करनाल के झिलमिल ढाबा के नजदीक नेशनल हाईवे-44 पर एक हादसा हो गया। दिल्ली से चंडीगढ़ की ओर जा रही एक कार अनियंत्रित होकर ट्राले में घुस गई। हादसे में कार सवार एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि चालक गंभीर रूप से घायल हो गया। हादसा इतना भीषण था कि कार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, और मृतक गाड़ी में ही फंस गया। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद शव को बाहर निकाला और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घायल चालक को भी इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दिल्ली से जा रहे थे चंडीगढ़ मृतक की पहचान दिल्ली के छतरपुर निवासी अश्वनी (39) के रूप में हुई है, जो अपने दोस्त अमन के साथ छतरपुर से चंडीगढ़ जा रहा था। जब वह करनाल के झिलमिल ढाबा के पास पहुंचे तो ट्राले के आगे चल रही गाड़ी ने अचानक ब्रेक लगाए, जिसके चलते ट्राला चालक को भी ब्रेक लगाने पड़े। इसी दौरान कार ट्राले से टकरा गई और ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठे अश्वनी की मौके पर ही मौत हो गई। क्रेन की मदद से निकाला शव बाहर हादसे की सूचना के बाद सदर थाना पुलिस मौके पर पहुंची और गाड़ी से पहले अमन को बाहर निकाला और उसे इलाज के लिए अस्पताल भेजा। लेकिन इस दौरान अश्वनी को बाहर नहीं निकाला जा सका। बाद में क्रेन की मदद से गाड़ी को ट्राले के नीचे निकाला। करीब 30 मिनट बाद कड़ी मशक्कत से गड़ी की खिड़की तोड़कर अश्वनी के शव को बाहर निकाला। परिजनों की दी गई सूचना सदर थाना से जांच अधिकारी विकास ने बताया कि आरोपी पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम हाउस में रखवा दिया है। वहीं घायल का इलाज करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज में चल रहा है। परिजनों को मामले की सूचना दे दी गई है। उनके आने के बाद पोस्टमॉर्टम करा शव परिजनों के हवाले कर दिया जाएगा। फिलहाल दोनों वाहनों को कब्जे में लेकर आगामी कार्रवाई शुरू कर दी है। करनाल के झिलमिल ढाबा के नजदीक नेशनल हाईवे-44 पर एक हादसा हो गया। दिल्ली से चंडीगढ़ की ओर जा रही एक कार अनियंत्रित होकर ट्राले में घुस गई। हादसे में कार सवार एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि चालक गंभीर रूप से घायल हो गया। हादसा इतना भीषण था कि कार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, और मृतक गाड़ी में ही फंस गया। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद शव को बाहर निकाला और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घायल चालक को भी इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दिल्ली से जा रहे थे चंडीगढ़ मृतक की पहचान दिल्ली के छतरपुर निवासी अश्वनी (39) के रूप में हुई है, जो अपने दोस्त अमन के साथ छतरपुर से चंडीगढ़ जा रहा था। जब वह करनाल के झिलमिल ढाबा के पास पहुंचे तो ट्राले के आगे चल रही गाड़ी ने अचानक ब्रेक लगाए, जिसके चलते ट्राला चालक को भी ब्रेक लगाने पड़े। इसी दौरान कार ट्राले से टकरा गई और ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठे अश्वनी की मौके पर ही मौत हो गई। क्रेन की मदद से निकाला शव बाहर हादसे की सूचना के बाद सदर थाना पुलिस मौके पर पहुंची और गाड़ी से पहले अमन को बाहर निकाला और उसे इलाज के लिए अस्पताल भेजा। लेकिन इस दौरान अश्वनी को बाहर नहीं निकाला जा सका। बाद में क्रेन की मदद से गाड़ी को ट्राले के नीचे निकाला। करीब 30 मिनट बाद कड़ी मशक्कत से गड़ी की खिड़की