करनाल विधानसभा सीट हरियाणा की सबसे हॉट सीटों में से एक बनी हुई है। भाजपा के लिए इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने की चुनौती है, जबकि कांग्रेस इसे जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। कांग्रेस के 23 दावेदारों में से 4 प्रमुख चेहरे उभर कर सामने आए है। मनोज वाधवा, सुमिता सिंह, तरलोचन सिंह, और अशोक खुराना। इन चारों नेताओं के राजनीतिक करियर और उनकी संभावनाओं पर राजनीतिक विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। मनोज वाधवा: सबसे बड़ा पंजाबी चेहरा और राजनीतिक सक्रियता मनोज वाधवा का करनाल के पंजाबी समाज में गहरा प्रभाव है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत INLD से की थी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था। पूर्व डिप्टी मेयर और मेयर चुनाव में उनकी पत्नी की उम्मीदवारी ने उन्हें करनाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया है। वाधवा का कांग्रेस में शामिल होना और उनकी सक्रियता उन्हें इस चुनाव में एक बड़ा उम्मीदवार बनाती है। राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरपी सैनी का कहना है कि मनोज वाधवा कांग्रेस के सबसे बड़े पंजाबी चेहरे के रूप में उभर सकते हैं। उनका राजनीतिक अनुभव और पंजाबी समाज में पकड़ कांग्रेस के लिए बेहद लाभकारी हो सकती है। वाधवा का नाम कांग्रेस के लिए एक मजबूत दावेदारी पेश करता है और यह भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सुमिता सिंह: अनुभवी नेतृत्व और करनाल की राजनीति में प्रभाव सुमिता सिंह करनाल की राजनीति में एक अनुभवी और जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने 10 वर्षों तक विधायक के रूप में सेवा की है और करनाल की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर गहरी पकड़ रखती हैं। सुमिता सिंह का नाम कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों में सबसे आगे है, क्योंकि उनका पंजाबी समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी अच्छा खासा वोट बैंक है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एडवोकेट संजीव मंगलोरा का मानना है कि सुमिता सिंह का करनाल की राजनीति में एक अलग ही स्थान है। उनका अनुभव और स्थानीय जुड़ाव कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। पंजाबी समाज और अन्य समुदायों में उनकी लोकप्रियता कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को मजबूत करती है। अशोक खुराना: लंबा अनुभव और सामाजिक जुड़ाव अशोक खुराना ने 1994 में पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और तब से करनाल की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने अपनी पंजाबी बिरादरी में मजबूत पकड़ बनाई है और उनके पास स्थानीय राजनीति का लंबा अनुभव है। उनकी गिनती कांग्रेस के हुड्डा खेमे के वफादार कार्यकर्ताओं में होती है। राजनीतिक विश्लेषक संजीव मंगलोरा ने कहा कि अशोक खुराना का करनाल की राजनीति में लंबा अनुभव और पंजाबी बिरादरी में उनकी पकड़ कांग्रेस के लिए एक मजबूत स्थिति तैयार कर सकती है। खुराना की गिनती हुड्डा के वफादार कार्यकर्ताओं में होती है, जिससे उनकी दावेदारी और मजबूत हो जाती है। तरलोचन सिंह: दो बार सीएम के सामने लड़ चुके हैं चुनाव तरलोचन सिंह करनाल से कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। उन्होंने दो बार मुख्यमंत्रियों (मनोहरलाल खट्टर और नायब सिंह सैनी) के खिलाफ चुनाव लड़ा है और उनके पास करनाल की राजनीति का गहरा अनुभव है। कांग्रेस के पुराने सिपाही होने के नाते उन्होंने पार्टी के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है। राजनीतिक विशेषज्ञ अनुज सैनी का मानना है कि तरलोचन सिंह कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। दो