महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी। यह भारत की लगभग आधी आबादी है। लेकिन महाकुंभ का बहिष्कार करके इंडिया गठबंधन ने न तो राजनीतिक समझदारी दिखाई और न ही भारत के 110 करोड़ हिंदुओं के प्रति सम्मान जताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो कुंभ से पूरे समय गैर-हाजिर रहे थे। हालांकि कुछ अन्य कांग्रेस नेता महाकुंभ को नजरअंदाज करने के कांग्रेस के हाईकमान के अलिखित फरमान की अवहेलना करते हुए प्रयागराज पहुंचे। दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गुट की प्रतिक्रिया बताती है कि उसने भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए एक बहुत नाकाम रणनीति अपना ली है। क्योंकि महाकुंभ हिंदुत्व का नहीं, हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उसकी अवहेलना करते हैं, वे सनातन धर्म की अवहेलना कर रहे होते हैं। हिंदू धर्म का सम्मान करने के लिए आपको हिंदू होने की जरूरत नहीं है। आज के आधुनिक युग में जहां भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और टेक स्टार्टअप हैं, वहां विज्ञान और अध्यात्म के इस संयोजन की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेस, सपा, राजद, एनसीपी और डीएमके जैसी पार्टियां इसके ठीक उलट काम करती हैं। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की उनकी ही पार्टी ने हाल में निंदा की, क्योंकि वे तमिलनाडु के कोयंबटूर में सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कांग्रेस नेताओं को इस बात से गुस्सा आया कि शिवकुमार ने कुंभ में भी डुबकी लगाई थी। महाशिवरात्रि कार्यक्रम में जाना दूसरा अपराध था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कुंभ में शामिल होने वाों पर हमला करने वालों का नेतृत्व कर रहे थे। शिवकुमार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा- हमारे कांग्रेस अध्यक्ष का नाम मल्लिकार्जुन खरगे है। मल्लिकार्जुन कौन हैं? वे शिव ही तो हैं। तो क्या उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए? मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं और हिंदू के रूप में ही मरूंगा। शिवकुमार ने आगे कहा- महाकुंभ को लेकर मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। जिस तरह से उन्होंने इसे आयोजित किया, 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए राहुल ने कई मंदिरों का दौरा किया और मतदाताओं के सामने यह साबित करने के लिए अपना जनेऊ दिखाया कि वे ब्राह्मण हैं। राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा से अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही। इसके एक साल बाद कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनोरिटी-फर्स्ट की नीति पर फिर से लौट आया। हार के लिए राहुल की मंदिर-राजनीति से नाराज मुस्लिम वोटबैंक को जिम्मेदार ठहराया गया। जबकि भाजपा की जीत का असली कारण बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर एयर-स्ट्राइक से देश में पैदा हुआ राष्ट्रवादी उत्साह था। (ये लेखक के अपने विचार हैं) महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी। यह भारत की लगभग आधी आबादी है। लेकिन महाकुंभ का बहिष्कार करके इंडिया गठबंधन ने न तो राजनीतिक समझदारी दिखाई और न ही भारत के 110 करोड़ हिंदुओं के प्रति सम्मान जताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो कुंभ से पूरे समय गैर-हाजिर रहे थे। हालांकि कुछ अन्य कांग्रेस नेता महाकुंभ को नजरअंदाज करने के कांग्रेस के हाईकमान के अलिखित फरमान की अवहेलना करते हुए प्रयागराज पहुंचे। दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गुट की प्रतिक्रिया बताती है कि उसने भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए एक बहुत नाकाम रणनीति अपना ली है। क्योंकि महाकुंभ हिंदुत्व का नहीं, हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उसकी अवहेलना करते हैं, वे सनातन धर्म की अवहेलना कर रहे होते हैं। हिंदू धर्म का सम्मान करने के लिए आपको हिंदू होने की जरूरत नहीं है। आज के आधुनिक युग में जहां भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और टेक स्टार्टअप हैं, वहां विज्ञान और अध्यात्म के इस संयोजन की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेस, सपा, राजद, एनसीपी और डीएमके जैसी पार्टियां इसके ठीक उलट काम करती हैं। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की उनकी ही पार्टी ने हाल में निंदा की, क्योंकि वे तमिलनाडु के कोयंबटूर में सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कांग्रेस नेताओं को इस बात से गुस्सा आया कि शिवकुमार ने कुंभ में भी डुबकी लगाई थी। महाशिवरात्रि कार्यक्रम में जाना दूसरा अपराध था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कुंभ में शामिल होने वाों पर हमला करने वालों का नेतृत्व कर रहे थे। शिवकुमार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा- हमारे कांग्रेस अध्यक्ष का नाम मल्लिकार्जुन खरगे है। मल्लिकार्जुन कौन हैं? वे शिव ही तो हैं। तो क्या उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए? मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं और हिंदू के रूप में ही मरूंगा। शिवकुमार ने आगे कहा- महाकुंभ को लेकर मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। जिस तरह से उन्होंने इसे आयोजित किया, 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए राहुल ने कई मंदिरों का दौरा किया और मतदाताओं के सामने यह साबित करने के लिए अपना जनेऊ दिखाया कि वे ब्राह्मण हैं। राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा से अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही। इसके एक साल बाद कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनोरिटी-फर्स्ट की नीति पर फिर से लौट आया। हार के लिए राहुल की मंदिर-राजनीति से नाराज मुस्लिम वोटबैंक को जिम्मेदार ठहराया गया। जबकि भाजपा की जीत का असली कारण बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर एयर-स्ट्राइक से देश में पैदा हुआ राष्ट्रवादी उत्साह था। (ये लेखक के अपने विचार हैं) उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
कुंभ का बहिष्कार करना कांग्रेस की समझदारी नहीं:हिंदू धर्म का सम्मान करने के लिए आपको हिंदू होने की जरूरत नहीं