तोड़कर अश्वनी के शव को बाहर निकाला। परिजनों की दी गई सूचना सदर थाना से जांच अधिकारी विकास ने बताया कि आरोपी पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम हाउस में रखवा दिया है। वहीं घायल का इलाज करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज में चल रहा है। परिजनों को मामले की सूचना दे दी गई है। उनके आने के बाद पोस्टमॉर्टम करा शव परिजनों के हवाले कर दिया जाएगा। फिलहाल दोनों वाहनों को कब्जे में लेकर आगामी कार्रवाई शुरू कर दी है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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पानीपत में बीजेपी पर बरसे पूर्व मंत्री अजय:बोले- इनके पास सिर्फ दो ही मुद्दे, एक पाकिस्तान दूसरा मुसलमान, बैशाखी पर टिकी मोदी सरकार कांग्रेस ओबीसी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार कभी भी गिर सकती है। क्योंकि मोदी सरकार दो बैशाखियों पर टिकी हुई है। जिसमें से एक बैसाखी सबसे बड़े पलटूराम नीतिश कुमार की है, जो गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। जिस दिन पलटूराम पलट गया उसी दिन मोदी सरकार धरासाई हो जाएंगी। कैप्टन यादव रविवार को समालखा में पूर्व विधायक भरत सिंह छौक्कर द्वारा आयोजित ओबीसी सम्मेलन को बतौर मुख्य तिथि संबोधित कर रहे थे। समालखा विधानसभा क्षेत्र से टिकट की दावेदारी ठोक रहे पूर्व विधायक भरत सिंह छौक्कर के आमंत्रण पर हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। कार्यक्रम में देरी से पहुंचने पर मांगी मांफी लेकिन कैप्टन अजय यादव करीब दो घंटे देरी से समालखा पहुंचे तब तक आधे से ज्यादा लोग अपने घर जा चुके थे। कैप्टन यादव ने देरी से आने पर लोगों से क्षमायाचना की और भविष्य में समय पर पहुंचने का आश्वासन दिया। इस मौके पर उपस्थित समर्थकों ने भरत सिंह छौक्कर को टिकट देने की बात कही। जिस पर कैप्टन अजय यादव ने कहा कि वह टिकट वितरण समिति के सदस्य हैं। 2005 में भी उन्होंने भारत सिंह छौक्कर को टिकट दिलवाई थी। इस बार भी अगर छौक्कर का नाम सर्वे में सबसे ऊपर आया तो वह टिकट दिलाने का भरसक प्रयास करेंगे। बीेजेपी के पास सिर्फ दो ही मुद्दे कैप्टन अजय यादव ने प्रदेश की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा नेता न तो शिक्षा और न हीं चिकित्सा की बात करते हैं। इनके सिर्फ दो ही मुद्दे हैं एक पाकिस्तान ओर दूसरा मुसलमान। पूरे प्रदेश वासियों को इस भ्रष्ट सरकार ने पोर्टल के चक्कर में उलझाये हुए है,कहीं प्रॉपर्टी आईडी व कहीं फैमिली आईडी। अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो सभी आईडी खत्म करके सिर्फ राशन कार्ड व आधार कार्ड को मान्य किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेश में 300 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी। 500 रूपए में रसोई गैस सिलेंडर उपलब्ध कराया जाएगा। कार्यक्रम में ये रहे मौजूद इस मौके पर कांग्रेस ओबीसी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश सैनी, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष करता राम कश्यप,बाबू राम कौशिक,प्रदेश उपाध्यक्ष रितु सैनी, पानीपत जिला प्रधान सुभाष,बीसी प्रकोष्ठ के जिला महासचिव मोनू रावल भी मौजूद रहे।
