बंसीलाल को अफसर ने बाथरूम में बंद किया:देवीलाल ने हथकड़ी पहनाकर घुमाया; अविवाहितों की नसबंदी का आरोप भी लगा साल 1977-78, इमरजेंसी के बाद हरियाणा के पूर्व सीएम चौधरी बंसीलाल राज्य के दौरे पर निकले। इस दौरान वे एक गांव की पंचायत में बैठकर लोगों से बातचीत कर रहे थे। अचानक एक नौजवान खड़ा हुआ और भरी पंचायत में अपनी धोती खोल दी। सब हैरान रह गए कि इसे क्या हुआ। नौजवान ने बंसीलाल से कहा- ‘मैं चीख-चीखकर कह रहा था कि मेरी शादी नहीं हुई है। मैं कुंवारा हूं, लेकिन मुझे जबरन पकड़ लिया गया। नसबंदी कर दी गई।’ दरअसल, इमरजेंसी के दौरान बंसीलाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने पुलिस को नसबंदी करने का टारगेट दिया था। पुलिस गांव में घुसकर पुरुषों-नौजवानों को पकड़ती और उनकी जबरन नसबंदी करवा देती। उस दौरान नारा चलता था- ‘नसबंदी के तीन दलाल: इंदिरा, संजय, बंसीलाल।’ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त हरियाणा में 164 अविवाहित लोगों की नसबंदी की गई थी। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में आज बंसीलाल के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… साल 1966-67, हरियाणा बनने के दो साल के भीतर दो सरकारें गिर चुकी थीं। मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा की सरकार सिर्फ 13 दिन में ही गिर गई थी। कांग्रेस से बागी होकर सरकार बनाने वाले राव बीरेंद्र सिंह भी 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए थे। बार-बार दल-बदल के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा चुका था। उधर लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं। हालांकि कांग्रेस में उनकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी। वे पार्टी में ही अलग-अलग खेमों से मिल रहे राजनीतिक दबाव का सामना कर रही थीं। 1968 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री के लिए कई नामों की चर्चा चल रही थी। इसमें पंडित भगवत दयाल शर्मा, चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, चौधरी रणबीर सिंह और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामकृष्ण गुप्ता के नाम शामिल थे। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह अपनी किताब ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं, ‘सीएम पद को लेकर आम राय नहीं बन पा रही थी। केंद्रीय मंत्री गुलजारी लाल नंदा को इसका हल निकालने का जिम्मा सौंपा गया। 18 मई 1968 को नंदा के आवास पर नई दिल्ली में बैठक हुई। इसमें 48 में से 32 विधायक शामिल हुए। पंडित भगवत दयाल को नेता चुना गया, लेकिन इंदिरा गांधी राजी नहीं हुईं। उनका कहना था विधायकों में से ही मुख्यमंत्री चुना जाए। तब भगवत दयाल विधायक नहीं थे।’ अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा की अध्यक्षता में विधायक दल की बैठक हुई। ‘द स्टेट्समैन’ अखबार में बैठक का विवरण छपा था। अखबार के मुताबिक रिटायर्ड ब्रिगेडियर रण सिंह ने चौधरी बंसीलाल के नाम का प्रस्ताव रखा। ओमप्रभा जैन के नाम की भी चर्चा हुई। दोनों नामों पर चर्चा के लिए विधायकों को आधे घंटे का समय दिया गया। आखिर में बंसीलाल के नाम पर सहमति बनी। उनके नाम पर चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी राजी हो गए। इस तरह चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री चुन लिए गए। दिल्ली में बंसीलाल का शपथ ग्रहण, भीड़ इतनी कि पत्रकार वेन्यू तक पहुंच नहीं पाए विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद बंसीलाल पहली बार किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा ले रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद और हरियाणा में चुनाव लड़ने के बीच आप क्या कर रहे थे? बंसीलाल ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया- ‘पापड़ बेलते रहे।’ 