बार मुख्यमंत्रियों के सामने चुनाव लड़ चुके तरलोचन का अनुभव कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति है। उनकी लोकल पहचान और पार्टी के प्रति निष्ठा उन्हें एक प्रमुख उम्मीदवार बनाते हैं। भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण मुकाबला राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि करनाल विधानसभा सीट पर कांग्रेस के 4 प्रमुख दावेदार भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। खासकर, पंजाबी मतदाताओं पर इन नेताओं की पकड़ भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है। करनाल में 63,000 से अधिक पंजाबी मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं, और कांग्रेस की सक्रिय रणनीति भाजपा के लिए मुकाबला कठिन बना सकती है। कुल मिलाकर, राजनीतिक विशेषज्ञों की नजर में करनाल विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है। किसका चेहरा जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगा और कौन सी पार्टी करनाल में जीत हासिल करेगी, यह चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। करनाल विधानसभा सीट हरियाणा की सबसे हॉट सीटों में से एक बनी हुई है। भाजपा के लिए इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने की चुनौती है, जबकि कांग्रेस इसे जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। कांग्रेस के 23 दावेदारों में से 4 प्रमुख चेहरे उभर कर सामने आए है। मनोज वाधवा, सुमिता सिंह, तरलोचन सिंह, और अशोक खुराना। इन चारों नेताओं के राजनीतिक करियर और उनकी संभावनाओं पर राजनीतिक विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। मनोज वाधवा: सबसे बड़ा पंजाबी चेहरा और राजनीतिक सक्रियता मनोज वाधवा का करनाल के पंजाबी समाज में गहरा प्रभाव है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत INLD से की थी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था। पूर्व डिप्टी मेयर और मेयर चुनाव में उनकी पत्नी की उम्मीदवारी ने उन्हें करनाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया है। वाधवा का कांग्रेस में शामिल होना और उनकी सक्रियता उन्हें इस चुनाव में एक बड़ा उम्मीदवार बनाती है। राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरपी सैनी का कहना है कि मनोज वाधवा कांग्रेस के सबसे बड़े पंजाबी चेहरे के रूप में उभर सकते हैं। उनका राजनीतिक अनुभव और पंजाबी समाज में पकड़ कांग्रेस के लिए बेहद लाभकारी हो सकती है। वाधवा का नाम कांग्रेस के लिए एक मजबूत दावेदारी पेश करता है और यह भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सुमिता सिंह: अनुभवी नेतृत्व और करनाल की राजनीति में प्रभाव सुमिता सिंह करनाल की राजनीति में एक अनुभवी और जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने 10 वर्षों तक विधायक के रूप में सेवा की है और करनाल की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर गहरी पकड़ रखती हैं। सुमिता सिंह का नाम कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों में सबसे आगे है, क्योंकि उनका पंजाबी समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी अच्छा खासा वोट बैंक है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एडवोकेट संजीव मंगलोरा का मानना है कि सुमिता सिंह का करनाल की राजनीति में एक अलग ही स्थान है। उनका अनुभव और स्थानीय जुड़ाव कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। पंजाबी समाज और अन्य समुदायों में उनकी लोकप्रियता कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को मजबूत करती है। अशोक खुराना: लंबा अनुभव और सामाजिक जुड़ाव अशोक खुराना ने 1994 में पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और तब से करनाल की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने अपनी पंजाबी बिरादरी में मजबूत पकड़ बनाई है और उनके पास स्थानीय राजनीति का लंबा अनुभव है। उनकी गिनती कांग्रेस के हुड्डा खेमे के वफादार कार्यकर्ताओं में होती है। राजनीतिक विश्लेषक संजीव मंगलोरा ने कहा कि अशोक खुराना का करनाल की राजनीति में लंबा अनुभव और पंजाबी बिरादरी में उनकी पकड़ कांग्रेस के लिए एक मजबूत स्थिति तैयार कर सकती है। खुराना की गिनती हुड्डा के वफादार कार्यकर्ताओं में होती है, जिससे उनकी दावेदारी और मजबूत हो जाती है। तरलोचन सिंह: दो बार सीएम के सामने लड़ चुके हैं चुनाव तरलोचन सिंह करनाल से कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। उन्होंने दो बार मुख्यमंत्रियों (मनोहरलाल खट्टर और नायब सिंह सैनी) के खिलाफ चुनाव लड़ा है और उनके पास करनाल की राजनीति का गहरा अनुभव है। कांग्रेस के पुराने सिपाही होने के नाते उन्होंने पार्टी के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है। राजनीतिक विशेषज्ञ अनुज सैनी का मानना है कि तरलोचन सिंह कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। दो बार मुख्यमंत्रियों के सामने चुनाव लड़ चुके तरलोचन का अनुभव कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति है। उनकी लोकल पहचान और पार्टी के प्रति निष्ठा उन्हें एक प्रमुख उम्मीदवार बनाते हैं। भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण मुकाबला राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि करनाल विधानसभा सीट पर कांग्रेस के 4 प्रमुख दावेदार भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। खासकर, पंजाबी मतदाताओं पर इन नेताओं की पकड़ भाजपा के 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प्रदेशभर में मानसून की सक्रियता के चलते पिछले 24 घंटे में 15.9 मिलीमीटर बारिश हुई है। सीजन में अब तक 390.4 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है, जो सामान्य 401.1 मिलीमीटर से महज 3 फीसदी ही कम है। जुलाई में इस बार 5 सालों में सबसे कम बारिश हुई है। 2018 में 549 मिमी बारिश हुई थी। 2019 में 244.8, 2020 में 440.6, 2021 में 668.1, 2022 में 472, 2023 में 390 और 2024 में सिर्फ 97.9 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई है। कम बारिश होने के कारण सूबे के धान पैदावार करने वाले किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्हें ट्यूबवेल से सिंचाई करनी पड़ रही है।
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हरियाणा में मरने से पहले युवक की कॉल रिकॉर्डिंग:चचेरे भाई से कहा- यार, पुलिसवाले तंग कर रहे; चौकी के बाहर जहर निगला था हरियाणा के पानीपत में हेड कॉन्स्टेबल के रिश्वत मांगने से तंग आकर पुलिस चौकी के सामने जहर पीने वाले युवक की नई कॉल रिकॉर्डिंग सामने आई है। जिसमें वह चचेरे भाई को बता रहा है कि झगड़े के केस में समझौता होने के बावजूद पुलिसवाले उसे तंग कर रहे हैं। पुलिस ने इस ऑडियो को कब्जे में ले लिया है। यह मामला 26 दिसंबर का है। जब युवक के पास हेड कॉन्स्टेबल को देने के लिए रिश्वत के रुपए नहीं थे तो उसने जहर खा लिया। इसके बाद 31 दिसंबर को उसने करनाल के अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस मामले में पुलिस मृतक युवक गुरमीत के दादा की शिकायत पर आरोपी हेड कॉन्स्टेबल समेत 3 के खिलाफ करप्शन और आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज कर चुकी है। वहीं 8 मरला चौकी के इंचार्ज सुशील कुमार और आरोपी हेड कॉन्स्टेबल अभिमन्यु को सस्पेंड किया जा चुका है। दूसरी कॉल रिकॉर्डिंग में क्या बातचीत हुई…. गुरमीत (मरने वाला): हैलो
सूरज (चचेरा भाई): हैलो गुरमीत: हां, सूरज