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गोद लेकर मुकरे तो पिता को कोर्ट में घसीटा:इंदिरा के न चाहते हुए भी 2 बार CM बने भगवत दयाल; 13 दिन में गिरी सरकार 26 जनवरी 1918, संयुक्त पंजाब के जींद जिले के बैरो गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। सवा साल बाद उसकी मां नहीं रहीं। पिता हीरालाल शास्त्री ने कुछ साल बच्चे को संभाला, फिर रोहतक के मुरारीलाल को गोद दे दिया। गांव वालों की मौजूदगी में गोद देने कार्यक्रम भी हुआ। बच्चा 16 साल का हुआ, तो उसकी शादी करा दी गई। उसके बाद वो आजादी के आंदोलन में कूद गया, जेल भी गया। 14 साल बाद घर लौटा, तो गोद लेने वाले पिता मुरारीलाल के पास गया। उन्होंने उसे बेटा मानने से इनकार कर दिया। फिर वो हीरालाल के पास गया, उन्होंने कहा- ‘हम तो पहले ही तुम्हें गोद दे चुके हैं।’ दरअसल, जब लड़का जेल में था, तब ब्रितानिया हुकूमत की पुलिस हीरालाल और मुरारीलाल के घर पहुंची थी। दोनों डर गए थे कि उस लड़के की वजह से उन पर मुकदमा न हो जाए। इन सब के बीच लड़के को याद आया कि उसकी एक बहन है, जो गोद लेने वाले पिता की बेटी थी। गांव वालों से पता चला कि उसकी शादी दिल्ली में हुई है। वो बहन से मिलने दिल्ली पहुंचा। उसे आपबीती सुनाई। दोनों भाई-बहन मुरारीलाल के पास पहुंचे, लेकिन उन्होंने लड़के को बेटा मानने से फिर इनकार कर दिया। थक हारकर लड़के ने रोहतक कोर्ट में मुरारीलाल के खिलाफ केस कर दिया। गांव वाले उसके पक्ष में थे, लेकिन कोर्ट गोद लिए जाने का सबूत मांग रहा था। लड़के ने कोर्ट के सामने एक तस्वीर पेश की, जिसमें वो गोद लेने वाले पिता की गोद में बैठा था। फैसला लड़के के पक्ष में आया। मुरारीलाल रो पड़े। लड़के ने उन्हें प्रणाम किया, गले लगाया और कहा- ‘मुझे आपकी संपत्ति नहीं चाहिए, मैं बस ये चाहता था कि आपको अपनी गलती का एहसास हो।’ आगे चलकर यही लड़का हरियाणा का पहला मुख्यमंत्री बना, नाम- भगवत दयाल शर्मा। उनकी बेटी डॉ. भारती शर्मा ने अपनी किताब ‘स्मृतियों के आइने में पंडित भगवत दयाल शर्मा’ में इस किस्से का जिक्र किया है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘मैं हरियाणा का सीएम’ के पहले एपिसोड में भगवत दयाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने की कहानी… डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- साल 1962, प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों से कहा- मैं दिल्ली को स्विट्जरलैंड बनाना चाहता हूं। वे अपनी बात पूरी करते, उससे पहले ही कैरों बोल पड़े- पंडित जी मुझसे पंजाब का टुकड़ा मत मांगो, क्योंकि स्विट्जरलैंड के चारों तरफ तो 40 मील तक फैक्ट्रियां हैं। नेहरू ने तब के श्रम मंत्री रहे खंडू भाई देसाई से कहा कि प्रताप बहुत मजबूत हो चुका है। मुझे इसका विकल्प दो। खंडू भाई ने कहा- एक पढ़ा-लिखा शख्स है, इंदिरा से मिलने रोज जाता है। पंजाब का ही रहने वाला है। आप उसे मौका दो, भगवत दयाल नाम है। कुछ दिनों बाद… भगवत दयाल, इंदिरा से मिलकर दिल्ली के तीन मूर्ति भवन से बाहर निकल रहे थे। अचानक पंडित नेहरू की कार आ गई। कार रोककर नेहरू ने भगवत दयाल से उनका नाम पूछा। फिर अंदर बुला लिया। तीन मूर्ति भवन में दोनों के बीच देर तक बातचीत हुई। इस दौरान भगवत दयाल ने पंडित नेहरू से कहा- ‘मुझे झज्जर से शेर सिंह के सामने चुनाव लड़ना है।’ शेर सिंह झज्जर के कद्दावर नेता थे। लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके थे। नेहरू ने कहा कि उनके सामने तो मैं भी चुनाव हार जाऊंगा। आखिरकार भगवत दयाल शर्मा को टिकट मिला और वे करीब 16 हजार वोट से जीते। शेर सिंह के समर्थक हंगामे पर उतारू थे। भगवत दयाल ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने शेर सिंह से कहा कि बाहर जाकर कह दो कि शेर सिंह चुनाव जीत गया है। शेर सिंह ने वैसा ही किया। शेर सिंह के समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया। हालांकि, कुछ देर बाद समर्थक जान गए कि शेर सिंह हार गए हैं। समर्थकों ने शेर सिंह को नीचे उतार दिया। इंदिरा ने देवीलाल की मदद से अलग हरियाणा के लिए भगवत दयाल को मनाया