22 मई 1968 को मुख्यमंत्री का शपथग्रहण था। राज्यपाल बीएन चक्रवर्ती बीमार चल रहे थे। इलाज के लिए दिल्ली में थे। इस वजह से बंसीलाल का शपथ ग्रहण समारोह दिल्ली के हरियाणा भवन में रखा गया। उधर हरियाणा में बंसीलाल के समर्थकों के बीच खबर फैल गई थी कि बंसीलाल मुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं। उनके सैकड़ों समर्थक दिल्ली के लिए निकल पड़े। शपथ ग्रहण, पहली मंजिल पर ड्राइंग रूम में था और बाहर इतनी भीड़ थी कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो यानी, PIB के अधिकारी भी बाहर ही रह गए। हम तो सड़क किनारे कार रोककर शौच कर लेंगे, लेकिन महिलाएं कहां जाएंगी बंसीलाल से जुड़े एक दिलचस्प किस्से का जिक्र करते हुए राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं- एक बार करनाल के पास जीटी रोड पर मुख्यमंत्री बंसीलाल से मेरी मुलाकात हुई। कार से उतरते ही उन्होंने अपने सचिव एसके मिश्रा से कहा कि मिश्रा जी, अगर इस सड़क पर दिल्ली जाते हुए मुझे या आपको पेशाब लग जाए, तो हम कार रोककर झाड़ियों में जा सकते हैं, लेकिन आपकी पत्नी आपके साथ बैठी हो तो उसका क्या होगा? बंसीलाल पांच सेकेंड तक रुके। फिर बोले- ये जगह चंडीगढ़ और दिल्ली के बिल्कुल बीच में है। आप यहां एक छोटा सा रेस्तरां बना दें, जिसमें साफ टॉयलेट हों, तो यहां से गुजरने वाले लोग आपको हमेशा दुआएं देंगे। जब एक अफसर ने बंसीलाल को किया बाथरूम में बंद तब पंडित भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री थे। राव बीरेंद्र उनकी सरकार गिराने की जुगत में थे। बंसीलाल पहली बार विधायक बने थे। बगावती विधायकों को लग रहा था कि बंसीलाल उनके साथ वोट नहीं डालेंगे। ऐसे में रणनीति बनी कि उन्हें सदन ही नहीं पहुंचने दिया जाए। एक अफसर को यह काम सौंपा गया। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। जब वे बाथरूम गए, तो अफसर ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें तब तक बाथरूम से बाहर नहीं आने दिया, जब तक भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई। बाद में जब बंसीलाल मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने सबसे पहला काम उस अफसर को सस्पेंड करने का किया था। हरियाणा में शराबबंदी, लेकिन सरकारी पार्टियों में शराब परोसने की मंजूरी रिटायर्ड आईएएस राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘CM बनने के बाद बंसीलाल ने मुझे डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक रिलेशन यानी, DPR का जिम्मा सौंपा। सरकार के कामों को मीडिया और लोगों के बीच प्रचार करने की जिम्मेदारी इसी विभाग की होती है। कुछ दिन बाद पत्रकारों से मेल-मुलाकात के लिए सरकार की तरफ से डिनर का प्रोग्राम रखा गया। उस समय चंडीगढ़ में किसी भी अखबार के पास अपना फोटोग्राफर नहीं था। उन्हें सरकार के विभाग पर ही निर्भर रहना होता था। अगले दिन डिनर के बिल वाउचर पास करने के लिए मुझे दिए गए। उसमें 80 पत्रकारों के डिनर की मेजबानी लिखी थी, जबकि डिनर में सिर्फ 20 पत्रकार ही थे। मैंने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि डिनर में पत्रकारों को शराब परोसी जाती है, लेकिन सरकार से इसका अप्रूवल नहीं है। इस वजह से शराब के खर्च को एडजस्ट करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। मुझे डर था कि चौधरी बंसीलाल को इसका पता चलेगा तो वे न जाने क्या करेंगे। अगले दिन जब मैं बंसीलाल से मिला तो उन्हें पूरी बात बताई। वे मुस्कुराकर बोले- आप उन्हें शराब क्यों पिलाते हो, बंद कर दो। मैंने कहा कि फिर तो सरकार की डिनर पार्टियों में कोई पत्रकार आएगा ही नहीं। इस पर वे बोले कि शराब पिलाना इतना ही जरूरी है, तो मेरी परमिशन ले लो।’ हालांकि बाद में बंसीलाल ने राज्य में शराबबंदी लागू किया था। भारत को गन की जरूरत थी, ऑस्ट्रेलिया में बंद फैक्ट्री चालू कराई साल 1975, बंसीलाल करीब सात साल से मुख्यमंत्री थे। दूसरी बार उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। उनकी गिनती इंदिरा के करीबियों में होने लगी थी। यही वजह थी कि इमरजेंसी लगने के छह महीने बाद 30 नवंबर को इंदिरा ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए दिल्ली बुला लिया। वे 20 दिन तक बगैर किसी मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। चौधरी बंसीलाल आईएएस एसके मिश्रा पर बहुत भरोसा करते थे। जब वे देश के रक्षा मंत्री बने तो मिश्रा को उन्होंने मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाकर बुला लिया। एसके मिश्रा अपनी किताब में लिखते हैं- रक्षा मंत्री बनने के बाद बंसीलाल ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का इंस्पेक्शन करने चेन्नई गए। वे स्वदेशी विजयंत टैंक के निर्माण में देरी से नाराज थे। उस समय सेना में टैंकों की भारी कमी थी। बंसीलाल ने दो हफ्तों तक मुझे वहीं रहने और प्रोडक्शन में देरी का कारण जानने के लिए कहा। मैंने पाया कि मशीनरी अपडेट कर दी जाए तो प्रोडक्शन बढ़ाया जा सकता है। इंदिरा गांधी भी इसके लिए तैयार हो गईं, लेकिन टैंकों में जो गन्स लगनी थीं वो इंग्लैंड से आनी थीं। कंपनी ने ज्यादा गन सप्लाई करने से मना कर दिया। इसका तोड़ निकालने के लिए बंसीलाल ने मुझे कोलकाता, रांची और कानपुर की गन फैक्ट्री में भेजा, लेकिन बात नहीं बनी। बहुत मशक्कत के बाद पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में एक फैक्ट्री ब्रिटेन से लाइसेंस लेकर गन बनाती थी, लेकिन ऑर्डर न मिलने की वजह से बंद हो गई। कंपनी से संपर्क किया गया और फैक्ट्री चालू हुई। इसके बाद भारत को गन्स की सप्लाई हुई और सेना को विजयंत टैंक समय से मिलने शुरू हो गए। देवीलाल ने बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर सड़कों पर घुमाया एक बार बंसीलाल और देवीलाल एक ही कार से दिल्ली जा रहे थे। रास्ते में किसी बात पर देवीलाल, बंसीलाल को बार-बार सलाह दे रहे थे। बंसीलाल नाराज हो गए और उन्होंने बीच रास्ते में ही देवीलाल को कार से उतार दिया। कहा जाता है कि उस घटना के बाद देवीलाल, बंसीलाल से बदला लेने का मन बना चुके थे। 1977 में हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार बनी और देवीलाल मुख्यमंत्री। कुछ दिनों बाद हरियाणा युवा कांग्रेस के फंड में गड़बड़ी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल गिरफ्तार कर लिए गए। पुलिस, बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर भिवानी की सड़कों पर खुली जीप में बैठाकर कोर्ट ले गई। मौत की सजा पाया क्रिमिनल जेल से भागा, शक बंसीलाल पर एसके मिश्रा अपनी किताब में एक और किस्से का जिक्र करते हैं- ‘एक बार मुख्यमंत्री बंसीलाल कहीं जा रहे थे। उनका काफिला अंबाला के पास पहुंचा, तो एक बूढ़ी औरत ने उनकी गाड़ी रुकवा ली। वह रो रही थी। वजह पूछने पर पता चला कि उसके बेटे को मौत की सजा हुई है और उसकी दया याचिका भी खारिज हो चुकी है। दो दिन बाद उसे फांसी दी जानी थी। इस मामले में अब कुछ नहीं किया जा सकता था। बंसीलाल ने गाड़ी आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने मुझसे कहा- चाहे उस लड़के ने कितना भी जघन्य अपराध किया हो, लेकिन मां के लिए वह उसका बेटा है। अगले दिन अखबारों में छपा कि वह लड़का जेल से भाग गया। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह महज संयोग नहीं था, लेकिन मैंने कभी बंसीलाल से इस बारे में नहीं पूछा और न ही उन्होंने कभी मुझसे कुछ जिक्र किया।’ सरकार बनाई बीजेपी की मदद से, सरकार बचाई कांग्रेस ने साल 1996, हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। वोटों की गिनती हुई, तो हरियाणा विकास पार्टी को 33 और बीजेपी को 11 सीटें मिलीं। जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई। चौधरी बंसीलाल चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वक्त के साथ बंसीलाल और बीजेपी के बीच रिश्तों में तल्खी आने लगी। 22 जून 1999 को बीजेपी ने हरियाणा विकास पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया। बंसीलाल की सरकार अल्पमत में आ गई। तीन दिन बाद यानी 25 जून को फ्लोर टेस्ट की तारीख तय हुई। सियासी गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी के हाथ खींचने के बाद कांग्रेस ने बंसीलाल को समर्थन दिया है। इधर, विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह पानी पी-पीकर बंसीलाल सरकार को कोस रहे थे। बंसीलाल के करीबी और उस समय संसदीय कार्य मंत्री रहे अतर सिंह सैनी एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘मैंने बंसीलाल से कहा- बात तो समर्थन की हुई थी। ये तो अपने खिलाफ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जाकर सुरेंद्र से बात करो। सुरेंद्र बंसीलाल के छोटे बेटे थे। मैं बाहर निकला तो पूर्व सीएम भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई मिल गए। मैंने पूछा, भाई क्या करोगे। बोले- ‘थारी मंजी ठोकांगे’ यानी ठिकाने लगाएंगे। जब मैं सुरेंद्र सिंह के पास पहुंचा तो वे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र हुड्डा और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के साथ विधानसभा गैलरी में बैठे थे। मैंने सुरेंद्र से बात की तो वे बोले कि बात चल रही है। वहां से मैं सदन में वापस आया, तो देखा कि बीरेंद्र सिंह अभी भी सरकार के खिलाफ बोल रहे थे। उन्होंने इतनी कमियां गिनाईं कि मैं ये मान चुका था कि अब तो अपनी सरकार गई। थोड़ी देर बाद अहमद पटेल ने बीरेंद्र सिंह के पास एक पर्ची भिजवाई। पर्ची पढ़ते ही बीरेंद्र सिंह बोले- ‘सभी कमियां होते हुए भी हम चौधरी बंसीलाल की सरकार को समर्थन देते हैं।’ थोड़ी देर बाद कांग्रेस ने व्हिप जारी कर दिया। इस तरह बंसीलाल की सरकार बच गई। बंसीलाल, सोनिया का धन्यवाद करने गए, लेकिन लौटे तो सरकार गिर गई पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी बताते हैं- ‘सरकार बचने के बाद बंसीलाल को सोनिया गांधी का धन्यवाद करने जाना था। तय हुआ था कि HVP का कांग्रेस में विलय करके विधानसभा भंग की जाएगी और चुनाव कराए जाएंगे। सोनिया से मिलने से पहले बंसीलाल ने मुझे बुलाया और एक लिस्ट दिखाई। उसमें हमारे 33 विधायकों में से 21 के नाम थे। मैंने तीन नामों पर निशान लगा दिए कि अगर इनको टिकट न दें तो भी कोई बात नहीं। वे जब सोनिया से मिले तो उनका धन्यवाद किया और लिस्ट सामने रख दी। लिस्ट देखकर सोनिया ने कहा- ये मैं बाद में सोचूंगी। बंसीलाल, इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके थे, बड़े लीडर थे। उन्हें ये बात बर्दाश्त नहीं हुई। बंसीलाल ने भी कह दिया कि फिर मैं भी बाद में सोचूंगा और चले आए। कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।’