सूरज: किन बातों की रिकॉर्डिंग है ये, जो ये मेरे पास भेजी है तूने? गुरमीत: यार, पुलिस वाला तंग कर रहा है, मैंने उसकी रिकॉर्डिंग कर ली
सूरज: क्या कह रहे हैं पुलिसवाले? गुरमीत: पैसे मांग रहे हैं यार, राजीनामा भी हो गया, फिर भी पैसे मांग रहे
सूरज: राजीनामा हो गया गुरमीत: हां भाई, मैंने और राजपाल ने राजीनामा कर लिया है, पुलिसवाले बीच में स्वाद ले रहे
सूरज: तो राजपाल को कह दे कि पुलिस ऐसा कर रही है गुरमीत: राजपाल भी उन्हीं के साथ है, ये सब पैसे खाने के चक्कर में है
सूरज: कितने रुपए मांग रहे हैं ये? गुरमीत: पांच हजार रुपए मांग रहे, राजीनामा के रुपए मांग रहे हैं
सूरज: चल मैं देखता हूं, बात करता हूं कहीं गुरमीत: ठीक है भाई पहली कॉल रिकॉर्डिंग में मरने वाले की हेड कॉन्स्टेबल से बातचीत थी… अभिमन्यु : हैलो
गुरमीत : हैलो अभिमन्यु : हां भाई।
गुरमीत : मेरे धौरे पैसे नहीं हैं जी, सर मैं आपके पैसे फोन बेच कर दे दूंगा, हमारा राजीनामा तो हो गया है। अभिमन्यु – मैंने तो तुझे कुछ कहा ही नहीं।
गुरमीत : हैं जी? अभिमन्यु : मैंने कुछ नहीं कहा तुझे, सुरेश क्या कह गया था तुझे? फिर इस पर कोई साइन तो कर जा।
गुरमीत : साइन तो कर दूंगा, सर जी मेरी बात सुनो, मैं पैसे आने के बाद आपके पैसे दे दूंगा जी। अभिमन्यु : बकवास ना कर ठीक है। आना हो तो आजा, नहीं तेरे खिलाफ पर्चा दूंगा।
गुरमीत : मेरी बात सुनो सर, मैं अपना फोन बेच रहा हूं। युवक की खुदकुशी से जुड़ी पूरी कहानी, 5 पॉइंट्स 1. युवक का गांव में झगड़ा हुआ, हेड कॉन्स्टेबल रिश्वत मांगने लगा
पानीपत के बिंझौल गांव के गुरमीत (24) का गांव के ही राजपाल से झगड़ा हुआ था। मामला 8 मरला पुलिस चौकी पहुंचा। यहां गुरमीत और राजपाल के बीच 5 हजार रुपए में समझौता हो गया। गुरमीत के दादा मामन राम ने आरोप लगाया था कि बाद में 8 मरला चौकी के जांच अधिकारी हेड कॉन्स्टेबल अभिमन्यु ने मिलीभगत कर उसके पोते पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उससे पुलिस के पास आई शिकायत के निपटारे के बदले 5 हजार मांगे। 2. तीन हजार दिए, 2 हजार के लिए टाइम मांगा, HC तंग करता रहा
गुरमीत ने अभिमन्यु को 3 हजार रुपए तो दे दिए, लेकिन 2 हजार रुपए के लिए समय मांगा। गुरमीत ने उसे मोबाइल बेचकर पैसे देने की बात कही। आरोप है कि इसके बाद अभिमन्यु गुरमीत को पैसे के लिए परेशान करता रहा। परिवार ने 25 दिसंबर को गुरमीत से चौकी में मारपीट के आरोप लगाए। 3. हेड कॉन्स्टेबल ने जेल की धमकी दी तो जहर निगला
26 दिसंबर को अभिमन्यु ने गुरमीत को कहा कि पैसे नहीं दिए तो जेल में डाल दूंगा। इसके बाद गुरमीत ने चौकी के सामने ही जहर पी लिया। उसे करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां 31 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। 4. मरने से पहले दोस्त को कॉल रिकॉर्डिंग भेजीं
दादा मामन राम ने बताया कि 26 दिसंबर की दोपहर को गुरमीत ने अपने दोस्त हड़ताड़ी निवासी ललित और चचेरे भाई सूरज के पास फोन किया। जिसको कहा कि उसने एक ऑडियो रिकॉर्डिंग वॉट्सऐप पर भेजी है। वह पुलिसवाले की धमकी से परेशान हो गया है। इसलिए वह जहर पी रहा है। दोस्त ने तुरंत चचेरे भाई सूरज को फोन कर इस बारे में बताया। इसके बाद गुरमीत ने सूरज को भी फोन किया और कहा कि उसने जहर पी लिया है और वह चौकी के बाहर पड़ा है। 5. पुलिस ने केस दर्ज किया लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई
इस मामले में 8 मरला चौकी में गुरमीत के दादा की शिकायत पर आरोपी हेड कॉन्स्टेबल अभिमन्यु व राजपाल और सुरेश के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। तीनों आरोपियों के खिलाफ BNS की धारा 108, 115, 308(6), 351(3) और एंटी करप्शन एक्ट 13(7) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। हालांकि, इस मामले में अभी तक हेड कॉन्स्टेबल को गिरफ्तार नहीं किया गया है।