1960 के दशक की शुरुआत में ही पंजाब के बंटवारे की सुगबुगाहट होने लगी थी। भाषा के आधार पर नया राज्य हरियाणा बनना था, लेकिन भगवत दयाल शर्मा इसके विरोध में थे। उनके निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा राम स्वरूप बताते हैं- ‘इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा को बुलाकर कहा कि वे अलग हरियाणा राज्य की मांग करें, लेकिन पंडित जी ने इनकार कर दिया। उनका मानना था कि पंजाब को बड़े स्तर पर आर्थिक मदद दी गई है। बंटवारे से पहले हरियाणा को भी आर्थिक तौर पर मजबूत किया जाना चाहिए।’ इसके बाद इंदिरा ने चौधरी देवीलाल से कहा कि वे भगवत दयाल शर्मा से बात करें। आखिरकार देवीलाल ने भगवत दयाल को मना लिया। डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- ‘पंडित जी हरियाणा निर्माण के नहीं, बल्कि पंजाब के बंटवारे के खिलाफ थे। तब वे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे कांग्रेस से बाहर आकर ही हरियाणा बनने का समर्थन कर सकते थे। साथ ही वे जातिवाद और भाषाई संकीर्णता के हामी नहीं थे। जब एक बार राष्ट्रीय नेतृत्व ने पंजाब विभाजन का मन बना लिया, तो इतिहास गवाह है कि उन्होंने हरियाणा के हितों के लिए कांग्रेस आलाकमान से टक्कर लेने में गुरेज नहीं किया।’ इंदिरा के न चाहने के बाद भी हरियाणा के पहले CM बने भगवत दयाल
1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। उस दौरान संयुक्त पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भगवत दयाल शर्मा थे। राजनीतिक हलकों में चर्चा पहले से थी कि जो नए राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष होगा, उसे ही CM बनाया जाएगा। भगवत दयाल शर्मा, जाट नेताओं के विरोध के बावजूद अब्दुल गफ्फार खान को हराकर हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। इधर, दिल्ली में इंदिरा पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं। ये वो दौर था जब कांग्रेस में मोरारजी देसाई, गुलजारी लाल नंदा जैसे नेताओं का दबदबा था। गुलजारी लाल नंदा उस समय केंद्रीय गृहमंत्री थे और पंजाब के मामलों को देख रहे थे। भगवत दयाल के साथ ही पंजाब कैबिनेट में मंत्री रहे चौधरी रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह भी CM की रेस में थे। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘इंदिरा गांधी जिस नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, वे राव बीरेंद्र सिंह थे। इंदिरा ने भगवत दयाल को बुलाकर कहा था कि वे राव को CM बनाना चाहती हैं और बेहतर होगा कि शर्मा इसमें बाधा न बनें। इस पर भगवत दयाल ने कहा- राव विधायक भी नहीं हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, तो गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। ज्यादातर विधायक भी मेरे साथ हैं। इंदिरा ने भगवत दयाल का रुख भांपते हुए ज्यादा जोर नहीं दिया।’ दूसरी तरफ चौधरी रणबीर सिंह ने मुख्यमंत्री पद के लिए ज्यादा जोर-आजमाइश नहीं की। इसके अलावा हरियाणा को अलग राज्य बनाने और हिंदी आंदोलन के अगुवा रहे चौधरी देवीलाल और शेर सिंह 1962 से ही कांग्रेस से निष्कासित चल रहे थे। ऐसे में उनकी दावेदारी अपने आप खारिज हो गई। गुलजारी लाल नंदा, पंडित भगवत दयाल शर्मा को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। इंदिरा उनकी बात मानती थीं। उन्होंने पंडित भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। इस तरह भगवत दयाल शर्मा 1 नवंबर 1966 को हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने। CM बनने के बाद भगवत दयाल का पार्टी में दबदबा बढ़ने लगा। उन्होंने अपने करीबी रामकृष्ण गुप्ता को हरियाणा कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष बनवाया, ताकि राव बीरेंद्र सिंह और रणबीर सिंह का वर्चस्व न चले। 1967 में पहली बार हरियाणा विधानसभा के चुनाव की घोषणा हुई। वरिष्ठ पत्रकार महेश कुमार वैद्य बताते हैं- भगवत दयाल शर्मा कोताही नहीं बरतना चाहते थे। उन्होंने टिकट वितरण पर बारीकी से नजर रखी। उनकी कोशिश थी कि किसी भी ऐसे उम्मीदवार को टिकट न मिले, जो आगे चलकर उनके खिलाफ बगावत कर दे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल कहते थे- ‘कुछ भी करो, लेकिन बंसीलाल को हराओ’
बंसीलाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे रिटायर्ड IAS अफसर एसके मिश्रा अपनी किताब ‘फ्लाइंग इन हाई विंड्स’ में लिखते हैं- ‘हरियाणा बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल मुझे पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आप साफ-सुथरा चुनाव कराइए, लेकिन दो लोगों को किसी भी तरह हराना होगा। पहला देवीलाल और दूसरा बंसीलाल। मैंने कहा- किसी को हराना या जिताना मेरे हाथ में नहीं है। मैं इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता।’ भगवत दयाल ने देवीलाल का टिकट कटवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने मोरारजी देसाई की मदद से देवीलाल का टिकट कटवा दिया। मजबूरन देवीलाल ने बेटे प्रताप सिंह को ऐलनाबाद सीट से चुनाव लड़ाया। हालांकि, भगवत दयाल के न चाहने के बावजूद रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह को टिकट मिल गया। चुनाव से पहले चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी वापस कांग्रेस में आ गए। भगवत दयाल ने नई सियासी चाल चली और जिन सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवार नहीं थे, वहां निर्दलीय उम्मीदवार उतार दिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रोहतक की किलोई सीट पर देखने को मिला, जहां से महंत श्रेयानाथ निर्दलीय उतरे। इसी सीट से चौधरी रणबीर सिंह चुनाव लड़ रहे थे। नतीजे आए तो रणबीर सिंह 8673 वोटों से हार गए। ये रणबीर सिंह की पहली हार थी। कांग्रेस ने 81 सीटों में से 48 सीटें जीत लीं। जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2, स्वतंत्र पार्टी को 3 और 16 सीटें निर्दलीय को मिलीं। अब भगवत दयाल के सामने सिर्फ राव बीरेंद्र सिंह ही चुनौती थे। राव पटौदी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। इंदिरा गांधी इस बार भी उन्हें CM बनाना चाहती थीं, लेकिन मोरारजी देसाई और गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने फिर से भगवत दयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनवा दिया। 10 मार्च 1967 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। पहली बार किसी राज्य में CM का प्रस्ताव गिरा
