉर्ड उनका कहना है कि सरकार जिस लाइन पर चलती है, उसी हिसाब से काम होता है। अखिलेश के समय लॉ एंड ऑर्डर का क्या हाल था, किसी से छिपा नहीं। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए, इससे पता चल जाएगा। रिकॉर्ड बताते हैं, जो STF उनके पिता मुलायम सिंह यादव और मायावती के सरकार में ताबड़तोड़ मुठभेड़ों में अपराधियों को ढेर करती थी, वो उनके समय में शांत हो गई। अब जानिए यूपी में किसकी सरकार में सबसे ज्यादा अपराधी मारे गए
प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए पहली बार एनकाउंटर नहीं हो रहे हैं। सभी सरकारों में इसका उपयोग किया गया। सबसे ज्यादा एनकाउंटर की बात करें तो मुलायम सिंह की 4 साल की सरकार में 499 अपराधियों को पुलिस ने मारा था। योगी सरकार के साढ़े 7 साल के मुकाबले उनके 4 साल के कार्यकाल में दोगुने से ज्यादा एनकाउंटर किए गए। दूसरे नंबर पर मायावती की सरकार रही, 5 साल की सरकार में 261 अपराधी पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। अखिलेश की सरकार में 40 अपराधी मारे गए। अब सवाल उठता है कि मुलायम सिंह सरकार के समय इतने ज्यादा एनकाउंटर क्यों हुए? पहला- उस समय बीहड़ में डकैतों का आतंक ज्यादा था। दूसरा- गैंग ज्यादा थे और लूटपाट-हत्या और अपहरण की वारदात ज्यादा होती थीं। एके जैन कहते हैं- 1994 में मैं गाजियाबाद एसएसपी था। उसी दौरान एक डॉक्टर बजाज का अपहरण हुआ था। मुलायम सिंह पर दबाव था। उसी समय डिस्कशन हुआ था कि जब पंजाब में दहशतगर्द मारे जा रहे हैं, तो फिर यूपी में क्यों नहीं? कुछ लोगों ने सजेस्ट किया था कि वहां पर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का नियम है। यहां भी अगर नियम बन जाए तो पुलिस क्रिमिनल्स को खत्म कर देगी। सिर्फ गाजियाबाद में ही 50 एनकाउंटर किए गए थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में क्या स्थिति होगी? 2022 में STF का रोल बढ़ा, इन्वेस्टिगेशन भी करने लगी
वक्त के साथ-साथ STF का रोल बदलता गया। 2008 में जब मायावती सरकार में एटीएस का गठन किया गया तो STF सिर्फ अपराधियों पर काम करने लगी। इसके बाद जब साइबर क्राइम ने अपने पांव पसारने शुरू किए, तो भी STF को लगाया जाने लगा। बाद में साइबर क्राइम की भी अलग विंग बन गई। 2021 से पहले STF का काम अपराधियों को पकड़ने में पुलिस का सहयोग करने का रहता था, लेकिन उसके बाद इसके रोल बढ़ते चले गए। पहले पेपर लीक के मामलों की जांच STF के पास पहुंची, फिर विश्वविद्यालयों में हो रहे भ्रष्टाचार की जांच STF ने की। साल 2022 में राजधानी लखनऊ में सरेशाम अजीत सिंह नाम के व्यक्ति की हत्या बदमाशों ने कर दी। लखनऊ पुलिस ने जांच की तो उसमें जौनपुर के पूर्व विधायक धनंजय सिंह की भूमिका सामने आने लगी। पुलिस ने अपनी जांच में धनंजय सिंह का नाम खोल दिया और उन्हें 120-बी का मुल्जिम बना दिया। इसके बाद लखनऊ पुलिस ने धनंजय सिंह की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया। लेकिन, अचानक इस मामले की जांच STF को सौंप दी गई। STF ने अपनी जांच में धनंजय सिंह को क्लीन चिट दे दी। इस मामले को भी सपा मुखिया ने जोर-शोर से उठाया था। धनंजय की गिरफ्तारी न होने पर सरकार पर जाति देखकर कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। पड़ोसी राज्यों और यूपी STF में अंतर
यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी STF है। मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों के आंकड़े बताते हैं कि यूपी की STF ज्यादा सक्रिय है। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2022 के बीच पिछले 5 सालों में देश में 655 एनकाउंटर हुए। दूसरे पायदान पर है उत्तर प्रदेश, यहां पांच साल में 117 मामले सामने आए। ये वो मामले हैं, जिनमें मौत हुई। राजस्थान में 8, मध्य प्रदेश में 13, बिहार में 22 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए। सबसे ज्यादा 191 एनकाउंटर छत्तीसगढ़ में हुए। हालांकि यहां नक्सलियों के मूवमेंट की वजह से ज्यादा मुठभेड़ हुई हैं। ये भी पढ़ें… यूपी में यादव से ज्यादा ब्राह्मण-ठाकुरों का एनकाउंटर; साढ़े सात साल में 207 आरोपी ढेर ”लगता है सुल्तानपुर की डकैती में शामिल लोगों से सत्ता पक्ष का गहरा संपर्क था। इसीलिए तो नकली एनकाउंटर से पहले ‘मुख्य आरोपी’ से संपर्क साधकर सरेंडर करा दिया गया। अन्य लोगों के पैरों पर सिर्फ दिखावटी गोली मारी गई और ‘जाति’ देखकर जान ली गई। ” यह बातें सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 5 सितंबर को X पर लिखीं। उन्होंने डकैती के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सवाल उठाए। आरोप लगाया- मंगेश इसलिए मारा गया, क्योंकि वह जाति विशेष का था। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर