हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के सांगला में तीन दिवसीय होली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। यह उत्सव किन्नौरी संस्कृति की विशेष पहचान है। इस दौरान स्थानीय लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सजकर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं। होली क्लब के सदस्य साधु वेश और मुखौटे पहनकर उत्सव में शामिल होते हैं। होली की टोलियां किन्नौरी वाद्य यंत्रों की धुन पर नाचते-गाते हुए सांगला के विभिन्न क्षेत्रों से होकर स्थानीय देव प्रांगण तक जाती हैं। रामायण के दृश्यों का मंचन इस अवसर पर रामायण के दृश्यों का मंचन भी किया जाता है। स्थानीय ग्रामीण होली की टोलियों को किन्नौरी व्यंजन, हलवा और पूरी भेंट करते हैं। उत्सव के दौरान जिले के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग सांगला पहुंचते हैं।अंतिम दिन ग्रामीण होलिका का पुतला बनाते हैं। होलिका दहन के साथ होली का समापन होता है। बसंत के आगमन की घोषणा का प्रतीक चौथे दिन फाग मेला मनाया जाता है। यह त्योहार वसंत के आगमन की घोषणा का प्रतीक माना जाता है। सांगला की होली में देसी-विदेशी पर्यटक भी शामिल होकर किन्नौरी संस्कृति का आनंद लेते हैं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के सांगला में तीन दिवसीय होली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। यह उत्सव किन्नौरी संस्कृति की विशेष पहचान है। इस दौरान स्थानीय लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सजकर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं। होली क्लब के सदस्य साधु वेश और मुखौटे पहनकर उत्सव में शामिल होते हैं। होली की टोलियां किन्नौरी वाद्य यंत्रों की धुन पर नाचते-गाते हुए सांगला के विभिन्न क्षेत्रों से होकर स्थानीय देव प्रांगण तक जाती हैं। रामायण के दृश्यों का मंचन इस अवसर पर रामायण के दृश्यों का मंचन भी किया जाता है। स्थानीय ग्रामीण होली की टोलियों को किन्नौरी व्यंजन, हलवा और पूरी भेंट करते हैं। उत्सव के दौरान जिले के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग सांगला पहुंचते हैं।अंतिम दिन ग्रामीण होलिका का पुतला बनाते हैं। होलिका दहन के साथ होली का समापन होता है। बसंत के आगमन की घोषणा का प्रतीक चौथे दिन फाग मेला मनाया जाता है। यह त्योहार वसंत के आगमन की घोषणा का प्रतीक माना जाता है। सांगला की होली में देसी-विदेशी पर्यटक भी शामिल होकर किन्नौरी संस्कृति का आनंद लेते हैं। हिमाचल | दैनिक भास्कर