CM बनने के बाद भगवत दयाल ने विरोधियों को किनारे करते हुए अपने करीबी नेताओं को मंत्री बनाया। इससे उनके प्रति विधायकों की नाराजगी और बढ़ गई। अब बारी थी विधानसभा स्पीकर चुनने की। इधर टिकट कटने से नाराज देवीलाल तय कर चुके थे कि किसी भी तरह भगवत दयाल की सरकार गिरानी है। उन्हें पता था कि इस काम में राव बीरेंद्र सिंह उनके साझेदार बन सकते हैं, लेकिन दोनों में पहले से तकरार चल रही थी। देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव बीरेंद्र सिंह को डिनर के लिए घर बुलाया। जब राव बीरेंद्र सिंह उसके घर पहुंचे, तो वहां देवीलाल पहले से मौजूद थे। देवीलाल को देखते ही राव लौटने लगे, लेकिन बिल्डर ने जैसे-तैसे उन्हें रोक लिया। इसके बाद हिम्मत जुटाकर बताया कि देवीलाल उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। राव ने जवाब दिया कि वे देवीलाल पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्होंने पहले भी उनके साथ धोखा किया है। इसके बाद देवीलाल ने आगे बढ़कर राव बीरेंद्र सिंह को मनाया और स्पीकर का चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया। 17 मार्च 1967, स्पीकर चुनने की तारीख तय हुई। CM भगवत दयाल शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा। उसी समय उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम भी प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री दंग रह गए। वोटिंग हुई, राव बीरेंद्र सिंह जीत गए। आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका था, जब किसी सदन में मुख्यमंत्री का प्रस्ताव खारिज हुआ। इससे हरियाणा में संवैधानिक संकट पैदा हो गया। कांग्रेस के बागी 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम से नया ग्रुप बनाया। 16 निर्दलीय विधायकों ने मिलकर नवीन हरियाणा कांग्रेस बनाई। ये दोनों ग्रुप साथ मिल गए। भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने इनका समर्थन कर दिया। मजबूरन CM बनने के 13 दिन बाद ही भगवत दयाल को इस्तीफा देना पड़ गया। 24 मार्च 1967 को राव बीरेंद्र सिंह पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 9 महीने बाद ही राज्यपाल ने बार-बार विधायकों के दल बदलने की बात कहकर विधानसभा भंग कर दी। जिस आधार पर भगवत दयाल ने राव को CM बनने से रोका, उसी आधार पर खुद फंस गए
मई 1968 में हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार भी कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीतीं। राव बीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी नाम से अलग पार्टी बना चुके थे। अब CM की रेस में भगवत दयाल शर्मा के साथ चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा और रामकृष्ण गुप्ता शामिल थे। इस बार भगवत दयाल विधायक नहीं थे, लेकिन विधायक दल के नेता के लिए उनका दावा सबसे मजबूत था। विधायकों पर उनकी मजबूत पकड़ थी। इंदिरा गांधी को छोड़कर केंद्र में कांग्रेस के कई दिग्गज उनके साथ थे। संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप के हवाले से सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘भगवत दयाल कांग्रेस हाईकमान को 37 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र सौंप चुके थे। उसमें आग्रह किया गया था कि शर्मा को विधायक दल का नेता बनाया जाए, लेकिन पार्टी के संसदीय बोर्ड ने फैसला लिया कि जो विधायक नहीं हैं, उन्हें विधायक दल के नेतृत्व से दूर रखा जाएगा। ऐसे में चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा के साथ भगवत दयाल शर्मा भी विधायक दल के नेता की दौड़ से बाहर हो गए। ये भी अजीब संयोग है कि 1966 में जब इंदिरा, राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, तब भगवत दयाल ने ही विधायक नहीं होने की दलील देते हुए राव को CM नहीं बनने दिया था।